बेरोजगारी के कारण (उपाय के साथ) | Read this article in Hindi to learn about the causes of unemployment with suggestions to reduce it.

बेरोजगारी के कारण (Causes of Unemployment):

भारत की ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में विस्तृत बेरोजगारी एक जटिल समस्या है जिसके अनेक कारण हैं जिनकी व्याख्या नीचे की गई है:

1. वृद्धि की धीमी गति (Slow Pace of Growth):

बेरोजगारी का मुख्य कारण वृद्धि की धीमी गति है । रोजगार का आकार, प्रायः बहुत सीमा तक, विकास के स्तर पर निर्भर करता है । आयोजन काल के दौरान हमारे देश ने सभी क्षेत्रों में बहुत उन्नति की है । परन्तु वृद्धि की दर, लक्षित दर की तुलना में बहुत नीची है । स्पष्ट है कि बी. हजारी और के. कृष्णामूर्ति ने विकास की प्रारम्भिक स्थिति में वृद्धि और रोजगार के बीच के संघर्ष का सही अवलोकन किया है, जोकि बेरोजगारी का मुख्य कारण है ।

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2. पिछड़ी हुई कृषि (Backward Agriculture):

भारत में अल्प विकास और बेरोजगारी का भयंकर स्वरूप पिछड़ी हुई कृषि के कारण है जिससे कार्यों की प्रकृति भी पिछड़ जाती है । कृषि की विधियां अथवा तकनीकें और संगठन आरम्भिक है तथा पुराने हो चुके हैं । फलतः कृषि की उत्पादकता प्रति श्रमिक अथवा श्रम की प्रति इकाई के पीछे कम है । जनसंख्या का 70% भाग स्पष्ट अथवा अस्पष्ट रूप में कृषि पर निर्भर है ।

भूमि के आकार खर्चीले हैं । संस्थानिक सुधार जैसे भूमि सुधार, चकबन्दी, भूमिधारिता की सीमा और काश्तकारी सुधार राजनीतिक एवं प्रशासनिक अदक्षता और किसानों के असहयोगी व्यवहार के कारण लक्षित उद्देश्य प्राप्त नहीं कर पाये । इन परिस्थितियों में कृषि में अल्प रोजगार का होना प्राकृतिक है ।

3. विस्फोटक संख्या वृद्धि (Explosive Population Growth):

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भारत वर्ष 1951 से विस्फोटक जनसंख्या वृद्धि का अनुभव कर रहा है । वास्तव में, जनसंख्या में 2.5% वार्षिक वृद्धि हुई । इसलिये रोजगार की स्थिति दो प्रकार से विपरीत रूप में प्रभावित हुई, पहले तो श्रम शक्ति की संख्या का बढ़ना और दूसरे पूंजी निर्माण के लिये साधनों का कम होना ।

अनुमान लगाया गया है कि सातवीं योजना में श्रम शक्ति में 390 लाख लोग जोड़े जायेंगे । यह तथ्य इस बात की ओर स्पष्ट सकेत करता है कि देश में जनसंख्या की वृद्धि रोजगार के अवसरों की वृद्धि से अधिक है । दूसरे प्रकरण में, वर्तमान साधन बचतों और निवेश के लिये अपवर्तन का सामना नहीं कर सकते, अतः पूंजी निर्माण का दर नीचा होगा ।

4. अपर्याप्त और त्रुटिपूर्ण रोजगार आयोजन (Inadequate and Defective Employment Planning):

देश में रोजगार के अवसरों की उच्च वृद्धि न होने का एक कारण अपर्याप्त एवं त्रुटिपूर्ण आयोजन भी है । यद्यपि, वर्ष 1951 से देश में आयोजन की प्रक्रिया चालू है परन्तु इसने समस्या के समाधान में कोई योगदान नहीं किया ।

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अन्य शब्दों में, योजनाओं में ऐसी नीतियों को कोई स्थान नहीं दिया गया जैसे रोजगार के अवसर उत्पन्न करने के लिये एक उपकरण के रूप में एक उचित वास्तविक वेतन दर नीति का निर्माण अथवा बड़े रूप में श्रम- गहन तकनीकों का संवर्धन । वास्तव में, ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरेक श्रम की नरकसियन विविधता का प्रयोग करने के लिये बहुत कम प्रयत्न किये गये हैं ।

