माइक्रोस्कोप के नौ महत्वपूर्ण प्रकार | Read this article in Hindi to learn about the nine important types of microscopes. The types are:- 1. प्रकाश सूक्ष्मदर्शी (Light Microscopes) 2. डार्क फील्ड माइक्रोस्कोप (Dark Field Microscope) 3. फेज कंट्रास्ट माइक्रोस्कोप (Phase Contrast Microscope) 4. फ्लोरेसेंस माइक्रोस्कोप (Fluorescence Microscope) and a Few Others.

माइक्रोस्कोप (Microscopes) निम्नलिखित प्रकार के होते है, जिनका वर्णन नीचे किया गया है:

1. प्रकाश सूक्ष्मदर्शी (Light Microscopes),

2. डार्क फील्ड माइक्रोस्कोप (Dark Field Microscope),

ADVERTISEMENTS:

3. फेज कंट्रास्ट माइक्रोस्कोप (Phase Contrast Microscope),

4. फ्लोरेसेंस माइक्रोस्कोप (Fluorescence Microscope),

5. इन्टरफेरेंस माइक्रोस्कोप (Interference Microscope),

6. पोलेराइजिंग माइक्रोस्कोप (Polarising Microscope),

ADVERTISEMENTS:

7. एक्स-रे माइक्रोस्कोप (X-Ray Microscope),

8. बाइनोकुलर सूक्ष्मदर्शी (Binocular Microscope),

9. इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (Electron Microscope) ।

Type # 1. प्रकाश सूक्ष्मदर्शी (Light Microscopes):

प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में दो प्रकार के Microscopes आते हैं जिनके सिद्धान्त एक समान हैं तथा ऊपर दिए गए विभेदन या विभेदन क्षमता पर ही कार्य करते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

सिद्धान्त (Principle):

किसी सूक्ष्मदर्शी की विच्छेदन क्षमता प्रकाश की तरंगदैर्ध्य (Wavelength) तथा ऑब्जेक्टिव लैंस के न्यूमेरिकल छिद्र (Numerical Aperture) पर निर्भर करती है ।

विच्छेदन क्षमता को निम्न सूत्र के द्वारा ज्ञात कर सकते हैं:

(i) Limit of Resolution R = 0.61 λ / Na

(ii) Numerical Aperture: Na = n sin θ

R = Limit of Resolution

λ = Wavelength of Light

n = Refractive Index of the Medium Separating Specimen from the Objective and Condenser Lens.

(iii) Na = प्रकाश सूक्ष्मदर्शी के लिए = 1

ओइल इमरसन के लिए = 1.4

(iv) विच्छेदन क्षमता ∝ न्यूमेरिकल छिद्र

(v) विच्छेदन क्षमता ∝ 1/विच्छेदन सीमा

(vi) θ = लैंस की ऑप्टिक अक्ष तथा प्रकाश पुंज की सबसे बाहरी किरण के मध्य का कोण माना ओइल इमर्सन लैंस के लिए θ का मान 58° = हैं तो NA का मान निम्नांकित होगा:

Na = n sin θ

Na = 1.4 × sin 58°

Na = 1.204

अत: निम्न तरीके से हम माइक्रोस्कोप की विच्छेदन सीमा का पता कर सकते हैं:

R = 0.61 λ / Na

R = 550 nm/1.204 (550 for Green Light)

R = 456.81nm

चूँकि sin θ का मान एक से अधिक नहीं होता है एवं अधिकांश ऑप्टिक पदार्थों के लिए Rx का मान 1.6 से अधिक नहीं होता है । अत: मोनोक्रोमेटिक प्रकाश (Violet Light, λ = 400) के लिए विच्छेदन सीमा 17nm से अधिक नहीं होती है एवं श्वेत प्रकाश के लिए विच्छेदन क्षमता 250nm तक पहुँच जाती है । अत: विभिन्न तरंगदैर्ध्य के प्रकाश का उपयोग करके माइक्रोस्कोप की विच्छेदन क्षमता को बढ़ा सकते हैं ।

Type # 2. डार्क फील्ड माइक्रोस्कोप (Dark Field Microscope):

सिद्धान्त (Principle):

