Read this article in Hindi to learn about the gene regulation and control of transcription in eukaryotes.

यूकैरियोटों में जिन का नियमन (Gene Regulation in Eukaryotes):

जीन्स तभी क्रियाशील होते हैं जब कोशा में उनके उत्पादों की आवश्यकता होती है । शेष समय वे अक्रियाशील रहते हैं । यूकैरियोटों में एक विशेष समय में 2% से 15% जीन ही अभिव्यक्त होते हैं इसलिए इनमें भी किसी न किसी नियमन प्रक्रिया का पाया जाना स्वाभाविक है ।

यूकैरियोट में विभिन्न प्रकार के RNA का संश्लेषण तीन प्रकार के DNA पॉलीमरेज-RNA पॉलीमरेज I,RNA पॉलीमरेज II, पॉलीमरेज III द्वारा किया जाता है, अत: एक सामान्य नियमन अनेक RNA पॉलीमरेजों की उपलब्धता पर भी निर्भर होता है । किन्तु अधिक महत्वपूर्ण नियमन गुणसूत्र में उपस्थित प्रोटीनों-हिस्टोन व नॉन हिस्टोन द्वारा भी किया जाता है ।

गुणसूत्री प्रोटीनों का जीन अभिव्यक्ति से संबंध (Relation between Chromosomal Protein and Gene Expression):

ADVERTISEMENTS:

गुणसूत्री प्रोटीन दो प्रकार की होती हैं- हिस्टोन व नॉन हिस्टोन । अत: क्रोमेटिन तीन अवयवों से मिलकर बनता है- DNA, हिस्टोन व नॉन हिस्टोन । जीन की सक्रियता को सामान्यतः हिस्टोन प्रोटीन द्वारा दमन किया जाता है । किन्तु विशिष्ट नियमन नॉन-हिस्टोन प्रोटीन द्वारा होता है ।

इस संबंध में गिल्मर (Gilmour) एवं पॉल (Paul), 1973 द्वारा किए गए प्रयोग महत्वपूर्ण है, जिसमें नॉन-हिस्टोन प्रोटीन, हिस्टोन प्रोटीन को विस्थापित करते हैं और डीरिप्रेसर (Derepressor) की तरह कार्य करते हैं । इन प्रयोगों में क्रोमेटिन को DNA, हिस्टोन एवं नॉन-हिस्टोन में वियोजित किया गया ।

इसके बाद DNA एवं हिस्टोन को फिर से संयोजित करने पर जो क्रोमेटिन बना उसमें नॉन-हिस्टोन नहीं था । इस प्रयोग में RNA का अनुलेखन नहीं होता है । RNA के संश्लेषण को हिस्टोन द्वारा पूर्णतः दबा दिया जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

जब किसी दूसरे ऊतक के नॉन-हिस्टोन प्रोटीन को इस क्रोमेटिन में मिलाया गया तो RNA का अनुलेखन उस दूसरे ऊतक के समान होता है जिससे नॉन-हिस्टोन मिलाया गया है । अत: m-RNA का रूप उस m-RNA के समान होता है जो सामान्यतः उस क्रोमेटिन पर संश्लेषित होता है जिससे नॉन-हिस्टोन प्रोटीन ली गयी थी ।

स्टीन (Stein) एवं उसके साथियों (1975) के सिद्धांत के अनुसार जीन क्रिया का नियमन इस प्रकार होता है- हिस्टोन संभवतः जीन अभिक्रिया के लिए नॉन-स्पेसिफिक दमनकर (Non-Specific Repressor) की तरह कार्य करते हैं और DNA से m-RNA का अनुलेखन नहीं होने देते ।

एक विशेष नॉन-हिस्टोन प्रोटीन, DNA पर कुछ निश्चित स्थलों का चयन करता है और DNA पर बन्धित हो जाता है । यह नॉन-हिस्टोन प्रोटीन उस स्थल से हिस्टोन दमनकर को बाहर निकल लाता है और DNA को डीरिप्रेस कर देता है । फलस्वरूप RNA का संश्लेषण होने लगता है ।

ADVERTISEMENTS:

उपर्युक्त परिणामों से यूकैरियोट्स के प्रोटीन संश्लेषण में नॉन-हिस्टोनों के एक धनात्मक नियमन प्रकार्य (Positive Regulatory Role) का पता चलता है । कुछ अन्य प्रेक्षणों से भी नॉन-हिस्टोन के नियमन कार्य का पता चलता है ।

