श्री जलारम बापा की जीवनी । Biography of Shree Jalaram Bapa in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय ।

3. चमत्कारिक जीवन ।

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4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

सौराष्ट्र {गुजरात} के सन्त पुरुष जलाराम बप एक सामान्य मानव होते हुए भी अपने श्रेष्ठ कार्य एवं आदर्शो भाव से पूजे जाते हैं । अपना समस्त जीवन एक साधारण गृहस्थ की तरह जीते हुए भी उन्होंने मानव सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित किया ।

2. जन्म परिचय:

भक्त जलाराम का जन्म संवत 1856 को कार्तिक शुक्ल सप्तमी को राजकोट के वीरपुर ग्राम में हुआ था । उनके पिता प्रधान ठक्कर तथा माता राजबाई धार्मिक संस्कारों वाली महिला थीं, जिसका प्रभाव जलाराम पर भी हुआ । बाल्यावस्था में उनकी भेंट गिरनार पर्वत के एक सन्त से हुई ।

उसके बाद से तो जलाराम के मन में भक्ति की धारा फूट पड़ी । 16 वर्ष की अवस्था में अनिच्छापूर्वक उनका विवाह सुशीलाबाई से हुआ ।  पत्नी ने धर्म पालन में किसी भी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं की । इनकी दयालु प्रवृत्ति और दानशीलता का कभी शी विरोध नहीं किया ।

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उनके पिता ने साधु-सन्तों को इस तरह दान करना सामर्थ्य के बाहर बताया, तो वे अपनी पत्नी को लेकर घर से निकल पड़े । वहां अपने काका के यहां दुकानदारी के साथ- साथ इस कर्म में भी लगे रहे । एक दिन तो जलाराम ने दस-बारह साधुओं को दान में न केवल आठ-दस गज बड़े थान से काटकर दे दिये, वरन् उन्हें भोजन भी करवाया ।

दुकान से आटा, दाल, घी भी दिया । रास्ते में काका ने दान देते हुए जलाराम की गठरी को देखकर पूछा: ”इसमें क्या है?” भयवश उन्होंने कह दिया: ”इसमें उपले और पानी है ।” काका ने खोलकर देखा, तो उपले और पानी ही निकला । काका से अलग होकर पत्नी के साथ मेहनत-मजदूरी करने लगे । निजी सम्पत्ति न होने के बाद भी दान-दक्षिणा का कर्म चलती रहा ।

एक महात्मा ने जब उनके अन्न बांटने की परोपकार वृत्ति के बारे में सुना, तो उन्हें आशीर्वाद दिया, किन्तु कुछ दिनों बाद जमा किया गया अन्न घटने लगा, तो उनकी पत्नी ने अपने आभूषण उतारकर दे दिये ।

इसके बाद तो अन्य क्षेत्र में कार्य में सहयोग करने वाले भी आ गये । उनके इस अन्नदान की प्रशंसा वीरपुर के ठाकुर मूलजी ने सुनी, तो उन्होंने दो सौ बीघा जमीन और एक कुआ उनको दे दिया । जलाराम प्रतिदिन साधु-सन्तों को दान-पुण्य में कुछ-न-कुछ देते और नियमानुसार प्रतिदिन “सीताराम” महामन्त्र का सुबह-शाम जाप करते ।

3. चमत्कारिक जीवन:

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उनके प्रमुख चमत्कारों में एक घटना जमाल नामक मुसलमान तेली के जीवन से जुड़ी हुई है । जमाल का लड़का अचानक इतना अधिक बीमार हो गया कि किसी भी वैद्य की दवा-दारू उस पर काम नहीं आयी । सब तरफ से निराश होकर जमाल जलारामजी की शरण में आया और बोला: ”प्राणों से प्यारे मेरे इस पुत्र को आप स्वस्थ कर दो, तो मैं पांच बोरी बाजरा चढ़ाऊंगा ।”

जलाराम ने जमाल के लड़के को अभिमन्त्रित जल पिलाया था कि दो घण्टे बीतते ही लड़के ने आंखें खोलकर अपने पिता से बात की । इसके बाद जमाल ने चालीस पैमाना {पांच बोरी} अनाज व बैलगाड़ी भी दे      दी । ”जला सो अल्ला, जिसको न दे अल्ला, उसको दे जल्ला ।”

इस तरह वह 22 वर्षीय जलाराम बापा का शुक्रिया अदा करता हुआ खुशी-खुशी अपने घर को लौट गया । इसी तरह एक बार ध्रांगध्रा के महाराज के 150 सिपाही वीरपुर आये हुए थे । जलाराम बापा ने उन्हें प्रसाद के तौर पर दो  लड्डू और सेब एक पात्र से दिये ।

उस अक्षयपात्र से प्रसाद सभी सिपाहियों को भरपूर मिला । वह पात्र पुन: ज्यों का त्यों हो गया । इस घटना की खबर महाराज ने सुनी, तो उन्होंने बहुत-सा धन और बहुत सारे बढ़िया पत्थरों की चक्कियां आश्रम में भिजवायीं, ताकि साधु-सन्तों को अन्नदान में सुविधा हो सके ।

कहा जाता है कि आश्रम में आज भी वही चक्कियां मौजूद हैं । एक बार ईश्वर के रूप में आये एक सन्त ने सामान्य वृद्ध का रूप लेकर जलाराम बापा से सेवा हेतु उनकी पत्नी मांग ली । जलाराम ने नि:संकोच सहमति दे दी । यह सुनते ही सन्त कहीं अन्तर्ध्यान हो गये ।

4. उपसंहार:

सन्त जलाराम बापा यह मानते थे कि सभी जीवों में ईश्वर बसता है । अत: दान-दक्षिणा देकर भी दीन-दुखियों में ईश्वर को पाया जा सकता है । साधु-सन्तों, दीन-दुखियों को अन्नदान देकर ईश्वर की भक्ति को पाने के साथ-साथ जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है ।

आज भी सौराष्ट्र के लोग तथा उनके अनुयायी अन्नदान की परम्परा को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करते हैं तथा अन्य क्षेत्र स्थापित कर हजारों मन अनाज प्रतिमास दान में देते हैं । संवत 1937 में माघ कृष्ण दशमी को जलाराम बापा गोलोकवासी हो गये ।

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