गठबंधन सरकार पर निबंध | Essay on Coalition Government in Hindi!

Essay Contents:

  1. गठबन्धन सरकार का अर्थ (Meaning of Coalition Government)
  2. गठबन्धनों के प्रकार (Types of Coalition Government)
  3. भारत की गठबंधन सरकारें : 1989 से अब तक (India’s Coalition Governments: Since 1989)
  4. गठबन्धन की सरकार की समस्याएँ अथवा चुनौतियाँ (Problems or Challenges of Government of Coalition)
  5. वर्तमान में भारतीय राजनीति में सक्रिय प्रमुख दलीय गठबन्धन (Currently Active Major Coalition Alliances in Indian Politics)
  6. कतिपय मौलिक प्रश्नों पर राजनीतिक दलों में आम सहमति का विकास (Development of Consensus among Political Parties)

Essay # 1. गठबन्धन सरकार का अर्थ

(Meaning of Coalition Government):

गठबन्धन का तात्पर्य ऐसी सरकार से है, जो कई दलों द्वारा मिलकर बनाई जाती है । इस सरकार में विभिन्न राजनीनिक दलों के नेता मंत्री पद ग्रहण करते हैं तथा सरकार में शामिल होते हैं । गठबन्धन सरकार इसलिए आवश्यक हो जाती है कि किसी भी दल को लोकसभा में बहुमत नहीं प्राप्त होता । अत: गठबन्धन सरकार भारत की बदलती हुई दलीय राजनीति में राजनीतिक व्यवस्था की एक आवश्यकता है ।

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1989 से भारत में गठबंधन की राजनीति का युग आरंभ होता है, जो आज तक भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषता बना हुआ है । इसके प्रमुख कारण हैं- प्रथम क्षेत्रीय स्तर पर कांग्रेस के जनाधार में आयी गिरावट जिसके अंतर्गत धीरे-धीरे कांग्रेस का परम्परागत वोट बैंक जैसे- मुस्लिम समुदाय, अनुसूचित जातियाँ आदि विभिन्न राज्यों में कांग्रेस से अलग हो गयी तथा वे क्षेत्रीय दलों की ओर आकर्षित हुईं । दूसरा धीरे- धीरे भारतीय राजनीति में 1990 के दशक में क्षेत्रीय दलों का महत्त्व बढ़ने लगा तथा वे राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाने की स्थिति में आ गये ।


Essay # 2. गठबन्धनों के प्रकार (Types of Coalition Government):

राजनीतिक गठबन्धन दो प्रकार के होते हैं:

(i) प्रथम, चुनाव पूर्व किये गये दलीय गठबन्धन तथा

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(ii) दूसरे, चुनावों के बाद सरकार बनाने के लिए किए गये गठबंधन ।

उल्लेखनीय है कि चुनाव पूर्व किये गये गठबन्धन अधिक स्थाई है तथा तुलनात्मक दृष्टि से ऐसे गठबन्धनों की सरकार भी स्थाई है । पुन: गठबन्धन सरकार की स्थिरता शामिल दलों की नीतियों कार्यक्रमों में आपसी तालमेल व समन्वय पर भी निर्भर करती है । इसके लिए गठबन्धन सरकार में शामिल दलों द्वारा न्यूनतम साझा कार्यक्रम जैसे उपाय किये जाते हैं । न्यूनतम साझा कार्यक्रम में गठबन्धन शामिल सभी दल कतिपय नीतियों व कार्यक्रमों पर अपनी सहमति व्यक्त करते हैं तथा सरकार द्वारा ऐसी ही नीतियों व कार्यक्रमों को लागू किया जाता है ।


Essay # 3. भारत की गठबंधन सरकारें

: 1989 से अब तक (India’s Coalition Governments: Since 1989):

1989 के चुनाव तथा राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार (1989 Elections and the Government of the National Front):

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1989 में 9वीं लोकसभा के चुनावों में मुख्य मुद्दा कांग्रेस की केन्द्र सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार था । चुनाव के बाद विपक्षी दलों की गठबन्धन सरकार बनी । इस गठबन्धन को राष्ट्रीय मोर्चा के नाम से जानते हैं, जिसमें मुख्य रूप से जनता दल कांग्रेस एस तेलगू देशम पार्टी तथा असम की क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद् शामिल थे ।

राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री नियुक्त किये गये । वे 1988 में गठित जनता दल के अध्यक्ष थे । इसके पहले वे कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री थे लेकिन बोफोर्स घोटाले में हुए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़कर उन्होंने जनता दल की स्थापना की ।

राष्ट्रीय मोर्चे की इस सरकार को दोनों वामपंथी दलों-मार्क्सवादी पार्टी तथा भारतीय साम्यवादी पार्टी एवं भारतीय जनता पार्टी का बाहर से समर्थन प्राप्त था । वामपंथी दल और भारतीय जनता पार्टी सरकार में शामिल नहीं हुए ।

अगस्त 1990 में वी. पी. सिंह की सरकार द्वारा पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के लिए मण्डल कमीशन की संस्तुतियों को लागू किया गया, जिसका आरक्षण विरोधियों ने देशव्यापी विरोध किया । इसी कारण यह सरकार राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हो गयी तथा भारतीय जनता पार्टी ने अपना समर्थन लेने की घोषणा की । लोकसभा में अपना विश्वास मत न प्राप्त करने के कारण विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया ।

इसके बाद जनता दल में भी विघटन हो गया तथा जनता दल के 58 लोकसभा सदस्यों को अलग लेकर चन्द्रशेखर ने कांग्रेस बाहरी समर्थन से नई सरकार बनाई । इस सरकार में चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री तथा देवीलाल उप-प्रधानमंत्री थे । 7 महीने बाद मई 1991 में कांग्रेस ने इस सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा की तथा इसी के साथ यह सरकार भी गिर गयी तथा नई लोकसभा के चुनाव की घोषणा की गयी ।

1991 के चुनाव तथा कांग्रेस की सरकार (1991 Elections and Congress Government):

मई 1991 में 10वीं लोकसभा के चुनाव कराये गये । चुनाव प्रचार के दौरान ही कांग्रेस के अध्यक्ष तथा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की श्रीलंका के लिट्‌टे आतंकवादियों द्वारा तमिलनाडु के पेरम्बदूर स्थान पर एक बम विस्फोट द्वारा हत्या कर दी गयी ।

अभी तक दक्षिण भारत में लोकसभा के लिए मतदान नहीं हुआ था । इसका परिणाम यह हुआ कि दक्षिण भारत में सहानुभूति के कारण कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया । जबकि राजीव गाँधी की हत्या के पूर्व उत्तर भारत में मतदान हो चुका था तथा उसमें कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं था ।

यद्यपि इन चुनावों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ लेकिन नरसिम्हा राव के नेतृत्व में 1991 में नई कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तथा इस सरकार ने अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया । यद्यपि यह तकनीकि तौर पर गठबन्धन सरकार नहीं थी? लेकिन फिर भी पूर्ण बहुमत के अभाव में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा जैसे क्षेत्रीय दलों के समर्थन पर निर्भर थी ।

1996 के चुनाव तथा संयुक्त मोर्चा की सरकार (1996 Election and United Front Government):

1996 में 11वीं लोकसभा चुनावों में पुन: ऐसी स्थिति बनी कि किसी भी पार्टी को लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ । इन चुनावों में कांग्रेस को मात्र 140 सीटों पर विजय हासिल हुई । तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया । उन्हें 16 मई 1996 को भारत का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया लेकिन लोकसभा में अपना बहुमत न सिद्ध करने के कारण 13 दिन बाद ही 1 जून, 1996 को उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा ।

इसके बाद 1 जून, 1996 को केन्द्र में संयुक्त मोर्चे की सरकार का गठन किया गया तथा कर्नाटक के नेता एच. डी. देवगौडा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया । यद्यपि संयुक्त मोर्चे को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं था लेकिन कांग्रेस के बाहरी समर्थन से यह सरकार 11 महीने चलती रही ।

कांग्रेस के समर्थन वापसी के कारण 21 अप्रैल 1997 को यह सरकार गिर गयी लेकिन पुन: कांग्रेस के बाहरी समर्थन से आई. के. गुजराल के नेतृत्व में दूसरी संयुक्त मोर्चा सरकार का गठन हुआ ।

इस सरकार में आई. के. गुजराल प्रधानमंत्री बने लेकिन शीघ्र ही राजीव गांधी की हत्या की जाँच कर रहे जैन आयोग की रिपोर्ट से यह पता चला कि संयुक्त मोर्चे में शामिल तमिलनाडु की डी. एम. के. पार्टी भी इस हत्या में लिट्‌टे के साथ संलिप्त थी । अत: कांग्रेस द्वारा यह माँग की गयी कि गुजराल सरकार से डी. एम. के. के मंत्रियों को हटा दिया जाये ।

