Read this article in Hindi to learn about:- 1. भारत में बजट निर्माण (Budget Creation in India) 2. बजट प्रक्रिया (Budget Process) 3. भाग (Parts) 4. विवरण (Description) and Other Details.

भारत में बजट निर्माण (Budget Creation in India):

भारत में बजट निर्माण का दायित्व वित्त मंत्रालय का है । बजट प्रस्तुतीकरण (28 फरवरी) के 5-6 महीने पहले ही उसके निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है । एकवर्थ कमेटी की अनुशंसा पर 1921 से रेलवे का बजट शेष बजट से अलग बनाया जाता है ।

दामोदर घाटी का बजट भी एक अन्य अपवाद है जो संसद के साथ ही पं. बंगाल और बिहार की विधायिकाओं (जिनके क्षेत्राधिकार में यह कार्य करती है) के द्वारा पारित होना आवश्यक है । भारत में बजट पद्धति लार्ड केनिंग के समय शुरू हुई जब जेम्स विल्सन ने 18 फरवरी 1860 को गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में पहला बजट पेश किया था ।

बजट प्रक्रिया (Budget Process):

सर्वप्रथम वित्त मंत्रालय सभी मंत्रालयों तथा विभागों को अनुमान पत्रक भेजता है और उनसे प्राप्त अनुमान की सूचनाओं को अपने विभाग में एकीकृत स्वरूप देता है । विभागाध्यक्ष पत्रक की प्रतियां अपने क्षेत्रीय कार्यालयों को भेज देते हैं । क्षेत्रीय कार्यालय के प्रमुख (वितरण एवं आहरण अधिकारी) पत्रकों में आंकड़े आदि भरकर विभागाध्यक्ष को लौटा देते हैं जो इनकी सूक्ष्म जांच कर इनका समेकन करके मंत्रालय को भेज देता है ।

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मंत्रालय अपनी सामान्य नीतियों के संदर्भ में पुन: इनकी जांच करता है और उनका समेकन ”मंत्रालय के बजट” के रूप में करके वित्त मंत्रालय को भेज दिया जाता है । प्रत्येक विभाग एक प्रति महालेखाधिकारी को और एक प्रति वित्त मंत्रालय को भेजते है ।

ज्ञातव्य है कि पत्रक में 3 वर्षों से संबंधित 5 प्रकार के आंकड़े होते हैं:

1. वर्तमान वर्ष से पूर्व वर्ष का, वास्तविक आंकड़े ।

2. वर्तमान वर्ष का अनुमानित और संशोधित आंकड़े ।

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3. आगामी वर्ष का (जिस वर्ष का बजट बनाया जा रहा है) का अनुमानित आंकड़े ।

4. वर्तमान वर्ष के उपलब्ध आंकड़े (बजट बनाते समय) ।

5. पूर्व वर्ष के इसी अवधी के आंकड़े ।

महालेखाधिकार अपने पास के पक्के आंकड़ों से इन अनुमानों की जांच कर लेता है । उधर वित्त मंत्रालय सभी विभागों के प्रपत्रों को एकत्रित करता है, उनकी छानबीन करता है, और उन सभी के आय और व्यय के आधार पर सरकार का बजट बनाता है ।

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उसे प्राविधिक कौशल CAG उपलब्ध करवाता है और योजना आयोग अपनी योजनाओं के संबंध में परामर्श देता है । उल्लेखनीय हैं कि कोई भी मंत्रालय वित्त मंत्रालय की अनुमति के बिना अपने अनुमानों में बढ़ोतरी नहीं कर सकता । यह मामला विवादग्रस्त होने पर मंत्रिमण्डल अंतिम रूप से निर्णय करता है ।

बजट के भाग (Parts of Budget):

उपर्युक्त व्यय और आय को सरकार दो विधेयकों में पृथक्-पृथक् दर्शाती है, यद्यपि ये दोनों विधेयक बजट के ही भाग होते है ।

1. विनियोजन विधेयक (Appropriation Bill):

यह बजट का प्रथम भाग है और व्यय से संबंधित है । प्रकृति में यह धन विधेयक है । संचित निधि से होने वाले सभी व्यय इस विधेयक में रख दिये जाते हैं । राष्ट्रपति के नाम से लोकसभा में वित्त मंत्री इसे प्रस्तुत करता है ।

2. वित्त विधेयक (Finance Bill):

यह आय से संबंधित भाग है, इसमें विभिन्न तरह के करों का उल्लेख होता है । यह लोक सभा में ही प्रस्तुत होता है । यह सर्वप्रथम लोक सभा में ही प्रस्तुत होता है । समस्त कर प्रस्ताव ही वित्त विधेयक होते हैं ।

