गिरिजा कुमार माथुर की जीवनी | Biography of Girija Kumar Mathur in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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बहुमुखी प्रतिभा एवं काव्यधारा के विशिष्ट कवि गिरिजाकुमार माथुर ने छायावादी संस्कारों से प्रेम और सौन्दर्य की बारीकियां लेकर अपनी काव्य-यात्रा की शुरुआत की । प्रगतिवाद और प्रयोगवाद के आधुनिक भाव बोध, रागात्मक, ऐतिहासिक मूल्यों व बोध के बीच उनकी कविता में यथार्थवाद का स्तर भी कुछ उभरकर सामने आया है ।

माथुरजी की कविता सतही एवं कोरी भावुकता से युक्त न होकर, वर्तमान वैज्ञानिक उपलब्धियों और सांस्कृतिक परम्परा से जुड़कर अनुभूति एवं सौन्दर्य दृष्टि से सम्पन्न है ।

2. जीवन परिचय एवं रचनाकर्म:

कवि गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त सन् 1919 को गुना जिले के पछार {अब अशोक नगर} में म॰प्र॰ के कस्बे में हुआ था । घर का वातावरण शैक्षिक होने के कारण उनको विरासत में धार्मिक पुस्तकें आदि बचपन से ही पढ़ने को मिलीं । उन्होंने 12 वर्ष की अवस्था में मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण कर ली ।

तत्पश्चात् गवर्नमेन्ट इन्टरमीडियेट कॉलेज झांसी से 1934 में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की । उनके काव्य जीवन की शुरुआत बचपन से ही हो गयी थी । ग्वालियर से बी॰ए॰ करने के बाद उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी तथा एल॰एल॰बी॰ की परीक्षा उत्तीर्ण की ।

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साहित्यिक कर्म में लीन रहते हुए भी वे आकाशवाणी दिल्ली में नौकरी करने लग गये । संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्गत न्यूयार्क में हिन्दी पदाधिकारी के रूप में वे अमेरिका गये । वहां से लौटने के बाद वे आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों में उपनिदेशक, फिर निदेशक के रूप में कार्य करते रहे ।

दिल्ली दूरदर्शन से वरिष्ठ उपमहानिदेशक के पद से वे सेवानिवृत्त हुए । उन्होंने त्रैमासिक पत्रिका “गगनांचल” का भी सम्पादन किया । सन् 1937 में उन्होंने विधिवत कविताएं लिखीं । “तारसप्तक” 1943 में उनकी रचनाओं को भी शामिल किया गया ।

उनकी रचनाओं में सामाजिक परिवेश के साथ उभरते द्वन्द्व और तनाव का स्पष्ट प्रभाव दिखता है । उनकी रचनाओं में कविता संग्रह ”मंजीर”, ”नाश और निर्माण”, ”धूप के धान”, ”शिलालेख ये पंख चमकीले”, ”जो बन्ध न सका”, ”भीतरी नदी की यात्रा”, ”साक्षी रहे वर्तमान”, “कल्पान्तर”, ”मैं वक्त के सामने हूं”, ”मुझे और अभी कहना है”, “पृथ्वीकल्प” हैं ।

नाटक: ”जनम कैद” । आलोचना तथा नयी कविता: “सीमाएं और सम्भावनाएं” । “तारसप्तक” के अन्तर्मन उनकी 12 कविताओं में अत्यन्त रोचक, मार्मिक वातावरण की सृष्टि की । इसके 20 वर्ष बाद उनकी 9 रचनाएं वक्तव्य सहित छपीं । इसमें प्रकृति की रंगीनी, उदासी, सौन्दर्य पिपासा, प्रेमविषयक स्मृतियां, अकेलेपन के अनुभव व संवेदनाएं  गूँथी हैं ।

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उनकी कविताओं की एक बानगी देखिये:

गोरे कपोलों पै हौले से आ जाती,

पहिले ही पहिले के रंगीन चुम्बन की सी ललाई ।

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चूड़ी का टुकड़ा, शीर्षक कविता में कितनी मादकता है, सरसता है:

एक सिल्क के कुर्ते के सिलवट में लिपटा,

गिरा रेशमी- चूड़ी का छोटा सा टुकड़ा,

उन गोरी कलाइयों में जो तुम पहने थी

रंग भरी मिलन रात में ।

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गिरिजाकुमार माथुर की कविताओं में चित्र और रंगों की योजना बड़ी सुन्दर है ।

सेमर की गरमीली हल्की रूई समान / जाड़ों की

धूप खिली नीचे आसमान में / झाड़ी-झुरमुटों से उठे

लम्बे मैदानों पर कांपकर चलती समीर हेमंत की ।

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इस तरह उनकी कविता की भाषा, सरल-सहज होते हुए भी आकर्षक व प्रवाहमयी  है । अलंकारों का प्रयोग सायास हुआ है । प्रसाद एवं माधुर्य रस का प्रभाव विशेष रूप से हुआ है ।

3. उपसंहार:

माथुरजी प्रयोगवाद एवं प्रगतिवादी विचारधारा के ऐसे कवि रहे हैं, जिनके शब्दों में कसाव व भाषा में नये बिम्बों ध्वनियों का प्रयोग है । प्रेम का नया रागात्मक व उज्जल स्वरूप इसमें मिलता है । उनकी कविताओं में स्वर मिलता है । माथुरजी की कविताओं में मानवीयता का उद्‌घोष है । वे प्रयोगधर्मी कवि रहे हैं ।

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