लेकिन संयुक्त मोर्चे की सरकार ने कांग्रेस की इस माँग को स्वीकार नहीं किया तथा कांग्रेस ने अपना समर्थन लेने की घोषणा कर दी । परिणामत: संयुक्त मोर्चा की सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा लेकिन वे 18 मार्च 1998 तक देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहे ।

1998 के लोकसभा चुनाव तथा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (एन.डी.ए.) की सरकार [(Government of 1998 Lok Sabha Elections and National Democratic Alliance (NDA)]:

1998 में 12वीं लोकसभा के चुनावों के समय भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में कई पार्टियों को मिलाकर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन का गठन किया गया । 1998 के चुनावों में इस गठबन्धन को बहुमत तो नहीं प्राप्त हुआ लेकिन सबसे अधिक सीटें प्राप्त हुई ।

अत: गठबन्धन के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को 19 मार्च 1998 को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया । लेकिन यह सरकार 13 महीने ही चल पाई क्योंकि गठबन्धन में शामिल तमिलनाडु की ए. आई. डी. एम. के. पार्टी ने इस सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी ।

इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन की सरकार गिर गयी तथा लोकसभा को भंग कर दिया गया । लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी अगले चुनाव तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करते रहे ।

1999 के चुनाव तथा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन को पूर्ण बहुमत (1999 Election and the Absolute Majority of the National Democratic Alliance):

1999 में 13वीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न कराये गये । इन चुनावों में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ तथा 13 अक्टूबर, 1999 को इसके नेता अटल बिहारी वाजपेयी को पुन: प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया । इस सरकार ने अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया । सही अर्थों में पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने वाली यह केन्द्र की पहली गठबन्धन सरकार थी ।

2004 के लोकसभा चुनाव तथा संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (यू. पी. ए.) की सरकार [(Government of 2004 Lok Sabha Elections and United Progressive Alliance (UPA)]:

मई 2004 में 14वीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हुये । इस चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व में गठित संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन को सरकार बनाने का अवसर प्राप्त हुआ । कांग्रेस के नेता मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया । इस गठबन्धन में 15 दल शामिल थे जिसमें कांग्रेस के अतिरिक्त मुख्य दल थे- राष्ट्रीय जनता दल, द्रविड मुनेत्र कडगम, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा आदि ।

इस सरकार की एक खास बात यह थी कि इसे बाहर से दोनों वामपंथी दलों-मार्क्सवादी पार्टी तथा भारतीय साम्यवादी पार्टी का समर्थन प्राप्त था । लेकिन में भारत द्वारा अमेरिका के साथ किये गये परमाणु समझौते के प्रश्न पर कांग्रेस तथा वामपंथी दलों में मतभेद उत्पन्न हो गये तथा 8 जुलाई 2008 को उन्होंने कांग्रेस सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी ।

वामपंथी दल अमेरिका को एक पूँजीवादी देश मानते हैं तथा वे अमेरिका और भारत के इस तरह घनिष्ठ सम्बन्धों के पक्षधर नहीं हैं । वामपंथी दलों द्वारा समर्थन लेने के बाद कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गयी लेकिन अन्य दलों के समर्थन से 22 जुलाई 2008 को मनमोहन सिंह की सरकार ने लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने में सफलता प्राप्त की ।

उन्हें अपने समर्थन में 275 मत प्राप्त हुए जबकि उनके विरोध में 256 सदस्यों ने मतदान किया । उस समय लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 541 थी तथा 10 सदस्य मतदान के समय अनुपस्थित थे । इस प्रकार संयुक्त प्रगतिशीत गठबन्धन की पहली सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया ।

 

2009 के चुनाव तथा पुन: संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार (Government of 2009 Elections and Re-United Progressive Alliance):

मई 2009 में 15वीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न हुए । इन चुनावों में कांग्रेस को व्यक्तिगत तौर पर तो केवल 205 सीटें प्राप्त हुईं, लेकिन उसके नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन को लोकसभा में बहुमत प्राप्त हो गया । इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को केवल 116 सीटें प्राप्त हुईं । परिणामत: मनमोहन सिंह के नेतृत्व में पुन: 22 मई 2009 को संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार का गठन किया गया । इस गठबन्धन की सरकार ने भी अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया ।

