Read this article in Hindi to learn about how to dispose solid, liquid, gaseous and radioactive wastes.

विश्व के सभी देशों में औद्योगिकरण की प्रक्रिया बढ़ रही है । औद्योगिक समाजों में विभिन्न प्रकार के कूड़ा-करकट की मात्रा में वृद्धि होती जाती है । परंपरागत तौर पर मानव, पानी के द्वारा कूड़े-करकट एवं रासायनिक प्रदूषण को निपटाते रहते थे और गैसों को वायुमंडल में निष्कासित करते रहते थे । अभी तक मानव की पर्यावरण संबंधी जानकारी बहुत सीमित थी और उसको पता नहीं था कि कूड़ा-करकट से विश्व पर्यावरण को भारी हानि पहुँचती है ।

वास्तव में पर्यावरण प्रदूषण में कड़ा-करकट इत्यादि की बडी भूमिका है । यदि इसको खोदकर मिट्टी में दबाया जाये तो शत जल प्रदूषित हो जाता है और यदि नदी-नालों अथवा झीलों-तालाबों में डाला जायें तो उनका जल प्रदूषित होता है । पहले तो कूड़ा-करकट को इधर-उधर बिखरे दिया जाता था पर आज यह एक बड़ी समस्या का रूप धारण कर चुका है ।

ठोस, तरल, गैस, तथा अणुओं को नष्ट करने और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के उपायों को संक्षिप्त में निम्न में प्रस्तुत किया गया है:

1. कूड़ा-करकट (Solid Wastes):

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कूड़ा-करकट का कई प्रकार से प्रबंधन किया जा सकता है । उदाहरण के लिए कूड़ा-करकट को गड्डे खोद कर दबाया जा सकता है, उसको खाद में बदला जा सकता है अथवा सागरों में डंप किया जा सकता है । कूडा-करकट की उत्पत्ति अधिकतर (i) कृषि, (ii) उद्योगों, (iii) नगरों, (iv) घरों से तथा सड़कों एवं गली-गलियारों से होती है ।

कूड़ा-करकट को क्षमता पूर्वक एकत्रित करना तथा उसको उपयुक्त स्थान पर शीघ्र पहुँचाने से कुल कूड़े के 75 प्रतिशत कूड़े का उचित प्रबंध किया जा सकता है । भारत में हाथ-गाड़ी, बैलगाडी, भैंस गाड़ी ट्रैक्टर तथा आधुनिक स्वचालित गाडियों के द्वारा एक स्थान से ल स्थान पर ले जाया जाता है ।

कूड़ा-करकट का पर्यावरण पर भारी प्रतिकूल प्रभाव पडता है । जैसा कि ऊपर विवरण दिया जा चुका है, इस से नदी-नालों, पोखर, तालाबों झीलों तथा भूगत जल प्रदूषित हो जाता है ।

2. गंदे पानी का निकास एवं प्रबंधन (Liquid Wastes):

अधिकतर प्रदूषित एवं गदा पानी प्रायः कारखानों एवं घरों से निष्कासित होता है । यह प्रदूषित जल संकटमय होता है । अंततः यह गंदा पानी नदियों झीलों, पोखर, तालाबों तथा सागर में प्रवेश कर जाता है । जैसे-जैसे प्रदूषित जल की मात्रा बढ़ती है । वैसे-वैसे पर्यावरण में उसको शोषित करने की क्षमता घटती जाती है ।

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कारखानों से निकलने वाला गर्म जल पारिस्थितिकी तंत्र के पशु-पक्षियों तथा पेड-पौधों पर खराब असर डालता है ऐसे प्रदूषण को तापीय प्रदूषण कहते हैं ।

तेल प्रदूषण (Oil Pollution):

सागर, महासागर खाड़ी इत्यादि में तेल तथा पेट्रोलियम से प्रदूषण की भारी समस्या बनी रहती है । 

वर्तमान काल में तेल से सागरों के प्रदूषण में तीव्र गति से वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण जहाजरानी है । इस समय अधिकतर कच्चा तेल, पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम पदार्थों का आयात-निर्यात एवं परिवहन जलमार्गों के द्वारा किया जाता है ।

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तेल के टैंकरों तथा अन्य तरीकों से सागरीय जल के प्रभाव के बारे में कुछ भी विश्वास के साथ कहना कठिन है, परंतु इसका जलीय पारिस्थितिकी तंत्र एवं जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।

इस समस्या का सबसे उत्तम समाधान तो यही है कि तेल एवं पेट्रोल का सागरों में रिसाव न होने दिया जाये । तेल ढोने वाले टैंकरों को ऐसा बनाया जाये कि उनमें से तेल का रिसाव न हो । महासागरों को तेल के प्रदूषण से बचाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है । संयुक्त राष्ट्र संगठन को इस दिशा में विशेष प्रयास की आवश्यकता है ।

3. गैसीय प्रदूषण (Gaseous Wastes):

भारी औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं उपभोक्तावाद के कारण हानिकारक गैसों का बड़ी मात्रा में उत्सर्जन हो रहा है । वायु प्रदूषण का एक भयंकर उदाहरण वर्ष 1971 में खाड़ी के युद्ध में देखने को आया था । इस युद्ध के दौरान 600 तेल कुओं में आग लगा दी गई थी, जिससे वायुमंडल में धुएँ के गहरे काले बादल छा गये थे ।

कुओं की आग से करोड़ों बैरल तेल जल गया था और प्रति हफ्ता वायुमंडल में लगभग 500,000 टन कणों का उत्सर्जन हुआ था । इस प्रकार के धुएँ से वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि हुई थी । जिसका पारितंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था ।

4. रेडियोऐक्टिव कचरा (Radioactive Wastes):

यूँ तो सभी उद्योग कड़ा-करकट की समस्या से अवगत हैं, परंतु सबसे बड़ी समस्या रेडियोऐक्टिव कचरे के प्रबंधन की है । नाभिक ऊर्जा के उत्पादन में नाभिकीय कूड़ा-कचरे का भारी मात्रा में उत्पादन होता है । नाभिकीय कचरा बहुत हानिकारक होता है, इस से हानिकारक ऊष्मा का उत्सर्जन होता है ।

नाभिकीय कचरे को विशेष प्रकार के डिब्बों में नमक भरकर धरती में गाड दिया जाता है । इन डिब्बों में भरा गया नमक कचरे से निकलने वाली ऊष्मा को सोख लेते हैं । ऐसे डिब्बे 15 से 60 सेंटीमीटर वृत्त के आकार के होते हैं । इन डिब्बों को महाद्वीपों की कठोर चट्टानों वाली परतों में उतार दिया जाता है जिसमें नमक भरा होता है । इस प्रकार के गहरे गुड़ के ऊपर भी नमक भरकर उनको बद कर दिया जाता है ।