Read this article in Hindi to learn about the two main types of new international organizations in the world. The types are:- 1. अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठन (International Economic Organization) 2. अन्तर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन (International Non-Governmental Organization).

Type # 1.  अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठन (International Economic Organization):

विश्व के देशों के मध्य जहाँ एक ओर पारस्परिक निर्भरता बढ़ती जा रही है, वहीं विश्व समस्याओं की जटिलता भी बढ़ती जा रही है । पिछले तीन दशकों में वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने जहाँ विश्व अर्थव्यवस्था में एकीकरण को बढ़ावा दिया है, वहीं विश्व की आर्थिक चुनौतियाँ भी बड़ी हैं ।

2008 से चल रही विश्व आर्थिक मंदी इसका प्रमुख प्रमाण है । इस आर्थिक मंदी ने यूरोप के विकसित देशों के साथ-साथ विकासशील देशों को भी अपनी चपेट में ले लिया है । अत: विश्व व्यवस्था के प्रबन्धन के लिए कई आर्थिक संगठनों का विकास हुआ है ।

इनमें से कुछ प्रमुख संगठनों का विवरण निम्नलिखित है:

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1. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund):

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक की स्थापना 1944 में अमेरिका में सम्पन्न ब्रेटन वुड्‌स सम्मेलन के अंतर्गत की गयी थी । विश्व मुद्रा कोष 1945 में अस्तित्व में आया । इसका मुख्यालय वाशिंगटन में है ।

इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:

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(i) यह संगठन अपने सदस्य देशों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में विदेश मुद्रा की कमी को पूरा करने के लिए ऋण प्रदान करता है ।

(ii) यह सदस्य राष्ट्रों को विदेश मुद्रा की कमी की समस्या से निपटने के लिए नीतियों का सुझाव भी देता है । आमतौर पर ऋण प्रदान करने के लिए सदस्य देशों को इन नीतियों को लागू करना अनिवार्य होता है । ये नीतियाँ बाजारू शक्तियों को बढ़ाने में सहायक होती हैं ।

गठन तथा संसाधन:

वर्तमान में 184 देश इसके सदस्य हैं । इसकी सर्वोच्च निर्णयकारी संस्था बोर्ड ऑफ गवर्नर के नाम से जानी जाती है, जिसके निर्णयों को लागू करने के लिए एक कार्यकारी बोर्ड होता है । कार्यकारी बोर्ड की अध्यक्षता एक प्रबन्ध निर्देशक द्वारा की जाती है ।

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अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को प्राप्त होने वाले वित्तीय संसाधनों के दो स्रोत हैं- प्रथम, सदस्य राष्ट्रों द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाने वाला योगदान तथा दूसरा, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा विभिन्न स्रोतों से कर्ज प्राप्त करना ।

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक नहीं हैं:

उल्लेखनीय है कि भारत सहित तमाम विकासशील देश अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को अधिक लोकतांत्रिक बनाने की माँग कर रहे हैं ।

इसकी कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक नहीं है, जिसके निम्न कारण हैं:

(i) सभी सदस्यों को इसकी निर्णय प्रक्रिया में समान अधिकार प्राप्त नहीं है । वोट डालने का अधिकार किसी देश द्वारा दिये गये योगदान के अनुपात में होता है । अत: अधिक धन का योगदान करने वाले विकसित देश निर्णय प्रक्रिया में हावी हो जाते हैं, क्योंकि उनके अधिक वोट हो जाते है ।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में प्रबन्ध निदेशक तथा अन्य अधिकारियों की नियुक्ति भी लोकतांत्रिक नहीं है । सदैव ही प्रबन्धन निर्देशक के रूप में किसी यूरोपीय नागरिक को ही नियुक्त किया जाता है तथा प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति भी मनमाने तरीके से की जाती है ।

2. विश्व बैंक (World Bank):

विश्व बैंक का पूरा नाम अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण व विकास बैंक है । इसका मुख्यालय भी वाशिंगटन में स्थित है । इसकी स्थापना 1945 में की गयी थी तथा 1946 में इस संगठन ने अपना काम-काज शुरू किया ।

कार्य:

विश्व बैंक के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:

(i) सदस्य देशों में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना ।

(ii) विकास के लिए सदस्य देशों को दीर्घकालीन ऋण अथवा सहायता प्रदान करना । विश्व बैंक मुख्यत: विकासशील देशों में निम्न कार्यों के लिए ऋण प्रदान करता है- आधारभूत ढाँचागत विकास गैस व तेल उत्पादन को बढ़ाना गंभीर आर्थिक संकटों का समाधान प्रशासनिक सुधारों को लागू करना ग्रामीण विकास तथा सिंचाई सुविधाओं का विस्तार तथा पर्यावरण संरक्षण ।

गठन:

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की भांति विश्व बैंक की भी सर्वोच्च निर्णयकारी संस्था बोर्ड ऑफ गवर्नरस हैं । इसमें प्रत्येक देश का एक प्रतिनिधि शामिल होता है, जिसे गवर्नर कहा जाता है । इसके निर्णयों को लागू करने के लिए कार्यकारी निदेशकों का एक अलग बोर्ड होता है, जिसमें 21 कार्यकारी निदेशक होते हैं । इन कार्यकारी निदेशकों की नियुक्ति विश्व बैंक की पूँजी में पाँच सबसे बड़े योगदानकर्ता देशों द्वारा की जाती है ।

विश्व बैंक की कार्य प्रणाली भी अलोकतांत्रिक है:

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की तरह ही विश्व बैंक की कार्य प्रणाली भी लोकतांत्रिक नहीं है ।

इसके निम्न कारण हैं:

(i) इसमें भी प्रत्येक सदस्य को निर्णय-निर्माण विशेषकर कार्यकारी निदेशकों की नियुक्ति में समान अधिकार प्राप्त नहीं है । किसी भी देश के अधिकार उसके द्वारा दी गयी पूँजी के अनुपात में होते हैं । अत: गरीब देश इसमें शक्ति शून्य हो जाते हैं तथा शक्तिशाली देशों का वर्चस्व बढ़ जाता है ।

(ii) विश्व बैंक का अध्यक्ष सदैव अमेरिकी नागरिक होता है तथा इसके संचालन में अमेरिका का वर्चस्व रहता है । भारत तथा विकासशील देशों द्वारा इसमें भी लोकतांत्रिक सुधारों की माँग समय-समय पर उठायी जाती रही है ।

3. विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization):

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1 जनवरी 1995 में की गयी थी । यह अपने पूर्ववर्ती संगठन गैट (GATT)- जनरल एग्रीमेन्ट ऑन ट्रेड एण्ड टैरिफ-का उत्तराधिकारी है । गैट की स्थापना 1947 में हुई थी । वैश्वीकरण के युग में व्यापारिक चुनौतियों के प्रबन्धन के लिए इसका स्थान विश्व व्यापार संगठन ने ले लिया । इस संगठन का मुख्यालय स्विट्‌जरलैंड के शहर जेनेवा में स्थित है । वर्तमान में 159 देश इसके सदस्य हैं । चीन ने 2010 में इसकी सदस्यता ग्रहण कर ली है ।

उद्देश्य:

विश्व व्यापार संगठन के चार्टर की प्रस्तावना में इसके निम्न उद्देश्यों का वर्णन किया गया है:

(1) सम्पूर्ण विश्व में लोगों के जीवन स्तर को उन्नत करना ।

(2) विश्व में वस्तुओं तथा सेवाओं की ठोस माँग में वृद्धि करना तथा रोजगार के अवसर बढ़ाना ।

(3) वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन तथा व्यापार को प्रोत्साहित करना ।

(4) विश्व के संसाधनों के समुचित उपयोग को बढ़ावा देना ।

(5) पर्यावरण की रक्षा तथा जीवन्त विकास की धारणा को लागू करना ।

कार्य:

विश्व व्यापार संगठन के निम्न कार्य हैं:

(1) विश्व व्यापार समझौतों के क्रियान्वयन तथा संचालन हेतु सुविधाएँ प्रदान करना ।

(2) व्यापार तथा सीमा शुल्क के मामलों में सदस्यों के मध्य विचार-विमर्श को सुलभ बनाना ।