भारत में गठबन्धन सरकार के अनुभव:

भारत में 1989 से अब तक केन्द्रीय स्तर पर निरन्तर (1991-1996 )के काल की नरसिम्हा राव सरकार को छोड़कर) गठबन्धन सरकारें कार्यरत् रही हैं । इनके कार्यकरण से गठबन्धन सरकारों की कतिपय समस्याएं तथा कतिपय सकारात्मक पहलू उभर कर सामने आये हैं, जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है ।


Essay # 4. गठबन्धन की सरकार की समस्याएँ अथवा चुनौतियाँ (Problems or Challenges of Government of Coalition):

गठबंधन सरकार की निम्नलिखित प्रमुख समस्याएँ देखने में आयी हैं:

1. गठबन्धन सरकार की एक मुख्य समस्या सरकार की अस्थिरता तथा शामिल दलों की आपसी खींचतान है । क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय हितों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, अत: गठबन्धन में उनकी भूमिका राष्ट्रीय हितों के अनुकूल नहीं होती । आपसी खींचतान के कारण नीतियों में समायोजन व एकरूपता का अभाव बना रहता है ।

2. पुन: संसदीय लोकतंत्र में राजनीतिक सजातीयता सरकार का एक प्रमुख लक्षण है । राजनीतिक सजातीयता का तात्पर्य यह है कि एक ही दल व विचारधारा के लोग सरकार का निर्माण करें । गठबन्धन की सरकार में राजनीतिक सजातीयता के सिद्धान्त का पालन नहीं हो पाता ।

3. गठबंधन सरकार में संसदीय प्रणाली के एक प्रमुख सिद्धान्त- मंत्रिमंडल का सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त का भी पालन नहीं हो पाता है, क्योंकि मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री एक पार्टी के न होकर कई राजनीतिक दलों के होते हैं ।

4. भारत में गठबन्धन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है । क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय हितों के प्रति संवेदनशील होते हैं । इस कारण क्षेत्रीय हित राष्ट्रीय हितों पर हावी हो जाते हैं ।

गठबन्धन सरकार के सकारात्मक पहलू (Positive Aspects of Coalition Government):

उक्त कमियों के बावजूद गठबन्धन सरकार के कतिपय सकारात्मक पक्ष हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है:

(1) इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वर्तमान में भारत की बदलती हुयी राजनीति में इसका कोई विकल्प नहीं है । पिछले 15 वर्षों में गठबंधन सरकारें काफी हद तक स्थिर सरकारें रहीं हैं । 1999, 2004 तथा 2009 में गठित गठबन्धन सरकारों ने अपना कार्यकाल पूरा किया है । अत: राजनीतिक अस्थिरता का आरोप निराधार है । वर्तमान में भारत में गठबन्धनों की राजनीति प्रौढ़ता को प्राप्त कर चुकी है ।

(2) गठबन्धन में शामिल विभिन्न विरोधी दृष्टिकोण वाले दलों के मध्य खींचतान को कम करने का प्रयास किया गया है । कई उपायों जैसे – न्यूनतम साझा कार्यक्रम द्वारा गठबन्धन में शामिल विरोधी विचारधारा वाले दलों के बीच सामजस्य व समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया गया है । अत: इन उपायों द्वारा नीतिगत मामलों में एकरूपता स्थापित करने में सहायता मिली है ।

(3) भारत क्षेत्रीय विविधता वाला देश है तथा यहाँ पर संघात्मक व्यवस्था को अपनाया गया है । केन्द्रीय स्तर पर गठबन्धन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की भागीदारी वास्तविक अर्थों में राजनीतिक संघवाद को मजबूती प्रदान कर रही है । इसी कारण क्षेत्रीय दल भी अपने हितों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी ढंग से उठाने में सफल हो रहे हैं ।

(4) राष्ट्रीय गठबन्धनों में क्षेत्रीय दलों की भागीदारी क्षेत्रीय आकांक्षाओं की लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का माध्यम है । इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होती है तथा यह देश की एकता और अखण्डता को मजबूत करने में भी सहायक है ।

