स्वच्छ दूध का उत्पादन: 11 उपाय | Read this article in Hindi to learn about the eleven measures undertaken for production of clean milk. The measures are:- 1. पशु स्वास्थ्य (Health of Animal) 2. पशु की सफाई (Cleaning of Animal) 3. दुग्ध शाला की सफाई (Cleaning of Barn) 4. भारत की सफाई (Cleanliness of Milker) 5. वर्तन एवं उनकी सफाई (Milking Pail and their Cleaning) and a Few Others.

अत्यन्त स्वच्छ तथा आदर्श वातावरण में दुहे गये ताजे दूध के एक घन सेन्टीमीटर आयतन में कम से कम 500 जीवाणु उपस्थित रहते हैं । इस प्रकार के दूध का संग्रहण काल कम तापमान पर अपेक्षा कर लम्बा होता है ।

अशुद्ध वातावरण तथा दुग्ध दोहन की गलत विधि अपनाने पर दूध का संग्रहण का समय कम हो जाता है । सफाई के अभाव में एक घन से. मी. आयतन दूध में जीवाणुओं की संख्या लाखों तक पहुंच सकती है । अतः दूध स्वच्छ वातावरण में उत्पादित करना चाहिए ।

इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाये जा सकते हैं:

1. पशु स्वास्थ्य (Health of Animal):

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स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के लिए आवश्यक है कि दुधारू पशु निरोग तथा स्वस्थ हो । पशुओं के कई रोग जैसे क्षय (Tuberculosis), आन्तिक ज्वर (Typhoid), चेचक (Cow Pox), खुरपका-मुंह पका (Foot and Mouth Disease) ब्रूसेलोसिस (Brucellosis) आदि ऐसे हैं जो दूध के माध्यम से पशुओं से मनुष्य में फैलते है, अतः केवल निरोग गाय को ही दुग्ध उत्पादन हेतु उपयोग करना चाहिए ।

रोगी पशु के दूध को अलग रखना चाहिए तथा इसे जीवाणु रहित बनाने के बाद ही उपयोग करना चाहिए । गाय को दूहने से पूर्व उसकी एवं पशुशाला की अच्छी प्रकार सफाई कर लेनी चाहिए ।

यदि गाय को थनैला रोग की सम्भावना है तो प्रथम दूध (Fore Milk) की कुछ धारों का Strip Cup द्वारा परीक्षण करे तथा ऐसे पशुओं को बाद में दूह कर उनका दूध अलग रखे । सामान्य पशु से भी दुहाई के समय प्रत्येक थन से कम से कम दो-दो धारें आवश्यक रूप से अलग बर्तन में निकालें तथा सामान्य दूध में न मिलाएं । इससे दूध में जीवाणु संख्या घट जायेगी ।

 

2. पशु की सफाई (Cleaning of Animal):

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गाय को ब्रुश, दोहन से कम से कम एक घंटा पूर्व करे । पिछले भाग को पानी से धोकर साफ करें । अयन पर यदि बाल उन्हें काट कर छोटा करें । अयन को धोकर साफ तौलिया से पोछें । दोहन से पूर्व आयन को किटाणु नाशक घोल से पोंछे कर सूखा लें । पुंछ को पैरों के साथ बाँध कर दुहाई करें ।

3. दुग्ध शाला की सफाई (Cleaning of Barn):

दुग्ध शाला में प्रकाश तथा वायु की पूर्ण व्यवस्था  है। सीमेंट तथा कन्क्रीट का बना फर्श अच्छा रहता है जिसे धोकर साफ रखा जा सकता है फर्श नाली की तरफ को उचित ढलान युक्त हो ताकि पानी न रुके तथा धोने व सुखाने में सुविधा रहे । दिवारों पर 2.5 से 3.0 मी. ऊंचाई तक सीमेंट का प्लास्टर करके चिकना करवा कर रखें ताकि धुलाई में आसानी रहे ।

दुग्ध शाला को प्रतिदिन दो बार धोकर साफ करें । दुग्ध दुहान से पूर्व गोबर आदि हटा कर रोगाणुनाशक घोल से धुलाई करें । मक्खी-मच्छर आदि से छुटकारा पाने के लिए गोशाला में समय-समय पर DDT आदि का छिडकाव करें । यदि दिवार चिकनी न हो तो उन पर सफेदी कराते रहें । दिवारों या छत पर जाले, धूल तथा गन्दगी न जमने दें । दुग्धशाला में किसी प्रकार की कोई असामान्य गन्ध न हो ।

4. भारत की सफाई (Cleanliness of Milker):

भारत में पशुओं की कम दुग्ध उत्पादकता तथा प्रतिफार्म पशुओं की कम संख्या के कारण दूध दूहने में मशीनों का प्रयोग प्रचलित नहीं हुआ है । दूध दूहने का कार्य ग्वालों द्वारा कराया जाता है तथा ग्वालों की सफाई तथा उनकी आदतों का दूध की स्वच्छता पर बहुत अधिक प्रभाव पडता है ।

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दूध दूहने में स्वस्थ एवं अच्छी आदतों के ग्वालों को ही लगायें । उनके कपड़े साफ, नाखून कटे हुए, सिर टोपी से ढका हुआ हो तथा कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व हाथ रोगाणुनाशक घोल (200 PPM Cl. Solution) से धोये जाने चाहिए । ग्वाले के लिए दोहन के समय बातचीत करना, थूकना, पान खाना, सिगरेट पीना तथा छींकना वर्जित रखें ।

