विकास बैंकों की शीर्ष 13 विशेषताएं. Read this article in Hindi to learn about the top thirteen features of development banks. The features are:- 1. विकासोन्मुख दृष्टिकोण (Development Approach) 2. नव-प्रवर्तक बैंकिंग (Innovative Banking) 3. मध्यम एवं दीर्घकालीन ऋण (Medium and Long Term Loans) 4. तकनीकी सहायता (Technological Assistance) and a Few Others.

विकास बैंकों की विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर दी गई परिभाषाओं के आधार पर, उनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं:

Feature # 1. विकासोन्मुख दृष्टिकोण (Development Approach):

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, विकस बैंक की प्रमुख विशेषता उनका विकसोन्मुख दृष्टिकोण का होना है । इन बैंकों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य देश के औद्योगिक ढाँचे का विकस करना होता है । यही कारण है कि ये बैंक उन्हीं परियोजनाओं एवं प्रोजेक्टस को वित्तीय एवं अन्य सुविधाएँ उपलब्ध करती है, जो देश के औद्योगिक विकास के लिये महत्वपूर्ण होते है ।

विकास बैंक नवीन परियोजनाओं के साथ-साथ विद्यमान परियोजनाओं के विस्तार हेतु भी वित्तीय सुविधाएं उपलब्ध करती है । ये बैंक ऋणों की स्वीकृति के पूर्व परियोजना से सम्बन्धित प्रस्तावों का समुचित अध्ययन करती है और आर्थिक आत्मनिर्भरता का पता लगाने का प्रयास करती हैं ।

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इन बैंकों के विशेषज्ञ परियोजना से सम्बन्धित प्रस्तावों एवं उनके उत्पादनों माँग-पूर्ति विश्लेषण, आदा-प्रदा विश्लेषण, वित्तीय यथार्थता, तकनीकी उपलब्धता आदि विभिन्न दृष्टिकोणों से अध्ययन करने के बाद ही ऋण उपलब्ध करती है । प्राथमिकता वाले उद्योगों तथा पिछड़े क्षेत्रों में लगाये जाने वाले उद्योगों को विशेष महत्व दिया जाता है । उद्देश्य यह रहता है कि ऐसे उद्योगों के विकास से सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी ।

Feature # 2. नव-प्रवर्तक बैंकिंग (Innovative Banking):

विकस बैंक इस अर्थ में नवप्रवर्तक है कि वे देश के लिए आवश्यक उद्योगों, उन्नत तकनीकी मूलक उद्योगों, अर्थव्यवस्था के लिए नए-नए क्षेत्रों ये खोजने, निर्यात प्रोत्साहन एवं आयात प्रतिस्थापन से सम्बन्धित परियोजनाओं को विशेष महत्व प्रदान करती हैं ।

इससे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था गतिशील होती है और विकास दर में वृद्धि होती है । आधुनिक युग में तकनीकी उन्नयन का विशेष महत्व है, फलतः विकास बैंक ऋण देने से पूर्व समुचित अपनाई जाने वाली तकनीकी पर विशेष ध्यान देती हैं । तकनीकी के आयात हेतु विदेशी मुद्रा में भी विकास बैंक ऋण उपलब्ध कराते हैं ।

Feature # 3. मध्यम एवं दीर्घकालीन ऋण (Medium and Long Term Loans):

बड़ी परियोजनाओं में माध्यम एवं दीर्घकालीन ऋणों का विशेष महत्व होता है । करण यह है कि इन परियोजनाओं में बड़ी मात्रा में पूँजी का निवेश होता है । अल्पकालीन ऋण तो सरलता से व्यापारिक बैंकों से प्राप्त हो जाते हैं, किन्तु दीर्घ एवं मध्यकालीन पूँजी की व्यवस्था सना एक समस्या रहती है ।

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शेयर बाजार के विकस के पूर्व यह पूँजी केवल विकस बैंकों के द्वार ही उपलब्ध कतई जाती है । वर्तमान में दीर्घकालीन पूँजी का एक बड़ा भाग शेयरों एवं डिबेंचरों के द्वारा प्राप्त कर लिया जाता है । दीर्घकालीन पूँजी मुख्यतः मशीनों एवं तकनीकी के लिये आवश्यक होती है । इसके लिये विदेशी पूंजी की भी आवश्यकता होती है ।

विकास बैंकें इस हेतु विदेशी मुद्रा में भी ऋण उपलब्ध कराती हैं । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि विकास बैंक 10 वर्ष से भी अधिक अवधि के ऋण उपलब्ध कराती है ।

Feature # 4. तकनीकी सहायता (Technological Assistance):

