Read this article in Hindi to learn about:- 1. बजट का अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definitions of Budget) 2. बजट के सिद्धांत (Principle of Budget) 3. बजट की भूमिका या महत्व (Role and Importance).

बजट का अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definitions of Budget):

बजट वित्तीय वर्ष के आधार पर देश की आय-व्यय का अनुमान होता है । यह फ़्रैंच भाषा के ”बजट” से निकला हैं, जिसका अर्थ है चमड़े का थैला ।

a. सन् 1773 में ब्रिटिश वित्त मंत्री सर राबर्ट वालपोल ने संसद के समक्ष पेश करने के लिए अपने वित्तीय प्रस्ताव चमड़े के एक थैले में से निकाले थे । इस पर ‘The Budget Opened’ नामक एक पुस्तिका में उनका मजाक उड़ाया गया । उसी समय से ‘बजट’ शब्द का प्रयोग सरकार के वार्षिक आय-व्यय के विवरण के लिए किया जाने लगा है ।

b. भारत का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक है जबकि अमेरिका में 1 जून से 30 जुलाई तक गिना जाता है । फ्रांस में यह 1 जनवरी से 31 दिसम्बर तक माना जाता है ।

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c. हमारे यहां एकजायी बजट ही अपनाया जाता है अर्थात् समस्त मंत्रालयों के आय-व्यय एक ही बजट के भाग होते है । यद्यपि एकवर्थ समिति की सिफारिश पर 1921 से रेलवे के अलग बजट की परिपाटी चली आ रही हैं ।

d. बजट लोक वित्त का दर्पण है । यह निजी बजट से भिन्न होता है । वस्तुत: लोक वित्त (सरकारी बजट) जनता को दी जाने वाली सेवाओं से जुड़ा होता है । इन सेवाओं और उनके लिए विविध कार्यों, योजनाओं आदि को अंजाम देना सरकार के लिए जरूरी होता है ।

इसलिये लोक वित्त में पहले व्यय का आकलन किया जाता है । जो सामान्यतया बहुत अधिक होता है । फिर आय का अनुमान लगाया जाता है जो बेहद कम होता है । परिणामस्वरूप बजट-घाटा लोक वित्त की अनिवार्यता बन जाता है ।

e. इसके विपरीत निजी वित्त में पहले आय का अनुमान होता है तत्पश्चात उसमें से व्यय के लिये आवंटन किया जाता है जो आय से सदैव ही कम रखा जाता है । परिणामत: निजी वित्त लाभ पर आधारित होता है ।

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कुछ विद्वान, विशेषकर अमेरिकी विद्वान बजट को मात्र आय और व्यय का अनुमानित विवरण मात्र मानते हैं, तो यूरोपियन विद्वान इसे राजस्व अधिकार और विनियोग अधिकार का मिश्रण मानते हैं ।

रेने स्टार्म के अनुसार- ”बजट एक प्रलेख है जिसमें सरकारी आय-व्यय की एक प्रारम्भिक अनुमोदित योजना दी हुई होती है ।”

टेलर के अनुसार- ”बजट एक निश्चित अवधि के लिए सरकार की वित्तीय योजना है ।”

विलोबी कहते हैं- बजट की आधुनिक अवधारणा बदल गई है । उसके अनुसार बजट आय व्यय के अनुमान से बहुत अधिक हैं, वह एक ही साथ अनुमोदन, अनुमान और प्रस्ताव है । जिसमें मुख्य कार्यपालिका धन की स्वीकृति देने वाली व्यवस्थापिका के समझ यह स्पष्ट करती है कि गतिवर्ष का काम किस प्रकार था, वर्तमान में राजकोष की स्थिति क्या है, और उसका अगला कार्यक्रम क्या है ।

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मुनरो- ”भावी वित्तीय वर्ष की वित्तीय योजना ही बजट है ।”

उपर्युक्त विवेचना के आधार पर बजट के संबंध में निम्न दृष्टिकोण सामने आते हैं:

1. बजट एक अनुमानित आय एवं व्यय का विवरण है ।

2. यह एक सीमित अवधि के लिए, प्राय: एक वर्ष के लिए, प्रस्तुत किया जाता है ।

3. बजट को स्वीकृत करने के लिए एक सार्वजनिक निकाय की आवश्यकता होती है ।

4. बजट के अंतर्गत उन नियमों एवं प्रक्रियाओं का वर्णन होता है जिनके द्वारा कोष एकत्रित किया जाता है तथा व्यय किया जाता है ।

5. बजट नियन्त्रण से मुक्त नहीं होता है ।

बजट के सिद्धांत (Principle of Budget):

बजट सिद्धांतों से आशय उन आधारभूत मानकों से है, जिन पर एक बजट को अवलम्बित होना चाहिए । हेराल्ड स्मिथ ने ऐसे आठ सिद्धांत बताए हैं ।

उसके अनुसार बजट:

(1) पारदर्शी हो ।

(2) सत्यशील हो ।

(3) नियतकालिक हो ।

(4) एकता के सिद्धान्त के अनुरूप हो (सभी आय एक निधि में तथा, सभी व्यय एक सार रूप में) ।

(5) प्रचार युक्त हो ।

(6) सरल भाषा में हो ।

(7) पूर्व प्राधिकृत हो (लागू होने से पूर्व अनुमति) ।

(8) व्यापक हो ।

कुल मिलाकर बजट के निम्नलिखित सिद्धांत विद्वानों ने बताए हैं:

1. नियतकालिकता:

बजट का सर्वमान्य सिद्धांत हैं कि वह एक निश्चित अवधि के लिए होता है । साधारण बजट एक वर्ष के लिए बनाया जाता है ।

2. पूर्व प्राधिकरण (पूर्व स्वीकृति):

बजट जिस अवधि के लिए बनाया जाता है, उसके पूर्व ही उसका निर्माण होकर व्यवस्थापिका की स्वीकृति प्राप्त हो जानी चाहिये ।

3. पारदर्शिता:

बजट अनुमान और वित्त संबंधी समस्त आंकड़ें यथासंभव पारदर्शी होने चाहिये । इसमें किसी तथ्य को न तो छिपाना चाहिये, न ही गलत रूप में प्रस्तुत करना चाहिये ।

4. सत्यशीलता या शुद्धता:

सभी बजट अनुमान वास्तविकताओं पर आधारित होना चाहिये ताकि अनुमान और परिणाम में अंतर नहीं हो ।

5. एकता:

इसके दो आशय हैं, प्रथम सभी एक प्रकार की राशियां एक ही वर्ग में रखी जाए, द्वितीय शासन के समस्त विभागों के आय व्यय का एक ही बजट हो । भारत में रेलवे को छोड़कर सभी विभागों का एक सामान्य बजट बनाया जाता है ।

6. सरल और स्पष्ट:

बजट सरल भाषा में और स्पष्ट स्वरूप का होना चाहिए ताकि वह आम जनता की समझ में भी आ सकें । साथ ही उसके क्रियान्वयन में भी आसानी हो सके ।

7. प्रचार युक्त:

बजट को अंतिम रूप से पारित करने से पूर्व उसका व्यापक प्रचार प्रसार होना चाहिए, जिससे जनमत की प्रतिक्रिया से व्यवस्थापिका और कार्यपालिका अवगत हो सके । लोकतंत्र में बजट पर जनप्रतिक्रिया की जानकारी बेहद आवश्यक है ।

8. व्यापकता:

बजट में सरकार की समस्त वित्तीय योजना आ जानी चाहिए, इसमें प्रत्येक भावी कार्यक्रमों, योजनाओं का स्पष्ट वर्णन होना चाहिये ।

9. कार्यपालिका का बजट दायित्व:

कार्यपालिका पर ही सरकार के उद्देश्यों को प्राप्त करने और इस हेतु विभिन्न कार्यक्रमों को आयोजित करने का भार होता है । अतएव इसकी पूर्ति हेतु बजट बनाने का दायित्व भी उसके अधीन होना चाहिये । वही अपने विशेषज्ञ और निपुण कर्मचारीवृंद के माध्यम से यह कार्य अधिक अच्छे ढंग से कर सकती है ।

10. व्यवस्थापिका के अधीन:

बजट के प्रत्येक प्रावधान, जनप्रतिनिधि संस्था “व्यवस्थापिका” के अधीन होना चाहिए । चाहे करारोपण करना हो, या व्यय की स्वीकृति प्राप्त करना हो, इन सबसे संबंधित ”बजट” को अंतिम रूप से स्वीकृत करने का अधिकार व्यवस्थापिका को प्राप्त होता है, क्योंकि इससे इस प्रजातान्त्रिक सिद्धांत की पुष्टि होती है कि प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं ।

11. संतुलन का सिद्धांत:

वही बजट सफल और श्रेष्ठ माना जाता है, जिसमें आय और व्यय के बीच एक सम्यक संतुलन बनाया जाता है । अत्यधिक लाभ और अत्यधिक हानि दोनों बजट ही अच्छे नहीं माने जाते है ।

12. लोचशीलता या परिवर्तनशीलता:

लोकतंत्र में कार्यपालिका बजट बनाती है, लेकिन उसमें संशोधन करने, उसे स्वीकृत करने का अधिकार व्यवस्थापिका का होता है । अतएव बजट इस प्रकार बनाया जाना चाहिए कि यदि व्यवस्थापिका के चाहने पर उसमें आसानी से संशोधन किया जा सके ।

13. अवसान का सिद्धांत:

उस निश्चित अवधि की समाप्ति के बाद बजट राशि और प्रावधान समाप्त हो जाना चाहिए, जिस अवधि के लिए बजट बनाया गया था ।

14. सार्वजनिक धन का सदुपयोग:

बजट ऐसा बनना चाहिए कि सार्वजनिक धन की पाई-पाई का सदुपयोग हो सके, किसी भी किस्म का दुरुपयोग नहीं हो ।