बजट विवरण (Budget Description):

वित्त मंत्रालय संसद में प्रस्तुत करने के लिए एक नहीं बल्कि दो विवरण पत्र तैयार करता है:

1. वार्षिक वित्तीय विवरण पत्र तथा

2. अनुदानों की मांगें ।

वार्षिक वित्तीय विवरण में सरकार की प्राप्तियों और अदायगियों को तीन भागों में, जिनमें सरकारी लेखे रखे जाते हैं, दिखाया जाता है ।

ये भाग इस प्रकार है:

i. समेकित निधि,

ii. आकस्मिकता निधि और

iii. लोक लेखा ।

मोद्रिक प्रावधान के अनुसार बजट के मुख्यत: दो भाग होते हैं:

1. राजस्व बजट (Revenue Budget) और

2. पूंजी बजट (Capital Budget) ।

उपरोक्त में से प्रत्येक बजट के भी दो भाग होते हैं:

(a) प्राप्ति एवं

(b) व्यय ।

1. राजस्व बजट:

राजस्व बजट में राजस्व प्राप्ति के अंतर्गत निम्न बाते आती है:

(अ) करों से प्राप्त आय,

(ब) सरकारी सेवाओं से प्राप्त आय,

(स) सरकारी उत्पादों के विरूद्ध प्राप्ति ।

इसी प्रकार राजस्व व्यय के अंतर्गत निम्न बाते आती है:

(अ) विदेशों को दिया जाने वाला अनुदान,

(ब) राज्यों को दिया जाने वाला अनुदान,

(स) जनता को दी जाने वाली सब्सिडी,

(द) ऋणों पर ब्याज-भुगतान ।

इस प्रकार राजस्व व्यय आम तौर पर कल्याणकारी सरकारें नियंत्रित नहीं कर पाती परिणाम स्वरूप बजटीय घाटा प्रत्येक वर्ष की नियति है जिसके लिए सरकार की कठोर आलोचना होती है । लेकिन मिली जुली सरकारों में राजस्व घाटा बढ़ता है क्योंकि अनुदान एवं सब्सिडी का राजनीतिक दुरुपयोग होता है ।

तथा स्वयं सरकार का आकार बड़ा होता है । और इन सबके कारण ऋणों का आकार बड़ा होता है जिससे ब्याज भी अधिक होता है । जिसके कारण राजस्व घाटा अनियंत्रित हो जाता है ।

अत: राजस्व अनुशासन प्राप्त करने के लिये:

(अ) कर वसूली बढ़ानी होगी जिसके लिए कर दाताओं की संख्या बढ़ाना आवश्यक है ।

(ब) सेवाओं एवं उत्पाद से वसूली बढ़ानी होगी जिसके लिए गुणवत्ता मूलाधार है ।

(स) अनुदानों को नियंत्रित करना होता है अर्थात अनुदानों के आर्थिक आधार होने चाहिए राजनीतिक नहीं ।

(द) सब्सिडी में कटौती होनी चाहिए । जैसा सरकार कर रही है ।

(य) सरकार एवं प्रशासन का व्यय निर्धारित होना चाहिए जिसके लिए दोनों का आकार छोटा होना चाहिए ।

(म) इन प्रयासों से ऋण एवं ब्याज का आकार नियंत्रित होता है ।

कुल मिलाकर राजस्व अनुशासन प्राप्त करना आर्थिक सुधार की मूल शर्त है । ये शर्तें बाह्य हो सकती है लेकिन ये शर्तें भारतीय वित्त प्रशासन की आवश्यकताएं भी है ।

2. पूंजी बजट:

बजट का दूसरा भाग पूंजी बजट है ।

जिसमें पूंजी प्राप्ति के अंतर्गत निम्न बातें आती हैं:

(अ) विदेशों से ऋण प्राप्तियां,

(ब) घरेलू बाजार से ऋण (सार्वजनिक ऋण) प्राप्ति,

(स) राज्यों से ऋण वसूली,

(द) सरकार को प्राप्त लाभांश (यह पूंजी बन जाता है)

(य) विदेशों से प्राप्त अनुदान ।

व्यय में निम्नलिखित बाते आती है:

(अ) विदेशी ऋण भूगतान,

(ब) घरेलू ऋण की वापसी,

(स) राज्यों को अग्रिम ऋण,

(द) सरकार द्वारा किये गये विभिन्न निवेश (प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष),

