पारंपरिक दूध उत्पाद: अर्थ और वर्गीकरण | Read this article in Hindi to learn about the meaning and classification of traditional milk products.

परम्परागत दुग्ध पदार्थ का  अर्थ (Meaning of Traditional Milk Products):

देशी या परम्परागत दुग्ध पदार्थों की श्रेणी में वे सभी पदार्थ सम्मिलित किये जाते है जिनका उद्भव (Origin) तथा विकास भारत, बंगलादेश तथा पाकिस्तान के क्षेत्रों में हुआ है । ग्रामीण दुग्ध उत्पादक दुग्ध उत्पादन मूलत: अपने पारिवारिक उपयोग के लिए करता है ।

प्राचीन काल में दूध को बेचना पाप समझा जाता है अत: तरल दुग्ध उपभोग के पश्चात शेष दूध को अपेक्षाकृत अधिक संग्रहआयू वाले पदार्थों में परिवर्तित करने की परम्परा थी । इस वर्ग में जो दुग्ध पदार्थ विकसित हुए उन्हें परम्परागत दुग्ध पदार्थ (Traditional Milk Production) कहा गया । प्रत्येक महाद्वीप के अपने अलग-अलग परम्परागत दुग्ध पदार्थ है ।

परम्परागत दुग्ध पदार्थ के वर्गीकरण (Classification of Traditional Milk Products):

उत्पादन विधि के आधार पर इन दुग्ध पदार्थों को 5 प्रमुख समूहों में विभक्त किया गया है:

ADVERTISEMENTS:

1. संघनित दुग्ध पदार्थ (Condensed/ Heat Desiccated Milk Products)- इस वर्ग खोआ तथा इससे निर्मित मिठाइयाँ जैसे- गुलाब जामुन, बर्फी तथा पेड़ा आदि आते हैं ।

2. उष्मा तथा अम्ल-अवक्षेपित पदार्थ (Heat and Acid Precipitated Products)- छैना, पनीर, संदेश, पैन्टूआ, रसगोला आदि पदार्थ को इस समूह में सम्मिलित किया गया है ।

3. किण्वित दुग्ध पदार्थ (Cultured Milk Product)- दही, मक्खन, छाछ, लस्सी, तथा श्रीखंड इस वर्ग के पदार्थ है ।

4. उच्च वसा युक्त उत्पाद (High Fat Products)- जैसे- क्रीम, मक्खन, घी आदि ।

ADVERTISEMENTS:

5. हिमीकृत पदार्थ (Frozen Products)- जैसे- कुल्फी, मलाई का बर्फ, आईस कैंडी आदि ।

उपरोक्त पदार्थों का उत्पादन घरों में गृहणियों द्वारा किया जाता है । इनमें से कुछ की उत्पादन विधि का मानकीकरण हो चुका है जिनका व्यवसायिक स्तर पर संगठित क्षेत्र के दुग्ध संयन्त्रों द्वारा किया जा रहा है । वैसे उपरोक्त सभी पदार्थ असंगठित क्षेत्र के व्यापारियों द्वारा व्यवसायिक स्तर पर दुकानों में तैयार किये जा रहे हैं ।

दूध की तुलना में इनकी संग्रह आयु अपेक्षाकृत अधिक होता है । दूध को बिना ठण्डा किये मात्र कुछ घंटों तक ही रखा जा सकता है जबकि छैना को तीन दिन, पनीर को 3 दिन, खोआ को चार दिन, खुरचन व रबड़ी को 3-3 दिन तथा घी को 10-12 माह तक संग्रह किया जा सकता है ।

आजकल प्रशीतन क्रिया का विकास होने पर प्रशीतित दशा में इन पदार्थों को घरों में ओर अधिक समय तक बिना खराब हुए संग्रह किया जा सकता है । देशी पदार्थों की गुणवत्ता तथा संग्रह आयु के सुधार के लिए नई तकनीकी का प्रयोग भी आज होने लगा है ।

ADVERTISEMENTS:

परम्परागत दुग्ध पदार्थ निर्माण विधि का संक्षिप्त प्रवाही आरेख (Flow Diagram of Production Methods of Traditional Milk Products):

1. उष्मा अर्धशुष्क दुग्ध पदार्थ (Heat Desiccated Milk Products):

ऐतिहासिक तथा सामाजिक महत्व (Historical and Social Perspective):

वैदिक साहित्य में उष्मा द्वारा अर्धशुष्कन करके उत्पन्न दुग्ध पदार्थों का पर्याप्त विवरण मिलता है । वैदिक काल से भैंस का दूध इस तरह के दुग्ध पदार्थों के उत्पादन में प्रयोग किया जाता रहा है । 750 से 1200 AD में दूध को मिठाइयां बनाने के लिए 6:1 में गाढ़ा किया जाता था ।

गाढ़ा करते-करते जब दूध 1/8 भाग रह जाता था तो इसे सुरकरा (Surkara) कहते थे जो तत्कालीन सैनिकों को उपभोग कराया जाता था । आज के वर्तमान काल में इस वर्ग में खोआ, खुरचन तथा रबड़ी आदि पदार्थ व्यवसायिक स्तर पर निर्मित किये जा रहे हैं ।

