विकास बैंकों पर निबंध | Essay on Development Banks in Hindi.

विकास बैंकों पर निबंध  | Essay on Development Banks


Essay # 1. विकास बैंक का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Development Banks):

विकास बैंकिंग को किसी एक परिभाषा के द्वारा सीमित करना कठिन कार्य है । वास्तविकता यह है किये ऐसी संस्थाएँ हैं जो विशेष परियोजनाओं, कार्यक्रमों एवं प्रोजेक्टस् आदि के लिए मध्यावधि एवं दीर्घावधि ऋणों की पूर्ति करते हैं । इन संस्थाओं का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के आधार पर औद्योगिक संरचना का विस्तार करना है ।

अतः विकास बैंक देश में पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए उद्यमियों को विशेष तहत एवं रियायती दरों पर साख उपलब्ध कराते हैं । स्वतंत्रता के बाद से ही उद्योगों के विकास में इन बैंकों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है ।

विकास बैंकों को विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है:

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1. प्रो. डायमण्ड विलियम (Prof. Diamond William) – विकास बैंक एक ऐसी संस्था है जो निजी क्षेत्र में उद्यमों को प्रोत्साहित करती है और वित्त उपलब्ध कराती है ।

2. प्रो. हूक (Prof. J.T.D. Houk) – ”एक विकास बैंक को दो कार्य करना चाहिए यथा-बैंकिंग कार्य और विकास कार्य । बैंकर के रूप में विकास बैंक से यह आशा की जाती है कि वे उन परियोजनाओं का वित्तीय प्रबन्ध करें जो कि बैंकर्स वित्त योग्य (Bankable) ।”

3. प्रो. बोस्की शीर्ले (Prof. Boskey Shirly) – ”विकस बैंक एक सार्वजनिक या व्यक्तिगत संस्था है जो कि अपने एक प्रमुख कार्य के रूप में औद्योगिक परियोजनाओं में मध्यम या दीर्घकालीन विनियोजन करते है ।”

4. प्रो. केनी जोसेफ (Prof. Kene Joseph)- ”विकास बैंक एक वित्तीय मध्यस्थ है जो बैंक योग्य आर्थिक विकास की परियोजनाओं हेतु मध्यम एवं दीर्घकालीन ऋण और उससे सम्बन्धित सेवाएं उपलब्ध करता है ।”

ADVERTISEMENTS:

5. प्रो. सी.एस.बेंकट राव (Prof. C.S. Venkat Rao)- ”विकस बैंक के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की वित्तीय संस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है जो उद्योग या कृषि को मध्यम एवं दीर्घकालीन वित्त प्रदान करती है और परियोजनाओं के निर्णय व सुधार के लिए तकनीकी व प्रबन्धकीय परामर्श देती हैं ।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि विकास बैंकिंग से आशय उन वित्तीय संस्थाओं से है जो विशेष औद्योगिक एवं अन्य परियोजनाओं को मध्यम एवं दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराने के साथ-साथ उन्हें अन्य सुविधाएँ भी उपलब्ध कराती है जिससे कि परियोजनाएँ आर्थिक दृष्टि से सबल बन सकें ।

Essay # 2. भारत में विकास बैंकों की संरचना (Structure of Development Banks in India):

भारत में विकास बैंकों की संरचना, प्रबन्ध एवं कार्यों के आधार पर उनका वर्गीकरण किया जाता है ।

यथा:

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(i) औद्योगिक विकास बैंक,

(ii) निवेश से सम्बधित संस्थाएँ,

(iii) आयात-निर्यात व्यापार से सम्बन्धित संस्थाएँ,

(iv) कृषि विकास की संस्थाएँ,

(v) आवास से सम्बन्धित संस्थाएँ आदि ।

इनका विवरण निम्न प्रकार है:

(i) औद्योगिक विकास से सम्बन्धित संस्थाएँ:

सार्वजनिक गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं की स्थापना औद्योगिक विकास के लिये ही की गई है । इन संस्थाओं द्वारा विभिन्न प्रकार के उद्योगों (बड़े, मध्यम एवं लघु) के लिये मुख्यतः मध्यावधि एवं दीर्घावधि के लिए ऋण दिए जाते है । प्रारम्भ से ही देश के औद्योगिक विकास में इन संस्थाओं का विशेष महत्व रहा है ।

इस वर्ग में मुख्यतः निम्न संस्थाओं ये रखा जाता है:

1. भारत का औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank of India – IDBI)

2. भारत का औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (Industrial Credit and Investment Corporation of India – ICICI)

3. भारत का औद्योगिक वित्त निगम (Industrial Finance Corporation of India – IFCI)

4. भारत का औद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक (Industrial Reconstruction Bank of India – IRBI)

5. राज्य वित्त निगम (State Financial Corporation – SFC)

6. राज्य औद्योगिक विकास निगम (State Industrial Development Corporation – SIDC)

7. भारत का लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India – SIDBI)

(ii) निवेश से सम्बन्धित संस्थाएं:

भारत में अनेक ऐसी संस्थाएँ हैं, जो विभिन्न बचत उपकरणों के द्वारा धन राशि एकत्रित करती है और संकलित राशि का विभिन्न बांडों एवं अन्य प्रतिभूतियों में निवेश करती हैं ।

निवेश से सम्बन्धित प्रमुख संस्थाएँ निम्न प्रकार हैं:

1. भारत का जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India – LIC)

2. भारत का सामान्य बीमा निगम (General Insurance Corporation of India – GIS)

3. भारत का यूनिट ट्रस्ट (Unit Trust of India – UTI)

(iii) आयात-निर्यात व्यापार से सम्बन्धित संस्थाएँ:

