ब्लोटिंग तकनीक के प्रकार: 3 प्रकार | Read this article in Hindi to learn about the three types of blotting techniques. The techniques are:- 1. सर्दन ब्लॉटिंग तकनीक (Southern Blotting Technique) 2. वेस्टर्न ब्लॉटिंग तकनीक (Western Blotting Techniques) 3. नॉदर्न ब्लॉटिंग तकनीक (Northern Blotting Techniques).

Type # 1. सर्दन ब्लॉटिंग तकनीक (Southern Blotting Technique):

ब्लॉटिंग एक विश्लेषात्मक तकनीक है, जिसका उपयोग जैवरसायनिक तथा जैवतकनीकी प्रयोगों में किया जाता है । ब्लॉटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका प्रयोग विशिष्ट न्यूक्लिक एसिड (DNA/RNA) को डिटेक्ट करने के लिए किया जाता है, जो कि जेल मिश्रण में मिश्रित रहते है तथा एक ठोस सपोर्ट पर स्थानांतरण किया जाता है, जिससे कि वांछित जीन को प्राप्त किया जा सके तथा वांछित प्रयोग में उपयोग किया जा सके ।

इस तकनीक का नाम इसको विकसित करने वाले वैज्ञानिक ई.एम.सर्दन (E.M.Southern) के नाम पर है । इस विधि (Method) के द्वारा DNA के किसी भी खण्ड पर उपस्थित क्रम (Sequence) को ज्ञात किया जाता है ।

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किसी ऐच्छिक DNA भाग के अनुक्रम (Sequence) को ज्ञात करने अथवा जीनोम (Genome) से ऐच्छिक DNA भाग को पृथक् करने के लिए DNA को रिस्ट्रिक्शन एन्जाइम द्वारा पाचित (Digest) कराकर अनेक भागों में विभाजित किया जाता है ।

इन DNA भागों को जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel electrophoresis) में से निकला जाता है, जिसमें DNA भागों (Parts) को उनके मापन (Measurement) के आधार पर पृथक् किया जाता है । इलेक्ट्रोफोरेसिस की इस अभिक्रिया को ऐगरोज (Agarose) या पॉलिएक्राइलेमाइड (Polyacrylamide) जैल पर पूर्ण किया जाता है ।

इस ऐगरोज (Agarose) जैल का उपयोग 20kb आकार के भागों के लिए तथा पॉलिएक्राइलेमाइड (Polyacrylamide) जैल का उपयोग छोटे आकर के DNA भागों को पृथक् करने के लिए उपयोग करते हैं ।

जैल को क्षार (Base or Alkali) के द्वारा अभिक्रिया कराते हैं, जिससे DNA भाग विगुणित (Denatured) हो जाते हैं । इन DNA भागों को जैल (Gel) से नाइट्रोसैल्यूलोज फिल्टर पेपर (Nitrocellulose Filter Paper) पर स्थानान्तरित (Transfer) करते हैं ।

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इस कार्य के लिए सम्बन्धित जैल को उस बफर युक्त या उस बफर संतृप्त फिल्टर पेपर पर रखते हैं जोकि नाइट्रोसैल्यूलोजिक फिल्टर पेपर से ढंका रहता है । इस नाइट्रोसैल्यूलोजिक फिल्टर पेपर पर सूखे फिल्टर पेपर (Filter Paper) स्तरों में एक से ऊपर एक रखे जाते हैं ।

दिये गये DNA (DNA Sample) का यन्त्रिक विधि से या प्रतिबन्ध एण्डोन्यूक्लि-एस (Restriction Endonuclease) द्वारा पाचन (Digestion) किया जाता है, जिससे उसे असंख्य खण्डों (Segment) में विभाजित करते हैं । खण्डों के इस मिश्रण की इलेक्ट्रोफोरेसिस (Electrophoresis) करते हैं, इससे DNA अपने आकार के अनुरूप अलग होते हैं ।