कम लागत पर गुणवत्ता वाला उत्पादन करना न केवल आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है, वरन् उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिये भी आवश्यक है । आधुनिक युग प्रतिस्पर्धा का है और इसमें वे ही उद्योग पनपते हैं या विकसित होते हैं, जिनमें उन्नत तकनीकी को अपनाया गया हो ।

विकास बैंक न केवल वित्तीय सहायता प्रदान करती है, वरन् तकनीकी सुझाव भी देती है । आवश्यकता के समय विदेशों से मशीनें एवं तकनीकी शान उपलब्ध कसने में भी सहायता देती है ।

Feature # 5. अन्तराल पूर्ति (Gap Fillers):

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अन्तराल पूर्ति से आशय उस वित्तीय व्यवस्था से है । जब परियोजना या उद्योग के लिये किसी अन्य स्रोत से ऋण प्राप्त न हो । जब सामान्य वित्तीय स्रोतों से ऋण प्राप्त हो जाता है, तब ऐसी परियोजना के लिए विकास बैंक ऋण उपलब्ध नहीं कराती ।

इस सन्दर्भ में प्रो डायमण्ड विलियम (Prof. Diamond William) ने लिखा है – ”विकास बैंकों को अन्तराल पूर्ति वाली व्यवस्था कहा जाता है । जब सामान्य या विशिष्ट परियोजनाओं के लिए सामान्य वित्तीय संस्थाओं से साख प्राप्त नहीं होती, ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए विकास बैंकिंग प्रणाली का विकास हुआ है ।” इस प्रकार स्पष्ट है कि विकास बैंकों की स्थापना सामान्य वित्तीय संस्थाओं से अलग उद्देश्य की प्राप्ति हेतु की गई है ।

Feature # 6. उद्यमिता का विकास (Development of Enterprises):

कोई भी परियोजना या उद्योग जोखिम रहित नहीं होता । किसी न किसी अंश में जोखिम विद्यमान रहती है । विकास बैंक औद्योगिक साहस के सृजन तथा जोखिम उठाने की क्षमता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है । इससे औद्योगिक विकास में गति आती है ।

विकास बैंक प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने, उसकी आर्थिक,वित्तीय एवं तकनीकी दृष्टिकोणों से जाँच करने, लागत को कम रखने प्रबन्धकीय व्यवस्था को स्तरीय बनाने आदि में सहायता देती है । इससे उद्यमी में विश्वास बढ़ता है और वे जोखिम उठाने हेतु तत्पर हो जाते हैं । अतः विकास बैंकों का एक दायित्व उद्यमियों का विकास एवं विस्तार करना भी है ।

Feature # 7. सरकार की भूमिका (Role of the Government):

विकास बैंकिंग में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । सामान्यतः विकास बैंकों की स्थापना लोकसभा से पारित विशेष अधिनियमों के द्वारा होती है । सरकार इनकी अंश पूँजी में योगदान देती है तथा अन्य प्रकार से भी वित्तीय सहायता प्रदान करती है । सरकार इन्हें अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण भी देती है । इन बैंकों द्वारा जति किए जाने वाले बाँड़ों की सरकार गारन्टी भी लेती है ।

इन बैंकों के अध्यक्षों की नियुक्ति भी सरकार के द्वारा की जाती है । विशेष स्थितियों में सरकार इन्हें विशेष वित्तीय सहायता भी देती है । उदाहरण के लिए यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया को यू. एस. 64 योजना में हानि होने पर सरकार ने विशेष वित्तीय सहायता दी थी ।

Feature # 8. बैंक-योग्य परियोजनाओं के लिये सहायता (Assistance to Bankable Projects):

बैंकर के रूप में विकास बैंकों से यह आशा की जाती है कि वे उन्हीं परियोजनाओं को वित्तीय सहायता दें जो बैंक योग्य है । बैंक-योग्य परियोजनाओं से आशय यह है कि ऋण देने के लिए बैंकिंग सिद्धान्तों का पालन किया जाना चाहिए । कारण यह है कि ऋण देने के साथ-साथ विकास बैंकों को दिए गए ऋणों की वसूली भी करना होती है । अतः बैंक ऋण देने से पूर्व प्रस्तावों की पूर्णरूप से जाँच की जाती है और आर्थिक दृष्टि योग्य प्रस्तावों पर ही ऋण दिया जाता है ।

Feature # 9. वित्तीय स्रोत (Financial Resources):

विकास बैंक के अपने वित्तीय स्रोत होते हैं जिनके द्वार वे विभिन्न उद्योगों को ऋण उपलब्ध कराते हैं ।