भोजन में इन पदार्थों या सम्बन्धित मिठाइयों का परोसा जाना सामाजिक स्तर पर अच्छा माना जाता है । इनमें खोआ प्रमुख पदार्थ है जो उत्तरी, मध्य तथा पश्चिमी भारत में बहुत प्रसिद्ध है ।

2. उष्मा/अम्ल स्कन्दित दुग्ध पदार्थ (Heat/Acid Coagulated Milk Products):

ऐतिहासिक एवं सामाजिक महत्व (Historical and Social Perspective):

इतिहास की दृष्टि में 75 से 300 AD काल में गर्म दूध तथा दही मिलाकर दुग्ध ठोस प्राप्त करने का प्राचीनतम विवरण मिलता है । यह समय कुषान तथा शक सतवाहन काल रहा है । इस पदार्थ का उद्भव स्थान दक्षिणी पश्चिमी एशिया रहा है ।

ईरान में उत्पादित इस तरह के उत्पाद को ”पनीर खीकी” (Paneer Khiki) के नाम से जाना गया । उनकी भाषा में पनीर का अर्थ बर्तन से तथा खीकी का अर्थ भेड़ या बकरी के अमाशय की अन्त: परत से रहा है, अत: निष्कर्ष यह निकलता है कि उस समय यह पदार्थ रेनेट से निर्मित चीज़ के समान था ।

अफगानिस्तान में इसे कच्चा दूध से बनाया गया तथा प्राप्त पदार्थ को Paneer Khom नाम दिया गया । यह पदार्थ उबले दूध से बनाने पर उसे अफगानिस्तान में Paneer-e-Pokhta कहते थे । भारत में पारसी व अफगान आक्रमणकारियों द्वारा मना की उत्पादन विधि का परिचय कराया गया ।

शायद यही कारण है कि भारत के उत्तरी पश्चिमी (जम्मू व कश्मीर) क्षेत्रों में इस पदार्थ को अधिक प्रसिद्धी मिली तथा वहां से यह भारत के अन्य भागों में जाना गया ।

3. किण्वित दुग्ध पदार्थ (Fermented Milk Products):

किण्वित दुग्ध उत्पादन का ज्ञान शायद दुग्ध पदार्थों में प्राचीनतम है । वैदिक साहित्य में तधीसरा (Fermented Cream), दधांवत (Cheese) दध्यो देना (Boiled Rice Mixed with Curd), मथीता (Curd or Dahi or Chhachh), तर्क (Dahi + 3 Part of Water) आदि पदार्थों का पर्याप्त विवरण मिलता है ।

वर्तमान के प्रमुख परम्परागत किण्वित दुग्ध पदार्थों में निम्नलिखित प्रमुख है:

1. दही (Dahi),

2. चक्का (Chakka),

3. शरीखंड (Shri Khand),

4. लस्सी (Lassi),

5. मट्ठा (Mattha-Butter Milk) ।

उपरोक्त में दही का वर्णन संवर्द्धित दूध (Cultured Milk) के अन्तर्गत किया जा चुका है ।

4. उच्च वसा युक्त उत्पाद (Fat Rich Dairy Products):

घी उत्पादन की तकनीक इस क्षेत्र में आर्यों द्वारा लायी गयी । वैदिक साहित्य में घी का पर्याप्त विवरण मिलता है । मैदा को घी में भून कर तैयार पदार्थ को “दिवालिका” तथा मक्खन को “हृयामगेबिना” कहा जाता है । उच्च वसा युक्त डेरी पदार्थ में मक्खन तथा घी प्रमुख है ।

(i) मक्खन (Makkhan):

मक्खन, वैदिक काल का बहुत महत्वपूर्ण पदार्थ रहा है । यह पूरे देश में बनाया जाता है । परम्परागत रूप में मक्खन का उपयोग घी बनाने में उपयोग किया जाता है । इस प्रकार घी उत्पादन का यह एक माध्यमिक पदार्थ है ।

उत्पादन विधि (Production Method):

दही में ठण्डा पानी मिलाकर उसे मिट्टी के बर्तन में लकड़ी की मथानी से हाथ द्वारा मथा जाता है । मक्खन के दाने मक्खनियाँ दूध की सतह पर एकत्र हो जाते हैं जिन्हें हाथ द्वारा एकत्र कर लिया जाता है । इन एकत्रित कणों को इकट्ठा करके मुलायम सघन पदार्थ (Smooth Compact Mass) के रूप में निकाल लिया जाता है ।

भैंस के दूध से सफेद मक्खन बनता है जबकि गाय के दूध से निर्मित मक्खन रंग में पीलापन लिए होता है । यह रंग दूध में उपस्थित कैरोटीन के कारण होता है । मक्खन में सुहावनी व सघन डाईऐसिटाईल सुगन्ध (Rich Diacetyle Flavour) पायी जाती है । मक्खन में 78-80% बसा, 1.5 to 2.0% SNF तथा 15-20% नमी पायी जाती है ।