5. वर्तन एवं उनकी सफाई (Milking Pail and their Cleaning):

दूध के प्रयोग में आने वाले बर्तन जोड़ रहित (Dome Shaped) होने चाहिए । जोड़ पर सूक्ष्म जीवाणुओं का जमाव सम्भव है । ये बर्तन जंग रहित धातु से निर्मित हों इसके लिए Stainless Steel उपयुक्त धातु है । स्वच्छ दूध के उत्पादन में बर्तनों की सफाई का बड़ा महत्व है । दूध के प्रयोग में आने वाले बर्तनों को प्रत्येक प्रयोग के बाद होना आवश्यक है ।

दूध के बर्तनों को पहले बाहर व भीतर से ठण्डे पानी से, तदुपरान्त गर्म पानी से, फिर डिटरजैन्ट विलयन से, फिर गर्म पानी से तथा ठंडे पानी से धोने के उपरान्त 2 मिनट तक भाप उपचार देकर जीवाणु रहित करके सुखा लें । यदि भाप उपलब्ध न हो तो 5 मिनट तक बर्तन को उबलते पानी में या क्लोरीन के विलयन में डुबोकर निकालें ।

6. भोज्य पदार्थ एवं खिलाने की विधि (Feed and Feeding):

चारे में हानिकारक व तेज गन्ध युक्त खरपतवार नहीं होने चाहिए । भूसा या धूल युक्त चारा दूध निकालने के पश्चात ही खिलाएं । तीक्ष्ण गन्ध युक्त भोज्य पदार्थ जैसे साइलेज आदि पशु को दुग्ध दोहन से कम से कम एक घंटा पहले या दोहन के पश्चात खाने को दें ।

7. पानी एवं उसकी गुणवत्ता (Water and Its Quality):

दुग्ध शाला की सफाई में साफ एवं पर्याप्त जल आवश्यक होता है । गायों को पिलाने तथा बर्तनों की सफाई में शुद्ध एवं स्वच्छ जल का प्रयोग करें । उपलब्ध जल स्वच्छ होने के साथ-साथ सुरक्षित भी होना चाहिए ।

8. दोहन का ढंग (Method of Milking):

दूध दूहने में पूर्ण हस्त विधि (Fisting) सवोंत्तम है । चुटकी विधि (Stripping) तथा मुट्ठी में अंगूठा दबा कर (Knuckling) दूध दूहने की विधि पशु के लिए कष्टकारी है । जिनके प्रयोग में पशु को कष्ट होने के कारण उसका उत्पादन घटता है । पूर्व हस्त विधि में समस्त थन पर समान दबाव पडता है तथा पशु कष्ट की बजाय दूध निकलवाने में आराम महसूस करता है ग्वालों को दोहन के समय हाथों को सूखा रखना चाहिए ।

अपने हाथों पर झाग या पानी न लगायें । हाथों को धोकर तथा पोंछकर दूध दुहे । दूध का दोहन प्रारम्भ करते समय प्रत्येक थन से पहली 3-4 धारें जमीन पर गिरा दे । क्योंकि इस दूध में जीवाणुओं की संख्या सर्वाधिक होती है ।

9. दूध का संग्रहण (Storage of Milk):

स्वच्छतापूर्वक निकाले गये दूध में जीवाणुओं की संख्या की वृद्धि को नियंत्रित रखने के लिए आवश्यक है कि दूध को निकालते ही उसे अवशीतन ताप (Chilling Temperature) (4C) पर ठण्डा कर के रखें ।

10. दूध का निरोगीकरण (Pasteurization of Milk):

स्वच्छ दूध को उपयोग के लिए सुरक्षित बनाने के लिए उसका निरोगीकरण किया जाता है निरोगीकरण में दूध को निश्चित ताप क्रम पर निश्चित समय के लिए गर्म करते है । ताकि दूध में उपस्थित रोग नष्ट हो जायें । निरोगीकरण के तुरन्त बाद दूध को लगभग 4.5C ताप पर ठण्डा करके रखें ताकि दूध में शेष बचे जीवाणुओं की वृद्धि न्यूनतम हो तथा वह खराब न हो । निरोगीकरण के बाद दूध का हाथ से स्पर्श न होने दें ।

11. दूध का वितरण (Disposal of Milk):

दूध को निरोगीकरण के बाद अधिक समय तक संग्रहित नहीं रखना चाहिए यथा शीघ्र दूध का वितरण उपभोक्ताओं में कर दें । देश में उत्पादक के पास दुग्ध शीतलन की सुविधा उपलब्ध नहीं है । अतः यदि रखना पड़े तो दूध को उत्पादन के 3-4 घण्टे के समय उपरान्त उबाल कर रखें ।

यदि दही जमाना हो तो तदानुसार व्यवस्था करें । दूध के वितरण हेतु टोंटीयुक्त कैन या बोतल का प्रयोग करना सुरक्षित विधि है । गर्मी के मौसम में दूध को ठण्डा रखने के लिए बर्फ का प्रयोग करना उचित है ।

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