ऐगेरोज जैल का उपयोग 20 kb आकार तक के खण्डों के लिए एवं पॉलीएक्रिलामाइड जैल (Polyacrylamide Gel) का उपयोग अपेक्षाकृत छोटे खण्डों के लिए किया जाता है । अब जैल को ऐल्केली से ट्रीट (Treat) करते हैं जिससे DNA के दोनों स्टैण्ड अलग हो जाते हैं ।

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इन्हें जैल से एक नाइट्रोसेल्युलोस फिल्टर पर स्थानान्तरित करते हैं । इसके लिए जैल को उपयुक्त बफर (Buffer) से तर फिल्टर कागज पर रखने हैं, इसके ऊपर नाइट्रोसेल्युलोस फिल्टर और फिर सूखे सामान्य फिल्टर कागजों की तह रखते हैं । कैपिलरी क्रिया के करण बफर नीचे के फिल्टर कागज से जैल एवं नाइट्रोसेल्युलोस में से होता हुआ सूखे फिल्टर कागजों में जाता है ।

बफर (Buffer) के साथ ही जैल में से DNA खण्ड भी ऊपर जाते हैं और नाइट्रोसेल्युलोस फिल्टर में अटक जाते हैं । इस प्रक्रिया को ब्लॉटिंग कहते हैं । नाइट्रोसेल्युलोस फिल्टर (Nitrocellulose Filter) में DNA खण्डों की वही सापेक्ष स्थिति बनी रहती है जो कि जैल में होते हैं ।

इस नाइट्रोसेल्युलोस फिल्टर को 80°C पर बेक (Bake) करते हैं जिससे DNA अणु फिल्टर से स्थायी रूप से चिपक जाते हैं । इस फिल्टर (Filter) को एक घोल में प्रीट्रीट (Pretreat) करने के बाद उपयुक्त रेडियोधर्मी (32-P से चिन्हित) एक स्ट्रैण्ड वाले DNA प्रोब के घोल में रखते हैं ।

यहाँ प्रोब (Probe) अपने पूरक DNA क्रम से एनील (Anneal) हो जाता है (Hybridization) । अब फिल्टर (Filter) को कई बार उपयुक्त घोल से धोते हैं जिससे असंकरित (Unhybridized) प्रोब निकल जाते हैं ।

इस फिल्टर (Filter) को एक X-किरण फिल्म पर प्रतिबिम्बित करते हैं तथा फिल्म डेवलेप (Develop) करने पर उन स्थलों पर बैण्ड (Bands) दिखाई पड़ते हैं जहाँ पर प्रोब के पूरक क्रम DNA खण्ड जैल में उपस्थित रहे होंगे ।

Type # 2. वेस्टर्न ब्लॉटिंग तकनीक (Western Blotting Techniques):

इस विधि (Method) के उपयोग से प्रोटीनों के मिश्रण में किसी प्रोटीन विशेष की उपस्थिति को सुस्पष्ट रूप से ज्ञात करते हैं । इसमें पॉलीएक्रिलामाइड जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Polyacrylamide Gel Electrophoresis) का प्रयोग (Use) किया जाता है ।

इसमें प्रोटीनों के बैण्ड की पहचान किसी विशिष्ट प्रतिरक्षी (Antibody) या लेक्टिन (Lectin) की सहायता से करते हैं । अक्सर पहचान की क्रिया एक सैण्डविच अभिक्रिया (Sandwitch Reaction) होती है । इसमें झिल्ली से जुड़े प्रोटीन अणुओं से सामान्य प्रतिरक्षी (Antibody) अणु (Molecule) आबद्ध किये जाते हैं तथा पुन: इस पर कोई अन्य रेडियोधर्मी अणु आबद्ध किया जाता है ।

Type # 3. नॉदर्न ब्लॉटिंग तकनीक (Northern Blotting Techniques):

यह विधि सर्दन ब्लॉटिंग का विस्तार है ओर इसका नाम भी उसी आधार पर रखा गया है (सर्दन के विपरीत दिशा, नार्दर्न) । इसके उपयोग (Use) से DNA क्रम के पूरक RNA की पहचान की जाती है तथा उसे अलग किया जाता है । इस विधि (Method) द्वारा कई ऊतकों में किसी वांछित DNA खण्ड या m-RNA की उपस्थिति ज्ञात करते हैं ।

