Read this article in Hindi to learn about the need for international organizations in unipolar world.

एकध्रुवीय विश्व का तात्पर्य एक ऐसी विश्व व्यवस्था से है जिसमें एक ही महाशक्ति अथवा गुट का प्रभावशाली वर्चस्व है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था की स्थापना हुई थी, जिसमें अमेरिका तथा सोवियत संघ दो महाशक्तियाँ या ध्रुव थे ।

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देश ही एक मात्र ध्रुव के रूप में प्रभावशाली स्थिति में हैं । अत: ऐसी व्यवस्था को एकध्रुवीय व्यवस्था कहा जाता है । एकध्रुवीय व्यवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का अपना विशेष महत्त्व है । क्योंकि एक ही महाशक्ति की मनमानी को रोकने के लिए एक वैश्विक मंच अत्यन्त आवश्यक है ।

वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ एक विश्व मंच के रूप में कार्यरत् है । लेकिन इसके साथ-साथ ही वैश्वीकरण के वर्तमान युग में कतिपय अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अथवा अन्तर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों का विकास हुआ है तथा उनकी भूमिका निरन्तर बढ़ रही है । इन संगठनों का विकास इनकी उपादेयता को रेखांकित करते हैं ।

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वर्तमान विश्व एक ऐसी स्थिति में है जिसमें राष्ट्रों व समुदायों के मध्य पारस्परिक निर्भरता निरन्तर बढ़ रही है । अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का विकास वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है ।

इन संगठनों के विकास व उदय के निम्नलिखित कारण हैं:

1. विश्व शांति व सुरक्षा (World Peace and Security):

विश्व शांति व सुरक्षा की स्थापना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की आवश्यकता है । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व समुदाय ने यह महसूस किया कि यदि विश्व को युद्ध की विभीषिका से बचाना है तो उसके लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है । 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना सामूहिक सुरक्षा की आवश्यकता का ही प्रतिफल है ।

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2. विश्व समुदाय में सहयोग को बढ़ाना (Increasing Cooperation in the World Community):

विश्व समुदाय के विभिन्न राष्ट्रों में आर्थिक व्यापारिक सांस्कृतिक शैक्षणिक वैज्ञानिक आदि क्षेत्रों में सहयोग व समन्वय को बढ़ाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की आवश्यकता होती है । इसीलिए वर्तमान में इस तरह के कई विश्व संगठन जैसे- विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनेस्को, अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आदि कार्यरत हैं ।

3. वैश्विक चुनौतियों का समाधान (Solutions to Global Challenges):

वर्तमान में विश्व की चुनौतियाँ भी वैश्विक स्तर की हैं जिनका समाधान किसी एक राष्ट्र द्वारा नहीं किया रजा सकता । उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन, गरीबी व भुखमरी, आतंकवाद, मानवाधिकारों की रक्षा, परमाणु सुरक्षा आदि ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान विश्व के देशों के मध्य विभिन्न स्तरों पर प्रभावी सहयोग से ही किया जा सकता है । अत: इसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की आवश्यकता होती है ।

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4. वैश्वीकरण की आवश्यकता (Need of Globalization):

वैश्वीकरण के वर्तमान युग में संचार के साधनों ने देशों और समुदायों के मध्य वस्तुओं तथा विचारों के आदान-प्रदान को तीव्रता से बढ़ाया है । इन संचार साधनों के कारण मैकलुहान के शब्दों में आज दुनिया एक वैश्विक गाँव का रूप धारण कर गयी है । अत: देशों, व्यक्तियों व समुदायों के मध्य तेजी से बढ़ती पारस्परिक निर्भरता के चलते अन्तर्राष्ट्रीय संगठन अत्यन्त आवश्यक हो गये हैं ।

5. छोटे व गरीब राष्ट्रों के हितों की रक्षा (Protecting the Interests of Small and Poor Nations):

एकध्रुवीय व्यवस्था में महाशक्तियों के बीच शक्ति संतुलन समाप्त हो चुका है । अत: एक ही महाशक्ति द्वारा शक्ति के दुरुपयोग की संभावना बढ़ गयी है । अत: छोटे राष्ट्रों की सम्प्रभुता व अखण्डता की समस्या बढ़ गयी है । अमेरिका ने एक महाशक्ति के रूप में इराक, लीबिया, अफगानिस्तान आदि देशों में मनमाने ढंग से हस्तक्षेप किया है ।

अत: वर्तमान समय में विश्व शांति व सुरक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है । इसके साथ ही गरीब राष्ट्रों के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए वैश्वीकरण के वर्तमान युग में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की विशेष उपयोगिता है ।