Read this article in Hindi to learn about how to collect, transport and dispose biomedical wastes.

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट का एकत्रीकरण एवं पृथकीकरण (Collection and Segregation of Biomedical Waste):

अपशिष्ट को उसकी उत्पत्ति के स्थल पर ही एकत्र एवं पृथक करना चाहिए । अपशिष्ट के पृथकीकरण का अर्थ है अपशिष्ट को उसकी किस्म के अनुसार विभिन्न विनिर्दिष्ट श्रेणियों में अलग-अलग करना । इसका उद्देश्य हानिकारक एवं संक्रमित वस्तुओं का हानिरहित एवं विसंक्रमित अपशिष्ट से अलग रखना है ।

ऐसा करना किसी अपशिष्ट विशेष का सही ढंग से निपटान करने में भी मदद करता है । संक्षेप में, अस्पताली अपशिष्ट का पृथकीकरण यह सुनिश्चित करने की कुंजी है कि ज्यादातर गैर-संक्रामक अस्पताली अपशिष्ट का निपटान आसानी से एवं बहुत कम लागत पर किया जाये । इस उद्देश्य के लिए विशेष तौर पर रंगीन कूड़ेदानों एवं प्लास्टिक थैलों का प्रयोग कानूनन जरूरी है ।

विभिन्न रंगीन थैलों में पृथक किये जाने वाले अपशिष्ट का संक्षिप्त विवरण आगे दिया गया है:

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1. पीला गैर-क्लोरीनीकृत प्लास्टिक थैला:

मनुष्य का अपशिष्ट (मानवीय ऊतक अंदरूनी अंग, शरीर के अवयव), पशु का अपशिष्ट (पशु ऊतक, अंग, मृत शरीर, रक्त और अनुसंधान में प्रयुक्त प्रयोगात्मक पशु, पशु-चिकित्सा अस्पतालों व महाविद्यालयों द्वारा उत्पन्न अपशिष्, पशु गृहों से स्राव) फेंकी गई दवाईयों और कोशिका-विषी दवायें ।

ठोस संदूषित अपशिष्ट जैसे रूई, पट्टियों, प्लास्टर कास्ट, बिस्तर एवं खून अथवा शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ से सनी हुई अन्य वस्तुएँ । इन सब का भस्मक में भस्म करके परिशोधन एवं निपटान करना होता है ।

2. लाल गैर-क्लोरीनीकृत प्लास्टिक थैला:

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सूक्ष्म जीव विज्ञान एवं जैव-रसायन, रक्त बैंक प्रयोगशाला संबंधों, अनुसंधान में प्रयुक्त मानवीय और पशु-कोशिका संवर्ध, सूईयां, स्कालपेन, ब्लेड, शीशा, शीशे की सीरिंज इत्यादि ट्यूबिंग आईवी ट्यूबिंग, सलाइन बोतलें अथवा डिस्पोजेबल सामग्रियों से उत्पन्न हुआ अपशिष्ट, पेशाब की थैलियों, खून की थैलियां व मूत्र नलिका इत्यादि ।

इन सभी वस्तुओं को रासायनिक उपचार या ऑटोक्लेविंग या माइक्रोवेविंग द्वारा विसंक्रमण के बाद म्यूटिलेशन या शेडिंग / काट-छांट / कतरने के उपचार के बाद रजिस्ट्रीकृत या अधिकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं के माध्यम से अंतिम व्ययन ।

3. नीला गैर-क्लोरीनीकृत प्लास्टिक थैला:

रासायनिक अपशिष्ट, तरल अपशिष्ट (प्रयोगशाला में) धुलाई-सफाई तथा संक्रमण रहित करने की गतिविधियों से पैदा हो । इस अपशिष्ट को रासायनिक परिशोधन द्वारा संक्रमण रहित करना व नाली में बहाना/ठोस अपशिष्ट को सुरक्षित निर्धारित धरती में डालना व दबाना ।

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4. काला गैर-क्लोरीनीकृत थैला:

इसमें नगर-निगम का अपशिष्ट होता है । जिसे नगर-निगम की निर्धारित सुरक्षित धरती में दबाया जाता है । प्लास्टिक थैलों का प्रयोग ढुलाई को आसान करता है, यह अपशिष्ट को बिखरने से रोकता है तथा अपशिष्ट दूसरे लोगों को दिखाई नहीं देता । यह मूल आधानों को साफ भी रखता है । प्लास्टिक के शैलों को दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता है ।

जब थैला अथवा आधान (कंटेनर) तीन-चौथाई भर जाये तो उसका मुंह बांधकर बंद कर देना चाहिए । निपटान योग्य तेज धार अपशिष्ट के आधार (कंटेनर) को टेप से बंद करना चाहिए । सभी थैलों अथवा आधानों (कंटेनर) पर अपशिष्ट की उत्पत्ति के स्थान पर ही नीचे दिया गया चिह्न चिपकाना चाहिए ।

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट के आधान थैले के लिए लेबल:

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट को उठाने-धरने वाले कार्मिकों को अपशिष्ट उठाने- धरने के संबंध में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और चोट तथा दुर्घटनाओं से बचाव के लिए अपशिष्ट उठाने-धरने के समुचित तरीकों के विषय में जागरूक बनाया जाना चाहिए ।

