ई-कचरा पर निबंध! Here is an essay on ‘E-Waste’ in Hindi language.

इलेक्ट्रॉनिक क्रान्ति ने हमारे जीवन को सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण कर दिया है । विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक आविष्कारों के माध्यम से संचार तन्त्र को विस्तार एवं व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बड़े है ।

कम्प्यूर, रेफ्रिजरेटर एयर कण्डीशन, सेल्यूलर फोन, वाशिंग मशीन, कैमरा आदि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण ने मानव सभ्यता को नया आयाम दिया है, पर आज बढ़ी संख्या में खराब होने बाली इन्हीं इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के अम्बार ने ई-कचरा के रूप में एक नई पर्यावरणीय समस्या को जन्म दिया है ।

यदि ई-कचरे की मात्रा दिनोंदिन इसी तरह से बढ़ती गई, तो आने वाले समय में पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पडेगा । ई-कचरा से तात्पर्य बेकार पड़े वैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से है, जो अपने अ उपयोग के उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं रह जाते । ई-कचरा को ई-अपशिष्ट भी कहा जाता है ।

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काफी मात्रा में भारी धातुएँ एवं अन्य प्रदूषित पदार्थों के विद्यमान रहने के कारण ई-अपशिष्ट के रूप में बेकार पड़े इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अन्य व्यर्थ घरेलू उपकरणों की अपेक्षा मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए कहीं अधिक नुकसानदेह होते हैं ।

इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में उपयोग आने वाले अधिकतर अवयवों में बायोडिग्रेडेबल होने की विशेषता नहीं पाई जाती है और न तो इनमें मिट्टी में धुल-मिल जाने का ही गुण होता है । इलेक्ट्रॉनिक रद्‌दी में लगभग 40: 30: 30 के आधार पर क्रमशः धातु, प्लास्टिक एवं अपवर्तित ऑक्साइड्स होते हैं ।

इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बहुत से रासायनिक तत्वों व यौगिकों से मिलकर बने हो सकते है । उदाहरणार्थ एक सेल्युलर फोन में 40 से भी अधिक तत्व विद्यमान रह सकते है । ई-कचरा में मुख्यतः लोहा, जस्ता, एल्यूमीनियम, सीसा, टिन, चाँदी, सोना, आर्सेनिक, गिलट, क्रोमियम, कैडमियम, पारा, इण्डियम, सैलिनियम, वैनेडियम, रुथेनियम जैसी धातुएँ मिली होती हैं ।

ई-कचरे के उत्पादन में विकासशील देश विकसित देशों से काफी पीछे हैं, किन्तु विकासशील देशों द्वारा ई-कचरे हेतु विकसित देशों को उत्तरदायी ठहराने का भी उन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता । उल्टे रिसाइक्लिंग की आर्थिक व पर्यावरण लागत काफी अधिक होने से संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे राष्ट्र अपने यहाँ का ई-अपशिष्ट किसी-न-किसी प्रकार विकासशील देशों में ही भेज देता है ।

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इतना ही नहीं, अमेरिका द्वारा बड़ी संख्या में मरम्मत किए गए कट्टरों को भी नई शक्ल देकर कम मूल्य पर विकासशील देशों को बेच दिया जाता है । एक शोध के आधार पर किए गए अनुमान के अनुसार, एक दशक में भारत में 130 मिलियन डेस्कटॉप कम्प्यूटर और 900 मिलियन लैपटाप ई-कचरे में रूपान्तरित हो जाएंगे, जिसका निपटान करना आसान न होगा ।

उल्लेखनीय है कि ई-कचरा बायोडिग्रेडेबल नहीं होता और इसमें उपस्थित पारा, सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक व प्लास्टिक प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए अति घातक होते हैं । भारत में ई-कचरा के निपटान हेतु 16 कम्पनियाँ हैं, जिनकी कुल निपटान क्षमता 66 हजार मीट्रिक टन है, किन्तु इन कम्पनियों के द्वारा देश में विद्यमान कुल कचरे के केवल 10% भाग का ही निपटान हो पाता है ।

प्रायः असंगठित क्षेत्र की कम्पनियों द्वारा र्ड-अपशिष्टों के निपटान के दौरान प्रोटोकॉल का पालन भी नहीं किया जाता, फलस्वरूप सतत बिकास में ह्रास होता है । हमारे देश में कम्प्यूटर जीनत ई-कचरा कुल ई-कचरे का लगभग 33% है । उचित दिशा-निर्देश के द्वारा ही इनका रिसाइक्लिंग किया जाना चाहिए ।

हाल ही में किए गए शोध के अनुसार वर्ष 2025 तक एक हजार मिलियन से भी अधिक कम्प्यूटरों की रिसाइक्लिंग की व्यवस्था की आवश्यकता है । भारत सहित अन्य एशियाई देशों में पश्चिमी देशों की तुलना में ई-कचरे के निस्तारण में काफी कम खर्च आता है । इस कारण भी अमेरिका द्वारा पुनर्चक्रण के लिए जमा किए गए ई-कचरे का 50% से 80% भाग एशियाई देशों को भेज दिया जाता है ।

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भारत में ई-कचरे का निपटान प्रायः अनौपचारिक पुनर्चक्रण केन्द्रों में होता है जहाँ पुन: उपयोग या हाथ से तोड़ने हेतु इन्हें अलग-अलग किया जाता है । फिर मूल्यवान धातुओं हेतु चुनकर साफ करने के पश्चात इन्हें अकुशल व विषाक्त उत्पाद व्यवस्था में नष्ट करने की प्रक्रिया से गुजारते हैं ।

उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1997 में ई-कचरे के व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, पर कबाड़ियों के हाथों चोरी-छिपे आज भी बड़ी मात्रा में इसका आयात किया जा रहा है । ई-कचरे की समस्या को कम करने एवं इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु ग्रीन पीसी की अवधारणा पर जोर दिया जाना चाहिए ।

ऐसे उत्पादित कम्प्यूटरों में बिजली खपत कम होगी, साथ ही ये पर्यावरण को उतना नुकसान भी नहीं करेंगे ।  ग्रीन पीसी के निर्माण घटकों में पर्यावरण हितैषी अविषैले सामानों को ही प्रयोग में लाया जाता है । ऐसे कम्प्यूटरों के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए, जिनके अवयवों को रिसाइकिल किया जा सके ।

देश में ई-कचरे को कम करने हेतु कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है । बेकार हुए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को कम्पनियाँ लेने को बाध्य हो ऐसा कानून बनाया जाना चाहिए, पर सरकार के साथ-साथ उपभोक्ताओं की सजगता भी अत्यन्त आवश्यक है । यदि सरकार और जनता दोनों जागरूक हो जाएँ तो निश्चय ही भविष्य में ई-कचरे की समस्या से छुटकारा पाया जा सकेगा ।

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