एक डार्क रूम में वायु में उपस्थित डस्ट पार्टिकल सामान्यतया दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन जब एक प्रकाश पुंज डार्क रूम में प्रवेश करता है, तो डस्ट पार्टिकल चमकीले कणों के रूप में दिखाई देते हैं, क्योंकि डस्ट पार्टिकल प्रकाशीय किरणों को Reflect कर देते हैं एवं कुछ को प्रेक्षक की तरफ निर्देशित कर देते हैं ।

इस प्रकार डार्क बेक ग्राउण्ड में अप्रत्यक्ष उद्दीप्तन (Illumination) के करण पार्टिकल दिखाई देते हैं । ब्राइट फील्ड माइक्रोस्कोप में लाइट बेक ग्राउण्ड में प्रतिदर्श (Specimen) डार्क होता है, जबकि डार्क फील्ड माइक्रोस्कोप में डार्क बेक ग्राउण्ड में प्रतिदर्श ब्राइट (Light) होता है ।

संरचना (Structure):

डार्क फील्ड माइक्रोस्कोप एक प्रकार का प्रकाश सूक्ष्मदर्शी होता है, लेकिन इसमें कंडेसर अलग प्रकार का होता है । इसमें सामान्यतया प्रयोग में आने वाले एबे कंडेसर के स्थान पर डार्क फील्ड कंडेसर का उपयोग किया जाता है । इस डार्क फील्ड कंडेसर में ऊपरी लैंस (Top Lens) को केंद्रीय भाग पारभाषी होता है ।

इस कारण इसके केंद्रीय भाग से कोई भी प्रकाश की किरणें नहीं गुजरती हैं । अत: स्टेज पर उपस्थित प्रतिदर्श केवल परिधीय किरणों (Peripheral Rays) के द्वारा उद्दीप्त होता है । ये किरणें इस प्रकार फोकस होती हैं कि ये प्रत्यक्ष रूप से प्रतिदर्श तक नहीं पहुँच पाती हैं ।

बल्कि प्रतिदर्श के क्षैतिज रूप से (ऑब्जेक्टिव लैंस) के लम्बवत् प्रवेश करती हैं । इस कारण क्षेत्र गहरा दिखाई देता है । जबकि प्रतिदर्श चमकीला दिखाई देता है । जैसे- अंधेरे कमरे में प्रकाश पुँज के कारण डस्ट पार्टिकल चमकीले दिखाई देते हैं ।

सामान्य प्रक्रिया में डार्कफील्ड माइक्रोस्कोपी में ऐबे कंडेसर (Abbe Condenser) का रूपांतरित रूप प्रयोग में लिया जाता है ।

लेकिन उच्च आवर्धन हेतु विशिष्ट डार्कफील्ड कंडेसर को उपयोग में लिया जाता है जिसमें केरडोयड (Cardoid) तथा पेराबोलोयड (Paraboloid) लैंस का उपयोग होता है । कई बार सामान्य प्रकाश का स्रोत उचित मात्रा में प्रतिदर्श को उद्दीप्त नहीं कर पाता है । ऐसी स्थिति में कार्बन आर्क लैंस का प्रयोग किया जाता है ।

उपयोग (Uses):

इस माइक्रोस्कोप का उपयोग जीवित अभिरंजित सूक्ष्मजीव तरल में उपस्थित प्रतिदर्शों के अध्ययन हेतु किया जाता है । सामान्य सूक्ष्मदर्शी से दिखाई नहीं देने वाले जीवाणुओं का अध्ययन इस सूक्ष्मदर्शी द्वारा किया जाता है । जीवित अवस्था में सूक्ष्मजीवों में होने वाली गतिशीलता का प्रेक्षण इस माइक्रोस्कोप द्वारा किया जा सकता है ।

Type # 3. फेज कंट्रास्ट माइक्रोस्कोप (Phase Contrast Microscope):

फेज कंट्रास्ट माइक्रोस्कोप एक प्रकार का प्रकाश सूक्ष्मदर्शी है, जिसमें दो अतिरिक्त पार्ट-एन्यूलर डायाफ्राम (Annular Diaphargm) तथा एन्यूलर प्लेट (Annular Plate) उपस्थित होते हैं । इस माइक्रोस्कोप की विच्छेदन क्षमता, प्रकाश सूक्ष्मदर्शी के समान ही होती है ।

