स्वामी हरिदास की जीवनी | Biography of Swami Haridas in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. हरिदासजी का जीवन वृत ।

3. उनके मत एवं विचार ।

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4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

स्वामी हरिदासजी सखी सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे । कहा जाता है कि यह निम्बार्क सम्प्रदाय की एक शाखा भी है । इस सम्प्रदाय के लोग प्रेम के सिद्धान्त को प्रमुख मानते हैं । ईश्वर का प्रेम-दर्शन ही इस सम्प्रदाय के लिए प्रमुख है ।

सखी सम्प्रदाय प्रेम को ही जीवन का सत्य मानता है । प्रेम की इस क्रीड़ा के लिए राधा और हरि दो रूपों का जन्म हुआ । इसके तीसरे रूप उनके सखीजन हैं । इस लीला के आनन्द को प्राप्त करने वाले चौथे रूप उनके भक्तगण हैं ।

2. हरिदासजी का जीवन वृत्त:

स्वामी हरिदासजी का जन्म वृन्दावन के निकट राजपुर नामक ग्राम में हुआ था । वे सनाढ्‌य जाति के थे । उनके पिता गंगाधर, माता चित्रादेवी मानी जाती हैं । वे अचानक दीपक से पत्नी के जलकर मर जाने पर विरक्त होकर वृन्दावन चले आये ।

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कहा जाता है कि उन्हीं की उपासना के फलस्वरूप बांकेबिहारी की मूर्ति का प्राकट्‌य हुआ, जो आज भी वृन्दावन में विराजमान है । हरिदासजी महान संगीतज्ञ थे । तानसेन उन्हीं के शिष्य माने जाते हैं । उनकी आयु 95 वर्ष बतायी जाती है । उनका जन्मकाल 1478 से 1573 के आसपास माना जा सकता है ।

3. उनके मत एवं विचार:

स्वामी हरिदास ने किसी दार्शनिक मतवाद का प्रतिपादन नहीं किया । वे तो रस मार्ग के पथिक रहे हैं । उन्होंने हरि को स्वतन्त्र और जीव को भगवान् के अधीन माना है । जीव का स्वभाव चपल है । संसार सागर को पार करने के लिए हरिनाम की नौका एकमात्र आधार है ।

हरि का स्मरण जीव को इस प्रकार करना चाहिए, जिस प्रकार ग्वालिन अपने सिर पर रखे हुए मटके का ध्यान रखतब्री है कि वह छलक न जाये । अन्य स्थानों पर भगवान् श्रीकृष्ण को अवतारी पुरुष माना जाता है, किन्तु हरिदासजी के कृष्ण अवतारी नहीं हैं ।

उनकी लीला का सम्बन्ध सभी के हृदय में व्याप्त प्रेम से है । इस प्रेम में राधा, बिहारी और सखियों के अतिरिक्त कोई नहीं है । प्रेम की इस मधुरता में सारा संसार खोया हुआ है ।

4. उपसंहार:

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हरिदासी या सखी सम्प्रदाय द्वैतवाद एवं विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय से अलग एक ऐसा सम्प्रदाय है, जहां श्रीकृष्ण का चरित्र और उसका मधुर पक्ष भक्तों का आलम्बन है । सखियों की कृष्ण के प्रति प्रेम भावना ही इस सम्प्रदाय का मूलाधार है । हरि का दास होते हुए भी सभी उसके प्रेम में रमण करते हुए भावविभोर हो जाते हैं । यही प्रेम ही भक्ति की ओर व्यक्ति को ले जाता है ।

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