Read this article in Hindi to learn about the negative and positive transcriptional control in prokaryotes.

(1) ऋणात्मक नियंत्रण (Negative Control):

(i) प्रेरणयोग्य जीन (Inducible Genes):

(a) केवल संदमक प्रोटीन (Repressor Protein Alone)- इसमें केवल रिप्रेशर प्रोटीन जीन/जीनों को ऑफ कर देती है (लैक्टोज ऑपरॉन का ट्रांसक्रिप्शन रोक देती है ।)

(b) संदमक प्रोटीन + प्रेरक (Repressor Protein + Inducer)- प्रेरक (Inducer) से जुड़ने के बाद निष्क्रिय हुआ रिप्रेसर रेगुलेटेड जीन को ऑफ करने में अक्षम हो जाता है ।

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(लैक्टोज रिप्रेसर + एलोलैक्टोज_लैक्टोज ऑपेरॉन अनुलेखन प्रारंभ) प्रोकार्योटेस

(ii) संदमन योग्य जीन (Repressible Genes):

(1) केवल संदमक प्रोटीन (Repressor Protein Alone)- अकेली रिप्रेसर प्रोटीन जीन (Repressor Protein Gene) को ऑफ नहीं कर पाती है ।

(ट्रिप्टोफन रिप्रेसर – ट्रिप्टोफन ऑपेरॉन का अनुलेखन रोक नहीं पाती)

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अत: ट्रिप्टोफन ऑपेरॉन का अनुलेखन (Transcription) से जाता है ।

(2) रिप्रेसर प्रोटीन + कोरिप्रेसर (Repressor Protein + Co-Repressor)- रिप्रेसर प्रोटीन व कोरिप्रेसर के योग से बना जटिल, रेगुलेटेड जीन को ऑफ कर देता है ।

(ट्रिप्टोफन रिप्रेसर + ट्रिप्टोफन → ट्रिप्टोफन ऑपेरॉन अनुलेखन बन्द)

(2) धनात्मक नियंत्रण (Positive Control):

(a) केवल एक्टीवेटर प्रोटीन (Activator Protein Alone)- अकेला एक्टीवेटर, रेगुलेटेड जीन/जीनों को ऑन नहीं कर सकता ।

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(CAP → लैक्टोज ऑपेरॉन का अनुलेखन उद्दीप्त नहीं होता)

(b) एक्टीवेटर प्रोटीन + को एक्टीवेटर (Activator Proteins + Co-Activator)- एक्टीवेटर तथा को एक्टीवेटर के संयोग से बना सक्रिय जटिल (Functional Complex) रेगुलेटेड जीन को आन कर देता है ।

(CAP + cAMP) → लैक्टोज ऑपेरॉन का अनुलेखन उद्दीप्त

इसके पहले जीन रेगुलेशन के अन्तर्गत निम्न बिंदु आते हैं:

(i) एंजाइम प्रेरण के द्वारा (By Enzyme Induction),

(ii) एंजाइम अवमंदन के द्वारा (By Enzyme Repression),

(iii) लेक ऑपेरॉन (Lac-Operon):

(a) ऋणात्मक अनुलेखन नियंत्रण (Negative Transcriptional Control),

(b) धनात्मक अनुलेखन नियंत्रण (Positive Transcriptional Control) ।

(i) एंजाइम प्रेरण के द्वारा (By Enzyme Induction):

इस प्रकार के नियमन की विधि प्राय: सभी कोशिकाओं में पाई जाती है, लेकिन इसका व्यापक अध्ययन ई. कोलाई (E. Coli) में किया गया है । जब ग्लूकोज व अन्य पोषक युक्त माध्यम में ई. कोलाई के संवर्धित किया जाता है, तो इसकी वृद्धि तेजी से होती है ।