अपशिष्ट को एकत्र करने के लिए कतिपय विधियों को अपनाना चाहिए:

i. खास रंग का प्लास्टिक थैला उसके आधान (कंटेनर) में रखा जाना चाहिए । कूडेदानों और थैली पर जैव-खतरा (बायोहैजर्ड) का चिन्ह अंकित होना चाहिए ।

ii. अपशिष्ट, थैले में इस प्रकार रखा जाना चाहिए ताकि वह बाहर न गिरे ।

iii. जैसे ही थैले का तीन चौथाई भाग भर जाये उसे उसके पात्र (कंटेनर) में से हटा कर प्लास्टिक की रस्सी से मजबूती से बाँध देना चाहिए और ठीक ढंग से लेबल कर देना चाहिए । थैले में अपशिष्ट बिखरने और खेलों के फटने का खतरा बढ जाता किसी भी परिस्थिति में संक्रमित अपशिष्ट को गैर नहीं मिलाना चाहिए ।

iv. किसी भी परिस्थिति में संक्रमित अपशिष्ट को गैर-संक्रामक कचरे के साथ नहीं मिलना चाहिए ।

v. निपटान योग्य वस्तुएँ (जैसे-सिरिंज, आई वी बोतलें, मूत्र नलिका, रबड़ के दस्ताने आदि) को तभी एकत्र किया जाना चाहिए जब इन्हें टुकड़ों में काट दिया गया हो और एक प्रतिशत हाइपोक्लोराइट के घोल में 30 मिनट तक बोकर रासायनिक तौर पर विसंक्रमित कर दिया गया हो ।

vi. सूइयों को सुई काटने वाले यंत्र से नष्ट कर देना चाहिए । तेज धार वाली वस्तुओं को हाथ से तोड़ने-फोड़ने की कोशिश कभी नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से घाव हो सकता है । अन्य सभी तेज धार वाली वस्तुओं को कतरने अथवा अथवा अंतिम रूप से नष्ट करने से पूर्व पूरी तरह से विसंक्रमित (रासायनिक विधि से) किया जाना चाहिए । ऐसा कर लेने के बाद इस कचरे को कट-फट न सकने वाले एक मजबूत डिब्बे में रखकर ठीक से लेबल कर देना चाहिए । अंत में डिब्बे को एक उचित थैले और कूडेदान में रखा जाना चाहिए ।

vii. गैर-संक्रमित अपशिष्ट को साधारण घरेलू अपशिष्ट के रूप में लिया जा सकता है तथा इसे किसी विशिष्ट शोधन की आवश्यकता नहीं होती (बशर्ते इसे किसी संक्रमित अपशिष्ट में न मिलाया गया हो) ।

अपशिष्ट उत्पत्ति को कम करना:

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट का सही एकत्रीकरण एवं पृथकीकरण महत्वपूर्ण है । साथ ही, उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट की मात्रा भी बराबर महत्वपूर्ण है । जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट की कम मात्रा का अर्थ है अपशिष्ट नाशक कार्य का बोझ कम होना, लागत की बचत होना तथा अधिक कारगर व्यवस्था का होना । इसलिए, हमें अस्पतालों में अपने दिन-प्रतिदिन के कार्यों में सदैव यह प्रयास करना चाहिए कि अपशिष्ट कम उत्पन्न हो ।

इस संबंध में कुछ संभावनाएं इस प्रकार हैं:

1. किसी वस्तु का तभी प्रयोग करना चाहिए जब बिल्कुल जरूरी हो । जहां तक संभव हो इसका प्रयोग कम से कम मात्रा में करना चाहिए ।

2. निपटान योग्य वस्तुओं के स्थान पर अधिक पारंपरिक और पुन: प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए (बशर्ते कि जब भी जरूरी हो, ऐसी वस्तुओं को पर्याप्त रूप से विसंक्रमित किया जा सकता हो) ।

उदाहरण के लिए कागज की बनी निपटान-योग्य वस्तुओं के स्थान पर कपड़े का एप्रेन, टोपी और मुखपट्टी का प्रयोग करना चाहिए । इसी प्रकार पेय पदार्थ कपों, गिलासों अथवा मिट्टी के बर्तनों में दिया जा सकता है । एल्युमिनियम की पन्नी के स्थान पर कागजी लिफाफों का प्रयोग किया जा सकता है ।

3. गाढ़े ऐण्टीसेप्टिक घोल थोक में खरीदें और जब जरूरत हो इसे पतला कर लेना चाहिए । इससे पैकिंग सामग्री का अपशिष्ट कम पैदा होगा ।

4. ऐसी सामग्री लें जो इस्तेमाल के हर चरण में तथा निपटान के दौरान भी पर्यावरण के लिए हर तरह से हितकारी हो ।

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट के ढुलाई और भण्डारण (Transportation and Storage of Biomedical Waste):

1. अपशिष्ट की ढुलाई:

(i) उत्पत्ति के स्थान से केन्द्रीय भण्डारण स्थल तक ।

(ii) केन्द्रीय भण्डारण स्थल से निपटान के अन्तिम स्थल तक ।

2. भण्डारण (स्थानीय रूप से और अंतिम निपटान के स्थल पर) ।

सबसे अच्छा यह है कि जब थैला 3/4 भाग भर जाये तो इसे बांधकर. लेबल लगाकर अन्तिम निपटान के स्थान पर भेज देना चाहिए । परन्तु अपशिष्ट के कुछ थैले लेकर अंतिम निपटान के स्थान पर बार-बार जाना व्यावहारिक नहीं होगा । ऐसी दशा में अपशिष्ट को अस्पताल के एक केन्द्रीय स्थल पर अस्थायी तौर पर इकट्ठा किया जा सकता है और वहाँ से इसे एकमुश्त दिन में एक या बार अंतिम निपटान के स्थान पर भेजा जा सकता है ।

केन्द्रीय भण्डारण क्षेत्र तक ढोना:

जब अपशिष्ट को केन्द्रीय भण्डारण क्षेत्र तक लाया जाये तो अधोलिखित नियमों का पालन करना जरूरी है:

i. जांच कर लेना चाहिए कि थैले/आधान (कंटेनर) ठीक तरह से और मजबूती से बांधे गये हैं ।

ii. कचरे के थैले पर सही तरह से निशान लगाया गया है ।

iii. थैले को उसकी मुठ्ठी से पकडना चाहिए और इस तरह रखना चाहिए कि आगे और उठाने-धरने के लिए उसे दुबारा उसकी मुठ्ठी से पकड कर उठाया जा सके । थैले में हाथ न डालें । एक समय में केवल एक थैला ही उठाएँ ।

iv. सुई चुभने और संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए कचरे के थैलों को हाथ से उठाने को कम किया जाना चाहिए । थैले/आधान (कंटेनर) को अपने शरीर से न छूने देना चाहिए ।

v. अपशिष्ट के थैले अथवा (कंटेनर) को कहीं फेंकना या छोड़ना नहीं चाहिए ।

vi. तेज धार वाले अपशिष्ट के आधान (कंटेनर) को ले जाते समय ध्यान देना चाहिए कि नुकीली चीज चुभ न जाये / चोट न लग जाये ।

vii. जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट को केवल निर्दिष्ट भण्डारण क्षेत्र में ही रखना चाहिए ।

viii. थैला हटाने के बाद ढक्कन को किसी रोगाणुनाशक पदार्थ से साफ करने के साथ ही आधान (कंटेनर) को साफ कर देना चाहिए ।

ix. बार्डों/बहिरंग रोगी विभाग से अपशिष्ट के शैलों और आधानों (कंटेनर), को रोज हटाना चाहिए बल्कि ऑपरेशन कक्षों, गहन परिचर्या एककों और प्रसूति कक्षों की भाँति बारंबार हटाने चाहिए । शैलों और आधानों (कंटेनर) को तब तक नहीं हटाना चाहिए जब तक उन्हें ठीक तरह से बांधा न गया हो, सुरक्षित न बनाया गया हो और उन पर लेबल न लगाया गया हो ।

कचरे वाले शैलों अथवा आधानों (कंटेनर) को ऊपर से बंद गाड़ियों में अथवा बड़े कूड़ेदानों को इस उद्देश्य के लिए रखी गई बंद ट्रालियों में ढोना चाहिए । हटाए गए शैलों और आधानों (कंटेनर) के स्थान पर नये थैले /आधान (कंटेनर) रखने चाहिए ।

x. जैव-चिकत्सीय अपशिष्ट का भंडारण क्षेत्र सामान्य अपशिष्ट के भण्डारण क्षेत्र से अलग होना चाहिए और वहां स्पष्ट तौर पर केवल ‘जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट के लिए’ लिखा होना चाहिए ।

xi. अपशिष्ट, रोगी परिचर्या क्षेत्रों से होकर न गुजरे, इसके लिए अपशिष्ट ले जाने को नियत किया जाना चाहिए । कूड़ेदानों को मुख्य भण्डारण क्षेत्रों तक ढोने के लिए इस उद्देश्य के लिए रखी गयी, ऊपर से बंद गाडियों, ट्रालियों और छकडों को प्रयोग करना चाहिए । यदि कभी कड़ा बिखरता है तो इन आधानों को पूरी तरह साफ और रोगाणुमुक्त कर लेना चाहिए ।

xii. यदि लिफ्ट का प्रयोग किया जाता है तो लिफ्ट केवल इसी उद्देश्य के लिए बनाई और आरक्षित की जानी चाहिए ।

केन्द्रीय भण्डारण:

बेहतर होगा यदि अस्पताल में केन्द्रीय भण्डारण स्थल भूतल पर और पिछले प्रवेश द्वार के निकट स्थित हो । ऐसा होने से कचरे को अंतिम निपटान स्थल तक ले जाने में आसानी होगी । केन्द्रीय भण्डारण स्थान इतना बड़ा होना चाहिए कि जहां एक समय में अपेक्षित संख्या में थैले रखे जा सकें । वहाँ पर कम से कम दो दिन का अपशिष्ट रखने की पर्याप्त भण्डारण क्षमता होनी चाहिए ।