उदाहरणार्थ:

(1) नॉन-हिस्टोन, हिस्टोन प्रोटीन की अपेक्षा अधिक विविधता प्रदर्शित करती हैं,

(2) नॉन-हिस्टोन में ऊतक विशिष्टता तथा DNA बन्धन विशिष्टता होती है ।

उपर्युक्त सभी प्रेक्षण नॉन-हिस्टोन प्रोटीनों के विशिष्ट प्रकार्य को दर्शाते हैं, किन्तु हिस्टोनों के अभाव में नॉन-हिस्टोन प्रोटीन भी RNA का संश्लेषण नहीं कर पाते । अत: प्रोटीन संश्लेषण का नियमन हिस्टोनों तथा नॉन-हिस्टोनों के बीच होने वाली पारस्परिक क्रिया का परिणाम होता है ।

यूकैरियोट्स में अनुलेखन का नियंत्रण (Control of Transcription in Eukaryotes):

यूकैरियोट्स में अनुलेखन का नियंत्रण अनेक स्थानों (Many Sites) व अनेक भिन्न-भिन्न नियामक अणुओं (Regulatory Molecules) द्वारा होता है । अपस्ट्रीम प्रमोटर तत्व (Upstream Promoter Elements), एन्हांसर (Enhancers) व अनुलेखन प्रारंभ स्थान (Transcription Initiation Sites) जैसे- अनेक डी. एन. ए. खण्ड (DNA Fragments), अनुलेखन के नियंत्रण में महत्वपूर्ण होते हैं ।

इसके साथ-साथ, अनुलेखन की दर (Rate of Transcription) को भी नियंत्रित किया जाता है, जो रेगुलेटरी प्रोटीन जिसे ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर (Transcription Factor) कहा जाता है, तथा क्रोमोसोम में डी. एन. ए. के व्यवस्थित होने के ढंग द्वारा प्रभावित होती है ।

इन्हें निम्न बिन्दुओं में (Explain) कर सकते हैं:

(1) यूकैरियोटिक प्रमोटर्स (Eukaryotic Promoters),

(2) यूकैरियोटिक एन्हांसर (Eukaryotic Enhancer),

(3) अनुलेखन कारक (Transcription Factors),

(4) यूकैरियोटिक एक्टीवेटर्स (Eukaryotic Activators) ।

(1) यूकैरियोटिक प्रमोटर्स (Eukaryotic Promoters):

प्रोकैरियोट्‌स ही की तरह यूकैरियोट्स में भी किसी जीन के अनुलेखन (Transcription) के लिए एक प्रमोटर (Promoter) की आवश्यकता होती है जो आर. एन. ए. पॉलिमेरेज (RNA Polymerase) के बंधन का स्थान प्रदान करता है । बहुकोशिकीय यूकैरियोट्स में आर. एन. ए. पॉलिमेरेज जिन क्षारक क्रमों (Sequence of Bases) से बंधता है उन्हें टाटा बॉक्स (Tata Box) कहते हैं ।

यह अनुलेखन प्रारंभ स्थल (Transcription Initiation Site) से लगभग 30 क्षारक युक्त (Base Pair) ऊपर की ओर स्थित लेता है प्रमोटर क्षेत्र में एक या अनेक अन्य क्षारकों के क्रम (Sequence of Bases) भी होते हैं जिनमें 8-12 क्षारक होते हैं । इन्हें अपस्ट्रीम प्रमोटर एलीमेण्ट्स (Upstream Promoter Elements (UPEUs)) कहा जाता है ।

प्रमोटर की दक्षता यू. पी. ई. (UPEs) की संख्या व प्रकार पर निर्भर करती है । अर्थात् केवल एक (UPE) वाली संगठनात्मक जीन (Constitutive Genes) का अनुलेखन धीमी गति से तथा 5 या 6 UPEs वाली जीन का अनुलेखन तेजी से होता है ।

(2) यूकैरियोटिक एन्हांसर (Eukaryotic Enhancer):

यूकैरियोटिक जीन नियमन में प्रमोटर (Promoter) के अलावा (Enhancer) नामक डी. एन. ए. क्रमों (DNA Sequences) की भी आवश्यकता होती है । हम जानते हैं कि प्रमोटर्स की आवश्यकता m-RNA संश्लेषण के अचूक प्रारंभ (Initiation) लिए होती है ।