5. निर्धनता (Poverty):

प्रायः सभी जानते हैं कि एक व्यक्ति बेरोजगार होने के कारण निर्धन होता है । अल्प विकसित देश निर्धनता के कुचक्र में जकड़े होते हैं, जो बदले में, देश में रोजगार के नमूने को बहुत प्रभावित करता है । निर्धन होने के कारण कोई व्यक्ति विद्यमान साधनों का लाभप्रद प्रयोग नहीं कर सकता ।

6. पूंजी गहन तकनीकों पर अधिक बल (More Emphasis on Capital Intensive Techniques):

भारत में पूंजी दुर्लभ है तथा श्रम अतिरेक मात्रा में उपलब्ध है । इन परिस्थितियों में देश को उत्पादन की श्रम-गहन तकनीकों का प्रयोग करना चाहिये । परन्तु जहाँ देखा गया है कि न केवल औद्योगिक क्षेत्र में बल्कि कृषि के क्षेत्र में भी श्रम के स्थान पर पूंजी के प्रयोग की कहीं अधिक वृद्धि हुई है ।

पश्चिमी देशों में जहां पूजी की बड़ी मात्रा में पूर्ति है, वहां स्वचालित यन्त्रों तथा अन्य परिष्कृत साज-सामान का प्रयोग न्यायसंगत है जबकि हमारे देश में अनन्त श्रम शक्ति के कारण यह बेरोजगार लोगों की संख्या को बढ़ाता है । इस आधार पर भगवती समिति ने यन्त्रों के अत्याधिक प्रयोग की सिफारिश नहीं की । इसके अतिरिक्त औद्योगिकीकरण निरन्तर विवेकशीलता तथा वैज्ञानिक आधुनिकीकरण को अपना रहा है । इस प्रक्रिया के लिये मानवीय श्रम शक्ति के स्थान पर यन्त्रों के प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है ।

7. त्रुटिपूर्ण शिक्षा प्रणाली (Defective Education System):

हमारे देश में शिक्षा प्रणाली भी वर्तमान अन्तर-पीढ़ी अन्तराल के लिये कार्य करने में असफल रही है । यह वही प्राचीन प्रणाली है जिसे मैकाले (Macaulay) ने उपनिवेशी काल में आरम्भ किया था । यह केवल साधारण एवं साहित्यिक शिक्षा प्रदान करती है तथा प्रायोगिक विषय-वस्तु रहित है ।

वास्तव में शैक्षिक प्रणाली की अर्थव्यवस्था को मानव शक्ति आवश्यकताओं के अनुकूल बनाने के लिये कोई सच्चे प्रयत्न नहीं किये गये । भारतीय शिक्षा नीति केवल सरकार एवं निजी कम्पनियों के लिये लिपिक और छोटे दर्जे के कार्यकर्ता ही तैयार करती है ।

8. तृतीयक क्षेत्र की धीमी गति (Slow Growth of Tertiary Sector):

तृतीयक क्षेत्र जिसमें वाणिज्य, व्यापार, यातायात आदि सम्मिलित हैं का विस्तार सीमित है, नये श्रम का तो कहना ही क्या, वर्तमान श्रम शक्ति को भी रोजगार उपलब्ध नहीं करवा सकता । फलतः इंजीनियरों, डॉक्टरों, प्रौद्योगिक रूप में प्रशिक्षित व्यक्तियों और अन्य तकनीशियनों के बीच विस्तृत बेरोजगारी है ।

9. कुटीर एवं लघु उद्योगों का श्रम (Decay of Cottage and Small Industries):

परम्परावादी हस्तकला का अतीत बहुत उज्ज्वल था । यह ग्रामीण कारीगरों, दस्तकारों तथा कृषि श्रमिकों के अतिरिक्त अन्य लोगों के लिये रोजगार का मुख्य साधन था । दुर्भाग्य से, गांवों की अधिकांश हस्तकलाएं समाप्त हो गई हैं अथवा क्षीण हो गई । इसका कारण एक तो विदेशी प्रशासकों की अहितकर नीति था, दूसरे इन्हें मशीन द्वारा निर्मित वस्तुओं द्वारा प्रस्तुत कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा । परिणामस्वरूप, इन श्रमिकों का रोजगार समाप्त हो गया ।

