दही जामन उत्पादन: तैयारी और तरीके | Read this article in Hindi to learn about:- 1. दही जामन (Curd Starter Culture) 2. दही निर्माण विधि (Method of Dahi Manufacture) 3. दही में वांछित गुण (Desirable Characteristics) 4. कमियां (Defects).

दही जामन उत्पादन (Curd Starter Culture):

घरेलू तथा व्यवसायिक दही उत्पादन में सामान्यता अज्ञात संगठन का जामन प्रयोग किया जाता है जिसके द्वारा उत्पादित दही का संग्रह काल अनिश्चित होता है । इस प्रकार के जामन में सामान्यता Streptococcus Salivarious spp. Thermophilus, Lactococcus Lactis spp. Lactis, str. Faecalis, Leuconostoc Dextranicum, Lactobacillus Balgaricus, Lb. Cassi तथा Lb. Brevis तथा Yeast पाये जाते हैं ।

अच्छी साधारण-दही उत्पादन के लिए जामन में Lactococcus Lactis spp. Lactis, Lc. Lactis spp. Cremoris तथा Lc. Lactis spp. Lactis Biovar, Diacetyl Lactis होने चाहिए । उच्च अम्लता स्तर की दही निर्माण के लिए जामन में उपरोक्त के साथ Lb. Acidophilus तथा Bifidobacterium Bifidum होने चाहिए । जीवाणु के इस संगठन युक्त जामन से उत्पन्न दही का भंडारण काल अधिक तथा उसकी दवाई के रूप में भी उपयोगिता अधिक होती है ।

औद्योगिक उपयोग के लिए जामन तैयार करना (Preparation of Bulk Starter):

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साधारण दही उत्पादन में प्रयोग के लिए जामन उत्पादन हेतु साफ व स्वच्छ सप्रेटा दूध को 45 मिनट तक Autoclave में भाप द्वारा निजीमीकृत करते हैं । उष्मा उपचारित दूध को अवशीतित या सादे पानी से 30-37°C ताप तक ठण्डा करते हैं ।

उष्मा उपाचारित ठण्डे दूध को सावधानी सहित 1.0% मूल जामन (Mother Culture) द्वारा Inoculate कहते हैं । अच्छी प्रकार मिला कर 30°C ताप पर 12-14 घन्टे तक रखते हैं । उच्च अम्लता युक्त दही उत्पादन हेतु जामन तैयार करने के लिए उष्मा उपचारित ठंडे (सप्रेटा) दूध में 1 प्रतिशत सम्बन्धित मूल जामन डालकर, मिलाकर 37°C ताप Incubation के लिए 12-14 घन्टे तक रखते हैं ।

दही निर्माण विधि (Method of Dahi Manufacture):

प्रवाही आरेख (Flow Diagram):

Receiving Raw Milk (Standardized Whole Milk as for Cow, Buffalo or Mixed Standards) → Heating (90°C for 15 minutes) → Cooling (30°C or 37°C under Chilled or Ordinary Water tap.) → Inoculation (@ 1.0% Starter) → Packaging (100, 250 or 500 ml. Cubs) → Incubation (30°C or 37°C for 12-14 hrs.) → Dahi (Storage at 5°C).

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विवरण (Details):

अच्छी दही उत्पादन के लिए प्राप्त दूध को पर्याप्त उष्मा उपचार देना अति आवश्यक होता है जिससे उसमें उपस्थित सभी अनेच्छिक जीवाणु समाप्त हो जाते हैं । उष्मा उपचार द्वारा दही की गुणवत्ता सुधरती है । उष्मा उपचार Double Jacketed Vat में या गर्म पानी में रखकर देना चाहिए ।

आग से सीधे रूप में दूध को गर्म करने से बचाना चाहिए । उष्मा उपचारित दूध के तुरन्त ठण्डा किया जाये तथा 1% जामन मिला कर 30°C या 37°C ताप पर 100, 250 या 500ml के कपों में भरें ।

इन कपों को 30°C या 37°C तापमान पर 12-14 घन्टे तक रखें । इसके बाद दही की 5°C ताप पर भंडारित करें ताकि आगे अम्लता प्रतिशत में वृद्धि न हो । इस ताप पर घी को 1 सप्ताह तक भंडारित किया जा सकता है ।

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दही के संवेदी गुण (Sensory Qualities):

1. दही देखने में चमकीला चिकना (Glossy) लगना चाहिए ।

2. दही हल्का कडा (Slightly Firm) बदन युक्त हो ।

3. दही में अम्लता मध्यम (Mild Acidity) होनी चाहिए ।

4. दही कोमल मधुर गन्ध (Delicate Aroma) युक्त हो ।

दही में वांछित गुण (Desirable Characteristics in Dahi):

1. रंग तथा दिखावट (Colour and Appearance):

दही का रंग आकर्षक तथा समान होना चाहिए उसमें कोई बाह्य पदार्थ दिखाई न दें । गाय के दूध से बनी दही का रंग Creamy Yellow तथा भैंस के दूध से बनी दही का रंग Creamy White होता है । दही की सतह चमकदार तथा पानी रहित रहे ।

2. सुगन्ध (Flavour):

दही में मीठी गन्ध (Sweetish Aroma) तथा स्वच्छ मध्य अम्लीय स्वाद (Mild Clean Acid Taste) होना चाहिए । इसमें कोई दुर्गन्ध न हो । स्किम दूध से बनी दही में वसा की प्रचुर सघन गन्ध (Rich Flavour) नहीं होती है ।