एन्हांसर्स (Enhancers) m-RNA के संश्लेषण की दर को तेज कर देते हैं । एन्हांसर्स की कई विशेषताएं होती हैं । यूँ तो एन्हांसर्स भी कोशिकाओं में पाये जाते हैं लेकिन कोई एक विशेष एन्हांसर, विशेष प्रकार की कोशिकाओं में ही कार्यशील होता है ।

किसी डी. एन. ए. अणु परस्थित एक एन्हांसर उसी डी. एन. ए. पर स्थित जीन को बहुत दूर तक से नियमित (Regulate) कर सकते हैं । ऐसे प्रमोटर व एन्हांसर के बीच हजारों क्षारकों (Bases) का अन्तर हो सकता है तथा यह प्रमोटर से अपस्ट्रीम या डाउनस्ट्रीम दोनों ही दिशाओं में स्थित हो सकता है ।

एक विशेषता एन्हांसर्स की यह भी है कि इनके विलोमन (Inversion) इनके कार्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात् यदि एक एन्हांसर क्रम को काट कर उसी डी. एन. ए. में विलोम क्रम (Inverted Sequences) में लगा दिया जाय तब भी वह जीन नियमन का कार्य उसी तरह करता रहता है । प्रमाण बतलाते हैं कि कुछ एन्हांसर्स अनुलेखन (Transcription) का नियमन करने वाली प्रोटीन से अन्योन्य क्रिया (Interaction) करते हैं ।

(3) अनुलेखन कारक (Transcription Factors):

प्रोकैरियोट्स में लैक्टोल रिप्रेसर ट्रिप्टोफेन रिप्रेसर व कैटाबोलाइट एक्टीवेटर प्रोटीन (CAP) जैसे अनुलेखन कारकों (Transcription Factor) का हम अध्ययन कर चुके है । यूकैरियोट्स में भी अनेक अनुलेखन कारकों की पहचान की गयी है ।

यूकैरियोट्स के अनुलेखन में अनेक रेगुलैटरी प्रोटीन्स (Multiple Regulatory Proteins) की आवश्यकता होती है जो प्रमोटर के विभिन्न भागों से जुड़ जाती है । इसकी सामान्य अनुलेखन मशीनरी (General Transcription Machinery) एक प्रोटीन जटिल (Protein Complex) होता है जो प्रमोटर के TATA क्षेत्र से जुड़ जाती है ।

रेगुलैटरी प्रोटीन्स के अन्य संयोजन कुछ दूरी पर स्थित एन्हांसर या प्रमोटर के यू. पी. ई. (UPE) क्षेत्र से जुड़ते हैं । वह प्रोटीन्स तब सामान्य मशीनी से सम्पर्क कर RNA पोलीमेरेज की क्रिया का नियंत्रण करते हैं । प्रोकैरियोट्स ही की तरह यूकैरियोट्स के रेगुलेटर, एक्टीवेटर (Activator) या रिप्रेसर्स (Repressors) होते हैं ।

(4) यूकैरियेटिक एक्टीवेटर्स (Eukaryotic Activator):

प्रत्येक एक्टीवेटर में अनेक संरचनात्मक व कार्यात्मक क्षेत्र (Functional Domain) होते हैं । डी. एन. ए. बाइन्डिंग साइट (DNA Binding Site) भी इनमें से एक (Domain) है । कभी-कभी बाइन्डिंग क्षेत्र एक या अनेक α – हैलिक्सों (α – Helices) का बना होता है जो डी. एन. ए. के विशिष्ट क्षेत्रों को पहचान कर उनसे जुड़ जाते हैं ।

α – हैलिक्स डी. एन. ए. की खाँचों (Grooves) में इस प्रकार प्रविष्टि होते हैं कि डी. एन. ए. दोहरी कुण्डली (DNA Double Helix) का विकुंडलन (Unwinding) नहीं होता । हम जानते हैं कि प्रोटीन की α – हैलिक्स इस प्रकार संयोजित होती है कि उनके पेप्टाइड बन्ध (Peptide Bond) हैलिक्स के अन्दर की ओर तथा कार्यशील समूह (Functional Group) बाहर की सतह की ओर विन्यस्त हो जाते हैं ।