यहां पर फर्श, बिजली, रोशनदान और पानी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए । धुलाई के पानी को खपाने के लिए एक विषेश नाली होनी चाहिए जो गंदे पानी के नाले में मिली हो । एक पूर्णकालिक स्टोरकीपर कचरे को प्राप्त करने एवं भेजने और इसका रिकार्ड रखने के लिए उत्तरदायी होना चाहिए ।

अनधिकृत लोगों को भण्डारण क्षेत्र में नहीं जाने देना चाहिए । दुर्घटनावश यदि अपशिष्ट बिखर जाए तो उसे सही ढंग से व्यवस्थित करना चाहिए । नियमानुसार जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को 24-48 घण्टों से अधिक समय तक स्टोर करके नहीं रखा जा सकता ।

अंतिम निपटान के स्थान तक ढुलाई:

स्वास्थ्य परिचर्या संस्थान से अंतिम निपटान स्थल (भस्मीकरण / धरती में दबाने के क्षेत्र आदि) तक अपशिष्ट की ढुलाई प्रायः मोटर गाड़ी द्वारा की जानी चाहिए क्योंकि ये स्थान अस्पताल से दूर होते हैं । इन गड़ियों (ट्रक, ट्रैक्टर-ट्राली आदि) में कचरे को बंद करके ढोना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रास्ते में अपशिष्ट बिखरता नहीं है ।

ऐसी सभी गाड़ियों में जैव-खतरे (बॉयोहैजर्ड) का चिन्ह अंकित होना चाहिए और इनका प्रयोग किसी अन्य प्रयोजन के लिए नहीं करना चाहिए । इन गाड़ियों की नियमित तौर पर मरम्मत व सफाई अनिवार्य है क्योंकि इन्हें एक दिन में एक या दो बार चलना होता है । अंतिम निपटान स्थल पर भी अस्थायी भण्डारण की आवश्यकता हो सकती है ।

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट के निपटान विधियाँ (Settlement Methods of Biomedical Waste):

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट का निपटान दो चरणों में किया जाना चाहिए:

1. पूर्व उचार:

जिस संक्रमित अपशिष्ट को जलाया न जा सकता हो (जैसे प्लास्टिक और रबड की चीजें तथा तेजधार वाली वस्तुएँ आदि) उसे अंतिम निपटान के लिए भेजने से पहले विसंक्रमित (रोगाणुरहित) किया जाना चाहिए ।

2. अंतिम निपटान:

इसमें गहरा गड़ा खोदकर दबा देना, मिट्टी से ढक देना अथवा जला देना शामिल है । इन दोनों तरीकों के बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है ।

1. पूर्व उपचार:

जलाई न जा सकने वाली वस्तुओं को अनेक प्रकार से विसंक्रमित किया जा सकता है जैसा कि नीचे बताया गया है:

i. रासायनिक विधि से विसंक्रमित करना:

प्लास्टिक, रबड और धातु की वस्तुओं (जैसे-आई बी सैट, रक्त थैलियाँ, दस्ताने, केथीटर, पेशाब के थैले, सिरिंज और सुईयाँ) को अंतिम निपटान के लिए भेजने से पहले रासायनिक विधि से विसंक्रमित कर लिया जाना चाहिए ।

रासायनिक विधि से विसंक्रमण निम्नलिखित चरणों में किया जा सकता है:

(a) सूई काटने के औजार (नीडल ध्वंसक) से सिरिंजों और सुइयों को टुकड़े-टुकड़े कर देना चाहिए प्लास्टिक रबड की अन्य सभी वस्तुओं को भी केंची से काट दिया जा सकता है ताकि उनका दोबारा उपयोग न किया जा सके ।

(b) प्लास्टिक की बाल्टी में 10 ग्राम (लगभग दो चम्मच) हाइपोक्लोराइट पाउडर एक लीटर पानी में 1 प्रतिशत हाइपोक्लोराइड घोल (हर रोज ताजा) तैयार करना चाहिए ।

(c) घोल वाली इस बाल्टी में एक छोटी छिद्रों वाली बाल्टी रखनी चाहिए । छिद्रों वाली इस बाल्टी में उन सभी वस्तुओं को डाल देना चाहिए जिन्हें विसंक्रमित किया जाना है । यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे वस्तुएँ 30 से 60 मिनट तक उस घोल में अच्छी प्रकार से डूबी रहना चाहिए ।

(d) 30 से 60 मिनट के बाद छिद्रों वाली बाल्टी को निकाल लें और घोल को बडी बाल्टी में रहने देना चाहिए । विसंक्रमित की गई वस्तुओं को निकालकर कचरे के एक सही थैले में डाल देना चाहिए । तेज धार वाली वस्तुओं को पहले कार्ड-बोर्ड के एक मजबूत डिब्बे में रखकर फिर कचरे के थैले में डाले ताकि कचरे का थैला तेज धार वाली वस्तुओं से क्षतिग्रस्त न हो ।

(e) घोल को हर 12 घंटे बाद बदल देना चाहिए ।

ii. ऑटोक्लेव:

यह माइक्रोबायोलॉजी/बायोटेक्नोलॉजी अपशिष्ट और निपटान योग्य प्लास्टिक तथा रबड की संक्रमित वस्तुओं जैसे दस्ताने, रक्त की थैलियाँ, पेशाब की थैलियाँ, आई वी सैट, सिरिंज आदि को रोगाणुरहित करने की एक प्रभावी विधि है । यह प्रक्रिया कुछ समय के लिए गर्मी और दबाव के आधार पर कार्य करती है ।

ऑटोक्लेव को प्रयोग करते समय कुछ नियमों का पालन करना चाहिए:

(a) जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट को विसंक्रमित करने के लिए एक अलग ऑटोक्लेव होना चाहिए ।

(b) जब ऑटोक्लेव कार्यरत हो तो संकेतक पर सही तापमान, समय और दबाव आना चाहिए । यदि ऐसा नहीं है तो पूरी प्रक्रिया को दोबारा किया जाना चाहिए ।

(c) चिकित्सीय अपशिष्ट का निपटान निम्नलिखित विधि से किया जाना चाहिए:

(I) ग्रेविटी-पलो ऑटोक्लेव का संचालन:

(क) जिस ऑटोक्लेव प्रक्रिया का रेजिडेंस टाइम 60 मिनट से कम न हो उस प्रक्रिया में कम से कम 121 डिग्री सेल्सियस के ताप पर 15 पौंड प्रति वर्ग इंच के दाब पर ऑटोक्लेव किया जाना चाहिए, या

(ख) जिस ऑटोक्लेव प्रक्रिया का रेजिडेंस टाइम 30 मिनट से कम हो उसमें कम से कम 149 डिग्री सेल्सियस के ताप पर और 52 पौंड प्रति वर्ग इंच के दाब पर ऑटोक्लेव किया जाना चाहिए ।

(II) वैक्यूम ऑटोक्लेव का संचालन:

(क) जिस ऑटोक्लेव प्रक्रिया का रेजिडेंस टाइम 45 मिनट से कम न हो उसमें कम से कम न 2 डिग्री सेल्सियस के ताप और 15 पौंड प्रति वर्ग इंच के दाब पर ऑटोक्लेव किया जाना चाहिए, या

(ख) जिस ऑटोक्लेव प्रक्रिया का रेजिडेंस टाइम 30 मिनट से कम है उसमें कम से कम 135 डिग्री सेल्सियस के ताप और 131 पौंड प्रति वर्ग इंच के दाब पर ऑटोक्लेव किया जाना चाहिए ।

(d) ऑटोक्लेव के बाद प्लास्टिक की वस्तुओं को गला करके दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है लेकिन बाकी की वस्तुओं को मिट्टी में दबाकर अंतिम निपटान के लिए भेजा जाना चाहिए ।

iii. हाइड्रोक्लेव:

इस प्रक्रिया में टुकड़ों में काट दिए गये संक्रामक अपशिष्ट को ऑटोक्लेव की तरह उच्च तापमान पर उच्च दाब वाली भाप में रखा जाता है । यदि सही तापमान पर और सही समय तक यह प्रक्रिया अपनाई जाए तो यह अधिकतर सूक्ष्म जीवाणुओं को भी निष्क्रिय बना देती है । यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत कम लागत वाली है तथा इसके संचालन पर भी कम खर्च आता है । पर्यावरण पर भी इसका दुषभाव कम होता है ।

इसके निम्नलिखित नियमों का पालन करना आवश्यक है:

(a) इस विधि का प्रयोग करने से पहले सभी कचरे को टुकड़ों में काट देना आवश्यक है । तेज धार वाली वस्तुओं को पीस या कुचल देना चाहिए ।

(b) इसकी प्रभावकारिता की समय-समय पर जांच करते रहना चाहिए ।

(c) इस उपकरण का प्रयोग और रख-रखाव पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित तकनीशियनों द्वारा किया जाना चाहिए ।

iv. तरंगी विकिरणहीनता (माइक्रोवेव इरेडिएशन):

यह प्रक्रिया भी (ऑटोक्लेव/हाइड्रोक्लेव की तरह) संक्रमित डिस्पोजेबल अपशिष्ट को रोगाणुरहित करने में प्रभावकारी है । सूक्ष्म तरंगों की क्रिया से सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं । अपशिष्ट के अंदर पानी को तेजी से गरम किया जाता है और गरमी के संचालन से संक्रमित अवयव नष्ट हो जाते हैं । सबसे पहले यूनिट के अंदर ही कचरे के टुकड़े कर दिए जाते है तथा बाद में नम करके विकिरणविहीन कर दिया जाता है ।

अंत में कचरे को एक कंटेनर में बंद करके नगर पालिका की अपशिष्ट निपटान प्रणाली को भेजा जा सकता है । यह एक मंहगी प्रक्रिया है और इसके संचालन तथा रख-रखाव पर अच्छी प्रकार नियंत्रण रखने की जरूरत होती है । इन्हीं कमियों के कारण ही यह विधि एक विकासशील देश के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती है ।

v. प्लास्टिक कचरे को कतरने वाली मशीन:

प्लास्टिक की वस्तुओं को कतरने वाली मशीन (प्लास्टिक की बोतलें आई वी सैट्‌स, सूईयां आदि) को 1 सेंटीमीटर आकार वाले छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है । इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि सिरिंज और अन्य प्लास्टिक की वस्तुओं को दोबारा प्रयोग लाने योग्य नहीं बनाया जा सकता ।

2. अंतिम निपटान:

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट का अंतिम रूप से निम्नलिखित तरीकों से निपटान किया जा सकता है:

(i) भस्मीकरण:

यह उच्च तापीय शुष्क ऑक्सीकरण प्रक्रिया है जो जैव और ज्वलनशील अपशिष्ट को भस्म करके अजेव तथा अज्वलनशील पदार्थ बना देती है । यह कचरे के आयतन और भार को कम कर देती है । इस प्रक्रिया का चुनाव अक्सर ऐसे अपशिष्ट को नष्ट करने के लिए किया जाता है जिसे दोबारा उपयोग/रीसाइकिल न किया जा सकता हो अथवा मिट्टी में दबाकर निपटान न किया जा सकता हो । भस्मीकरण के लिए किसी प्राथमिक उपचार की आवश्यकता नहीं कि इसमें कुछ प्रकार के अपशिष्ट शामिल न किए गये हों ।

भस्मीकरण निम्नलिखित प्रकार के अपशिष्ट आसानी से भेजे जा सकते हैं:

a. मानवीय सामग्री (ऊतक, शारीरिक अंग, खून एवं शरीर संबंधी द्रव)

b. जानवरों का अपशिष्ट

c. प्रयोगशाला अपशिष्ट

d. पट्टी का सामान ।

निम्नलिखित अपशिष्ट का भस्मीकरण नहीं करना चाहिए:

i. दाब वाले गैस के कंटेनर

ii. बडी मात्रा में क्रियाशील रासायनिक अपशिष्ट

iii. फोटोग्राफिक/रेडियोग्राफिक अपशिष्ट

iv. होलोजिनेटिड प्लास्टिक जैसे कि पोलिबिनाइल क्लोराइड (पी वी सी)

v. मरक्यूरी और केडमियम की अधिक मात्रा वाला अपशिष्ट (जैसे कि थर्मामीटर, प्रयोग में लाई गई बैटरी)

vi. सीलबंद एम्प्यूल अथवा ऐसे एक्म्यूल जिनमें भारी धातुएं हों ।

भस्मक तीन प्रकार के होते हैं:

I. एक चैम्बर वाली फरनेसिसः यह सबसे सस्ती इकाइयां हो सकती हैं ।

II. दो चैम्बर वाली पाइरोलिटिक भस्मक स्वास्थ्य परिचर्या के अपशिष्ट के लिए सबसे विश्वसनीय ओर आमतौर पर जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट को नष्ट करने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली प्रक्रिया है । इसे दो चैम्बर वाला भस्मक भी कहते हैं ।

सबसे पहले (पाइरोलिटिक) चैम्बर ऑक्सीजन की कमी करके मध्यम तापक्रम (800 डि.से.) पर जलाने की प्रक्रिया से अपशिष्ट को नष्ट किया जाता है इससे ठोस राख और गैसें पैदा होती हैं । दूसरे (दहन के बाद वाले) चैम्बर में गैसों को उच्च तापमान (900 से 1200 डि. से.) पर जलाया जाता है ।

जलाने की इस प्रक्रिया में धुएँ और गंध को कम करने के लिए अधिक वायु का प्रयोग किया जाता है । यह उपकरण कुछ खर्चीला है इसका उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है । रख-रखाव एवं प्रयोग करते समय नियमित देख-रेख की जरूरत होती है ।

III. रोटी भट्टे:

इसमें एक घूमने वाला ओवन एवं एक दहन चैंबर होता है यह विशेष-तौर पर रासायनिक अपशिष्ट (रासायनिक पदार्थ, फार्मासियुटीकल्स, जिनमें साइटीटीक्सिक दवाएं आदि शामिल हैं) को जलाने के लिए प्रयोग किया जाता है ।

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट को अंतिम रूप से नष्ट करते समय जब भस्मक का उपयोग किया जाता है तो निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है:

A. भस्मक आवासीय क्षेत्र से सुरक्षित दूरी पर होना चाहिए ।

B. भस्मक प्लांट के चारों ओर मजबूत तारों से कडी घेराबंदी की जानी चाहिए तथा अनधिकृत लोगों (अपशिष्ट छांटने वालों सहित) के प्रवेश पर प्रतिबंध होना चाहिए ।

C. प्लांट के क्षेत्र में बिजली एवं पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ।

D. अपशिष्ट को लादकर सीधे भट्टी पर ले जाने की व्यवस्था होनी चाहिए । लादने के लिए ऑटोमेटिक मशीन का इस्तेमाल करना चाहिए ।

E. जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट को भस्मक प्लांट के अन्दर 24 घंटे से अधिक नहीं रखा जाना चाहिए ।

F. प्लांट की क्षमता की नियमित रूप से जाँच की जानी चाहिए ।

G. जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट को भट्टी में केवल तभी डालना चाहिए जब जलाने संबंधी आम शर्तें पूरी होती हों (प्रक्रिया को शुरू करते समय अथवा बद होने पर उसमें अपशिष्ट कभी नहीं डालना चाहिए)