(य) विकास कार्यों में किया गया व्यय ।

बजट के अन्य अनुदान (Other Grants of Budget):

विभिन्न अनुदानों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है:

a. संपूरक अनुदान (Supplementary Grant):

किसी पहले से स्वीकृत कार्य के लिये धनराशि कम पड़ जाती है तो कार्य पूरा होने के पहले उसके लिये मांगा गया अनुदान संपूरक अनुदान है ।

अतिरिक्त या अनुपूरक अनुदान और अधिक अनुदान (115) यदि-

(क) अनुच्छेद 114 के उपबंधों के अनुसार बनाई गई किसी विधि द्वारा किसी विशिष्ट सेवा पर चालू वित्तीय वर्ष के लिए व्यय किए जाने के लिए प्राधिकृत कोई रकम उस वर्ष के प्रयोजनों के लिए अपर्याप्त पाई जाती है या उस वर्ष के वार्षिक वित्तीय विवरण में अनुध्यात न की गई किसी नई सेवा पर अनुपूरक या अतिरिक्त व्यय की चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है; (अतिरिक्त या अनुपूरक अनुदान) या

(ख) किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर, उस वर्ष और उस सेवा के लिए अनुदान की गई रकम से अधिक कोई धन व्यय हो गया है (अधिक अनुदान), तो राष्ट्रपति, यथास्थिति, संसद के दोनों सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कललित रकम को दर्शित करने वाला दूसरा विवरण रखवाएगा या लोकसभा में ऐसे आधिक्य के लिये मांग प्रस्तुत करवाएगा । लोक सभा में इस पर मतदान वित्त वर्ष की समाप्ति के बाद किया जाता है । अधिक अनुदान की मांगों को लोकसभा में रखे जाने से पूर्व उन पर संसद की सार्वजनिक लेखा समिति की स्वीकृति आवश्यक है ।

b. सांकेतिक अनुदान (Taken Grant):

यदि उक्त कार्य को करने के लिये अन्य मद की बचत (अतिरिक्त धन राशि) का उपयोग करना हो तो संसद से पुन: विनियोग की स्वीकृति ली जाती है । जिसे सांकेतिक अनुदान कहते हैं । इस अनुदान से बजट की राशि के आकार में परिवर्तन नहीं होता ।

c. असाधारण या अधिक अनुदान (Excess Grant):

जब व्यय अपेक्षाओं से ऊपर घटित होता है तो संसद से असाधारण अनुदान मांगा जाता है जैसे कारगिल संकट के समय मांगा गया था । यह किसी भी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा का कोई भी भाग न होने वाला अनुदान माना जाता है । वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर यह अनुदान लोकसभा पारित करती है और इसका लोक लेखा समिति द्वारा अनुमोदन अनिवार्य होता है ।

d. आकस्मिक अनुदान:

इस अनुदान के लिये तात्कालिक रूप से संसद की अनुमति नहीं ली जाती अपितु बाद में ली जाती है । वस्तुत: कभी-कभी आकस्मिक व्यय करने की अपरिहार्य जरूरत सरकार के सामने आ खड़ी होती है और उसके पास इतना समय नहीं होता कि संसद की स्वीकृति उसी समय ले सके । ऐसे खर्च हेतु राष्ट्रपति आकस्मिक निधि से सरकार को अनुदान दे देते है । बाद में संसद से इस व्यय की और आकस्मिक निधि में धन राशि पुन: डालने की अनुमति ले ली जाती है ।

e. आपदानुदान (Exception Grant) (116-ग):

यह किसी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा का भाग नहीं होता और विशिष्ट उद्देश्यों के लिये दिया जाता है ।

f. प्रत्यानुदान (Vote of Credit) (116-ख):

किसी सेवा की महत्ता या उसके अनिश्चित स्वरूप के कारण मांग को बजट में इस प्रकार नहीं रखा जा सकता जिस प्रकार सामान्यतया बजट में अन्य मांगों को रखा जाता है । ऐसी मांगो की पूर्ति के लिये प्रत्यानुदान दिया जाता है । यह ”कोरे चेक” की तरह होता है क्योंकि इसमें खर्च कहां करना है कितना करना है, इसका निर्णय कार्यपालिका पर छोड़ दिया जाता है ।

बजट का क्रियान्वयन (Execution of Budget):

बजट के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय की है । वह पारित अनुदान मांगों को तो मंत्रालयों को भेज देता है, लेकिन वित्त विधेयक का क्रियान्वयन स्वयं करता है ।

