खोआ: वर्गीकरण और उत्पादन | Read this article in Hindi to learn about:- 1. खोआ का वर्गीकरण (Classification of Khoa) 2. खोआ उत्पादन की विकसित तकनीकी (Improved Method of Khoa Production) 3. कमियाँ, कारण व बचाव (Defects, Causes and Prevention).

इसे Khoa, Mava या Palghoa भी कहा जाता है । भारत के कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 6% दूध खोआ उत्पादन में प्रयोग किया जाता है । यह विभिन्न मिठाइयां बनाने में आधार दुग्ध पदार्थ (Base Milk Product) के रूप में प्रयोग होता है ।

खोआ से बनने वाली प्रमुख मिठाइयों में बर्फी, पेड़ा, दुग्ध केक, कलाकन्द तथा गुलाब जामुन आदि सम्मिलित है । BIS (Bureau of Indian Standards) ने खोआ के लिए 28% अधिकतम नमी (भार के अनुसार) तथा शुष्क पदार्थ के आधार पर भार के अनुसार कम से कम 26% वसा स्तर का मानक निश्चित किया है ।

लोहे की कढ़ाई में 4 से 6 लीटर भैंस का शुद्ध दूध लेकर कढ़ाई की सतह को खुरचने से खुरचते (Scraping) हुए सीधा आग पर अर्ध ठोस (Semi Solid Mass) पदार्थ बनने तक गर्म (Simmered) करते हैं । पदार्थ की तैयार होने की अन्तिम अवस्था (Finishing Stage) पर खोआ में पर्याप्त मात्रा में वसा मुक्त हो जाती है फलस्वरूप अर्ध ठोस पदार्थ कढ़ाई से चिपकना बन्द हो जाता है ।

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एक नमूना बनाने में लगभग 10 से 40 मिनट का समय लगता है । भैंस के दूध से बना खोआ सफेद जबकि गाय के दूध से बना खोआ हल्का पीला (Yellowish) होता है ।

केवल गाय का दूध खोआ बनाने में प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि इससे नमकीन (Salty Taste) स्वाद का खोआ बनता है जो मिठाइयां बनाने के लिए उपयुक्त नहीं होता है । यही कारण है कि ठण्डे देशों में जहाँ केवल गायें पाली जाती हैं (यूरोपियन तथा अमेरिकन देशों में) खोआ नहीं बनाया जाता है ।

खोआ का वर्गीकरण (Classification of Khoa):

देश में व्यवसायिक स्तर पर तीन प्रकार का खोआ बनाया जाता है:

1. पिन्डी (Pindi):

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इस प्रकार के खोआ में पकी गन्ध (Cooked Flavour) पैदा की जाती है । बाजार में यह अर्ध गोलाकार गोला (Hemispherical Pat) के रूप में मिलता है । इसका बदन तथा गठन (Body & Texture) समांग होता है । यह बर्फी तथा पेड़ा निर्माण के लिए अधिक उपयुक्त समझा जाता है ।

2. दानेदार (Danedar):

खोआ को दानेदार बनाने के लिए कच्चे दूध का 0.002% सिट्रिक अम्ल गर्म करते समय (Heat Desiccation) कड़ाही में मिलाया जाता है । इस प्रकार के मावे का गठन दानेदार तथा बदन असमान (Un-Even) होता है तथा यह कलाकन्द (Granular Burfi), दुग्ध केक (Milk Cake) तथा दानेदार दुग्ध मिठाइयां बनाने में प्रयोग किये जाते हैं । हल्की अम्लता (0.18 to 0.20%) युक्त दूध से भी दानेदार मावा बनाया जा सकता है । यह प्रमुखत: गुजरात तथा महाराष्ट्र में बनाया जाता है ।

3. धाप (Dhap):

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इसे कच्चे मावा (Katccha Mava) भी कहते हैं । इसका बदन चिपचिपा तथा ढीला एवं गठन मुलायम होता है । कम उष्मा उपचार दिये जाने के कारण इसमें नमी की मात्रा अधिक होती है । यह गुलाब जामुन बनाने में उपयुक्त रहता है ।

क्योंकि इसके गोले (Balls) एकसार बनते हैं जो पकाने (Frying) तथा शर्बत शोषण (Sugar Syrup Absorption) की दृष्टि से उपयुक्त है । इसका उपयोग पेन्टुआ (Pantooa) बनाने में भी किया जाता है ।

संगठन (Composition):

खोआ का संगठन मूल दूध के संगठन पर निर्भर करता है । खोआ बनाते समय गाढ़ा करने की मात्रा तथा दूध अव्यवों की लाभ व हानि (Loss or Gain during Handing) भी खोआ के संगठन को प्रभावित करते हैं ।

गाय तथा भैंस के दूध से बने खोआ के संगठन में भी भिन्नता पायी जाती क्योंकि इनके दूध में संगठनात्मक भिन्नता होती है ।

गाय तथा भैंस के औसत संगठन के दूध में निर्मित खोआ का संगठन निम्नानुसार होता है:

खोआ उत्पादन की विकसित तकनीकी (Improved Method of Khoa Production):