भारतीय अर्थव्यवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विशेष महत्व है । इससे ऐसी संस्थाओं की आवश्यकता को बल मिला जो देश के आयात-निर्यात व्यापार हेतु वित्त सुविधाएँ उपलब्ध करा सकें । ये संस्थाएँ मुख्यतः अल्पकालीन ऋण उपलब्ध करती हैं ।

ये संस्थाएँ निम्न प्रकार हैं:

1. भारत का निर्यात-आयात बैंक (Export-Import Bank of India – EXIM)

2. निर्यात साख एवं गारण्टी निगम (Export Credit & Guarantee Corporation – ECGC)

(iv) कृषि विकास की संस्थाएं:

देश में पिछले कुछ वर्षों से ऐसी संस्थाओं की स्थापना हुई है जो कृषि विकास के ऋण देती है या पुनर्वित्त सुविधाएँ प्रदान करती है ।

ये संस्थाएँ निम्न प्रकार हैं:

1. कृषि एवं ग्रामीण विकस का राष्ट्रीय बैंक (National Bank of Agriculture and Rural Development – NABARD)

2. कृषि वित्त निगम (Agricultural Finance Corporation – AFC)

3. भूमि-विकस बैंक (Land Development Bank – LDB)

(v) आवास से सम्बन्धित संस्था:

भारत में बड़े पैमाने पर गृह निर्माण हेतु ऋण उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय आवास बैंक (National Housing Bank) स्थापना की है । यह बैंक सहकारी गृह निर्माण समितियों एवं अन्य गृह निर्माण से सम्बन्धित कार्यों के लिए ऋण उपलब्ध करता है । पुनर्वित्त की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है ।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भारत में अनेक प्रकार की विकास बैंकिंग संस्थाएँ स्थापित हो चुकी है । कई बार एक परियोजना की स्थापना के लिए एक से अधिक संस्थाएँ भी एक साथ ऋण देती है ।

Essay # 3. भारत में विकास बैंकों द्वारा वितरित वित्तीय सहायता (Financial Assistance Distributed by the Development Banks in India):

स्वतंत्रता के पूर्व तक देश में विकस बैंकों की स्थापना पर कोई ध्यान नहीं दिया गया । इस कमी को पूरा करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में केन्द्र एवं राज्यों में अनेक विकास बैंकों की स्थापना की गई । सर्व प्रथम सन् 1948 में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (Industrial Finance Corporation of India) की स्थापना 10 करोड़ रु. की अधिकृत पूँजी से की गई ।

तदुपरान्त लघु एवं मध्यम आकार के उद्योगों कई वित्त सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करने के लिये भारत सरकार ने सर 1951 में राज्य वित्त निगम अधिनियम पारित किया । इस अधिनियम के अन्तर्गत सभी राज्यों में इस प्रकार के निगम स्थापित किए गए है और इनकी अधिकृत पूँजी 50 लाख रु. से 5 करोड़ रु. तक की है ।

इसी क्रम में सन् 1955 में भारतीय औद्योगिक ऋण एवं निवेश निगम (ICICI) की स्थापना भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत की गई । इस निगम का उद्देश्य नए उद्योगों को बढ़ावा देना, विद्यमान उद्योगों के विस्तार एवं आधुनिकीकरण में सहायता देना था ।

दीर्घकालीन एवं मध्यकालीन वित्त प्रदान करने तथा औद्योगिक वित्त-व्यवस्था से सम्बन्धित सभी अभिकरणों की गतिविधियों में तालमेल स्थापित करने के उद्देश्य से सन् 1971 में भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank of India) की स्थापना की गई ।

स्थापना के समय इस की प्रदत्त पूँजी 385 करोड़ रु. थी । इस क्षेत्र में एक अन्य उल्लेखनीय संस्था यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया (Unit Trust of India) की स्थापना भी सन् 1964 में 5 करोड़ रु. की प्रारम्भिक पूँजी से की गई । औद्योगिक क्षेत्र में बीमार और बन्द इकाइयों के पुनर्निर्माण एवं पुन स्थापना में सहायता देने के उद्देश्य से कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत सन् 1971 में भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण (Industrial Reconstruction Bank of India) की स्थापना की गई ।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि देश में औद्योगिक विकास को गति देने और उनके वित्त प्रबन्धन में सहयोग देने के उद्देश्य से स्वतंत्रता के बाद ही अनेक विकास बैंक की स्थापना की गई ।

भारत में विकास बैंक के रूप में सर्वाधिक ऋण भारतीय औद्योगिक विकास बैंक ने प्रदान किये हैं । 1991-92 में दिये गये ऋणों की राशि 5768.8 करोड़ रु. थी, जो बढ़कर 1995-96 में 10,720.8 करोड़ रु. तथा 2001-02 में 11,157.9 करोड़ रु. हो गई । इसी क्रम में भारतीय औद्योगिक ऋण और निवेश निगम द्वारा वर्ष 1991-92 में 2351.3 करोड़ रु. के ऋण वितरित किए गए थे, जो बढ़कर 1995-96 में 7120.4 करोड़ रु. और 2001-02 में 25,831.0 करोड़ रु. हो गए ।

इसी क्रम में भारतीय जीवन बीमा निगम का तृतीय स्थान है जिसने वर्ष 1991-92 में जहाँ 1022.8 करोड़ रु. के ऋण वितरित किए गए थे बढ़कर वर्ष 1995-96 में 2529.7 करोड़ रु. एवं वर्ष 2001-02 में 8,914.9 करोड़ रु. हो गये । इसी प्रकार भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, एक्जिम बैंक तथा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण बैंक का भी महत्वपूर्ण स्थान है ।


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