10. स्व-रोजगार के कम साधन (Less Means of Self-Employment):

रोजगार के अधिक अवसरों की उत्पत्ति में एक अन्य अडचन यह है कि देश के ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में स्व-रोजगार के उपयुक्त साधन नहीं हैं । अल्प विकसित देशों की भांति, हमारे बहुत से इंजीनियरों, तकनीशियनों तथा अन्य सुयोग्य व्यक्तियों के पास स्वरोजगार के पर्याप्त साधन नहीं हैं । वह सवेतन नौकरी की तलाश में रहते हैं, परन्तु जहां तक कि औद्योगिक क्षेत्र में भी रोजगार के अवसरों के अभाव के कारण वह बेरोजगार रहते हैं ।

11. क्षेत्रीय असमानताएं (Regional Disparities):

देश में क्षेत्रीय असन्तुलन भी बेरोजगारी का एक कारण है । कुछ पिछड़े हुये क्षेत्र, पूर्वापेक्षित संरचना के अत्याधिक अभाव का सामना करते हैं जबकि उन्नत क्षेत्रों के पास पर्याप्त साधन उपलब्ध होते हैं । यह असमानता, पिछड़े क्षेत्रों में, रोजगार के अवसरों की धीमी वृद्धि के लिये मुख्यतः उत्तरदायी है ।

12. त्रुटिपूर्ण सामाजिक प्रणाली (Defective Social System):

देश की त्रुटिपूर्ण सामाजिक व्यवस्था भी समस्या की गम्भीरता को तीव्र करती है । लोग अभी भी अन्धविश्वासी एवं अनपढ़ हैं और अब भी परिवार नियोजन को एक बड़ा पाप मानते हैं, इसलिये जनसंख्या तीव्रता से बढ़ रही है । इस बड़ी हुई जनसंख्या को आहार, वस्त्र तथा रहने का स्थान उपलब्ध करना कठिन हो रहा है । रोजगार की व्यवस्था के सम्बन्ध में सोचना तो दूर की बात है ।

13. फुटकर कारण (Miscellaneous Reasons):

उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त भी और कुछ कारण हैं जो अत्यधिक बेरोजगारी की समस्या के लिये उतने ही उत्तरदायी है । हाल ही के वर्षों में, निर्यात की मांग कम हो गई है जिसने औद्योगिक उत्पादन को बहुत प्रभावित किया है । कारखानों तथा कुछ सरकारी विभागों में छंटनी के कारण बड़ी संख्या में श्रमिक बेरोजगार हो गये हैं ।

अन्त में, क्षमता का कम प्रयोग, छोटी इकाइयों की धीमी वृद्धि, कच्चे माल की उपलब्धता का अभाव, विद्युत, ईधन तथा अन्य पूरक कारकों की कमी ने बढ़ती हुई श्रम शक्ति के समावेशन को कठिन बना दिया है ।

सुझाव (Suggestions for Reducing Unemployment):

भारत में बेरोजगारी के स्वरूप, विस्तार और कारणों को भली-भांति जानने के पश्चात उचित होगा कि इस बुराई से छुटकारा पाने के उपाय प्रस्तावित किये जायें तथा सरकार की नीति के सम्बन्ध में भी विस्तार में विचार किया जाये ।

बेरोजगारी के उपाय (Measures for Reducing Unemployment):

(क) सामान्य उपाय (General Measures):

समस्या के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुये कुछ सुझाव दिये गये हैं जो ग्रामीण तथा शहरी बेरोजगारी की अन्य किस्मों की समस्याओं के समाधान में सहायक होंगे ।

ये उपाय हैं:

1. कृषि का पुन: निर्माण (Reconstruction of Agriculture):

भारतीय कृषि, मात्र लाभप्रद व्यवसाय ही न होकर एक जीवन-चर्या है । यह इसकी दु:खद कहानी है । इसलिये, इसे आर्थिक व्यवसाय बनाने के लिये इसे सुधार एवं पुन: निर्माण की आवश्यकता है । कृषि के ढंगों में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार मूलभूत परिवर्तनों की आवश्यकता है ।