लेकिन इसमें जीवित कोशिकाओं को बिना अभिरंजन के देख सकते हैं । विभिन्न कोशिकीय अवयवों की मोटाई अलग-अलग होती है । अलग-अलग मोटाई के करण दो रचनाओं के मध्य इनका अपवर्तन गुणांक (Refractive Index) भी अलग-अलग होता है ।

अपवर्तन गुणांक में अंतर के कारण प्रावस्था (Phase) में भी परिवर्तन हो जाता है । ये प्रावस्था में परिवर्तन बहुत सूक्ष्म होते हैं । फेज कंट्रास्ट माइक्रोस्कोप द्वारा ये छोटे प्रावस्था अंतर गहरी (Dark) और चमकीली (Bright) विभिन्नताओं में परिवर्तित हो जाती है ।

Type # 4. फ्लोरेसेंस माइक्रोस्कोप (Fluorescence Microscope):

इस माइक्रोस्कोपी में प्रतिदर्श (Specimen) को विशिष्ट फ्लोरीसेंट अभिरंजित किया जाता है ।

यह सामान्य प्रकाश सूक्ष्मदर्शी से निम्न बातों में भिन्न है:

(i) प्रकाश स्रोत के रूप में मर्करी वेपर लैंप का उपयोग किया जाता है ।

(ii) सामान्य ऐबे कंडेंसर के स्थान पर डार्क फील्ड कंडेंसर का उपयोग किया जाता है ।

(iii) फिल्टर के तीन सेट का उपयोग किया जाता है ।

सिद्धान्त (Principle):

प्रकाश ऊर्जा के रूप में उपस्थित होता है । यह तरंगों के रूप में संचारित होता है । जब तरंग किसी पदार्थ के अणुओं तक पहुँचती है तो बाह्य कक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉन उत्तेजित हो जाते हैं व अनुनाद के रूप में दोलित होते हैं । जब एक पदार्थ प्रकाश का अवशोषण करता है तो यह ऊर्जा का भी अवशोषण करता है ।

यह अवशोषित ऊर्जा विलुप्त नहीं होती हैं यह अन्य प्रतिरूप में संचारित होती है अथवा ऊर्जा के अन्य रूप में परिवर्तित हो जाती है । जब उत्तेजित अणु से प्रकाश का संचरण फोटोल्यूमिनिसेंस (Photoluminiscence) कहलाता है । फोटोल्यूमिनिसेंस में अवशोषित प्रकाश का संचरण तुरंत नही होता है ।

बल्कि अवशोषण तथा उत्सर्जन के मध्य समय अंतराल होता है । यदि यह समय अंतराल 10 सेकण्ड से ज्यादा हो तो इसे फोटोल्यूमिनिसेंस कहते हैं । यदि समयांतराल 10 सेकण्ड से कम हो तो इसे फ्लोरीसेंस (Fluorescence) कहते हैं ।

संरचना (Structure):

फ्लोरेसेंस माइक्रोस्कोप में निम्न रचनाएँ होती हैं:

(a) प्रकाश स्रोत (Light Source):

प्रकाश स्रोत के लिए मर्करी वेपर आर्क लैंप का उपयोग किया जाता है । इस लैंप से कम λ का प्रकाश उत्सर्जित होता है । इस लैंप के साथ ट्रांसफार्मर भी संबंधित होता है क्योंकि कई बार 8,000 वोल्ट की आवश्यकता होती है । इस लैंप से 200-400nm परास की प्रकाश किरणों को उत्पन्न किया जा सकता है । यह लैंप काफी महँगा होता है तथा इनसे निकलने वाली किरणें हानिकारक होती हैं ।

(b) ऊष्मा फिल्टर (Heat Filter):

लैंप द्वारा उत्पन्न इंफ्रारेड किरणों के द्वारा काफी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है । इस ऊष्मा को अवशोषित करने के लिए ऊष्मा फिल्टर का उपयोग किया जाता है । यह फिल्टर पराबैंगनी किरण एवं दृश्य प्रकाश के संचरण को नहीं रोक पाता है ।

(c) उत्तेजक फिल्टर (Exciter Filter):

उत्तेजक फिल्टर से निकलने वाले प्रकाश की समस्त कम λ वाली तरंगें इस फिल्टर द्वारा अवशोषित हो जाती है । ये फिल्टर गहरे रंग के होने हैं तथा हरे, नीले, बैंगनी एवं धारा किरणों को संचारित होने देते हैं ।