यदि माध्यम में ग्लूकोज के स्थान पर लैक्टोज को रख दिया जाये, तो ई. कोलाई की वृद्धि थोड़े समय के लिये रुक जाती है, क्योंकि यह नये सबस्ट्रेट का उपयोग नहीं कर पाता है । लेकिन थोड़े समय पश्चात् ई. कोलाई में वृद्धि प्रारंभ हो जाती है, क्योंकि संवर्धन माध्यम में परिवर्तन हो जाने के कारण β – ग्लेक्टोसाइडेज, एंजाइम का संश्लेषण प्रारंभ हो जाता है ।

अर्थात इस एंजाइम का प्रेरण हो जाता है । यद्यापि β – ग्लेक्टोसाइडेज, अत्यल्प मात्रा में पहले से ही उपस्थित होता है लेकिन माध्यम में लैक्टोज की मात्रा वढ़ जाने के कारण इस एंजाइम की सांद्रता बढ़ती जाती है । प्रारंभिक अवस्था में β – ग्लेक्टोसाइडेज की सांद्रता शून्य नहीं होती है तथा सबस्ट्रेट की अनुपस्थिति में भी सूक्ष्म मात्रा में इसका संश्लेषण होता रहता है ।

इस प्रकार स्पष्ट है कि इसके जीनोम में β – ग्लेक्टोसाइडेज के संश्लेषण की सूचनायें निहित होती है, लेकिन वांछित उत्पादन के लिये प्रेरक (Trigger) की आवश्यकता होती है । इस प्रकार के एंजाइम संविधानिक एंजाइम (Constitutive Enzyme) कहलाते हैं ।

(ii) एंजाइम अवमंदन के द्वारा (By Enzyme Repression):

जब ई. कोली को NH4+2 लवण युक्त माध्यम में संवर्धित किया जाता है, तो जीवाणु इनका उपयोग करके एमिनो एसिड, प्यूरीन, पिरीमिडीन का संश्लेषण करता है ।

यदि कुछ एमिनो अम्ल को संवर्धन माध्यम में उपलब्ध करवा दिया जाये, तो इन एमिनो अम्ल को संश्लेषित माध्यम में उपलब्ध करवा दिया जाये, तो इन एमिनो अम्लों के संश्लेषित करने वाले एंजाइम की आवश्यकता नहीं होती है । इस एंजाइम की सांद्रता कोशिका में कम हो जाती है या विलुप्त हो जाता है । यह घटना एंजाइम अवमदन कहलाती है ।

कई बार एंजाइमों का समूह, अभिक्रियाओं की श्रृंखला में भाग लेता है । इस समूह का प्रत्येक एंजाइम एक विशिष्ट जीन के द्वारा संश्लेषित होता है । यदि अंत उत्पाद की सांद्रता एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाये तो श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित करने वाला प्रथम एंजाइम अवमंदित हो जाता है जिससे अंत उत्पादन का निर्माण रुक जाता है । यह नियंत्रण पूर्नभरण अवमंदन (Feed Back Inhibition) कहलाता है ।

(iii) लेक ऑपेरॉन तथा ऋणात्मक अनुलेखन नियंत्रण (Lac-Operon and Negative Transcriptional Control):

जेकब तथा मोनोड ने सर्वप्रथम 1961 में ऑपेरॉन मॉडल का प्रतिपादन किया ।

ऑपेरॉन जीन प्रदर्शन की सम्पूर्ण इकाई है, जो मुख्य रूप से दो भागों की बनी होती है:

(I) संरचनात्मक जीन (Structural Gene),

(II) संचालक जीन (Controller Gene) ।

(I) संरचनात्मक जीन (Structural Gene):

संरचनात्मक जीन के द्वारा एक लम्बा पीलीसिस्ट्रोनिक m-RNA संश्लेषित होता है । संरचनात्मक जीन्स की संख्या प्रोटीन की संख्या के बराबर होती है । प्रत्येक संरचनात्मक जीन स्वतंत्र रूप से नियंत्रित होता है तथा स्वतंत्र रूप से m-RNA अणु को अनुलेखित करता है ।