सिंचाई सुविधाओं में सुधार किया जाना चाहिये ताकि कृषि मानसून की दया पर न रहे । संस्थानिक ढांचा और कृषि सम्बन्धों को दृढ़ता से अपनाया जाना चाहिये ताकि सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता उपलब्ध हो सके ।

2. श्रम गहन तकनीकों को अपनाना (Adoption of Labour Intensive Schemes):

इस तथ्य के बावजूद कि महालनोबिस की मौलिक एवं मुख्य उद्योगों के लिये रणनीति पूंजी गहन तकनीकों पर आधारित है । हमारी सरकार को चाहिये कि उत्पादन के नये क्षेत्रों के लिये श्रम-गहन तकनीकों को अपनाया जाये । शुम्पीटर ने भी इसे मध्यस्थ प्रौद्योगिकी का नाम दिया है जो बडे स्तर पर अधिक श्रम के समावेशन के लिये वास्तव में लाभप्रद है ।

3. तीव्र उद्योगीकरण (Rapid Industrialisation):

औद्योगिक बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिये उपचार औद्योगिक दक्षता को बढ़ाने में निहित है । इसका अर्थ है कि वर्तमान उद्योगों के विस्तार तथा नये उद्योगों के विकास की बहुत आवश्यकता है । कुल मूलभूत उद्योग जैसे लोहा और इस्पात उद्योग, सुरक्षा, रासायनिक, बिजली उत्पादन और परमाणु उद्योगों की स्थापना अत्यावश्यक है ।

इसके साथ ही, त्रुटिपूर्ण एवं खर्चीले केन्द्रीकरण को सुधारने के लिये, वैज्ञानिक आधार पर विवेकीकरण करना पूर्वापेक्षित है । भारतीय योजनाओं के अन्तर्गत औद्योगिक विकास ने इस दिशा में पर्याप्त योगदान किया है ।

4. जनसंख्या नियन्त्रण (Population Control):

निःसन्देह, भारत में जनसंख्या अत्याधिक गति से बढ़ रही है । इस वृद्धि को रोके बिना, बेरोजगारी की समस्या का समाधान सम्भव नहीं है । कृषि और औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाने के सभी प्रयत्न व्यर्थ होगे क्योंकि बढ़ती हुई जनसंख्या बड़े हुये उत्पादन को निगल जायेगी ।

इसलिये परिवार नियोजन के कार्यक्रम को विशेषतया ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में सफल बनाने के लिये विशेष प्रचार की आवश्यकता है । लोगों की अत्याधिक रुचि और सहयोग के बिना ऐसा कोई भी कार्यक्रम वांछित परिणाम उपलब्ध नहीं कर सकता ।

5. शिक्षा प्रणाली का पुन: सुधार (Re-Orientation of Education System):

शहरी क्षेत्रों में पड़े-लिखे बेरोजगार लोगों की समस्या के सम्बन्ध में, भारत के लिये आवश्यक है कि देश के बदलते हुये वातावरण के अनुसार शिक्षा प्रणाली को सुधारों सहित पुन: निर्मित किया जाये । शिक्षा का व्यवसायीकरण आवश्यक है । युवा व्यक्तियों को उपयुक्त शिक्षा उपलब्ध की जाये जो विशेषतया गांवों में अपने पसन्द के लघु एवं कुटीर उद्योग आरम्भ कर सकें ।

जहां तक इंजीनियरिंग, मैडीकल, याणिव्यात्मक और प्रशासनिक आवश्यकताओं का सम्बन्ध है, यह देश की सही जन-शक्ति योजनाबन्दी पर आधारित होना चाहिये ।

6. सामाजिक सेवाओं का विस्तार (Extension of Social Services):

भारत अभी भी पश्चिम के उन्नत देशों की तुलना में शिक्षा, चिकित्सा विज्ञान एवं अन्य सामाजिक सेवाओं में बहुत पीछे है । इसलिये, इन सेवाओं को, देश के पिछड़े क्षेत्रों में, ग्रामीण लोगों तक विस्तृत करने के प्रयत्न किये जाने चाहिये । इससे जन-साधारण में जागृति आयेगी ।