धुआं की गन्ध रहित खोआ बनाने के लिए कड़ाही के स्थान पर जैकेटिव वैट का प्रयोग करते हैं । इसमें भाप द्वारा दूध को गर्म करते हैं । इसमें भाप की मात्रा नियन्त्रण द्वारा 85±3°C पर ताप नियन्त्रण करते हैं । यान्त्रिक प्रक्षोमक (Mechanical Stirrer) द्वारा दूध को 96-100 rpm पर चलाते रहते हैं अत: दूध समान प्रकार से गर्म होता है । गाय के दूध में 4% वसा तथा भैंस के दूध में 5% वसा रखने से अच्छा खोआ बनता है ।

खोआ उत्पादन के समय दूध के अवयवों के गुणों में होने वाले भौतिक-रसायनिक परिवर्तन (Change in Physico-Chemical Properties of Milk Constituents during Khoa Making):

 

खोआ उत्पादन में अधिक समय तक गर्म करने से दूध में कई परिवर्तन होते हैं । दूध की व्हे प्रोटीन पूर्ण रूप से विघटित (Denatured) हो जाती है । केसीन कोलोईडल अवस्था से अवितरित दशा (Non-Dispersable State) में परिवर्तित हो जाती है । दूध का लगभग आधा वसा गोलिकाओं से निकलकर मुक्त वसा के रूप में खोआ में मिलकर उसे चिपचिपाहट रहित (Non-Sticky) बनाता है ।

लैक्टोज उच्च सन्तृप्त विलयन (Super Saturated) विलयन में परिवर्तित हो जाता है तथा महीन बूंदों (Fine Droplets) के रूप में उपस्थित रहता है । कुल अपचयन क्षमता (Reducing Capacity) 2-3 mg (As Cystein HCI/gm of Milk Solids) से बढ़कर 19.5 हो जाती है ।

Redox Potential 0.20 से 0.35 तक बढ़ता है । खोआ का pH 6.35 तक दूध के pH 6.6 से कम होकर आ जाता है । दूध की अपेक्षा खोआ में विलेय नाईट्रोजन (Soluble N2), स्वतन्त्र वसीय अम्ल तथा प्रोक्साईड मान लैक्टोज के घटने के साथ-साथ बढ़ते हैं ।

संग्रह आयु (Storage Life):

सामान्य तापमान पर खोआ का संग्रह आयु 2 से 4 दिन होता है जब कि यदि इसे रेफ्रीजिरेशन ताप पर रखा जाये तो 3 सप्ताह तक संग्रह किया जा सकता है । यदि खोआ उत्पादन में Roller Drying Process उपयोग करें तो इसे 30°C ताप पर 5 दिन तथा रेफ्रीजिरेशन ताप पर 15 दिन तक संग्रह किया जा सकता है ।

माइक्रोबायोलोजीकल गुणवत्ता (Microbiological Quality):

खोआ का SPC (Standard Plate Count) गणना में 32 × 103 से 332.7 × 103 Cfu (Colony Forming Units) प्रति ग्राम तक पायी जाती है । इनमें 3.2 × 103 से 33.0 × 103 तक अम्ल उत्पादक जीवाणु 2.5 × 103 से 21.3 × 103 Cfu प्रति ग्राम प्रोटियोलाईटिक प्रकार के जीवाणु, 2.1 × 103 से 31.5 × 103 Cfu प्रति ग्राम क्रोमोजैनिक प्रकार के जीवाणु तथा 200 प्रति ग्राम बीजाणु बनाने वाले (Spore Former) जीवाणु पाये जाते हैं ।

यह विस्मय की बात है कि इस तरह के ऊष्मा उपचारित पदार्थ में इतनी बड़ी संख्या में जीवाणु पाये जाते है । उत्पादन के समय अधिक तर जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, परन्तु उत्पादन पश्चात खुले वातावरण में रख-रखाव से संक्रमण (Post Production Handling Contamination) होकर ये जीवाणु खोआ में प्रवेश पाकर वृद्धि तथा विकास करते हैं ।

खोआ उत्पादन की प्रक्रिया में विटामिन A तथा B2 की क्रमशः 18 तथा 20 प्रतिशत हानि होती है ।

खोआ का संवेदी मूल्यांकन (Sensory Evaluation of Khoa):

मूल्यांकन प्रक्रिया में खोआ में उपस्थित अवगुण की मात्रा के आधार पर निम्नानुसार अंक प्रदान करते हैं:

खोआ की स्वीकार्यता के लिए मूल्यांकन में 60% अंक प्राप्त होने चाहिए ।

खोआ में कमियाँ-कारण व बचाव (Defects of Khoa-Causes and Prevention):

खोआ निर्माण के जिन्न गुणवत्ता का दूध का प्रयोग, दोषपूर्ण निर्माण विधि, रखरखाव का दोषपूर्ण दंग तथा संग्रहण की असावधानी के कारण पदार्थ में कुछ कमियां उत्पन्न हो सकती है ।

 

प्रस्तुत तालिका में सम्भव कमियों तवा उनके कारण व बचाव उपायों को तालिकाबद्ध किया गया है:

 

 

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