Read this article in Hindi to learn about the five important stages involved in the enactment of budget. The stages are:- 1. प्रस्तुतीकरण (Presentation) 2. सामान्य चर्चा (Enactment: General Discussion) 3. अनुदान मांगों पर बहस और उनका पारित होना (Discussion on Demands for Grants Voting and Sanction of Demands for Grantee) and a Few Others.

भारत में बजट 5 चरण में पारित होता है:

Stage # 1. प्रस्तुतीकरण (Presentation):

भारत में पहले रेलवे बजट रेल मंत्री प्रस्तुत कर देता है, लेकिन वास्तविक बजट तो वित्त मंत्री ही प्रस्तुत करता हैं, जो शेष सरकार से संबंधित होता है । राष्ट्रपति की अनुमति से और उसकी तरफ से प्रस्तुत करते समय वित्त मंत्री बजट भाषण देता है । अनुच्छेद 112 में उल्लेखित है कि राष्ट्रपति संसद के समक्ष वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करवाएंगे ।

Stage # 2. सामान्य चर्चा (Enactment: General Discussion):

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पहले दिन कोई विचार या बहस नहीं होती । बजटीय भाषण में कोई अवरोध खड़ा नहीं किया जा सकता । ऐसी संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन माना जाता है । बजट प्रस्तुत होने के 1, 2 दिन बाद सामान्य चर्चा शुरू होती है । जिसमें 4-5 दिनों तक सामान्य नीतियों पर चर्चा होती है । कोई कटौती प्रस्ताव नहीं रखे जाते हैं, इसका उद्देश्य बजट को जनमत की प्रतिक्रिया के लिए खोलना है ।

Stage # 3. अनुदान मांगों पर बहस और उनका पारित होना (Discussion on Demands for Grants Voting and Sanction of Demands for Grantee):

लगभग 20-22 दिनों तक विभागवार अनुदान मांगों पर तीखी बहस होती है । इस दौरान कटौती प्रस्ताव भी रखे जाते हैं ।

तीन प्रकार के कटौती प्रस्ताव रखे जा सकते हैं:

(क) नीति का विरोध करने के लिए (मांग घटाकर 1रू. कर दिये जाये) ।

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(ख) मितव्ययिता के लिए (विभाग को मात्र इतनी……… ही राशि दी जाये) ।

(ग) प्रतीकात्मक विरोध के लिए (मद में 100रू. कम दिये जाएं) ।

सम्पूर्ण व्यय दो भागों में होता है:

i. संचित निधि पर अभारित- इस पर बहस और मतदान दोनों होते हैं ।

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ii. संचित निधि पर भारित (प्रभत्त:)- इस पर बहस होती है, मतदान नहीं ।

विभागवार बहस होती हैं, प्रत्येक विभाग की प्रत्येक मद पर मतदान होता है और अनुदान स्वीकृत होता है । इस प्रक्रिया में कुछ विभाग पर लम्बी बहस हो जाती है, लेकिन कुछ विभाग छूट जाते हैं, और अंतिम दिन ऐसे विभागों की मांग बिना बहस के पारित हो जाती है ।

सामान्य बजट में 109 मांगे (103 नागरिक प्रशासन से 6 रक्षा संबंधी) और रेलवे बजट में 32 मांगे होती है । अंतिम कर संग्रह कानून, 1931 के अनुसार बजट प्रस्तुतीकरण के 75 दिनों के भीतर वित्त विधेयक को पारित एवं राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत करवाना होता है-

(a) बहस और मतदान के लिए कुल 26 दिन आवंटित होते हैं ।

(b) बजट वित्त मंत्री प्रस्तुत करता है लेकिन प्रत्येक मंत्रालय की मांगे संबंधित मंत्री ही प्रस्तुत करता है जो राजनीतिक भाषण भी देता है ।

गिलोटिन:

सभी विभागों की मांगों पर बहस और मतदान के लिये 26 दिन अपर्याप्त होते हैं । वस्तुत: प्रारंभ में कुछ मांगों पर लंबी बहसों में अधिक समय चला जाता है और अनेक मांगो के लिये समय की कमी पड़ जाती है । तब शेष बचे समय में बिना बहस के उन बची मांगों को पारित करना पड़ता है । इस प्रक्रिया को गिलोटिन (Guillotine) कहते है ।