(d) कंडेंसर (Condenser):

अच्छे परिणाम के लिए डार्क फील्ड कंडेंसर का उपयोग किया जाता है । इसमें पराबैंगनी किरणों को विचलित कर दिया जाता है ताकि प्रेक्षक की आँखों पर विपरीत प्रभाव न पड़े । साथ ही ऑब्जेक्टिव का Na (Nuclear Aperture) कंडेंसर से 0.5 कम रखा जाना है ।

(e) बाधक फिल्टर (Barrier Filter):

यह बॉडी ट्यूब में ऑब्जेक्टिव तथा आई पीस के मध्य उपस्थित होता है । जब उत्तेजन UV से किया जाता है तो उत्तेजक फिल्टर गहरे होते हैं बाधक फिल्टर रंगहीन होता है । जब उद्‌भासन नीले प्रकाश में किया जाता है तो बाधक फिल्टर पीले अथवा नारंगी रंग के हो जाते हैं ।

उपयोग (Uses):

कोशिका (Cells) में पाये जाने वाले विभिन्न पदार्थों के परिणामात्मक आंकलन के कम में ये माइक्रोस्कोप आते हैं ।

Type # 5. इंटरफेरेंस माइक्रोस्कोप (Interference Microscope):

इंटरफेरेंस माइक्रोस्कोप, फेज कंट्रास्ट माइक्रोस्कोप के सिद्धान्त पर आधारित है । केवल इसमें दो सीधी प्रकाश तरंगों द्वारा व्यक्तिकरण (Interference) प्रभाव उत्पन्न होता है । इस करण इस माइक्रोस्कोप से ऊतकों में मात्रात्मक मापन किया जा सकता है । इसके द्वारा माध्यम क्रमिक रूप से परिवर्तित किया जा सकता है ।

संरचना (Structure):

यह एक प्रकार का प्रकाश सूक्ष्मदर्शी है जो फेज कंट्रास्ट के सिद्धान्त पर आधारित है । इस माइक्रोस्कोप में कंडेन्सर तथा ऑब्जेक्टिव के साथ केल्साइट प्लेट (Calcite Plate) का उपयोग किया जाता है ।

सिद्धान्त (Principle):

(i) यदि दो प्रकाश किरणें जिसकी उत्पत्ति एक स्रोत से होती है । ये दोनों किरणें यदि एक समान कलांतर में हो तो परिणामी तरंग अधिकतम आयाम वाली होती है । यह व्यतिकरण, संपोषी व्यतिकरण, (Constructive Interference) कहलाता है ।

(ii) यदि एक ही स्रोत से उत्पन्न दो प्रकाशीय किरण विपरीत कलांतर में उपस्थित होती हैं, तो व्यतिकरण (Constructive Interference) कहलाता है ।

कार्य-प्रणाली (Working Mechanism):

दो प्रकाशीय किरणें जो व्यतिकरण उत्पन्न करती हैं, ऑब्जेक्ट पर आपतित (Fall On) होती हैं । ऑब्जेक्ट के स्तर पर ये पृथक् हो जाती है । एक प्रकाश किरण ऑब्जेक्ट के अंदर से गुजरती है, जबकि द्वितीय प्रकाश किरण ऑब्जेक्ट के बाहर से गुजरती है ।

ये दोनों किरणें ऑब्जेक्ट के ऊपर पुन: मिल जाती हैं । इस प्रकार उत्पन्न कंट्रास्ट ऑब्जेक्ट के Rx तथा मोटाई पर निर्भर करता है । प्रकाश किरण के ओप्टिकल पथ में होने वाले अंतर ऑब्जेक्ट के Rx तथा मोटाई पर निर्भर करता है ।

इसको निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात कर सकते हैं:

Δ λ = t (µs – µr)

Δ λ = Change in Optical Path

µs = Rx of Specimen

µr = Rx of Surrounding Specimen

t = Thickness of Specimen

Δ λ की मापन इंटरफेरेंस माइक्रोस्कोप के साथ संलग्न एनालाइजर (Analyser) द्वारा किया जाता है । इसके द्वारा अकेली कोशिका या इसके कोशिकीय अंगों की शुष्कता का भी मापन किया जा सकता है । इस माइक्रोस्कोप की संवेदिता बहुत ज्यादा होती है तथा द्रव्यमान में होने वाले थोड़े से अंतर को भी इसके द्वारा ज्ञात किया जा सकता है ।