3. बदन तथा गठन (Body and Texture):

अच्छी दही एक गाढ़ा अर्थ ठोस (Weak Gel) पदार्थ है । सतह पर एक वसीय परत पायी जाती है । दही को काटने पर हवा के बुलबुले या स्थान नहीं मिलने चाहिए ।

4. अम्लता (Acidity):

मीठी दही में 0.75 से 0.85% तथा खट्टी दही में 1% तक अनुमापनीय अम्लता अपेक्षित है । दही के मूल्यांकन के क्रम में सर्वप्रथम Container, फिर Aroma, Colour and Appearance, Body and Texture तथा Flavour का मूल्यांकन करते हैं ।

दही में कमियां (Defects in Dahi):

A. रंग तथा दिखावट (Colour and Appearance):

अच्छी गुणवत्ता वाली दही में किसी आपत्तिकारक रंग की उपस्थिति न हो । दूध को अधिक गर्म करने के कारण Browing हो सकता है । दही में किसी बाह्य पदार्थ का दृष्टिगोचर होना अस्वच्छ दिखावट (Unclean Appearance) दर्शाता है ।

B. बदन तथा गठन (Body and Texture):

1. Wheying Off- इस अवगुण में दही में या तो ऊपरी सतह पर पानी आ जाता है या पेंदी में पानी तथा ऊपर Curd रहता है । दही में ऊपर पानी अधिक अम्लता की उपस्थिति में तथा पेंदी में पानी जामन में गैस उत्पादक जीवाणु (Coliform) की उपस्थिति के कारण बनता है ।

2. Watery with Curd Flaks- दही उत्पादन के लिए प्रयुक्त दूध में यदि कुल ठोस पदार्थ आवश्यक स्तर से कम रहे, या दूध को उचित ऊष्मा उपचार न दिया जाये तो यह अवगुण उत्पन्न हो जाता है ।

3. Too Weak Body- दूध में कम ठोस या अपर्याप्त अम्ल उत्पादन के कारण यह अवगुण दिखाई पड़ता है ।

4. Grainy/Lumpy- पुन: रचित दूध में दुग्ध चूर्ण के अपूर्ण विलयन से यह अवगुण आता है ।

5. Gassiness- जामन में Yeast या Coliform जीवाणुओं की उपस्थिति के कारण दही के बदन (Body) में गैस युक्त रिक्त स्थान (Gas Pockets) बन जाते हैं ।

6. Ropiness- यदि दही को बिना समूचित रूप से गर्म किये या गर्म करने के बाद श्लेष्मा (Slime) उत्पादक जीवाणुओं से संक्रमित दूध से बनाते हैं तो यह अवगुण दृष्टिगोचर होता है ।

C. सुगन्ध (Flavour):

1. High Acidity- दही बनाने में जामन की अधिक मात्रा का उपयोग या Incubation में उच्च ताप रखना या लम्बा संग्रह काल होने से दही का स्वाद तेज (Sharp) हो जाता है तथा उसमें से बहुत खट्टी गन्ध आती है ।

2. Bitterness- यदि दूध या जामन को हवा में खुला रखा गया है तो वह हवा से Sweet Curdling उत्पादक जीवाणुओं द्वारा संक्रमित हो जाता है जिससे उसमें कड़वा स्वाद बन जाता है ।

3. Yeasty or Alcoholic- दूध या जामन में Yeast का संक्रमण हो जाने से यह अवगुण आता है ।

4. Burnt/Cooked- धुएं युक्त आग पर दूध को सीधा गर्म करना या अधिक पकाने से यह गन्ध उत्पन्न होती है ।

5. Metallic- यदि दूध को धातु के बर्तनों में रख कर जामन दिया जाये तो उसमें Iron या Copper के Contamination के कारण यह गन्ध व स्वाद उत्पन्न होता है ।

6. Cheesy- दही को लम्बे समय तक संग्रह करने पर प्रोटीन अपघटन से यह गन्ध उत्पन्न होती है ।

दही की दवाई के रूप में उपयोगिता (Therapeutic Value of Curd):

दही का उपयोग Dyspepsia, Dysentery तथा अन्य आन्त्ररोगों की चिकित्सा में किया जाता है । दही जीवन शक्ति (Vitality) तथा भूख (Appetite) में वृद्धि करती है । दही में उत्पन्न जीवाणुरोधी यौगिक (Antibacterial Compounds) तथा लैक्टिक अम्ल अनावश्यक तथा सड़नकारी (Putrefactive) जीवाणु की वृद्धि को रोकती है ।

Lb. Acidophilus तथा Bifidobacteria जीवाणुओं की उपस्थिति में निर्मित दही Blood Cholesterol की मात्रा को कम करके हृदय रोगों को कम करती है । यह दही Cancer रोग को भी नियन्त्रित करती है । दही निर्माण में कुछ लैक्टोज लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है ।

अत: दही को वह उपभोक्ता भी पचा सकता है जिन्हें Lactose Intolerance की समस्या रहती है । यदि किसी रोग में किसी रोगी की प्रतिजैविक चिकित्सा (Antibiotic Therapy) किया जाता है तो रोगी के पाचन तन्त्र पर प्रतिजैविक पदार्थ के विपरीत प्रभाव को दही समाप्त करता है । दही निर्माण में दूध की अपेक्षा उसमें विटामिन B2, फोलिक अम्ल तथा नियासिन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है ।

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