जिस प्रकार बजट के दो भाग हैं, उसी प्रकार उसके क्रियान्वयन में भी दो प्रकार के मंत्रालय सहभागी होते हैं:

1. प्रशासनिक मंत्रालय:

भारत सरकार के मंत्रालय विनियोजन विधेयक का क्रियान्वयन अपनी-अपनी अनुदान राशि के तहत करते हैं । लेकिन वित्त मंत्रालय इन पर बजट के संदर्भ में निरंतर निगरानी रखता है ।

2. बिल मंत्रालय:

यह वित्त विधेयक का क्रियान्वयन अपने विभागों के माध्यम से करता है ।

इसके चरण हैं:

(1) धन का संग्रह- पारित वित्त विधेयक की दर अनुसार निर्धारित कर वसूल करता है । घाटे की पूर्ति हेतु आर.बी.आई. से नोट छपवाता है ।

(2) धन की अभिरक्षा- बैंक और राजकोष दोनों इसमें संलग्न हैं ।

(3) धन का वितरण- राजकोष और बैंक दोनों से प्राधिकृत अधिकारी अपने हस्ताक्षर से धन निकाल सकते हैं । विभागाध्यक्ष नियंत्रण अधिकारी होते हैं ।

(4) वित्तीय कोषों का लेखाँकन- केन्द्र और राज्य के लेखा खाते CAG के नियंत्रण में रखे जाते थे अब विभाग स्वयं उसका स्वरूप तय करते हैं । इस कार्य हेतु केन्द्र के प्रत्येक मंत्रालय में एक महालेखापाल होता है, और प्रत्येक राज्य में भी एक महालेखापाल होता है ।

लेखाँकन की प्रक्रिया:

1. उप-कोषागार और बैंक में जहां प्रारंभिक लेन देन होता है, प्रारंभिक इंद्राज किया जाता है ।

2. जिला राजकोष द्वारा इनका वर्गीकरण कुछ बड़े शीर्षकों में करके प्रति 15 दिनों में महालेखापाल को भेजा जाता है ।

3. महालेखापाल इन्हें उन बड़े शीर्षकों, जिनमें विभाग अपनी मांगे प्रस्तुत करते हैं, में वर्गीकृत कर लेता है, और उनका अंकेक्षण कर विभागों के लेखापालों को भेज देता है ।

4. विभागों के लेखापाल इन्हें समेकित कर आगामी माह में सरकार को पेश कर देते हैं । ये लेखापाल महालेखा परीक्षक के नियंत्रण में होते हैं ।

5. महालेखा परीक्षक केन्द्र का प्रतिवेदन राष्ट्रपति को और राज्यों का प्रतिवेदन संबंधित राज्यपाल को सौंप देता है । वह केन्द्र-राज्य का सम्मिलित विवरण भी तैयार करता है ।

वित्त मंत्रालय प्रशासनिक मंत्रालयों के खर्च पर नियंत्रण रखने के लिये निम्नांकित का सहारा लेता है:

वित्त पर नियंत्रण:

1. वित्त विभाग व्यय करने वाले विभागों से नियत कालिक रिपोर्ट मांगता है, और देखता है कि स्वीकृत राशि से अधिक व्यय तो नहीं हो रहा है ।

2. लो. ले समिति और अनुमान समिति तथा कुछ अंशों में सार्वजनिक उपक्रम समिति भी वित्त पर नियंत्रण रखती है ।

3. CAG-लोकलेखा समिति का मार्गदर्शक और मित्र है ।

वित्तीय साधनों का एकत्रीकरण:

वित्त विधेयक में निर्धारित कर प्रस्तावों के अन्तर्गत सर्वप्रथम सम्भावित आय का अनुमान लगाया जाता है तथा उसके बाद वसूली की जाती है । आय के स्रोतों का मूल्यांकन तथा वसूली का कार्य वित्त मंत्रालय का राजस्व विभाग करता है । सभी प्रत्यक्ष करों को लगाने तथा वसूली संबंधी मामलों को केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड देखता है ।

राज्यों में राजस्व एकत्रीकरण:

भारतीय संविधान में राज्यों के वित्तीय स्रोतों को अलग से परिभाषित किया गया है । राज्यों के वित्तीय स्रोतों में मुख्यत: भूराजस्व, बिक्री कर, उत्पाद-शुल्क, कृषिकर आदि आता है । भूराजस्व की वसूली में जिला प्रशासन का सहयोग लिया जाता है । जिसमें कलेक्टर, तहसीलदार तथा पटवारी का योगदान होता है ।