इस कारण अमीनो अम्लों के कुछ कार्यशील समूह (Functional Group), डी. एन. ए. के कुछ विशिष्ट क्षारक युग्मों (Base Pairs) के बीच हाइड्रोजन बन्ध, (Hydrogen Bond) बनाने में सक्षम हो जाते हैं ।

रेगुलेटरी प्रोटीन व DNA के बीच बने यह हाइड्रोजन (Complimentary Base Pairing) से भिन्न होते हैं । कुछ अन्य एक्टीवेटर्स में अनेक ‘जिंक प्रवर्ध’ (Zinc Fingers) होते हैं, जो वास्तव में अमीनो अम्लों के लूप हैं जो जिंग आयन से जुड़े रहते हैं ।

एन्हांसर्स (Enhancers) व UPEs दोनों ही किसी विशिष्ट रेगुलेटरी प्रोटीन के जुड़ जाने पर क्रियाशील हो जाते हैं ऐसा माना जाता है कि एन्हांसर व प्रमोटर क्रमों के बीच का डी. एन. ए. एक लूप बना लेता है जिससे एन्हांसर से जुड़ा एक्टीवेटर सामान्य अनुलेखन जटिल (General Transcription Complex) से जुड़ी एक या अधिक लक्ष्य प्रोटीन (Target Proteins) के सम्पर्क में आ जाता है । ऐसा होने पर अनुलेखन (Transcription) तीव्र हो जाता है ।

स्पष्ट है कि ऐसे एक्टीवेटर में दो कार्यशील स्थलों (Functional Domains) का होना आवश्यक है:

(1) पहला– एक डी. एन. ए. पहचान स्थल (DNA Recognition Site), जो प्राय: एक एन्हांसर (Enhancer) या यू.पी.ई (UPEs) से जुड़ती है तथा

(2) दूसरा- ज्ञान सक्रियण स्थल (Gene Activation Site) जो सामान्य अनुलेखन जटिल (General Transcription Complex) के लक्ष्य (Target) से सम्पर्क साधता है ।

कुछ एक्टीवेटर्स केवल युग्म अवस्था (Paired Condition) में सक्रिय होते हैं । इन्हें डाइमर्स (Dimers) कहा जाता है । ऐसे एक्टीवेटर्स में डाइमर निर्माण के लिए विशेष स्थल (Domains) होते हैं ।

जब डामर बनाने वाले पोलीपेप्टाइड (Polypeptide) एक समान (Identical) होते हैं तब वह होमोडाइमर (Homodimer) का निर्माण करते हैं । इसके विपरीत हेटरोडाइमर (Heterodimer) का निर्माण अलग-अलग प्रकार के पोलीपेप्टाइड से होता है । दोनों प्रकार के डाइमर्स के नियमन गुण (Regulatory Properties) अलगा-अलग होते हैं ।

जीन अभिव्यक्ति एकक के मॉडल (Models for Unit of Gene Expression):

प्रोकैरियोट्स की ही तरह यूकैरियोट्स में भी ऑपेरॉन जैसे कई मॉडल बताए गए हैं जिनमें से प्रमुख है ब्रिटेन-डेविडसन मॉडल (Britten-Davidson Model) ।

ब्रिटेन-डेविडसन मॉडल (Britten-Davidson Model):

यह मॉडल 1969 में ब्रिटेन तथा डेविडसन द्वारा दिया गया, इसे जीन बैटरी मॉडल (Gene Battery Model) भी कहा जाता है ।

इस मॉडल के अनुसार प्रोटीन संश्लेषण व नियमन से सम्बन्धित DNA अनुक्रमों को चार वर्गों में बाँटा जा सकता है:

(i) प्रोड्‌यूसर जिन (Producer Gene):

यह प्रोकैरियोट के ऑपेरॉन की संरचनात्मक जीन जैसा होता है ।

(ii) रिसैप्टर स्थल (Receptor Site):

यह ऑपेरॉन के ऑपरेटर जीन के समतुल्य होता है और प्रत्येक प्रोड्‌यूसर जीन के पार्श्व (Side) में रिसैप्टर स्थल पाया जता है ।

(iii) इण्टिग्रेटर जीन (Integrator Gene):