H. वायु प्रदूषण कम से कम हो, इसके लिए सही तरकीबें अपनाई जाए ।

I. बची राख को जमीन में दबा देने के लिए भेज देना चाहिए ।

J. यातायात-उपकरणों, वाहनों आदि की सफाई और रोगाणुनाशन की व्यवस्था भस्मक स्थल पर ही होनी चाहिए ।

(ii) तेज धार वाली वस्तुओं के लिए सुरक्षित गड्ढे:

तेज धार वाले कचरे के निपटान की अन्य विधियों के साथ-साथ उसे सुरक्षित गड्ढे में दबाना एक प्रभावी एवं मितव्ययी विधि है । तेज धार वाली वस्तुएँ (सूइयाँ एवं ब्लेड) सभी स्वास्थ्य परिचर्या इकाइयों में प्रतिदिन प्रयोग में लाए जाते है । सुई चुभ जाने से टेटनस, एच बी वी एवं एच आई वी/एड्‌स आदि बिमारिया हो सकती हैं । सूइयों और तेज धार वस्तुओं के पुनः प्रयोग से बचने के लिए इन्हें सुरक्षित गड्ढों में दबा देना चाहिए ।

(iii) डिजाइन एवं निर्माण:

इसे 5 फुट गहरा एवं 3 फुट व्यास वाला गोलाई में कंकरीट से या इंटों के प्रयोग करके गोलाई में या आयताकार बनाया जा सकता है । इसके ऊपर एक शिलपट्ट का प्रयोग किया जाता है जिसमें 5 इंच या 6 इंच व्यास वाला एक जी आई सी पाइप आवश्यकतानुसार ऊपर की ओर लगा दिया जाता है ।

इसमें ताला लगाने की व्यवस्था की जाती है । इसका आकार जरूरत अर्थात् तेज धार वाले अपशिष्ट की मात्रा के अनुसार होगा । गड्ढे को तल और चारों ओर से प्लास्टर कर दिया जाता है । गड्ढे के तल ओर चारों ओर से प्लास्टर कर दिया जाता है । स्थल की प्राप्ति एवं आवश्यकतानुसार गड्ढे का आकार एवं स्वरूप (क्षेत्रफल) भिन्न हो सकता है । जब यह भर जाता है तो उसे बद करने के लिए सीमेंट का गड्ढा घोल प्रयोग किया जा सकता है तथा दूसरा गड़ा बनाया जा सकता है ।

लाभ:

1. पर्यावरण के लिए सुरक्षित

2. कम लागत वाला

3. 48 घंटे के दौरान बनाए जाने में आसान

4. ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों एवं अस्पतालों के लिए जहाँ पर स्थान उपलब्ध वही अधिक सुविधाजनक ।

(iv) भूमि में दबाना:

यह जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट के अंतिम निपटान का एक और विकल्प हो सकता है जोकि काफी कम खर्चीला है बशर्ते कि सही तरीके से किया जाए । स्वास्थ्य परिचर्या अपशिष्ट को खुले क्षेत्र में रखने की सिफारिश कुछ कारणों से नहीं की जा सकती क्योंकि इसकी वजह से गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं, आग, बीमारी फैलने का अधिक खतरा और सफाई कर्मचारियों और जानवरों की आसान पहुंच आदि से समस्याएं पैदा हो सकती हैं ।

विशेषतया विकासशील देशों में कुछ नियमों का पालन करते हुए अपशिष्ट को सुरक्षित गड्ढो में दबाने का विकल्प स्वीकार्य हो सकता है । इसके लिए जगह निर्धारित करने के लिए ग्राम पंचायत या नगर निगम से मंजूरी लेनी जरूरी है व जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधक और हथालन) नियम 2011 के अनुसार ही किया जाता है ।

भूमि में दबाने की प्रक्रिया के डिजाइन एवं संचालन के लिए कुछ आवश्यक बातें नीचे दी गई हैं:

1. एक खासतौर पर डिजाइन किया गया स्थल ही भूमि में अपशिष्ट दबाने के लिए उपयोग में लाया जाना चाहिए । उपर्युक्त उद्देश्य के लिए स्थान का उपयोग करने के लिए संबंधित प्राधिकरण से समुचित अनुमति लेनी चाहिए ।

2. वह स्थान आवासीय क्षेत्रों से उचित दूरी पर होना चाहिए ।

3. स्थान ऐसी जगह पर स्थित होना चाहिए जहाँ पर किसी भी मौसम में अपशिष्ट ले जाने वाले वाहन आसानी से पहुँच सके ।

4. उस क्षेत्र के सुरक्षा नियंत्रण एवं नियमित पर्यवेक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए । अनधिकृत प्रवेश पर पूर्णतया पाबंदी हो ।

5. यह स्थान पीने के पानी के स्रोत के आस-पास नहीं होना चाहिए नहीं तो प्रदूषण का खतरा हो सकता है ।