7. विकेन्द्रीकरण (Decentralisation):

अनुभव दर्शाता है कि गाँवों और छोटे शहरों में रोजगार के लाभप्रद अवसरों का अभाव लोगों को वैकल्पिक कार्यों की तलाश के लिये बड़े शहरों की ओर स्थानान्तरण के लिये प्रेरित करता है । इससे अत्याधिक भीड़ और शहरीकरण की समस्या उत्पन्न हुई है ।

इन परिस्थितियों में, छोटे शहरों के पास पड़ोस के उद्योगों को स्थानीय साधनों के अनुसार विकसित करना चाहिये । उदाहरणतया, कृषि आधारित अथवा वन आधारित उद्योगों की स्थापना स्थानीय साधनों के स्वरूप पर आधारित होनी चाहिये । इससे न केवल ऐसे उद्योगों का विकास होगा, बल्कि उस क्षेत्र के लोगों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे ।

8. छोटे उद्यमों का प्रोत्साहन (Encouragement to Small Enterprises):

स्व-रोजगार के अवसर उपलब्ध करने के लिये लघुस्तरीय उद्योगों को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये । उन्हें उदार ऋण, तकनीकी प्रशिक्षण, कच्चे माल और संरचना की सुविधाएं तथा विपणन सुविधाएं उपलब्ध की जानी चाहिये ।

सौभाग्य से छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) ने स्व-रोजगार योजना के अधीन यह सुविधाएं प्रदान करने पर ध्यान दिया है । इसी प्रकार के उपाय आठवीं योजना में भी प्रस्तावित किये गये हैं ।

9. मार्गदर्शक केन्द्र और अधिक रोजगार कार्यालय (Guiding Centre and More Employment Exchanges):

अर्थशास्त्री इस सम्बन्ध में एक मत हैं कि रोजगार की तलाश के लिये लोगों के मार्गदर्शन हेतु ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में अधिक रोजगार कार्यालय खोले जाने चाहिये । लोगों को स्व-रोजगार के प्रस्तावों द्वारा भी प्रेरित किया जाना चाहिये ।

10. ग्रामीण विकास योजनाएं (Rural Development Schemes):

ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि का प्रभुत्व है तथा इन लोगों का मुख्य व्यवसाय भी यही है, इसलिये, समय की मांग है कि ग्रामीण विकास योजनाएं आरम्भ की जायें । यह सत्य है ग्रामीण विकास के लिये निवेश के भारी-भरकम कार्यक्रम और उत्पादन की विधियों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का बडे स्तर पर कृषि एवं गैर-कृषि कार्यों में प्रयोग के बिना कोई उपाय नहीं है ।

11. स्व-रोजगार की सम्भावनाएं (Self-Employment Argues):

सरकार पर बेरोजगारी के बढ़ते हुये बोझ को हल्का करने के लिये साक्षर, अर्द्ध-साक्षर तथा निरक्षर सभी को भली- भांति विविधीकृत स्व-रोजगार के अवसर उपलब्ध किये जाने चाहियें । इससे बेहतर कमाई तथा आत्म-सम्मान सहित जीवन प्राप्त करने में सहायता मिलेगी ।

(ख) सरकार के नीतिगत उपाय (Government Policy Measures):

भारतीय आयोजन का मुख्य उद्देश्य बेरोजगारी की समस्या को समाप्त करना है । समय के साथ अदा की समस्या कई गुणा बढ़ गई है । इसके साथ सरकार ने इस दीर्घकालिक बुराई से लड़ने के लिये प्रयत्न तेज कर दिये हैं । आयोजन के अन्तर्गत अपनाये गये अनेक कार्यक्रमों ने विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त स्तर पर उत्पन्न किया है । इसके अतिरिक्त, भारत सरकार ने समय-समय पर अनेक रोजगार योजनाएं देश के शहरी ग्रामीण क्षेत्रों में आरम्भ की हैं ।