यह जीन रेन्युलेटर जीन के समान होता है और एक क्रियाशील RNA (Activator RNA) के संश्लेषण के लिए उत्तरदायी होता है । रिसैप्टर के सक्रिय होने से पहले क्रियाशील RNA द्वारा प्रोटीनों का निर्माण ही भी सकता है और नहीं भी ।

(iv) सैन्सर स्थल (Sensor Site):

एक सैन्सर स्थल इण्टिग्रेटर जीन की क्रिया का नियमन करता है । इण्टिग्रेटर जीन तभी अनुलेखित होता है जब सैन्सर स्थल को सक्रिय किया जाता है । हॉरमोन और प्रोटीन (Hormone and Protein) जैसे कारक सैन्सर स्थलों को पहचानते हैं और इस प्रकार जीन की अभिव्यक्ति में परिवर्तन कर देते हैं । उदाहरणार्थ- इण्टिग्रेटर जीन का अनुलेखन करने के लिए हॉरमोन-प्रोटीन सम्मिश्र का सैन्सर स्थलों के साथ बन्धन होता है ।

मॉडल में यह भी बताया गया है कि एक स्थान पर रिसैप्टर स्थल और इण्टिग्रेटर जीन की संख्या अधिक भी हो सकती है, जिससे एक ही कोशिका में कई जीनों को एक साथ नियंत्रित किया जा सके ।

रिसैप्टर की बहुलता (Multiplicity) से यह निश्चित होता है कि उन सबको एक ही एक्टिवेटर (Activator) को पहचानना है, जिससे एक ही जैव संश्लेषण मार्ग (Biosynthetic Pathway) की कई एन्जाइमों का संश्लेषण एक साथ हो सके ।

यह भी संभव है कि एक ही प्रकार के जीन की आवश्यकता भिन्न-भिन्न दशाओं में हो तथा रिसैप्टर स्थलों एवं जीनों की बहुलता द्वार उसको भी संभव किया जा सकता है । प्रत्येक प्रोड्यूसर जीन में अनेक रिसैप्टर स्थल हो सकते है । जिनमें से प्रत्येक एक एक्टिवेटर के प्रति अनुक्रिया करता है ।

इस प्रकार एक ओर जहाँ एक एक्टिवेटर कई जीनों को पहचान सकता है, वहाँ विभिन्न प्रसंगों में भिन्न-भिन्न एक्टिवेटर एक ही जीन को सक्रिय बना सकते हैं । एक से अधिक इण्टिग्रटर जीन भी एक ही सैन्सर स्थल पर समूह में पाये जा सकते है ।

जीन बैटरी (Gene Battery):

ब्रिटेन डेविडसन मॉडल में एक सैन्सर स्थल द्वारा नियंत्रित प्रोड्रयूसर जीनों के एक समूह को बैटरी (Battery) कहते हैं । कभी-कभी जब बड़े परिवर्तनों की आवश्यकता होती है, तो जीनों के कई समूहों (Sets) को सक्रिय करना आवश्यक हो जाता है । जब एक सैन्सर स्थल का संबंध कई इण्टिग्रटर जीनों के साथ होता है, तो इससे एक ही समय में इन सभी इण्टिग्रटर जीनों को अनुलेखन हो जाता है ।

टाटा बॉक्स तथा कॉट बॉक्स (TATA Box and CAAT Box):

पिछले कुछ वर्षों में DNA में नियमनकारी न्यूक्लिओटाइड अनुक्रमों के विषय में और भी अधिक जानकारी उपलब्ध हुई है । उदाहरण- 30 क्षेत्र (30 Nucleotide Upstream) में अधिकांश यूकैरियोट जीनों में एक ऐसा छोटा अनुक्रम पाया जाता है जिसकी उपस्थिति, अनुलेखन के लिए अनिवार्य है ।

इसे गोल्डबर्ग हौग्नेस बॉक्स (Goldberg Hogness Box) अथवा टाटा बॉक्स (TATA Box) कहा जाता है, क्योंकि इसकी खोज हौग्नेस नामक वैज्ञानिक की प्रयोगशाला में उनके विद्यार्थी गोल्डबर्ग द्वारा की गयी (चित्र) ।

TATA बॉक्स के पहले और बाद में भी लगभग 200 क्षार अनुक्रमों तथा ऐसे अनुक्रम पाये जाते हैं, जो अनुलेखन क्रिया का नियंत्रण किसी न किसी रूप में करते हैं । जैसे कुछ लीनों में एक CAAT बॉक्स प्रोमोटर क्षेत्र में, -70 तथा -80 क्षार युग्मों के बीच वाले क्षेत्र में पाया जाता है ।

