तिरुवल्लुवार की जीवनी | Biography of Thiruvalluvar in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय व कार्य ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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सन्त तिरुवल्लूवर एक महान सन्त और आध्यात्मिक चेतना सम्पन्न व्यक्ति थे । प्राणीमात्र के प्रति उनके मन में गहेरी सहानुभूति कि भावना थी । अहंकार का त्याग कर के नम्रतापूर्ण जीवन जीने वाले व्यक्ति ने राजा को एक शासक की तरह न मानकर उन्हे प्रजास्नेही व कुलीन चरित्र वाला बताया । कबीर की भांति उनका जीवन समाज तथा धर्म को समर्पित था ।

2. जीवन परिचय व कार्य:

आज से दो हजार वर्ष पूर्व केरल के एक जुलाहा परिवार में जन्मे सन्त तिरूवल्लूवर का जीवन कबीर की भांति जुलाहा कर्म से प्रारम्भ हुआ । उनका जीवन बड़ा ही सीधा-सरल तथा स्वभाव नम्र था । वे आजीवन दूसरों के लिए जिये । तिरूवल्लूवर की पत्नी बासुही बड़ी ही सुशील व धार्मिक थीं ।

कुछ लोग उन्हें राजा की बेटी मानते हैं, किन्तु उनके जीवन के बारे में विशेष प्रमाण नहीं मिलते । अपनी स्त्री के प्रति वस्तुवर के मन में बड़ा ही आदर भाव था । वह भी अपने पति को भगवान की तरह पूजती थीं । वस्तुवर ने अपना जीवन बुनकर की तरह बिताने के बाद भी धर्म का साथ नहीं छोड़ा । स्त्री की असामयिक मृत्यु के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया था ।

उनकी सहनशीलता का अनुपम उदाहरण एक घटना से लिया जा सकता है, किसी नगर का एक बिगड़ैल लड़का, जो सेठ का पुत्र था, वल्लूवर की दुकान पर जा पहुंचा । उसने एक बुनी हुई कीमती साड़ी अपने हाथ में उठायी ।

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वल्लुवर से पूछा: ”इसका कितना मूल्य है ।” वल्लूवर ने कहा: ”दस रुपये ।” उस युवक ने साड़ी का एक टुकड़ा और किया और पूछा: ”इसका मूल्य कितन हुआ ?” वल्लुवर ने कहा: ”आठ रुपये ।” इसके बाद लड़के ने एक और टुकड़ा किया, तो वस्तुवर ने कहा: पांच रुपये । एक और टुकड़े पर तीन रुपये मूल्य बताया ।

इस तरह उसने साड़ी को तार-तार कर दिया । अब उसका मूल्य ? पूछने पर वल्लूवर ने कहा: “बेटे । यह साड़ी तो किसी काम की नहीं रह गयी ।” ऐसे सहनशील थे सन्त तिरूवल्लूवर । लड़का उनके पैरों पर गिर

पड़ा ।

तिरूवल्लूवर ने उसे अपने हृदय से लगाकर कहा: ”बेटे ! एक साड़ी नष्ट हो गयी, तो दूसरी बन सकती है, किन्तु यदि तुम्हारा जीवन बुरी आदतों की वजह से नष्ट होता है, तो क्या वह पुन: मिल सकता है ?” इस घटना ने उस बिगड़ैल लड़के का हृदय ऐसा परिवर्तित किया कि उसके पिता जो कार्य इतने वर्षो में सारे उपाय करके नहीं कर सके, वह तिरूवल्लूवर ने कर दिखाया ।

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इसके बाद तो वह लड़का तिरुवल्लूवर का भक्त बन गया । उस लड़के का नाम था-एलिलशिंगन । उसका पिता बड़ा धनी और जहाजी कारोबार करने वाला व्यक्ति था । इसके बाद एलिलशिंगन ने अपने पिता के कारोबार को आगे बढ़ाया । वह   जो   भी कार्य करता, तिरूवल्लूवर की सलाह से करता ।

व्यापार में उसने बहुत-सा धन बनाया । वल्युवर की सलाह से उसने वह धन गरीबों, दीन-दुखियों में बांट दिया । यद्यपि उसका खजाना खाली हो गया, किन्तु लोगों के बीच एलिलशिंगन किसी सन्त-महात्मा से कम नहीं था । वल्लुवर ने एक तमिल ग्रंथ की रचना की ।

तमिल भाषा में लिखे गये इस ग्रन्थ को वेद की तरह माना जाता है, जिसमें 1330 कविताएं तथा 133 अध्याय हैं । गागर में सागर भरने वाले इस ग्रन्थ को ”कुरल” कहते हैं । उनके इस यन्थ का नाम “तिरुकुरल” पड़ गया, जिसका अर्थ है: पवित्र कुरल ग्रन्थ । इस ग्रन्ध के बाद वल्लूवर का नाम तिरूवल्लूवर पड़ गया ।

इस बेजोड़  ग्रन्थ का आज कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है । यह ग्रन्थ तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक पृष्ठभूमि का यथार्थ चित्रण करने के साथ-साथ लोगों को जीवन के प्रति, उनके कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहने की प्रेरणा देता है ।

4. उपसंहार:

तिरूवल्लूवर का जीवन मानवीय आदर्शो के लिए सगर्पित जीवन था । अपने चारित्रिक आदर्शो के माध्यम से उन्होंने समाज को जो दर्शन दिया, वह आज भी प्रासंगिक है ।

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