(ii) घी (Ghee):

मक्खन की तरह से घी भी बहुत प्राचीन पदार्थ है । आजकल घी आस्ट्रेलिया, अरमेनिया, अफ्रीका, एशिया, बैल्जिम, नीदरलैंड, न्यूजौलैंड, इंग्लैंड तथा अमेरिका में प्रसिद्धि प्राप्त कर रहा है । घी सामान्यतया गाय व भैंस के दूध से बनाया जाता है । परन्तु बकरी, भेड़ व उंटनी का दूध भी घी उत्पादन में प्रयोग किया जा सकता है ।

5. हिमीकृत पदार्थ (Frozen Products):

(i) कुल्फी (Kulfi):

कुल्फी, मलाई की कुल्फी या मलाई का बर्फ एक हिमीकृत दुग्ध उत्पाद है जिसका संगठन पतली क्रीम के समान होता है । यह बहुत स्वादिष्ट तथा पौष्टिक पदार्थ है । भारत में कुल दुग्ध उत्पादन का 0.6% भाग कुल्फी निर्माण में प्रयोग किया जाता है ।

इन पदार्थों का औषधि मान नहीं के बराबर होता है ये केवल पोषण तथा स्वाद के लिए खाये जाते हैं । अब स्वास्थ्यवर्धक Probiotic कुल्फी निर्माण पर अनुसन्धान कार्य प्रगति पर है । Probiotic का अर्थ है कि वे पदार्थ या जीव जो आन्तीय सूक्ष्मजीव सन्तुलन (Intestinal Microbial Balance) बनाये रखते हैं ।

इस वर्ग में मुख्यतया लाभकारी जीवाणु आते हैं । कुल्फी के लिए निर्धारित वैधानिक मानक स्पष्ट नहीं है तथा आईसक्रीम के लिए निर्धारित संगठन के मिश्रण से ही कुल्फी तैयार की जाती है ।

 

परम्परागत रूप से तैयार की जा रही कुल्फी के संघटकों का स्तर आईसक्रीम से निम्न होता है तथा आईसक्रीम की तरह इससे Overrun भी नहीं होता है:

उत्पादन विधि (Production Method):

दूध को 5% वसा तथा 8.5% वसा रहित ठोस स्तर पर मानकीकृत करके वाष्पीकरण द्वारा 2:1 के अनुपात में गाढ़ा करते हैं । संघनन क्रिया उपरान्त उसमें गाढ़े दूध का लगभग 13% चीनी मिलाते हैं ।

सान्द्रण (Concentration) के समय ही 0.3% जिलेटिन या सोडियम एल्वीनेट व 0.2% Glycerol Monosterate (GMS) मिलाया जाता है । सान्द्र विलयन को 30°C ताप पर ठण्डा करके सुवास, रंग तथा मेवा मिलाकर कुल्फी मोल्ड में भर लिया जाता है । इन्हें बन्द करके -20°C ताप पर हिमीकरण के लिए रखते हैं ।

प्रवाही आरेख (Flow Diagram):

Whole Milk → Standardization (5% Fat, 8.5% SNF) → Concentration (2:1) (TS 26%) → Addition of Sugar (13% of Cone. Milk) → Addition of Stabilizer (0.3%) Addition of Emulsifier (0.2%) → Cooling (30°C) → Addition of Flavour, Colour a Nuts → Filling in Cons → Holdening (-20°/3hr) → Kulfi (कुल्फी उत्पादन का प्रवाह आरेख) ।

उपयोगिता (Utility):

कुल्फी का उपयोग गर्मी के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत रुचि के साथ किया जाता है । वसा तथा प्रोटीन का यह एक अच्छा स्रोत है । इसमें वसा विलेय विटामिन तथा जल विलेय विटामिन भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं । संवर्धित दूध से बनी कुल्फी में ओषधीय गुण भी पाये जाते हैं ।

(ii) मलाई का बर्फ:

मलाई का बर्फ बनाने के लिए संघनित दूध, मलाई, फलों का गुदा, चीनी, रंग तथा सुवास मिलाकर मिश्रण तैयार करते हैं । इस मिश्रण को बर्फ व नमक के मिश्रण में हिमीकृत कर लिया जाता है । इस पदार्थ को समान्यतया तोल कर बेचा जाता है ।

(iii) आईस कैंडी (Ice Candy):

पानी में इच्छानुसार चीनी, रंग तथा सुवास मिलाकर धातु के बने छोटे-छोटे पात्रों में भर कर नमक तथा बर्फ के मिश्रण में रखकर हिमीकृत कर लिया जाता है । भारतीय गांवों में इस पदार्थ को बड़े पैमाने पर आईसक्रीम के नाम से परम्परागत व्यवसायियों द्वारा बेचा जाता है । कभी-कभी पानी में सफेदी उत्पन्न करने के लिए थोड़ी मात्रा में दूध भी मिला लेते हैं ।

Home››Dairy Products››