देश के आर्थिक विकास में बैंकों की भूमिका | Read this article in Hindi to learn about the top ten roles of banks in economic development of a country. The roles are:- 1. बचतों का एकत्रीकरण (Collection of Savings) 2. पूँजी निर्माण (Capital Formation) 3. सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी (Useful to the Whole Economy) 4. जोखिम का विस्तार (Spread of Risks) and a Few Others.

इस प्रकार बैंकिंग संस्थाएँ अपनी क्रियाशीलता एवं सक्रियता से आर्थिक क्रियाओं की वित्त व्यवस्था करती है और परिणामस्वरूप चहुँमुखी विकास को गति मिलती है ।

आर्थिक विकास में बैंकिंग संस्थाओं के योगदान एवं महत्व को निम्न प्रकार समझा जा सकता है:

1. बचतों का एकत्रीकरण (Collection of Savings):

वित्तीय संस्थाएँ बचतकर्ताओं से उनकी छोटी-छोटी बचतों न संग्रहण करती हैं । इन संस्थाओं का यह कार्य है कि यह लघु बचतों को एकत्रित कर उत्पादक कार्यों में लगाती हैं । इस प्रकार इन संस्थाओं का लघु बचत संग्रहण की दृष्टि से अत्यधिक महत्व है ।

2. पूँजी निर्माण (Capital Formation):

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पूंजी निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य बैंकिंग संस्थाओं के माध्यम से ही सम्भव होता है । ये संस्थाएँ अपने द्वारा संकलित कोषों को उद्यमकर्ताओं को उपलब्ध कराती हैं, जिससे पूँजी का निर्माण होता है । विकासशील एवं अल्पविकसित देशों में इन संस्थाओं की विशेष भूमिका होती है, क्योंकि इन देशों में वित्तीय बाजार का समुचित विकस नहीं होता तथा बचत दर भी काफी नीची रहती है ।

ऐसी स्थिति में बैंकिंग संस्थाएँ लोगों में बैंकिंग आदतों का विकास करती हैं और बचतों के प्रवाह को उत्पादक कार्यों की ओर प्रोत्साहित करती हैं जिससे पूँजी निर्माण की दर ऊँची उठती है ।

3. सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी (Useful to the Whole Economy):

बैंकिंग संस्थाएँ वित्तीय बाजार को गतिमान करती हैं तथा उसे सुदृढ़ता एवं स्थिरता प्रदान करती हैं जिससे उत्पादन, उपभोग एवं विनिमय से सम्बन्धित क्रियाओं का विस्तार होता है । रिजर्व बैंक की मौद्रिक एवं साख नीति का सफल क्रियान्वयन भी इन्हीं संस्थाओं पर निर्भर करता है ।

संक्षेप में, बैंकिंग संस्थाओं से जहाँ उत्पादन बढता है, वही उपभोग की मात्रा एवं व्यापार की गतिविधियों का भी विस्तार होता है जिससे सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था लाभान्वित होती है ।

4. जोखिम का विस्तार (Spread of Risks):

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बैंकिंग संस्थाएँ अनेक बचतकर्ताओं से धनराशि संग्रहीत करती हैं तथा उसस उचित विनियोजन करती हैं । संस्थाओं का बड़ा आकार, वृहत स्तरीय विनियोजन विशेषज्ञों की सेवाएँ आदि के कारण इन संस्थाओं द्वारा किये गेए विनियोजन से जोखिम का विस्तार हो जाता है, जिसका लाभ छोटे बचतकर्ताओं को होता है । ये बचतकर्ता भी बड़े पैमाने की बचतों का लाभ उठाते हैं ।

5. नवीन कोषों का सृजन (Creation of New Fund):

बैंकिंग संस्थाएँ अपनी वित्तीय गतिविधियों से नवीन कोषों का सृजन या साख का निर्माण करती है । बैंक अपनी जमा क्रियाओं के माध्यम से मुद्रा का निर्माण करते हैं, अन्य वित्तीय मध्यस्थ संस्थाएँ भी विभिन्न तरीके से अप्रत्यक्ष कोषों का निर्माण करती हैं ।

इस प्रकार बैंकिंग संस्थाएँ वित्तीय बाजार में उपलब्ध वित्तीय कोषों के भण्डार में काफी वृद्धि करती है । यद्यपि इस वृद्धि के फलस्वरूप भौतिक कोषों में तो वृद्धि नहीं होती किन्तु साख निर्माण के द्वारा व्यावसायिक सौदों के निपटारे में वृद्धि अवश्य होती है ।

6. उद्योग एवं व्यापार के लिए उपयोगी (Useful for Industry and Trade):

बैंकिंग संस्थाएँ ऋणों के माध्यम से व्यवसाय व उद्योग की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं । एक ओर ये संस्थाएँ व्यवसाय व उद्योग की बचतों को विनियोग में परिवर्तित करती हैं तो दूसरी ओर उनकी वित्तीय माँग की पूर्ति भी करती हैं । इस प्रकार व्यापार एवं उद्योग के लिए यह अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्य करती है ।

7. वित्तीय बाजार में तरलता (Liquidity in Financial Market):

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बैंकिंग संस्थाएँ बड़ी आसानी से किसी भी परिसम्पत्ति को शीघ्रता से नकद धन राशि में परिवर्तित कर देती है । ये संस्थाएँ वित्तीय बाजार में तरलता बनाए रखने में सहायक होती हैं । बैंक जैसी वित्तीय संस्थाएँ सदा अपनी माँग के अनुरूप तरलता बनाए रखने का प्रयास करती हैं । वित्तीय संस्थाओं द्वारा अल्पकालीन उधार दिया जाता है जो तरलता बनाए रखने में सहायक होता है ।

8. वित्तीय बाजार में स्थिरता (Stability in the Financial Market):

बैंकिंग संस्थाएँ ऐसी विभिन्न परिसम्पत्तियों व देयदाताओं में क्रय-विक्रय करती हैं जिनसे वित्तीय बाजार में मुद्रा की माँग एवं पूर्ति के मध्य समन्वय स्थापित होता है । विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों एवं व्यापारिक बिलों म लेन-देन करके भी बैंकिंग संस्थाएँ वित्त बाजार से स्थिरता प्रदान करती हैं ।

9. सरकार के लिए महत्व (Important for Government):

बैंकिंग संस्थाएँ एक ओर जहाँ केन्द्र सरकार के लिए प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय में मदद करती हैं तो दूसरी ओर राज्य सरकारों की प्रतिभूतियों खरीद कर उनकी वित्तीय सहायता भी करती हैं । इस प्रकार बैंकिंग संस्थाएँ केन्द्र तथा राज्य सरकार के वित्तीय कोषों के प्रवाह में सक्रिय भूमिका निभाती है ।

10. ऋणदाताओं के लिए लाभकारी (Beneficial for Lenders):

बैंकिंग संस्थाएँ ऋणदाताओं का ऋणियों से सम्पर्क कराती हैं । ऋणदाताओं की वित्तीय निधियों को जमाकर उन्हें ब्याज के रूप में प्रतिफल प्रदान करती हैं तथा स्वयं जोखिम लेकर उधारकर्ता को धन राशि ऋण के रूप में देती हैं तथा ब्याज के रूप में प्रतिफल प्राप्त करती हैं ।

इससे बाजार में वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग में विस्तार होता है । इस प्रकार ये संस्थाएँ स्वयं भी लाभान्वित होती हैं तथा ऋणदाताओं को भी लाभान्वित करती है ।

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