यह अनुलेखन, उपभाग किये जाने वाले सबस्ट्रेट पर निर्भर करता है । लेक ऑपेरॉन के संरचनात्मक जीन में तीन जीन (Z, Y, A) उपस्थित होते हैं । जिससे क्रमशः β – ग्लेक्टोसाइडेज, परमिएज तथा एसिटाइलेज एंजाइम का संश्लेषण होता है ।

(II) संचालक जीन (Controller Gene):

ऑपेरॉन का यह भाग भी तीन इकाईयों का बना होता है:

(a) नियामक जीन (Regulator Gene-I),

(b) प्रमोटर जीन (Promotor Gene-P),

(c) ऑपरेटर जीन (Operator Gene-O) ।

(a) नियामक जीन (Regulator Gene-I):

यह जीन संरचनात्मक जीन के अनुलेखन का नियंत्रण करता है । यह सक्रिय तथा निष्क्रिय दो प्रकार का होता है । रिप्रेसर प्रोटीन को कोडित करता है । रिप्रेसर प्रोटीन का अणुभार 1,50,000 होता है । यह रिप्रेसर प्रोटीन चार उप इकाइयों का बना होता है । रिप्रेसर प्रोटीन में ऑपरेटर जीन के 12-15 क्षार युग्म के खण्डों के साथ दृढ़ बंधुता पाई जाती है ।

(b) प्रमोटर जीन (Promotor Gene-P):

प्रमोटर जीन लगभग 100 न्यूक्लिओटाइड लम्बा होता है तथा ऑपरेटर जीन के साथ सतत होता है । प्रमोटर जीन में पेलिन्ड्रोमिक श्रृंखलायें पाई जाती है । इन पेलिन्ड्रोमिक श्रृंखलाओं की पहचान उन प्रोटीन के द्वारा होती है जिनमें सममितताकार रूप से व्यवस्थित उपइकाइयाँ पाई जाती है ।

द्विवलनीय सममितता वाला यह भाग CRP स्थल की ओर उपस्थित होता है, जो CRP (Cyclic AMP Receptor Protein) के साथ बंधित होता है । प्रयोगों द्वारा यह पाया गया है कि CRP, C-AMP के साथ बंधित होता है तथा cAMP-CRP कॉम्पलेक्स का निर्माण करता है । यह cAMP, CRP संकुल अनुलेखन में सहायक होता है ।

(c) ऑपरेटर जीन (Operator Gene-O):

यह जीन लगभग 20 क्षार युग्मों का बना होता है तथा लेक z- (Lac Z) जीन के पास उपस्थित होता है । इस जीन में उपस्थित क्षार युग्म पेलिन्ड्रोमिक प्रकार के होते हैं । इस जीन का कुछ भाग, प्रमोटर जीन के साथ अतिव्यापित होता है ।

रिप्रेसर प्रोटीन, ऑपरेटर जीन के साथ बंधित होता है तथा प्रमोटर क्षेत्र को डी. एन. ए. एज. (DNA ase) के पाचन से बचाता है । रिप्रेसर प्रोटीन के ऑपरेटर जीन के साथ बंधित होने पर Z, Y तथा A संरचनात्मक जीन का अनुलेखन अवरुद्ध हो जाता है ।

ऑपेरॉन परिपथ का नियंत्रण नियामक जीन के द्वारा होता है । जब ई. कोलाई के माध्यम में लेक्टोस शर्करा का अभाव होता है, तो रिप्रेसर प्रोटीन का निर्माण होता है । यह प्रोटीन ऑपरेटर जीन के साथ बंधित हो जाता है, जिसके कारण RNA पोलीमेरेज एंजाइम बंधित नहीं हो पाता है तथा संरचनात्मक जीन में अनुलेखन नहीं हो पाता है ।

जब माध्यम में लेक्टोज उपस्थित होता है तो यह प्रेरक का कार्य करता है तथा रिप्रेसर प्रोटीन के साथ बंधित हो जाता है, जिससे रिप्रेसर प्रोटीन, ऑपरेटर जीन के साथ बंधित नहीं हो पाता है । लेकिन RNA पोलीमेरेज, ऑपरेटर जीन के साथ बंधित हो जाता है तथा z – सिस्ट्रोन के द्वारा β – ग्लेक्टोसाइडेज एंजाइम का संश्लेषण होता है जो लेक्टोस को ग्लूकोस तथा ग्लेक्टोस में परिवर्तित कर देता है ।