उपयोग (Uses):

(i) कोशिका एवं इसके अंगकों के शुष्क द्रव्यमान का मापन किया जा सकता है ।

(ii) कोशिका के वे अंगक जिनकी मोटाई तथा Rx में विभिन्नता पाई जाती है ।

इंटरफेरेंस द्वारा ये अंगक अलग-अलग रंग के दिखाई देते हैं । अत: कोशिका एवं कोशिकीय अंगकों को बिना अभिरंजित किये देख सकते हैं ।

Type # 6. पोलेराइजिंग माइक्रोस्कोप (Polarising Microscope):

माइक्रोस्कोप जिसमें कोशिका एवं ऊतकों को प्रेक्षित करने के लिए ध्रुवित प्रकाश का उपयोग किया जाता है, पोलेराइजिंग माइक्रोस्कोप कहलाता है । ध्रुवित प्रकाश में प्रकाश तरंगें एक ही तल में होती हैं ।

संरचना (Structure):

यह एक सामान्य प्रकाश सूक्ष्मदर्शी होता है जिसमें ओब्जेक्ट को उद्दीप्त करने के लिए ध्रुवित प्रकाश का उपयोग किया जाता है ।

इस माइक्रोस्कोप में मुख्य दो रचनाएँ होती हैं:

(i) पोलेराइजर (Polarizer)- यह पोलेराइड फिल्म की सीट या केल्साइट की कोल प्रिज्म का बना होता है । इसे सब स्टेज कंडेन्सर के नीचे रखा जाता है ।

(ii) एनेलाइजर (Analyzer)- यह भी पोलेराइड फिल्म की सीट या केल्साइट की निकोल प्रिज्म का बना होता है । इसे ऑब्जेक्टिव लैंस के ऊपर रखा जाता है ।

सिद्धान्त (Principle):

जब ध्रुवित प्रकाश आइसोट्रोपिक माध्यम में से गुजरता है तो इसके वेग में कोई परिवर्तन नहीं होता है । लेकिन विषमदैशिक माध्यम (Anisotropic Medium) में जब यह गुजरता है तो इसका वेग परिवर्तित हो जाता है । इस प्रकार का माध्यम बायरेफ्रिजेंट कहलाता है क्योंकि यह रेफ्रेक्शन के दो इंडेक्स के निरूपित करता है । इस बायरेफ्रिजेंट के कारण इमेज में कंट्रास्ट उत्पन्न होता है ।

बायरेफ्रिजेन्स (B) को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:

B = Ne –No = R/t

B = Birefringence

Ne = One Index of Refraction

No = Second Index of Refraction

R = Retardation of Light

t = Thickness of the Specimen

कार्य प्रणाली (Working Mechanism):

एक विषमदैशिक ऑब्जेक्ट को क्रोसित पोलेराइजर तथा एनालराइजर के मध्य रखा जाता है । अधिकतम तथा न्यूनतम चमकीलापन (Brightness) प्राप्त करने के लिए ऑब्जेक्ट को ±45° से घुमाते हैं । जब ऑब्जेक्ट को घूर्णित नहीं किया जाता है तो गहरा क्षेत्र (Dark Field) प्राप्त होता है । जब इसे ±45° से घूर्णित किया जाता है तो इमेज का चमकीलापन अधिकतम होता है ।

उपयोग (Uses):

इस माइक्रोस्कोप का उपयोग कोशिका विभाजन के दौरान तर्कु के निर्माण के अध्ययन हेतु किया जाता है । विभिन्न प्रकार के जैविक तंतुओं के आण्विक संगठन का अध्ययन इस माइक्रोस्कोप से किया जा सकता है ।

Type # 7. एक्स-रे माइक्रोस्कोप (X-Ray Microscope):

यह आधुनिकतम साइटोलॉजिकल उपकरणों (Cytological Tools) में से एक है । इसके कुछ विशेष महत्व हैं । एक्स-रे माइक्रोस्कोप में प्रदीप्ति (Illumination) के लिये एक्स-रे तरंगों का उपयोग किया जाता है । X-रे तरंगदैर्ध्य (Wavelength) कम होती है लेकिन भेदन शक्ति (Penetration Power) अधिक होती है ।

