भारत में गठबन्धन सरकार पर निबंध! Here is an essay on ‘Coalition Government in India’ in Hindi language.

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है । यहाँ प्रत्येक पाँच वर्ष की अवधि के बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव होते हैं । इन चुनावों के माध्यम से जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है, जो केन्द्र और राज्य स्तर पर सरकार का गठन करते हैं, चूँकि भारतीय लोकतन्त्र में बहुदलीय व्यवस्था का प्रावधान है, इसलिए कई बार किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाता ।

इससे राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है । अतः उक्त परिस्थिति में ‘गठबन्धन सरकार’ की स्थापना की जाती है । पिछले कुछ दशकों से भारतीय राजनीति में गठबन्धन सरकारों का वर्चस्व रहा है । इसे में गठबन्धन सरकार की विशेषताओं, उसकी सफलता और असफलताओं की सम्भावनाओं को जानना आवश्यक हो जाता है ।

सामान्यतः ‘गठबन्धन’ उस प्रक्रिया को कहा जाता है, जब दो या दो से अधिक व्यक्ति अथवा दल किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अस्थायी रूप से अल्पकाल के लिए जुडते हैं । राजनीति के सन्दर्भ में गठबन्धन का आशय दो या दो से अधिक दलों का मेल है ।

ADVERTISEMENTS:

‘ए डिक्शनरी ऑफ पॉलिटिकल थॉट’ में रोजर स्क्रटन ने राजनीति के सम्बन्ध में गठबन्धन को परिभाषित करते हुए लिखा है- ”विभिन्न दलों या राजनीतिक पहचान रखने वाले प्रमुख व्यक्तियों का आपसी समझौता गठबंधन कहलाता है ।”

गठबन्धन सरकार की सबसे बडी विशेषता यह होती है कि इसमें किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं होता । यह समान विचारधारा, उद्देश्य, नीति, कार्यक्रम आदि रखने वाली पार्टियों का समूह होता है । गठबन्धन सरकार की सफलता अथवा असफलता उन सभी पार्टियों के पारस्परिक सहयोग एवं विचारधारा पर निर्भर करती है ।

साधारणतः गठबन्धन सरकार की आवश्यकता तब अनुभव होती है, जब किसी भी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट तथा अनिवार्य जनादेश नहीं मिलता ।  ‘गठबन्धन’ सरकार की संकल्पना विश्व स्तर पर व्यापक रूप से दिखाई पड़ती है आज ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया बेलियम, कनाडा, डेनमार्क फिनलैण्ड, इण्डोनेशिया, आयरलैण्ड, इजराइल, जापान आदि सहित कई देशों में गठबन्धन सरकारों के गठन को मान्यता मिली हुई है ।

भारत में भी गठबन्धन सरकार की व्यवस्था है वैसे भारतीय लोकतन्त्र बहुत ही लचीला तथा परिवर्तनशील है ।  अतः यहाँ स्वतन्त्रता के कुछ वर्षों के पश्चात् ही गठबन्धन सरकार की स्थापना प्रक्रिया अस्तित्व में आ गई थी । भारत में पहली गठबन्धन सरकार की स्थापना वर्ष राज्य स्तर पर हुई थी ।

ADVERTISEMENTS:

इसके अन्तर्गत आन्ध्र प्रदेश में संयुक्त मन्त्रिमण्डल की स्थापना की गई थी, हालाँकि यह मन्त्रिमण्डल 13 महीने की छोटी-सी अवधि में विघटित हो गया ।  इसके बाद, वर्ष 1967 में उड़ीसा राज्य में गठबन्धन सरकार का गठन हुआ, लेकिन इसका कार्यकाल पूरा होने से पूर्व ही वर्ष 1961 में इसका भी विघटन हो गया । वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में भी यह प्रयोग हुआ, जो असफल ही रहा ।

बाद में वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा । 21 मार्च, प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबन्धन बाली सरकार अस्तित्व में आई ।  इस सरकार ने गठबन्धन की राजनीति में एक नवीन प्रयोग किया, जिसके अनुसार गठबन्धन को 6-6 महीने के अन्तराल पर परिवर्तित होना था अर्थात् बारी-बारी से दोनों पार्टियो को महीने के लिए नेतृत्व का अवसर मिलना था, लेकिन यह प्रयोग भी सफल नहीं रहा ।

यद्यपि गठबन्धन सरकारों की सफलता सदैव संदिग्ध बनी रहती है फिर भी वर्तमान समय में केरल, महाराष्ट्र, जन् और कश्मीर, पश्चिम बंगाल, पंजाब, झारखण्ड, नागालैण्ड तथा पुदुचेरी में गठबन्धन सरकारें सत्तारत हैं । केन्द्र में गठबन्धन सरकार की स्थापना की प्रक्रिया काफी बाद में शुरू हुई ।

आरम्भिक तीन दशकों में कांग्रेसी को स्पष्ट जनादेश मिला, क्योंकि स्वतन्त्रता प्राप्ति में कांग्रेस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी । कांग्रेस पार्टी के प्रभाव से उस दौरान राष्ट्रीय स्तर पर किसी राजनीतिक दल को उभरने का अक्सर ही नहीं मिल पाया । धीर-धीरे जनता ने कांग्रेसी का विकल्प ढूँढना आरम्भ कर दिया, फलस्वरूप वर्ष 1979 में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ ।

ADVERTISEMENTS:

तब जनता दल ने कांग्रेस के साथ गठबन्धन करके सरकार बनाई, जो 14 जनवरी, 1980 को ही विघटित हो गई ।  इसके बाद वर्ष 1989, 1990 और 1998 में क्रमशः जनता दल-नेशनल कुएं, समाजवादी जनता पार्टी-कांग्रेस और जनता दल-यूनाइटेड फ्रण्ट के गठबन्धन की सरकारें अस्तित्व में आईं, परन्तु ये सभी सरकारें अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा करने में असफल रही ।

