पद्मकर की जीवनी | Biography of Padmakar in Hindi!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन वृत्त एवं कृतित्व ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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पद्माकर एक उत्कृष्ट प्रतिभासम्पन्न कवि मान जाते हैं । वे कविता में दृश्य-योजना एवं शब्द-योजना के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । उनकी स्वच्छ एवं उदात्त कल्पना ने कविता की वृत्ति को आनन्द और उल्लास से भर दिया है । शब्द चयन में पद्माकर जैसा शब्द-शिल्पी रीतिकाल में बिहारी के बाद नहीं मिलतों है । वे भक्ति, नीति, श्रुंगार एवं वैराग्य के कवि रहे हैं ।

2. जीवन वृत्त एवं कृतित्व:

पद्माकर तैलंग ब्राह्मण थे । उनका जन्म बांदा नामक स्थान में संवत 1810 में हुआ । उनके पिता का नाम मोहनलाल भट्ट था । कविता करने की प्रेरणा उन्हें बचपन से ही मिली थी । वे बहुत सारे राजाओं के आश्रय में रहे हैं । सितारा के महाराजन ने उनकी कविता पर प्रसन्न होकर उन्हें 10 गांव, 1 लाख रुपये तथा एक हाथी पुरस्कार स्वरूप दिया था ।

जयपुर, उदयपुर, ग्वालियर के राजाओं ने भी उनका काफी सम्मान किया था । कहा जाता है कि जीवन के अन्तिम समय में उन्हें कुष्ठ हो गया था । तब गंगा के किनारे रहकर उन्होंने ”गंगा लहरी” की रचना की । ईश्वर भक्ति के कारण उनका यह रोग  स्वयं   ही ठीक हो गया ।

साहित्य साधना एवं ईश्वर भक्ति में लीन रहते हुए उन्होंने 80 वर्ष की आयु में 1890 में अपना जीवन त्याग दिया । उनके लिखे गये  ग्रन्थों   में प्रमुख हैं-जगत् विनोद, हिम्मत बहादुर, विरुदावलि, पद्‌माभरण, आलीजाह प्रकाश, हितोपदेश, रामरसायन, गंगालहरी, प्रबोध पचासा आदि । जाए विनोद उनका रस  ग्रन्थ   है ।

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यह कवित्व के गुणों से ओत-प्रोत है । उसमें नवरसों का सुन्दर परिपाक हुआ है । रसराज शृंगार का विशद् वर्णन है । अंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का सरस एवं सजीव वर्णन उन्होंने किया है । पद्‌माभरण दोहा और चौपाइयों से निर्मित अलंकार यन्थ है । उनकी ब्रजभाषा अत्यन्त स्निग्ध व कोमल है ।  अनुप्रास, उपमा, रूपक की छटा उनके काव्य में देखने को मिलती है । बसन्त ऋतु वर्णन में अनुप्रास की छटा दर्शनीय है:

बसन्त की सर्वव्यापकता का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है:

कूलन में केलिन, कछारन में कुंजन में क्यारिन में

कलीन-कलीन में बगरो बसन्त है ।

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द्वार में दिसान में, वेलिन में नवेलिन में

देखो ! दीप-दीपन में दीपत बसन्त है ।।

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इस प्रकार वेलिन से नवेलिन तक पहुंचना उनकी काव्य-प्रतिभा का ही चमत्कार है । इस तरह भक्ति, नीति एवं वैराग्य के पदों में शब्द एवं अर्थ का चमत्कार भी उनकी काव्य-कला की विशेषता है । भाषा के सम्बन्ध में उनकी काव्य-प्रतिभा की प्रशंसा करते हुए आचार्य शुक्ल ने लिखा है:

”भाषा की सब शक्तियों पर कवि का अधिकार दिखाई पड़ता है । उनकी भाषा स्निग्ध, मधुर पदावली के साथ एक सजीव भाव-भरी प्रेम-मूर्ति खड़ी करती है, तो कहीं भाव या रस की धारा बहती है । कहीं अनुप्रासों की ललित झंकार उत्पन्न करती है, तो कहीं वीर दर्प से शुरू-वाहिनी के समान अकड़ती और कड़कती हुई चलती है, तो कहीं शान्त सरोवर के समान स्थिर और गम्भीर होकर मनुष्य जीवन की विश्रांति छाया दिखाती है ।

3. उपसंहार:

रीतिकाल के जितने भी कवि हुए है, उनमें कवि पद्माकर को अपने आश्रयदाताओं से काफी सम्मान मिला है । यह सब उनकी काव्य-प्रतिभा  एवं   सहृदयता के कारण उन्हें प्राप्त हुआ । जीवन के अन्तिम समय में भक्ति-मार्ग की ओर प्रेरित इस कवि ने अत्यन्त शीघ्रता के साथ राजमहलों के विलासितापूर्ण जीवन को भुला दिया था ईश्वर के सच्चे साधक बनकर मोक्ष की ओर प्रवृत हो गये थे ।

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