लेक ऑपेरॉन तथा धनात्मक अनुलेखन नियंत्रण (Lactose Operon and Positive Transcriptional Control):

जीन के धनात्मक नियंत्रण में जीन की अभिव्यक्ति उसी समय होती है जब एक सक्रिय नियामक प्रोटीन उपस्थित हो । यह प्रोटीन एपो-इंडूसर कहलाता है । इस नियंत्रण में चक्रीय AMP, CAP (Catabolic Activator Protein) के साथ बंधित होकर CAP-C-AMP एक्टीवेटर संकुल का निर्माण करती है ।

उदाहरण:

ई. कोलाई को ग्लूकोज माध्यम में संवर्धित किया जाता है, तो एंजाइम β – ग्लेक्टोसाइडेज का उत्पादन नहीं होता है । यह घटना केटाबोलिक रिप्रेसर कहलाती है । चक्रीय ए. एम. पी. द्वितीयक संदेश वाहक कहलाता है, जो हार्मोन्स तथा एंजाइम्स को सक्रिय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

ई. कोलाई में CRP तथा C-MP का निर्माण रिप्रेसर जीन (I) के द्वारा होता है । CRP में C-AMP के प्रति अत्यधिक बंधुता पाई जाती है जिससे CRP-C-AMP संकुल का निर्माण होता है, जो प्रमोटर स्थल पर उपस्थित विशिष्ट बंधन स्थल के साथ बंधित होता है ।

ग्लूकोस के द्वारा C-AMP के संश्लेषण का अवमंदन होता है, लेकिन जब इसकी अपूर्ति बहिर्जात रूप से की जाती है, तो यह अनुलेखन का प्रारंभ करता है तथा एंजाइम के उत्पादन को प्रेरित करता है । इसी दौरान RNA पोलीमेरेज, प्रमोटर की पहचान कर लेता है । इस कारण ई. कोलाई में जीन के धनात्मक नियंत्रण हेतु चक्रीय AMP की आवश्यकता होती है ।

ट्रिप्टोफेन ऑपेरॉन (Tryptophan Operon):

ट्रिप्टोफेन ऑपेरॉन में एटीनूएशन विधि द्वारा जीन का नियमन होता है । इन ऑपेरॉन का संरचनात्मक जीन पाँच प्रकार के पोलीपेप्टाइड का संश्लेषण करता है । चार्ल्स यानोफस्की के अनुसार ट्रिप-ऑपेरॉन जीन की समन्वित अभिव्यक्ति, ट्रीप –R – जीन द्वारा निर्मित ट्रिप रिप्रेसर प्रोटीन द्वारा नियंत्रित होती है ।

ट्रिप-रिप्रेसर –L ट्रिप्टोफेन के साथ बंधित होता है तथा एक संकुल का निर्माण करता है, जो विशिष्ट रूप से ट्रिप ऑपरेटर के साथ बंधित हो जाता है, परिणामस्वरूप ट्रिप ऑपेरॉन की अनुलेखन दर 70 गुना हो जाती है ।

ट्रिप-रिप्रसर-ऑपरेटर संकुल के X-किरण अध्ययन में पाया गया कि ट्रिप्टोफेन बंधन, ट्रिप रिप्रेसर को दो सममिताकार संबंधित टर्न हेलिक्स को एलोस्टेरिक रूप से अभिविन्यासित कर देता है, जिससे यह क्रमिक रूप से ट्रिप – O के साथ बंधित हो जाता है ।

इसी के साथ बंधित ट्रिप्टोफेन, DNA फॉस्फेट समूह के साथ हाइड्रोजन बंध बनाता है, परिणामस्वरूप रिप्रेसर ऑपरेटर संगठन और दृढ़ हो जाता है । इस प्रकार ट्रिप्टोफेन, एक प्रकार से सहरिप्रेसर (Corepressor) का कार्य करता है । ट्रिप-रिप्रेसर दो अन्य ऑपेरॉन के संश्लेषण को भी नियंत्रित करता है जो कि Trp-R तथा aro.H है ।