(3) सदस्य राज्यों के मध्य विवादों के निपटारे से सम्बन्धित नियमों का निर्धारण करना ।

(4) व्यापार नीति समीक्षा प्रणाली की व्यवस्था करना ।

(5) वैश्विक आर्थिक नीतियों में एकरूपता लाने का प्रयास करना । इसके विश्व व्यापार संगठन अन्य आर्थिक संस्थाओं जैसे-विश्व बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से समन्वय स्थापित करता है ।

Type # 2. अन्तर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन (International Non-Governmental Organization):

जिस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर एन. जी. ओ. अथवा गैर सरकारी संगठन कार्यरत् हैं उसी तरह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गैर सरकारी संगठनों का विकास हुआ है । वैश्वीकरण की वर्तमान प्रवृत्ति ने इन गैर सरकारी संगठनों के विकास में सहायता पहुँचाई है । संगठन विभिन्न तरीकों से विश्व व्यवस्था के प्रबन्धन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । सरकार तथा बाजार के बाद व्यवस्था के प्रबन्धन का तीसरा तत्व माना गया है ।

प्रमुख गैर सरकारी संगठन:

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा, पर्यावरण संरक्षण, लोकतंत्र का विकास, गरीबी निवारण, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में कई गैर सरकारी संगठनों का विकास हुआ है तथा यह संगठन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं ।

इनमें से कुछ संगठन निम्नलिखित:

(1) इन्टरनेशनल रेड क्रॉस सोसाइटी, जो मुख्यत: शरणार्थियों की समस्या तथा आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में कार्यरत् है ।

(2) एमनेस्टी इन्टरनेशनल, लंदन स्थित यह गैर सरकारी संगठन मानवाधिकारों विशेषकर बन्दियों के मानवाधिकारों के संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत् है । 1977 में इस संगठन को शांति का नोबल पुरस्कार प्राप्त हो चुका है ।

(3) ग्रीन पीस यह संगठन पर्यावरण के संरक्षण में कार्यरत् है ।

(4) हयूमन राइट वाच यह एक अमेरिकी संगठन है जो मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्य करता है । इन्टरनेशनल लीग फॉर हयूमन राइट भी एक प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है ।

गैर सरकारी संगठनों की भूमिका (Role of NGOs):

गैर सरकारी संगठनों का विकास जनता के प्रयासों से होता है । लेकिन ये संगठन सरकार तथा अन्य स्रोतों से आर्थिक सहायता प्राप्त करते हैं ।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इन संगठनों की भूमिका में निम्नलिखित बिन्दु महत्त्वपूर्ण हैं:

(i) गैर सरकारी संगठन वैश्विक व्यवस्था के प्रबन्धन तथा वैश्विक चुनौतियों के समाधान में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ाते हैं ।

(ii) ये संगठन विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर विश्व जनमत के निर्माण में सहायक होते हैं तथा विश्व स्तर पर नागरिक जागरूकता उत्पन्न करते हैं ।

(iii) गैर-सरकारी संगठन विश्व व्यवस्था के लोकतांत्रिक प्रबन्धन के पक्षधर हैं । अत: ये लोकतंत्र के विस्तार में सहायक हैं । ये संगठन विभिन्न राष्ट्रों द्वारा शक्ति के दुरुपयोग तथा शोषण की घटनाओं को विश्व के सामने उजागर करते हैं ।

(iv) गैर सरकारी संगठन प्रमुख वैश्विक चुनौतियों जैसे- जलवायु परिवर्तन मानवाधिकारों का उल्लंघन गरीबी निवारण आदि के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । शरणार्थियों की समस्याओं के समाधान में रेड क्रॉस सोसाइटी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । प्राकृतिक आपदाओं के सम्बन्ध में राहत कार्यों में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है ।

(v) गैर सरकारी संगठन अपना पक्ष प्रस्तुत करके वैश्विक अर्थ- व्यवस्था व राजनीतिक व्यवस्था के प्रबन्धन में बड़े देशों की नीतियों को प्रभावित करते हैं । इस दृष्टि से यह संगठन जनता और सरकार के बीच एक कड़ी का कार्य करते हैं ।