इस गुण के कारण ये जलवाष्प तथा गैस में स्थित अपेक्षाकृत अधिक मोटी जैविक रचना में भी पारित हो जाती हैं । एक्स-रे में विद्युत चार्ज (Electric Charge) का अभाव होता है ।

इनके परवर्ती दर्पणों (Reflecting Mirrors) की सहायता से संकलित किया जा सकता है लेकिन परवर्ती दर्पणों (Reflecting Mirrors) के प्रयोग में एक्स-रे माइक्रोस्कोप की पेनेट्रेशन क्षमता (Penetration Power) काफी सीमित हो जाती है ।

इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप की अपेक्षा एक्स-रे माइक्रोस्कोप से प्राप्त होने वाली रिजॉल्विंग पॉवर (Resolving Power) कम होती है । एक्स-रे माइक्रोस्कोप से प्रत्यक्ष संस्पर्शी विधी (Direct Contact Method) द्वारा जैविक रचनाओं का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है । इस विधि में बारीक काट (1µ या कम मोटाई) तक की एक्स-रे तरंगों को उद्भासित (Exposed) किया जा सकता है ।

प्रोजेक्शन विधि (Projection Method):

इस विधि में एक्स-रे धारा के स्रोत तथा फोटोग्राफिक प्लेट (Photographic Plate) के बीच किसी रचना को रखकर प्लेट पर उस रचना का प्रतिबिम्ब लिया जाता है । दूसरी आधुनिक वर्ग-विधियाँ इस बात पर निर्भर करती हैं कि एक्स-रे की तरंगें कितना डिफरेक्शन (Diffraction) कर सकती हैं ।

एक्स-रे तरंगों की एक पतली धारा अध्ययन सामग्री में पारित की जाती है, जिसका डिफरेक्शन सामग्री के कुछ ही फासले पर रखी हुई फोटोग्राफिक प्लेट पर अंकित हो जाता है । डिफरेक्शन के प्रभाव कोन्सेन्ट्रिक रिग्स (Concentric Rings) तथा धब्बों के रूप में दिखायी देते हैं ।

यह अध्ययन सामग्री की विभिन्न संरचनाओं तथा बिन्दुओं के बीच अन्तर का पता लगाने में सहायक है । बिन्दुओं तथा प्रतिरूप के न्युक्लियस के बीच की दूरी रचना में स्थित नियमित कोण से पुनरावृत्त यूनिट्स के बीच रिक्त स्थानों व रिक्तिकाओं (Vacuoles) के ऊपर निर्भर है ।

डिफरेक्शन कोण (Angle of Diffraction) तथा पुनरावृत यूनिट्स के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है । डिफरेक्शन का कोण जितना कम होगा, पुनरावृत यूनिट्स के बीच की दूरी उतनी ही अधिक होगी । इसी तरह से बिन्दुओं की तीक्ष्णता रिक्तिकाओँ (Vacuoles) की नियमितता के ऊपर निर्भर है ।

उपयोग (Uses):

X-रे माइक्रोस्कोप द्वारा केवल परिरक्षित (Preserved) सामग्री का ही अध्ययन किया जा सकता है । यह क्रिस्टेलाइन संरचनाओं के विश्लेषण में प्रयोग होता है । इसके द्वारा किसी वस्तु के शुष्क पदार्थ का परिमाणात्मक निर्धारण किया जा सकता है ।

Type # 8. बाइनोकुलर सूक्ष्मदर्शी (Binocular Microscope):

कम शक्ति का स्टीरोस्कोपिक बाइनोकुलर (Stereoscopic Binocular) दो पृथक् कनवर्जिंग माइक्रोस्कोप (Converging Microscopes) का बना होता है । दोनों माइक्रोस्कोप ऊर्ध्व अक्ष (Vertical Axis) से समान दूरी पर लगभग 15°-16° का कोण बनाते हुए लगे रहते हैं ।

बॉडी ट्यूब में दोनों नेत्रक (Eye-Piece) एवं अभिदृश्यक (Objective) इस प्रकार व्यवस्थित किये जाते हैं कि वे वस्तु के एक ही क्षेत्र पर एक साथ फोकस करें । इस उभयनिष्ठ क्षेत्र (Common Area) को किसी भी नेत्रक (Eye-Piece) से देखा जा सकता है ।