(5) विकास में क्षेत्रीय असंतुलन भारत में एक प्रमुख मुद्दा रहा है । चूंकि अब केन्द्रीय सरकारों में क्षेत्रीय दलों की प्रभावी भागीदारी हो रही है, अत: इससे संतुलित क्षेत्रीय विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिल रही है ।


Essay # 5. वर्तमान में भारतीय राजनीति में सक्रिय प्रमुख दलीय गठबन्धन

(Currently Active Major Coalition Alliances in Indian Politics):

उल्लेखनीय है कि वर्तमान राजनीति में मुख्य रूप से दो गठबंधन सक्रिय हैं:

भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (एन.डी.ए.) तथा कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (यू.पी.ए.) । इन गठबन्धनों में बदलाव होता रहता है तथा कई दल गठबन्धन से अलग हो जाते हैं अथवा पुन: दूसरे गठबन्धन में शामिल हो जाते हैं । इसके अतिरिक्त 2009 के चुनावों में तीसरे मोर्चे व चौथे मोर्चे की भी चर्चा की गयी । ये मोर्चे उन दलों के गठबन्धन हैं, जो भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस के गठबन्धनों में शामिल नहीं हैं ।

2009 के चुनाव के समय की स्थिति के अनुसार इन गठबन्धों का विवरण निम्नवत् है:

 

(i) संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (Joint Progressive Alliance):

यह गठबन्धन काग्रेस के नेतृत्व में कार्यरत् है । यह गठबन्धन 2004 के चुनाव में अस्तित्व में आया तथा अभी तक दो बार 2004 तथा 2009 में इसने केन्द्र स्तर पर सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की है वर्तमान में सोनिया गांधी इसकी अध्यक्ष हैं । इसमें कांग्रेस के अतिरिक्त शामिल अन्य प्रमुख दल हैं- तृणमूल कांग्रेस, द्रविड मुनेत्र कडगम, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, मुस्लिम लीग, नेशनल कांफ्रेंस तथा केरल राज्य समिति ।

(ii) राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (National Democratic Alliance):

यह गठबन्धन भारतीय जनता पार्टी में नेतृत्व में कार्यरत हें पहली बार यह गठवन्धन 1998 के चुनावों के समय अस्तित्व में आया इसमें शामिल होने वाले दल भी बदलते रहे हैं । 2009 की स्थिति के अनुसार इसमें भाजपा के अलावा मुख्य रूप से शामिल दल थे- शिव सेना, जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय लोकदल, असम गण परिषद् तथा तेलांगाना राष्ट्र समिति ।

इस गठबन्धन ने 1998 में आंशिक सफलता प्राप्त की थी, लेकिन 1999 के लोकसभा चुनावों में इसे सरकार बनाने में सफलता प्राप्त हुई । 2004 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा तथा उसे केवल 116 सीटें प्राप्त हुई तथा यह गठबन्धन सरकार नहीं बना पाया ।

(iii) तीसरा मोर्चा (Third March):

तीसरे मोर्चे में वे दल शामिल हैं, जो भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबन्धनों में शामिल नहीं है । प्राय: प्रत्येक लोकसभा चुनावों के समय तीसरे मोर्चे के गठन की बात उठाई जाती है । 2009 के चुनावों के ममय जो तीसरा मोर्चा गठित किया गया उसमें निम्न दल शामिल थे- मार्क्सवादी पार्टी, भारतीय साम्यवादी पार्टी, ऑल इण्डिया फॉरवर्ड ब्लॉक, रिवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी, तेलगू देशम पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी ।

(iv) चौथा मोर्चा (Fourth March):

2009 के चुनावों के समय पहली बार एक अन्य गठबन्धन अस्तित्व में आया, जिसे चौथे मोर्चे का नाम दिया गया । इसमे तीन दल शामिल थे- राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी तथा समाजवादी पार्टी ।


Essay # 6. कतिपय मौलिक प्रश्नों पर राजनीतिक दलों में आम सहमति का विकास

(Development of Consensus among Political Parties):

यद्यपि गत 25 वर्षों से भारतीय राजनीति में गठबन्धन की राजनीति का अस्तित्व रहा है । लेकिन 21वीं शताब्दी के प्रथम दशक में गठबन्धन की राजनीति ने परिपक्वता प्राप्त कर ली है । अब भारत की राजनीति में गठबन्धन को लोकतंत्र के लिये खतरा नहीं समझा जाता, बल्कि उसे भारत की परिस्थितियों में लोकतंत्र के स्वाभाविक बदलाव के रूप में लिया जा रहा है ।