इस प्रकार गिलोटिन संसदीय प्रक्रिया होकर भी कानूनी दृष्टि से असंसदीय है । यह संसद के अधिकारों की कटौती है । इससे बचने का उपाय यही हो सकता है कि बजटीय मांगों को 26 दिनों में बराबर वितरित किया जाये जिससे सभी मांगों पर बहस-मतदान का बराबर समय मिल सके । 26 दिनों में मांगें पारित नहीं होने पर सरकार को त्यागपत्र देना पड़ सकता है ।

समिति व्यवस्था:

उक्त समस्या के निदान हेतु भारत में 1993 से समिति व्यवस्था शुरू की गई है जिसमें 17 विभागीय स्थायी समितियां बनाई गई है । प्रत्येक समिति में 30 सदस्य लोकसभा से तथा 15 राज्यसभा से होते हैं । एक वर्ष के लिए सदस्य मनोनीत किये जाते हैं ।

11 समितियों के अध्यक्ष लोकसभा से तथा 6 के राज्यसभा से होते हैं । इन समितियों का मुख्य कार्य मंत्रालयों या विभागों की अनुदान मांगों पर विचार करना तथा सदनों को उन पर प्रतिवेदन देना है ।

इस नई व्यवस्था के अंतर्गत अब रेल एवं आम बजट दो सत्रों में होता है । प्रथम सत्र में बजट प्रस्तुत करके दो-तीन सप्ताह का अवकाश दिया जाता है ताकि ये समितियां विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान मांगों पर बैठक कर विचार-विमर्श कर लेती है इससे सदन को अधिक बहस नहीं करनी पड़ती ।

लेखानुदान (Votes on Accounts) (116-क):

बचे विभागों की मांगो पर भी बहस हो सके, इस हेतु वित्तीय वर्ष का प्रारंभ होने के बाद भी बजट चर्चा चालू रखी जाती हैं । सरकार को इस समय का खर्च चलाने के लिए कुछ राशि स्वीकृत कर दी जाती है, जिसे लेखानुदान कहते हैं ।

अनुदान (Grants):

मांगें पारित होने का मतलब है संसद द्वारा उसकी धनराशि का अनुदान मंत्रालयों को उपलब्ध करने की स्वीकृति । अर्थात मांगें पारित होकर अनुदान का रूप ले लेती है ।

Stage # 4. विनियोजन विधेयक पर विचार और पारित होना (अनुच्छेद 114) (Consideration of Appropriation Bill and Its Sanction):

अनुदान मांगों की स्वीकृति विभागों को राशि उपलब्ध करने की मंजूरी है, खर्च करने की नहीं । इन सभी पारित अनुदानों को विनियोजन विधेयक के रूप में समेकित करके पारित किया जाता है । तब विभाग स्वीकृत राशि को खर्च करने की भी स्थिति में आ जाते हैं ।

लोक सभा में पारित होने पर स्पीकर द्वारा धन विधेयक के रूप में प्रमाणित कर राज्य सभा में भेजा जाता है, जो 14 दिनों के भीतर इसे पारित नहीं करती है तो वह पारित मान लिया जाता है । इस प्रकार विनियोजन या विनियोग विधेयक शुद्ध धन विधेयक होता है ।

Stage # 5. वित्त विधेयक (Finance Bill):

वित्त विधेयक का अर्थ लोक सभा के नियम 219 के अंतर्गत बताया गया है । वित्त विधेयक का अर्थ है भावी वित्त वर्ष के लिये सरकार का वित्तीय प्रस्ताव और इसमें किसी भी समय के लिये पूरक वित्तीय प्रस्ताव को भी शामिल माना जाता है ।

यह बजट का दूसरा भाग अर्थात् आय भाग है और यह आय करों से प्राप्त होती है । कुछ कर स्थायी होते हैं, मात्र उनकी दर विभाग बदलता रहता है । इसके लिए विधायिका की स्वीकृति भी नहीं लेनी पड़ती, लेकिन अन्य करों की दर प्रतिवर्ष स्वीकृत करानी पड़ती है ।

उल्लेखनीय है कि उपरोक्त विनियोजन विधेयक में तो कोई संशोधन नहीं होता, लेकिन इस वित्त विधेयक में सरकार कुछ संशोधन को स्वीकार कर सकती है । यह करों को घटाने या अस्वीकार करने से संबंधित हो सकते हैं ।

करों को बढ़ाना या नये करों का लगाना संसद के हाथ में नहीं हैं । अंतिम कर संग्रह अधिनियम 1931 के अनुसार वित्तीय विधेयक को पेश करने के 75 दिन के भीतर संसद से पारित और राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत हो जाना चाहिए ।