15. नकदी स्वरूप:

बजट राशियों का प्रावधान अदृश्य सौदों के आधार पर नहीं, अपितु नकद प्राप्त या व्यय होने वाली राशि के आधार पर किया जाना चाहिए ।

बजट की भूमिका या महत्व (Role and Importance of Budget):

वित्तीय प्रशासन जिस प्रकार आधुनिक सरकारों का हृदय हैं, उसी प्रकार बजट वित्तीय प्रशासन का हृदय हैं । वित्तीय प्रशासन की सम्पूर्ण अवधारणा बजट के इर्द-गिर्द घुमती है । दूसरे शब्दों में बजट के माध्यम से ही वित्तीय प्रशासन अपने उद्देश्यों को पूरा करता है । सरकार जो कुछ भी करती है बजट के माध्यम से ही करती है ।

विकासशील और विकसित प्रत्येक समाज में बजट का अतुलनीय महत्व है, जो वहां के प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करता है । लेकिन विकासशील देशों में इसका महत्व इसलिए अत्यधिक है क्योंकि इसी के माध्यम से यहां की सामाजिक-आर्थिक विषमताओं पर प्रहार किया जाता है ।

बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी आदि निम्न सामाजिक स्थितियों में परिवर्तन किया जाता है:

बजट की भूमिका को निम्नानुसार देखा जा सकता हैं:

1. राजनीतिक भूमिका या महत्व:

बजट सत्तारूढ़ दल की नीतियों, कार्यक्रमों और विचारधारा को लागू करने का एक उपकरण है । उदाहरण के लिए 1990 के पहले तक के बजट सार्वजनिक पूंजी को वरीयता देते थे, जबकि अब निजी क्षेत्र को अधिकाधिक महत्व दिया जा रहा है ।

इसी प्रकार बजट के माध्यम से वर्गीय हितों का संरक्षण भी किया जाता है जैसे- राजग सरकार द्वारा व्यापारियों और उद्योगतियों के हितों में अनेक कदम उठाए गये, जैसे सीमा शुल्क में कटौती, आयकर दरों का युक्तियुक्त करण आदि ।

2. सामाजिक महत्व या भूमिका:

आधुनिक कल्याणकारी राज्य में सरकार एक सामाजिक प्रवर्तक की भूमिका में है । इसके लिए वह जनता को न सिर्फ अधिकाधिक सुख-सुविधाएं प्रदान करने के लिए कृतसंकल्पित है, अपितु समाज के कमजोर तबकों की स्थिति में भी गुणात्मक परिवर्तन लाना चाहती है ।

इन सब सामाजिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उसके पास बजट ही सबसे सशक्त माध्यम होता है । सरकार बजट प्रावधानों द्वारा ही उच्च आय समूह पर करारोपण करती हैं तथा निम्न आय वर्ग हेतु अनेक कल्याणकारी योजनाएं लागू करती है ।

3. आर्थिक महत्व:

लोक कल्याण की ही भावना ने राज्य या सरकार को अर्थव्यवस्था में अत्यधिक हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित किया है । भले ही आज राज्य के आर्थिक हस्तक्षेप के विरूद्ध अनेक तर्क दिये जाते हैं, लेकिन सामाजिक कल्याण की पूर्ति हेतु आर्थिक हस्तक्षेप का सहारा अनिवार्य है ।

सरकार बजट का उपयोग इस प्रकार करती है कि आर्थिक केन्द्रीयकरण को रोककर संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण किया जाए । साथ ही सरकार को देश के विकास के लिए एक उचित आर्थिक नीति का निर्माण कर उसका क्रियान्वयन करना होता है । अत: बजट नियोजन का उपकरण हैं ।

औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने, रोजगार के अवसर सृजित करने, मुद्रा स्फीति को काबू में रखने, अपने आय व्यय के बीच उचित संतुलन रखने के लिए सरकार को बजट का उपयोग अत्यंत सावधानी और सतर्कता से करना पड़ता है ।

4. प्रबन्धकीय नियंत्रण का उपकरण:

बजट प्रबन्ध या प्रशासन का महत्वपूर्ण उपकरण है । बजट के माध्यम से ही प्रशासन अधीनस्थ इकाईयों, अधिकारियों के मध्य उचित समन्वय करने तथा उन पर नियंत्रण रखने में अधिक सफल हो सकता है । बजट के माध्यम से ही वह कार्य निष्पादन का मूल्यांकन करने में, उपलब्धियों को माप कर उनके अनुसार मान्यता देने में सफल होता है ।

बजट के प्रकाश में ही नीतियों की प्रभावकारिता का आकलन किया जाता है । इसी के द्वारा भावी परिणामों के बारे में निश्चिंतता आ पाती है और भविष्य के लिए नियोजन का आधार प्राप्त होता है । स्पष्ट हैं कि बजट सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के यंत्र के रूप में तो महत्वपूर्ण है ही, प्रशासनिक नियंत्रण और समन्वय के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है ।