इसमें अलग किये गये DNA (Extracted DNA) को अलग-अलग डाट के रूप में एक नाइट्रोसेल्युलोस फिल्टर पर लगाते हैं तथा इसे डीनेचर (Denature) करने के बाद 80°C पर बेक करते हैं जिससे एक स्ट्रैण्ड DNA फिल्टर से स्थायी रूप से चिपक जाते हैं ।

डाटों की पहचान ऑटोरेडियोग्राफी (Auto-radiography) द्वारा करते हैं । डाट के रंग की तीव्रता (Intensity) उन डाट में प्रोब (Probe) के पूरक क्रम की सान्द्रता के समानुपात में होगी । इस विधि से विभिन्न स्पीशीजों (Species) में प्रोब के पूरक क्रमों की बहुतायत का भी पता लगाया जाता है ।

कभी-कभी इस तकनीक (Technique) में DNA स्पॉट (Spots) एक मशीन में बने स्लाट (Slot) की मदद से लगाया जाता है जो कि आकार (Size) में अण्डे के समान (Oblong Slots) लम्बे होते हैं । इन्हें डाट ब्लाट (Dotblot) की तरह ही इस्तेमाल किया जाता है ।

नार्दन ब्लॉटिंग RNA अणु की विशिष्ट पहचान के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक है । इसकी प्रक्रिया पहले वर्णित सर्दन । ब्लॉटिंग के समान ही है । RNA अणुओं की इलेक्ट्रोफोरेसिस की जाती है तत्पश्चात ब्लॉट स्थानांतरण संक्रमण तथा ऑटोरेडियोग्राफी की जाती है ।

स्पष्टतः नार्दन ब्लॉटिंग तकनीक सर्दन ब्लॉटिंग तकनीक का विस्तार है ।

इन दोनों तकनीकी में यद्यपि निम्न अंतर पाये जाते है:

(1) सर्दन संकरण में DNA पृथक्करण जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस द्वारा किया जाता है ।

(2) परिणामस्वरूप सर्दन ब्लॉटिंग में ब्लॉटिंग से पूर्व DNA का विकृतीकरण होता है, जबकि नार्दन संकरण में इस पद की आवश्यकता नहीं होती ।

(3) नार्दन संकरण के लिए नाइट्रो सेलुलोज झिल्ली का उपयोग नहीं किया जाता । जबकि सर्दन संकरण के लिए इसका प्रयोग अधिकांशत किया जाता है तथा अंतत: ।

(4) सर्दन में प्रोब के साथ संस्करण DNA:DNA संकरण अणु उत्पन्न करता है । जबकि नार्दन संकरण में DNA:DNA अणु बनते हैं ।

विधियाँ (Methods):

प्रारंभ में विशिष्ट प्रकार के बने पेपरों (अमीनोबेंजाइलीक्सी मिथाइल पेपर के डायएजोरीकरण/से निर्मित पेपर DBM, डाएजोनेजालोक्सीमिथाल) झिल्ली से नहीं जुड़ता था ।

चूंकि RNA नाइट्रोसेलुलोज झिल्ली से नहीं जुड़ता था, RNA, DBM के साथ सहसंयोजक बंध द्वारा जुड़ जाता है, जिसके करण से ब्लॉट-ट्रांस्फर पुन: उपयोग में लाये जा सकते हैं, विकृत DNA के साथ जुड़ने में DBM इतना ही (बराबर मात्रा में) प्रभावी होता है तथा छोटे DNA खण्डों के साथ जुड़ने में यह नाइट्रोसेलुलोज से अधिक प्रभावी होता है ।

हाल ही में विकसित नायलॉन पेपरों ने DBM पेपर के उपयोग को कम कर दिया है, क्योंकि ये प्रबल तथा स्वस्थ है । पुन: उपयोग में लाये जा सकते है, तथा UV प्रकाश के अधिक प्रकाशित करने पर RNA से जुड़ जाते है ।

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