ये कार्यक्रम हैं – ‘नैशनल रूरल एम्पलायमैंट प्रोग्राम’ (NREP) ‘रूरल लैण्डलैस लेबर एम्पलायमैंट गारंटी प्रोग्राम (RLEGP);’ ‘ट्रेनिंग ऑफ रूरल यूथ फार सैल्फ एम्पलायमैन्ट’ (TRYSEM); ‘मिनीमम नीडज प्रोग्राम’; ’20 Point आर्थिक कार्यक्रम, स्माल फार्मरक डिवैल्पमैन्ट MFALA,’ ड्राट प्रॉन ऐरिया प्रोग्राम (DPAP); ‘इन्टैग्रेटिड रूरल डिवैल्पमैंट प्रोग्राम (IRDP)’ तथा जवाहर रोजगार योजना (JRY) आदि ।

दसवीं योजना में रोजगार नीति (Employment Policy in Tenth Plan):

दसवीं योजना में रोजगार रणनीति को रोजगार में पर्याप्त वृद्धि तथा रोजगार के गुणवत्तात्मक पहलू की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है । निर्धन लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करने के लिये और निपुणताओं की आवश्यकताओं और उपलब्धताओं के बीच सतता सुनिश्चित करने के लिये, आवश्यक निपुणताओं के विकास पर बल देने की आवश्यकता है ।

दसवीं योजना के दस्तावेज ने अवलोकन किया कि ”वर्तमान बेरोजगार का पिछला संचय लगभग 90 है जोकि 35 मिलियन लोगों के बराबर है, तथा बहुत ऊंचा है, न केवल इस प्रवृति को बढ़ने से रोकने की आवश्यकता है बल्कि इसे दसवीं योजना काल में ही कम करने की आवश्यकता है । संक्षेप में, दसवीं योजना ने पाँच वर्षों की अवधि में 50 मिलियन रोजगार के अवसरों की रचना का लक्ष्य रखा, इनमें से 30 मिलियन की रचना वृद्धि को सामान्य प्रक्रिया से की जायेगी तथा शेष 20 मिलियन की रचना विशेष पहलकदमी द्वारा की जायेगी । एन. एस. एस. ओ. के 61वें राउन्ड के परिणाम दर्शाते हैं कि वर्ष 2000 से 2005 तक के दौरान 47 मिलियन लोगों को रोज़गार उपलब्ध करवाया गया ।”

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में रोजगार नीति (Employment Policy in Eleventh Five Year Plan):

ग्यारहवीं योजना के दौरान 4.50 करोड़ श्रम बल (Labour Force) के बढ़ने का अनुमान है । योजना के शुरू में बेरोजगार के स्तर को देखते हुए, इस योजना में सभी को रोजगार देने के लिए 8 करोड़ रोजगार के अवसरों की आवश्यकता होगी । रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना इस योजना का एक मुख्य उद्देश्य है ।

इस योजना में रोजगार से संबंधित उद्देश्य व उपाय इस प्रकार हैं:

(i) 5.80 करोड नये रोजगार के अवसरों को उत्पन्न करना ।

(ii) बेरोजगारी दर को पाँच प्रतिशत से कम स्तर पर लाना ।

(iii) गैर-कृषि क्षेत्रों (उद्योग व सेवा क्षेत्र) में रोजगार के अवसर उत्पन्न करना ।

(iv) संगठित क्षेत्र में अच्छे कार्य अवसर उत्पन्न करना ।

(v) निर्माण क्षेत्र में श्रम-प्रधान-तकनीक को बढ़ावा देना ।

(vi) वर्ष 2007-08 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रमों को 330 जिलों में लागू किया गया तथा, वर्ष 2008-09 में कार्यक्रम को देश के सभी 619 जिलों में लागू किया गया है ।

(vii) रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करने के लिए ग्रामीण तथा लघु स्तरीय उपक्रमों को बढ़ावा दिया जाएगा ।

(viii) स्वयं रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कुछ लक्षित समूहों; जैसे- बुनकरों, कलाकारों, हस्तशिल्पियों आदि के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किए गए हैं ।

यह योजना सभी बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध नहीं करवा पाएगी । लेकिन इस योजना के अन्त तक बेरोजगारी की दर को कम करके 4.83 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है ।

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