विरोधी विचारधाराओं के दलों के सरकार में शामिल होने के बावजूद गठबन्धन सरकारों में गत 15 सालों में राजनीतिक स्थिरता भी देखने में आयी है । पिछली तीन गठबन्धन सरकारों ने अपना कार्यकाल पूरा किया है ।

गठबन्धन सरकारों की इस परिपक्वता तथा स्थिरता का मुख्य कारण राजनीतिक दलों के मध्य निम्न मौलिक मुद्‌दों पर आम सहमति का विकास है:

(1) उदारवादी आर्थिक नीतियों पर सहमति (Consent on Liberal Economic Policies):

1991 में भारत सरकार ने वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था के साथ समायोजन के लिये नई उदारवादी आर्थिक नीतियों को अपनाया । कमजोर वर्गों पर इन नीतियों के नकारात्मक प्रभाव के कारण आरंभ में ये नीतियाँ विभिन्न समूहों व दलों के मध्य विवाद का विषय बन गयीं । लेकिन 21वीं सदी के प्रथम दशक में सभी दलों में यह आम सहमति बन गयी है कि उदारवादी नीतियाँ देश की सपन्नता तथा विश्व में भारत को एक आर्थिक शक्ति का दर्जा दिलाने के लिये आवश्यक हैं ।

(2) अन्य पिछड़े वर्गों के सामाजिक न्याय पर सहमति (Consensus on Social Justice of Other Backward Classes):

1990 में जब केन्द्र में अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण की व्यवस्था लागू की गयी थी तो यह विभिन्न समूहों व दलों के मध्य विवाद का विषय बन गया था । लेकिन वर्तमान में सभी राजनीतिक दल इन जातियों के लिये आरक्षण तथा अन्य विशेष उपायों पर सहमत हैं ।

(3) क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक भूमिका पर सहमति (Consensus on the Political Role of Regional Parties):

आरंभ में यह माना जाता था कि चूंकि क्षेत्रीय दल सीमित क्षेत्रीय हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, अत: राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका उचित नहीं है । अब सभी दलों ने राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका को स्वीकार कर लिया है । वर्तमान में कांग्रेस तथा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में गठित देश के दोनों बड़े गठबन्धनों में क्षेत्रीय पार्टियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है ।

(4) वैचारिक प्रतिबद्धताओं की बजाय व्यवहारिक राजनीति पर सहमति (Consensus on Behavioral Politics rather than Ideological Commitments):

वर्तमान में सभी दल अपनी वैचारिक भिन्नताओं को नजरअन्दाज करते हुये व्यवहारिक दृष्टि से आपस में सहयोग करने हेतु सहमत हैं । यही गठबन्धन की राजनीति का आधार है । वामपंथी पार्टियों तथा भारतीय जनता पार्टी दोनों ने 1989 में कांग्रेस का विरोध किया था तथा राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार का समर्थन किया था ।

लेकिन 2004 में वामपंथियों ने केन्द्र में कांग्रेस की सरकार को समर्थन प्रदान किया था । केन्द्र की तुलना में राज्यों में व्यवहारिक राजनीति के उदाहरण अधिक हैं । उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी दोनों ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकारों का गठन किया है ।

1990 के बाद भारत की राजनीति की उभरती प्रवृत्तियों के उक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि भारत की राजनीति में इस काल में नये वर्गों तथा समूहों की भागीदारी बड़ी है । कांग्रेस के वर्चस्व में आयी कमी के कारण गठबन्धन की राजनीति की शुरुआत हुयी है । जब तक कोई एक दल कांग्रेस की भांति वर्चस्व की स्थिति प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक भारत में गठबन्धन की राजनीति का अस्तित्व रहेगा ।

नये सामाजिक वर्गों व क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका भारत के लोकतंत्र के लिये खतरा नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती तथा देश की एकता व अखण्डता दोनों के लिये आवश्यक है ।

राजनीतिक दलों में व्याप्त भ्रष्टाचार, संवेदनहीनता तथा जवाबदेही की कमी के चलते आम आदमी पार्टी द्वारा एक नई राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत भारत के लोकतंत्र के लिये एक शुभ संकेत है । जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिये अन्य पार्टियाँ भी ऐसी राजनीतिक संस्कृति को अपनाने के लिये विवश होंगी ।


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