दोनों नेत्रक एवं अभिदृश्यकों के बीच प्रिज्म लगे रहते हैं जिससे प्रतिबिम्ब सीधा बनता है । अनेक ऐसी वस्तुएं जिन्हें परावर्तित प्रकाश द्वारा प्रकाशित कर अध्ययन किया जाता है, बाइनोकुलर सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही सम्भव हो पाता है ।

यह बाइनोकुलर का अद्वितीय लक्षण है । इससे वस्तु का सीधा एवं त्रिपार्श्व प्रतिबिम्ब (Straight and Three-Dimensional Image) प्राप्त होता है जो कि किसी जन्तु या पौधे के विच्छेदन हेतु अति आवश्यक है ।

Type # 9. इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप (Electron Microscope):

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप विकसित हुआ । इसके विकस से विभेदन क्षमता को बढ़ाने में काफी सफलता मिली । इस समय सही विज्ञान तथा इण्डस्ट्री के लिए यह शक्तिशाली टूल (Powerful Tool) की तरह कार्य कर रहा है ।

इसकी सहायता से हम अतिसूक्ष्म जैविक रचनाओं (Biological Ultra-Structure) का प्रत्यक्ष अध्ययन कर सकते हैं तथा बाद में विभिन्न देशों में वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की डिजायन का प्रतिपादन नोल व रस्का, मार्टोन तथा प्रेब्स व मिलर ने किया था । इसकी विच्छेदन क्षमता बहुत अधिक होती है । वर्तमान में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विच्छेदन क्षमता 3Å है ।

इस यंत्र के द्वारा कोश के सूक्ष्मदर्शी अंश का एवं उसके कोशिकांग का अध्ययन किया जा सकता है । इसमें शीशे के लेन्स नहीं होते । इससे एक तप्त कैथोड से Vacuum Tube के अन्दर उच्च वोल्टेज पर इलेक्ट्रॉन किरणें निकलकर वस्तु की काट के पार जाने के बाद Electromagnetic Lenses के द्वारा Focus की जाती है ।

इलेक्ट्रॉन किरण की तरंग लम्बान लगायी गयी वोल्टेज पर निर्भर होती है । इसमें से इलेक्ट्रॉन किरणें पार होकर Magnetic Projector Lenses से आवर्धित होकर एक Fluorescent Screw या फोटो फिल्म पर पड़ती है ।

इस प्रकार Electron Micrograph चित्र बनाकर अध्ययन करते हैं । इससे लगभग दो लाख गुना आवर्धित प्रतिबिम्ब देखा जाता है । जीवित वस्तु का अध्ययन इससे नहीं हो पाता ।

सिद्धान्त (Principle):

इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की खोज इस बात पर आधारित है कि सरकुलर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड (Circular Electromagnetic Field), इलेक्ट्रॉन्स (Electrons) के एक किरणपुँज (Beam) पर क्रिया करती है । यह ग्लास (Glass) लेन्स (Lens) की फोटोन्स (Photons) के किरणपुँज (Beam) की क्रिया के समान होती है ।

सरकुलर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड एक लेन्स (Lens) की भाँति कार्य करती है । यह लेन्स कई हजार तार के कोइल्स (Coils) का होता है, जो लोहे के केस (Case) में बन्द होता है । जब कोई धारा (Current) कोइल (Coli) द्वारा प्रवाहित की जाती है तो एक मैग्नेटिक फील्ड उत्पन्न हो जाता है जो इलेक्ट्रॉन्स की गति को दिशा देता है ।

एक इलेक्ट्रॉन (Electron) किरणपुंज (Beam) बहुत कम तरंगदैर्ध्य (Wavelength) वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग के गुणों वाली होती है । किसी इलेक्ट्रिक फील्ड द्वारा त्वरित (Accelerated) तरंगदैर्ध्य (λ), λ ∝ 1 V त्वरित वोल्टेज (Accelerating Voltage) होती है ।

इस 100KV वाले त्वरित वोल्टेज से 0.04 nm वाली तरंगदैर्ध्य (Wavelength) प्राप्त होती है, जो दिखाई देने वाले प्रकाश से 10,000X कम होती है । इसके फलस्वरूप रिजोल्विंग पावर (Resolving Power) बढ़ जाती है । अत: अधिक उपयोगी आवर्धन (Magnification) प्राप्त होता है ।

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