केन्द्र स्तर पर सबसे अधिक सफल गठबन्धन एन डी ए (19 मार्च, 1998-22 मई, 2004) और यू पी ए- 1, 2 (22 मई, 2004-26 मई, 2014) का रहा है । वर्तमान समय में, केन्द्र में एन डी ए गठबन्धन की सरकार सत्ता में है । अगर राज्य स्तर पर बात करें, तो गठबन्धन सरकारों को सबसे अधिक सफलता केवल पश्चिम बंगाल और केरल में मिली है ।

इस सफलता का सबसे बड़ा कारण है- इन राज्यों में साम्यवादी दलों का प्रभुत्व । इन राज्यों में सक्रिय सभी पार्टियों का आधारभूत सिद्धान्त ऊपरी तौर पर बहुत हद तक समान है ।  अब सबसे महत्व का प्रश्न यह है कि भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ एक बड़ा वर्ग अशिक्षित है वहाँ गठबन्धन सरकार कितनी प्रासंगिक है और इसकी सफलता की कितनी गौर किया जाए, तो गठबन्धन सरकार के अच्छे और बुरे, दोनों ही पक्ष हैं ।

यदि भारतीय इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो भारत में कई बार बहुमत प्राप्त दलों ने ही सत्ता-संचालन किया है, लेकिन उनसे जनता को आशातीत परिणाम नहीं मिले, इसलिए जनता ने विकल्पों की खोज की । इस प्रक्रिया में किसी एक पार्टी द्वारा सरकार का गठन सम्भव नहीं हुआ ।

इससे सभी पार्टियों को भी यह समझ आ गया कि यदि वे जनता की आशाओं पर खरी नहीं उतरेगी, उससे किए गए वादों को पूरा नहीं करेगा और उसकी उपेक्षा करेगी, तो बह उसे दोबारा सत्ता में आने का अवसर ही नहीं देगी । इस प्रकार, गठबन्धन सरकारों ने सभी दलों पर राजनैतिक दबाव बनाया है ।

गठबन्धन सरकार का दूसरा लाभ यह है कि इससे किसी भी एक पार्टी की विचारधारा तथा कार्यशैली तानाशाही रवैये में परिवर्तित नहीं हो पाती । इसके अतिरिक्त गठबन्धन सरकार के अन्य सकारात्मक पक्ष भी हैं; जैसे-इसमें क्षेत्रीय विभिन्नताओं तथा उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता है, निर्णय लेने में जनता को महत्व दिया जाता है, निर्णय लेने में बहुत बडे वर्ग का ध्यान रखा जाता है, सिद्धान्तों को अधिकाधिक महत्व दिया जाता है, कोई भी निर्णय अच्छी तरह सोच-समझकर लिया एक प्रकार से गठबन्धन सरकार से संघीय प्रणाली को विस्तार मिलता है, जो सराहनीय है ।

गठबन्धन सरकार का एक दूसरा पक्ष भी है, जो इसकी खामियों से परिचित कराता है । सबसे पहले तो गठबन्धन सरकार का स्थायित्व हमेशा सन्देहास्पद होता है, क्योंकि इसमें विभिन्न मतों को अपनाने वाले राजनीतिक दल सम्मिलित होते हैं, जो अपने निहित स्वार्थवश ही आपस में जुड़े होते हैं ।

ऐसे में कभी-भी सरकार के गिरने का खतरा रहता है, जैसे- यू पी ए-2 के शासनकाल में बार-बार उसे विभिन्न दलों से समर्थन वापस लेने की धमकी मिलती रही । गठबन्धन की अस्थिरता के कारण यदि सरकार गिर जाती है, तो बहुत कम अवधि में पुन चुनाव हैं ।

इस प्रक्रिया में धन का बहुत अपव्यय होता है, जिसका भार अप्रत्यक्ष रूप स जनता को ही उठाना पड़ता हे इसके अतिरिक्त, गठबन्धन सरकार के लिए कोई भी निर्णय ले पाना बहुत कठिन होता है, क्योंकि उसे विभिन्न दलों की विचारधारा से सामजस्य स्थापित करना पडता है । इससे समय की बहुत बरबादी होती है ।

कई बार सरकार को बचाए रखने के लिए तुष्टिकरण की नीति भी अपनानी पडती है, जिससे भ्रष्टाचार तथा अनैतिकता को बढावा मिलता है और योग्य व्यक्तियों को महत्व नहीं दिया जाता ।  एक तो लोकतन्त्र में विकास और फैसले लेने की प्रक्रिया वैसे ही धीमी होती है और यदि गठबन्धन सरकार सत्ता में हो तो यह प्रक्रिया और भी धीमी हो जाती है ।

अतः गठबन्धन सरकार के नकारात्मक पक्ष भी अनदेखे नहीं किए जा सकते । निष्कर्ष रूप से देखा जाए, तो गठबन्धन सरकार के जितने सकारात्मक पक्ष हैं, उतने ही नकारात्मक पक्ष भी है । सबसे बडी बात तो यह है कि इसकी सफलता पर सन्देह बना रहता है और सरकार स्वतन्त्र रूप से कोई भी निर्णय लेने से पहले कई बार सोचती है ।

शायद भारतीय जनता भी इस ओर ध्यान केन्द्रित करने पर मजबूर हुई है, तभी तो उसने 16वीं लोकसभा के चुनावों में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट जनादेश दिया है ।यह सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी उतरेगी ताकि जनता को फिर से गठबन्धन वाली सरकार के विकल्प पर विचार न करना पड़े ।

Home››Essay››