ट्रिप्टोफेन ऑपेरॉन में यह पाया गया है कि इसमें प्रमोटर तथा ऑपरेटर जीन के अलावा नियमन का अन्य स्थल भी पाया जाता है । यह पाया गया है कि ट्रिप -E तथा ट्रिप -C के मध्य उपस्थित श्रृंखला का विलोपन हो जाये, तो संरचनात्मक जीन की अभिव्यक्ति बढ़ जाती है ।

यह प्रभाव रिप्रेसर से स्वतंत्र होता है । यह नियामक स्थल-एटिनूएटर स्थल कहलाता है । यह स्थल 162 न्यूक्लिओटाइड का बना होता है, जो ट्रिप E जीन से पहले उपस्थित होता है । एटीनूएटर स्थल, अनुलेखन हेतु बाधित (Barrier) स्थल होता है ।

एक छोटी G-C बहुल पेलीण्ड्रोम श्रृंखला जहाँ पर उपस्थित होती है, वहाँ पर RNA पोलीमेरेज अनुलेखन की निर्मित RNA को निर्मुक्त कर देता है । इस स्थल पर निर्मुक्ति (Termination) की घटना, ट्रिप्टोफेन के स्तर पर प्रभावित होती है ।

ट्रिप्टोफेन की बहुलता में निर्मुक्तिकी घटना दक्षता से होती है, लेकिन ट्रिप्टोफेन की अनुपस्थिति में RNA पोलीमेरेज सतत रूप से संरचनात्मक जीन का अनुलेखन करता रहता है । अनुलेखन की निर्मुक्ति की यह घटना एटीनुएशन (Attenuation) कहलाती है ।

एंटी टर्मीनेशन (Anti Termination):

एक बार RNA पोलीमेरेज द्वारा अनुलेखन क्रिया प्रारंभ हो जाने के पश्चात् एंजाइम सतत रूप से टेम्पलेट पर गति करते हुये RNA का संश्लेषण करता रहता है । जब तक अनुलेखन की समाप्ति का कोई संकेत प्राप्त नहीं होता है । DNA का यह स्थल टर्मीनेशन कहलाता है ।

कुछ टर्मीनेटर स्थल पर निर्मुक्ति पर निर्मुक्ति की घटना कुछ सहायक कारकों के कारण रुक जाती है । ये सहायक करक, RNA पोलीमेरेज के साथ अन्त:क्रिया करते हैं, ये करक एंटीटर्मिनेटर कहलाते हैं । एंटीटर्मिनेटर में निर्मुक्ति स्थल आने पर भी श्रृंखला का समापन नहीं होता है तथा श्रृंखला अगले सिस्ट्रोन में पुन: प्रारंभ हो जाती है ।

विभिन्न सहायक कारक, निर्मुक्ति श्रृंखलाओं को लघुपथित कर देते हैं । एंटीटर्मिनेटर की घटना जीन के विशिष्ट विन्यास पर निर्भर करती है । यदि श्रृंखला समापन की घटना निर्मुक्ति स्थल पर नहीं हो तो RNA पोलीमेरेज अगले जीन का अनुलेखन प्रारंभ कर देता है ।

इस प्रकार एंटीटर्मिनेशन में एक ही प्रमोटर सतत रूप से RNA पोलीमेरेज द्वारा अनुलेखित होता है । इस कारण नये जीन की अभिव्यक्ति केवल RNA श्रृंखला की अतिवृद्धि के कारण होती है ।

इस श्रृंखला में पाँचवे सिरे पर प्रारंभिक जीन श्रृंखलाएँ पाई जाती है तथा तीसरे सिरे पर नये जीन्स उपस्थित होते हैं । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नयी श्रृंखला का समारंभ तथा एंटीटर्मिनेशन की घटना दोनों एक समान होती है ।

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