सामान्यतः विकास बैंकों के वित्तीय स्रोत होते हैं:

(i) अंश पूंजी,

(ii) बांड जारी करना,

(iii) सरकार से ऋण,

(iv) विदेशी संस्थाओं से ऋण,

(v) व्यापारिक कम्पनी की जमाएँ,

(vi) विनियोग प्रपत्रों का विक्रय, और

(vii) ऋणों का पुनर्वित्त आदि ।

सार्वजनिक क्षेत्र की विकास बैंकों में सरकार की अंश पूंजी में भागीदारी शत-प्रतिशत रहती है । इसके विपरीत निजी क्षेत्र के म्यूचुअल फण्ड्स (Mutual Funds) में अंश पूँजी व्यापारिक कम्पनियों की होती है । सन् 1995-96 से विकास बैंकों के वित्तीय स्रोतों में परिवर्तन हुआ है और अब ये संस्थाएँ अपने ऋण-पत्रों को पूँजी बाजार में बेचकर बड़ी मात्रा में धन राशि एकत्र करती है ।

Feature # 10. वैधानिक स्थिति (Statutory Status):

सार्वजनिक क्षेत्र की विकास बैंकों, जैसे IDBI, IFCI और ICICI की स्थापना संसद के अधिनियमों के अन्तर्गत हुई है, किन्तु अनेक विकास बैंकिंग संस्थाओं की स्थापना कम्पनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत हुई है । इनमें अनेक निजी क्षेत्र के म्यूच्युअल फण्ड भी है ।

वैज्ञानिक स्थिति अलग होने के कारण इन संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण भी अलग-अलग संस्थाओं द्वारा किया जाता है । जहाँ कुछ संस्थाओं पर रिजर्व बैंक का नियंत्रण होता है, वहीं कुछ सेबी (SEBI) के नियंत्रण में रहती है । इसके साथ ही कुछ संस्थाओं पर कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत कार्यवाही होती है ।

Feature # 11. निवेश संस्थाएं (Investment Institutions):

विकास बैंकिंग संस्थाओं के साथ-साथ अनेक देशों में निवेश संस्थाओं की भी स्थापना हुई । निवेश संस्थाओं का महत्व अमरीका में सबसे अधिक है । भारत में भी जीवन बीमा निगम (LIC), सामान्य बीमा निगम (GIC) एवं यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया (UTI) आदि संस्थाओं को निवेश संस्थाएँ माना जाता है ।

इन संस्थाओं का मूल उद्देश्य जन-साधारण की बचतों को सुरक्षित एवं लाभदायक प्रतिभूतियों में निवेश करना है । ये संस्थाएँ सरकारी बांड के अलावा सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियों के डिबेंचरों एवं शेयर्स में भी निवेश करती हैं ।

Feature # 12. विकास बैंकिंग संस्थाओं तथा व्यापारिक बैंकों में अन्तर (Distinction between Development Banking and Commercial Banks):

यद्यपि दोनों प्रकार की संस्थाएँ वित्तीय क्षेत्र में कार्य करती हैं, तथापि दोनों प्रकार की संस्थाओं में अन्तर होता है । व्यापारिक बैंक साख का निर्माण करते है जिससे मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होती है, जबकि विकास बैंक ऐसा नहीं करती । व्यापारिक बैंकों को अपने दायित्वों को निपटाने के लिए कुल जमाओं का एक निश्चित प्रतिशत नकद-कोषों के लिये रखना पड़ता है, जबकि विकास बैंक नकद कोष बहुत कम मात्रा में रखती हैं ।

व्यापारिक बैंक मुख्यतः अल्पकालीन ऋण देते हैं तथा बहुत कम स्थितियों में मध्यावधि ऋण भी प्रदान करते हैं, जबकि विकास बैंक मुख्यतः मध्यावधि एवं दीर्घावधि ऋण ही उपलब्ध कराते हैं ।

Feature # 13. लाभ जमाना उद्देश्य नहीं (No Profit Motive):

सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित अधिकांश विकस बैंकों का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है । इन संस्थाओं द्वारा निर्धारित ब्याज की दरें इस प्रकार से निर्धारित की जाती है कि केवल व्यापारिक लागत को वसूल किया जा सके ।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारत जैसे विकासशील देशों में विकास लंका से सम्बन्धित संस्थाओं का विशेष महत्व है । इन संस्थाओं के माध्यम से ही देश में औद्योगिक विविधता आई है तथा पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगिकरण को बल मिला है । आर्थिक क्रियाओं को गतिशील बनाने एवं पूँजी बाजार को नेतृत्व प्रदान करने में भी इन संस्थाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।