यूकेरियोट्‌स में प्रोटीन संश्लेषण का नियमन (Regulation of Protein Synthesis in Eukaryotes):

यूकैरियोट जीव, प्रोकैरियोट जीवों से भिन्न होते हैं । इनमें एक विशेष समय पर कुल जीनों में से लगभग 2% से 15% जीन ही अभिव्यक्त होते है ।

ये जीन दो प्रकार के हो सकते हैं:

(क) बहुप्रतियों वाले (Multiple Copy) जीन जैसे r-RNA जीन 5, s-RNA जीन तथा t-RNA जीन ।

(ख) एक प्रति वाले जीन (Single Copy Gene) जैसे विशिष्ट प्रोटीनों के लिए m-RNA का संश्लेषण करने वाले जीन ।

इनमें से r-RNA जीन RNA पोलीमेरेज I (अथवा A) द्वारा और 5S r-RNA तथा t-RNA के जीन, RNA पोलीमेरेज III (अथवा C) के द्वारा अनुलेखित होते हैं । दूसरी ओर वह जीन जिनकी एक-एक प्रति ही पाई जाती है, RNA पोजीमेरेज II (अथवा B) द्वारा अनुलेखित होते हैं ।

इस प्रकार कुल तीन प्रकार के RNA पोलीमेरेज होते हैं जो विशिष्ट प्रकार के DNA अनुक्रमों के अनुलेखन के लिए विशिष्ट होते हैं । इन सब के लिए एक नियमन क्रियाविधि चाहिए होती है । इस नियमन के लिए RNA पोलीमेरेजों के साथ-साथ अनेक गुणसूत्री प्रोटीन चाहिए होते हैं । कई नियमन उन जीनों से संबंधित हैं जो विशिष्ट प्रोटीनों के संश्लेषण में व्यक्त रहती है ।

यूकेरियोट्स में जीन-क्रिया का नियंत्रण (Control on Gene Action in Eukaryotes):

यूकेरियोट्स में प्रोकेरियोट्स की भाँति प्रारूपी ऑपेरॉन नहीं होते, किन्तु अनुलिपिकरण की क्रिया प्रोकेरियोट्स के समान होती है ।

यूकेरियोट्स में प्रोटीन निम्न प्रकार से जीन क्रिया का नियमन करते हैं:

1. केन्द्रीय DNA बेसिक प्रोटीनों (जैसे- हिस्टोन एवं प्रोटएमीन के साथ सम्मिश्रित रहता है ।

कोशिकाओं में अनेक प्रकार के हिस्टोन मिलते हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से दमनकर (Repressor) का कार्य करते है:

(i) DNA से मिलकर गुणसूत्र के कुण्डल में संवृद्धि करते हैं ।

(ii) DNA स्ट्रेण्डों (रज्जुओं) के पृथक्करण को रोकते हैं ।

(iii) RNA की सक्रियता में बाधा डालते हैं ।

2. अम्लीय प्रोटीन DNA अणु के वलयकों के पृथक्करण के रोकर DNA को स्थिरता प्रदान करते हैं ।

यूकैरियोट्‌स में जीन-क्रिया के नियमन के प्रमाण (Evidences of Regulation of Gene Action in Eukaryotes):

गुणसूत्र पफ (Chromosome Puff):

गुणसूत्र पफ डिप्टेरन मक्खियों की लार ग्रंथियों के महागुणसूत्रों (Giant Chromosomes) तथा एम्फीबियन जन्तुओं के अण्डकों (Oocytes) में मिलते हैं । प्रत्येक पफ RNA के अनुलेखन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले DNA स्टैण्ड के पार्श्व लूप को प्रदर्शित करता है ।

विभिन्न पफों में संश्लेषित RNA अलग-अलग प्रकार का होता है । एक्टिसोम (Ecdysome) हारमोन को डिप्टेरन मक्खियों के लारवाओं में अन्त:क्षिप्त करने पर यह निर्माचन (Moulting) तथा महागुणसूत्रों में पफों के निर्माण के प्रेरित करता है । पफ उन पफों के समान होते हैं, जो सामान्य दशा में निर्मोचन से पूर्व महागुणसूत्रों में बनते हैं ।

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