पर्यावरण अपशिष्ट पर निबंध | Essay on Environmental Waste in Hindi.

Essay # 1. पर्यावरण अपकर्षण का अर्थ (Meaning of Environmental Waste):

आज हम अपनी वैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रगति से गौरावान्वित हैं क्योंकि इसी के द्वारा हमें अनेक सुख-सुविधाएं उपलब्ध हुई है । परन्तु इसके द्वारा जहाँ एक ओर जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, वहीं पर्यावरण अपकर्षण की समस्या का जन्म हुआ है, जिससे आज सम्पूर्ण विश्व चिन्तित है ।

पर्यावरण अपकर्षण के अनेक आयामों में से एक है- अपशिष्ट पदार्थों की वृद्धि एवं उनका पर्यावरण तथा मानव-स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव । औद्योगिकरण, नगरीकरण एवं तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है और इनके निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने से पर्यावरण के गुणवत्ता स्तर में कमी आ रही है ।

अतः इस समस्या का समुचित विश्लेषण एवं निदान आवश्यक है । इसी उद्देश्य से प्रस्तुत लेख में अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण की समस्या, उनके पर्यावरणीय प्रभाव एवं उचित प्रबन्धन के प्रारूप का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है ।

Essay # 2. अपशिष्ट पदार्थों की प्रकृति (Nature of Waste Material):

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अपशिष्ट पदार्थों से तात्पर्य उन पदार्थों से है जिन्हें उपयोग के पश्चात अनुपयोगी मानकर फेंक दिया जाता है इनमें एक ओर मानव द्वारा उपयोग में लाए पदार्थ जैसे कागज, कपडा, प्लास्टिक, काँच, रबर आदि हैं तो दूसरी ओर उद्योगों से निस्तारित तरल पदार्थ एवं ठोस अपशिष्ट ।

इसके अतिरिक्त खदानों का मलबा एवं कृषि अपशिष्ट आदि खुले में फेंक देने से पर्यावरण प्रदूषण सहित भू-प्रदूषण भी होता है । यह समस्या ग्रामों की अपेक्षा नगरों में अधिक है क्योंकि जनसंख्या के जमाव तथा उद्योगों के केन्द्रीकरण से अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि होती जाती है । संयुक्त राष्ट्र अमेरिका जैसे विकसित देश में नगरीय अपशिष्टों की मात्रा प्रतिवर्ष 434 करोड टन होती है । भारत जैसे देश में जहाँ लूटा-करकट निस्तारण की व्यवस्था नहीं है, वहाँ इसकी मात्रा कई गुना अधिक है ।

अपशिष्ट पदार्थों को उनके स्रोत के आधार पर कर श्रेणियों अर्थात घरेलू अपशिष्ट, औद्योगिक एवं खनन अपशिष्ट, नगरपालिका अपशिष्ट एवं कृषि अपशिष्ट में विभक्त किया जा सकता है:

i. घरेलू अपशिष्ट:

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घरों में प्रतिदिन सफाई के पश्चात गन्दगी निकलती है जिसमें धूल-मिट्टी के अतिरिक्त कागज, गत्ता, कपडा, प्लास्टिक, लकडी, धातु के टुकड़े, सब्जियों एवं फलों के छिलके, सडे-गले पदार्थ, सूखे फूल, पत्तियाँ आदि सम्मिलित होते हैं ।

यदा-कदा होने वाले समारोहों तथा पार्टियों में इनकी मात्रा अधिक हो जाती है । ये सभी पदार्थ घरों से बाहर, सडको अथवा निर्धारित स्थानों पर डाल दिए जाते हैं जहाँ इनके सडने से अनेक विषाणु उत्पन्न होते हैं जो न केवल प्रदूषण बल्कि अनेक रोगों का भी कारण हैं ।

ii. नगरपालिका अपशिष्ट:

नगरपालिका अपशिष्ट से तात्पर्य नगर में एकत्र सम्पूर्ण कूडा-करकट एवं गन्दगी से है इसमें घरेलू अपशिष्ट के अतिरिक्त मल-मूत्र, विभिन्न संस्थानों, बाजारों, सडको से एकत्र गन्दगी, मृत जानवरों के अवशेष, मकानों के तोडने से निकले पदार्थ तथा वर्कशाप आदि से फेंके गए पदार्थ सम्मिलित होते हैं ।

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वास्तव में कस्बे की सम्पूर्ण गन्दगी इसमें सम्मिलित है । इसकी मात्रा नगर की जनसंख्या एवं विस्तार पर निर्भर है एक अनुमान के अनुसार भारत के 45 बडे नगरों से कुल मिलाकर प्रतिदिन लगभग 50,000 टन नगरपालिका अपशिष्ट निकलता है ।

iii. औद्योगिक एवं खनन अपशिष्ट:

उद्योगों से बडी मात्रा में कचरा एवं उपयोग में लाए गए पदार्थों के अपशिष्ट बाहर फेंके जाते हैं । इनमें धातु के टुकडे, रासायनिक पदार्थ अनेक विषैले ज्वलनशील पदार्थ, तेलीय पदार्थ, अम्लीय तथा क्षारीय पदार्थ, जैव अपघटनशील पदार्थ, राख आदि सम्मिलित होते हैं । ये सभी पदार्थ पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं ।

iv. कृषि अपशिष्ट:

कृषि के उपरान्त उसका बचा भूसा, घास-फूस, पत्तियाँ, डंठल आदि एक स्थान पर एकत्र कर दिए जाते हैं या फैला दिए जाते हैं । इनमें गिरने से पानी सडने लगता है तथा जैविक क्रिया होने से प्रदूषण का कारण बन जाता है ।

भारतीय पर्यावरण अभियान्त्रिकी अनुसंधान संस्थान, नागपुर ने भारत के विभिन्न जनसंख्या समूहों के नगरों में अपशिष्ट पदार्थों का स्वरूप निम्न प्रकार से वर्णित किया है:

 

तालिका- 2 से स्पष्ट है कि भारत के नगरों में राख, मिश्रित पदार्थ एवं कार्बन के रूप में लगभग 90 प्रतिशत कुडा-करकट होता है । विकसित देशों में इसकी प्रकृति भिन्न होती है जैसे संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में 42 प्रतिशत कागज एवं गत्ते की वस्तुएं, 24 प्रतिशत धातु पदार्थ और 12 प्रतिशत अपशिष्ट खाद्य पदार्थ होते हैं । स्पष्ट है कि नगरीय अपशिष्ट आज पर्यावरण अपकर्षण का प्रमुख कारण है जिसमें उत्तरोतर वृद्धि होती जा रही है ।

Essay # 3. अपशिष्ट पदार्थों के मानव पर दुष्प्रभाव (Ill Effects of Waste on Humans):

अपशिष्ट पदार्थों के एकत्रित होने का प्रभाव पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर अत्यधिक हानिकारक होता है ।

संक्षेप में ये दुष्प्रभाव निम्नांकित हैं:

(i) अपशिष्ट पदार्थ पर्यावरण अपकर्षण में अत्यधिक वृद्धि करते हैं क्योंकि इनसे भू-प्रदूषण के अतिरिक्त जल एवं वायु प्रदूषण में भी वृद्धि होती है ।

(ii) कूड़ा-करकट के सडने-गलने से अनेक प्रकार की गैस एवं दुर्गन्ध निकलने से क्षेत्रीय वातावरण दूषित हो जाता है । यदि इनमें रसायनों की मात्रा होती है तो यह और भी अधिक हानिकारक होती है ।

(iii) अपशिष्ट पदार्थ, जिनमें मल-जल एवं डिटर्जेन्ट मिश्रित होते है, जब नालियों से बह कर जल स्रोतों में पहुँच जाते हैं तो जल प्रदूषण के अतिरिक्त अनेक रोगों का भी कारण बनते हैं ।

(iv) रसायन मिश्रित जल एवं अन्य गन्दगी रिसाव द्वारा भूमिगत जल तक पहुँच कर उसे भी प्रदूषित कर देते हैं ।

(v) अपशिष्ट पदार्थों को समुद्र में डालने से सामुद्रिक पारिस्थितिकी तन्त्र में असंतुलन आ जाता है ।

(vi) मल-जल द्वारा लगातार सिचाई करने से मृदा के छिद्र अवरुद्ध हो जाते हैं और उसमें उपस्थित सूक्ष्म जीव मर जाते हैं, जो भूमि के लिए आवश्यक है ।

(vii) औद्योगिक अपशिष्ट भूमि की उर्वरा शक्ति पर विपरित प्रभाव डालते हैं । इनके कारण अनेक बीमारियाँ जैसे टी.बी, मलेरिया, हैजा, मोतीझरा, पेचिश, पीलिया, आन्त्रशोथ, आँखों के रोग आदि होते है ।

(viii) नगरों में जहाँ अपशिष्ट पदार्थ एकत्र होते हैं, वही सामान्यत गन्दी बस्तियों का विस्तार हो जाता है । यहाँ रहने वाले लोग नारकीय जीवन व्यतीत करते हैं । ये बस्सियाँ हमारे नगरीय विकास पर एक कलंक हैं ।

दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता, चेन्नई या राज्यों की राजधानियों में आज अनेक गन्दी बस्तियाँ है और उनका विस्तार होता जा रहा है । साथ ही नगरपालिकाओं के सीमित साधनों एवं उदासीनता के कारण आज सभी नगरों में अपशिष्ट पदार्थों का फैलाव रिहायशी क्षेत्रों में हो रहा है जो अत्यधिक चिन्ता का विषय है ।