6. इस स्थल को विभिन्न नियंत्रणीय चरणों में बाटा जाना चाहिए और वास्तविक भूमि में दबाने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले इसे पर्याप्त रूप से तैयार

कर लेना चाहिए ।

7. स्थल की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि कचरे को प्रतिदिन फैलाया, दबाया और ढका जा सके ।

8. भूमि में दबाने के प्रत्येक चरण के पूरा होने के बाद, सबसे ऊपर वाले अंतिम आच्छादन (कवर) का निर्माण इस तरह का हो कि वर्षा का पानी अंदर न जा सके ।

9. कचरे को जितना जल्दी हो सके दबा देना चाहिए ताकि मनुष्यों को इससे खतरा न हो ।

(v) वैकल्पिक तकनीक:

जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए अन्य अनेक तकनीकें की गई हैं ।

(vi) प्लाज्मा आर्क तकनीक:

प्लाज्मा कनवर्टर का प्रयोग करते हुए, यह प्रणाली गैस को विद्युत क्षेत्र से धकेलती है जिससे गैस प्लाज्मा की दशा में आयोनिकृत हो जाती है और बिजली का संचालन करती है तथा उच्च तापमान बनता है । कनवर्टर में बिजली का संचार करके और प्लाज्या टार्च का प्रयोग करके रेडिएंट एनर्जी का तीव्र क्षेत्र पैदा किया जाता है जिससे अत्यधिक उच्च तापमान पैदा होता है जो अपशिष्ट को मूल कणों में तोड देता है और अपशिष्ट को पूर्णतया नष्ट कर देता है ।

रीसाइकिल योग्य उपयोगी जैसे कि सात्विक धातुएं, सिलिकेट और शुद्ध हाइड्रोजन गैस पैदा की जा सकती है । प्लाज्मा कनवर्टर बहुत अच्छा विद्युत एवं ऊष्मारोधी है एवं पूर्णतया कम्प्यूटर संचालित है ।

इसके निम्नलिखित लाभ हैं:

(क) यह प्रक्रिया किसी भी एवं सभी प्रकार की अपशिष्ट सामग्रियों पर अपनाई जा सकती है ।

(ख) अपशिष्ट को अन्य कीमती वस्तुओं में री-साइकिल किया जा सकता है ।

(ग) अत्यंत जोखिम वाले कचरे का सुरक्षित एवं अपवर्तनीय नाश करती है ।

(घ) विषेले पदार्थों को हानिरहित सामग्री में बदल देती छांटने की आवश्यकता नहीं रहती ।

(ड.) इसमें कोई भी अवशेष नहीं बचता है । इसमें मिट्टी में दबाने की आवश्यकता नहीं होती । अतः जिन देशों में मिट्टी में दबाने के लिए इस विधि को प्रयोग में लाया जा सकता है ।

(vii) इलेक्ट्रोथर्मल डीएक्टीवेशन तकनीक:

इसमें नियमित अपशिष्ट के निपटान के लिए रेडियोएक्टिव का प्रयोग किया जाता है । यह भस्मीकरण की वैकल्पिक और माइक्रोवेव जैसी तकनीक है । यह विधि माइक्रोवेव विधि से अधिक लाभकारी इसलिए है क्योंकि इसमें रेडियोएक्टिव आवृती तरंगें अधिक लंबी (9 से 12 फुट) होती हैं तथा गहराई तक जाती हैं । भस्मीकरण की तुलना में इस प्रक्रिया में विषैली वायु या दूषित पानी नहीं होता । अपशिष्ट का आयतन 85 प्रतिशत घट जाता है तथा अवशेष पहचान योग्य नहीं रह जाता ।

(viii) सहायक प्रक्रियाएं:

रेडियोक्टिव आवृती से शोधन करने से पहले अपशिष्ट को टुकडों में तोड़ा जाता है । इस प्रक्रिया में आमतोर पर निरंतर नकारात्मक दाब दिया जाता है और पर्यावरण में एयरोसोल संदूषण से बचने के लिए फिल्टरों का प्रयोग किया जाता है । रेडियोएक्टिव आवृती से शोधन करने के बाद कचरे के आयतन को घटाने के लिए एक रोल ऑफ कॉम्पैक्टर का प्रयोग किया जाता है । इस प्रक्रिया में वैधीकरण बेसीलैस सबटीलिस स्पोर काउंट कम से कम 1 × 104 र्स्पोस प्रति मिलीलीटर किया जाता है ।

(ix) विषालुता-रहित करने की तकनीकें:

विषालुता रहित करने की तकनीक के अंतर्गत कचरे को टुकड़ों में विखंडित किया जाता है और साथ ही 480-700 सेंटीग्रेड तक गर्म किया जाता है । इसमें गैसों के शामिल होने के कारण तापमान 1540 सेंटीग्रेड तक बढ़ जाता है जिससे जैव मिश्रण नष्ट हो जाता है ।

(x) अन्य आपातकालिक तकनीकें:

दूसरी आपातकालीन तकनीकों में इलैक्ट्रोकेमिकल ऑक्सीडेशन, मोल्टन मैटल तकनीक, सोलवेटिड इलैक्ट्रान प्रक्रिया और सुपरफिशियल वाटर ऑक्सीडेशन हैं ।