Read this article in Hindi to learn about how to manage waste.

उपयुक्त विवरण से स्पष्ट है कि अपशिष्ट पदार्थों के एकत्रीकरण एवं विस्तार की समस्या एक गम्भीर समस्या है । आज यह बडे नगरों में है, कल छोटे नगरों में होंगी । यही नहीं अपितु नगरीय विकास के साथ-साथ यह और विकट होता जाएगी । विकास एक नैसर्गिक प्रक्रिया है जिसे रोका नहीं जा सकता ।

आवश्यकता है उसे एक उचित दिशा देने की जिससे ‘विनाशरहित विकास’ की कल्पना को मूर्तरूप दिया जा सके । यह कार्य उचित प्रबन्धन द्वारा सम्भव है जिसे सरकारी तन्त्र, स्वयंसेवी संस्थाओं और नागरिकों के सहयोग से किया जाता है ।

अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन हेतु निम्नलिखित सुझाव है:

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बडे-बडे कूडेदानों की स्थापना, मानव द्वारा अपशिष्ट मल-मूत्र निष्कासन की उचित व्यवस्था, नगरों में कूडा-कचरा उठाने की समुचित व्यवस्था, कूडे के ढेरों को जला कर भस्म करना आदि ।

अपशिष्ट पदार्थों की समस्या के नियन्त्रण तथा प्रबन्धन हेतु निम्न कदम उठाने आवश्यक हैं:

1. अपशिष्ट पदार्थ को नष्ट करना- अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट कर उनके कुप्रभाव से पर्यावरण एवं मानव को बचाया जा सकता है । इन्हें नष्ट करने की एक सहज विधि भस्मीकरण है जिससे इसकी मात्रा 60 से 80 प्रतिशत कम की जा सकती है । इसके लिए दहन भट्टी या विशाल दहन प्लान्ट का उपयोग किया जाना चाहिए किन्तु इस क्रिया में वायु प्रदूषण न फैले इसका ध्यान रखना चाहिए ।

रासायनिक क्रिया द्वारा भी अनेक अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट किया जा सकता है अथवा उन्हें पुन उपयोगी बनाया जा सकता है । गहरे महासागरों में अपाशिष्टों का निस्तारण किया जा सकता है किन्तु इसमें यह ध्यान देना आवश्यक है कि सागरीय पर्यावरण प्रदूषित न हो ।

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2. अपशिष्ट पदार्थों से कम्पोस्ट बनाना- नगरीय अपाशिष्टों को भूमि में दबा, सडा-गलाकर उत्तम उर्वरक बनाया जा सकता है जो विशेषकर सब्जियों के उत्पादन में अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होता है ।

3. दारण (रेनडरिंग)- इसके अन्तर्गत हड्डियों, वसा, खप रक्त आदि पशु अवशेषों को पका कर चर्बी प्राप्त की जा सकती है जिसका प्रयोग बनाने में किया जाता है तथा इसके प्रोटीन वाला अंश पशु-चारे के रूप में उपयोगी होता है ।

4. विद्युत उत्पादन- अपशिष्ट पदार्थों से विद्युत उत्पादन का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा चुका है । इस दिशा में समुचित ध्यान देना आवश्यक है । इसी प्रकार इसमें मिश्रित कार्बनिक पदार्थों को मिथेन गैस प्राप्त की जा सकती है जिसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है ।

5. कूडे-करकट को अत्यधिक दबाव से ठोस ईंटों में बदला जा सकता है ।

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6. नगरों में मल-जल निकासी हेतु उचित सीवरेज प्रणाली का विकास आवश्यक है ।

7. नगरीय जल-मल को नगर से दूर गर्त में डाला जाए तथा वहाँ से शुद्धीकरण के पश्चात में उपयोग किया जाना चाहिए ।

8. उद्योगो को अपशिष्ट निस्तारण हेतु कानूनी रूप से बाध्य किया जाना आवश्यक है ।

9. अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण कर रही कागज से कागज, लोहे की कतरनों से स्टील, एल्म्युनियन के टुकड़ों से पुन: एल्युमिनियम, व्यर्थ प्लास्टिक से प्लास्टिक बनाने आदि की समुचित व्यवस्था होना आवश्यक है । इस प्रकार के उद्योगों को जो वर्तमान में कार्यरत हैं, और विकसित करने की आवश्यकता है ।

10. सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण एवं उनके उपयोगों के सम्बन्ध में निरन्तर शोध की आवश्यकता है यही नहीं अपितु विकसित देशों को विकासशील देशों को वे सभी तकनीके प्रदान करनी चाहिए जो अपशष्टों के निस्तारण एवं पर्यावरण सुरक्षा में सहायक हो ।

11. अपशिष्ट पदार्थों की बढती समस्या एवं पर्यावरण सुरक्षा हेतु प्रत्येक क्षेत्र, यही तक कि प्रत्येक नगर हेतु एक दीर्घकलिन ‘मास्टर प्लान’ बनाया जाना आवश्यक है जिससे नियोजित रूप से निराकरण हो सके ।

उपर्युक्त प्रबन्धन सम्बन्धी उपायों के अतिरिक्त सर्वाधिक आवश्यक है- सामान्य नागरिकों के व्यवहार में सुधार । यदि हम में से प्रत्येक अपने घर के अपशिष्ट पदार्थों को स्वयं या दूसरे के घरों अथवा नातियों में फेंकना बन्द कर उसको उचित स्थान पर एकत्र करें तो यह समस्या स्वतः कम हो जाएगी ।

इसी प्रकार नगर-पालिकाओं को भी अपनी उदासीनता त्यागनी होगी और सफाई कर्मचारियों के कार्यों में कुशलता एवं कर्तव्य-परायणता लानी होगी । अपशिष्ट पदार्थों से पर्यावरण प्रदूषित न हो और हमारे स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव न हो, इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है क्योंकि पर्यावरण एक साझी विरासत है, जिसे हमें सुरक्षित रखना है ।