Read this article in Hindi to learn about the x and y theory of motivation.

डगलस मैक्ग्रेगर ऐसे प्रबंध वेत्ता रहे है, जिन्होंने इस क्षेत्र में सैद्धांतिक अवधारणाओं को विकसित करने का महत्वपूर्ण शोध कार्य संपन्न किया है । वे मानते हैं कि प्रत्येक प्रबंधकीय कार्य-गतिविधि का कोई सिद्धांत अवश्य होता है ।

यद्यपि मैक, प्रबंधकीय विज्ञान या कला के प्रश्न पर स्पष्ट नहीं होते हैं, तथापि वे उसे मानवीय व्यवहार से संबंधित करते समय उसके ”विज्ञान” वाले स्वरूप पर तो बिल्कुल गंभीर नहीं हैं । उनके लिए गंभीरता का प्रश्न यह है कि प्रबंध ऐसी ऐजेन्सी हो, जो वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग व्यवहारिक लक्ष्यों की पूर्ति में कर सके ।

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उनकी प्रथम पुस्तक ”उद्यम का मानवीय पक्ष” (द ह्यूमन साइड ऑफ इंटर प्राइज, 1960) में वे परंपरावादी प्रबंधकीय धारणा का उन्मूलन करते हुए एक नये प्रश्न का जवाब तलाशते हैं कि, “सफल प्रबंधक पैदा होते है, या बनाए जाते हैं ।”

उन्हीं के शब्दों में, ”प्रबंधक यदि बनाये भी जाते है, तो उसमें औपचारिक प्रयत्नों का मामूली योगदान ही रहता है । वस्तुत: यह प्रबंधकों की धारणाओं और उनको क्रियान्वित करने के वास्तविक तरीकों का परिणाम अधिक होता है ।

प्रबंध एक व्यवसाय है और उसकी सफलता के लिये यह जानना जरूरी होता है कि कार्यकर्ताओं में वास्तविक क्षमता है या नहीं और यदि नहीं है तो उसे कैसे विकसित किया जा सकता है ।” आगे वे कहते है कि यदि हम प्रबंधकीय विकास के अध्ययन को मात्र औपचारिक कार्य पद्धति तक सीमित रखें, तो हम भटक कर गलत रास्ते पर चल रहे होगा ।

मैक इस पुस्तक में व्यवहारवादी और मनोवैज्ञानिक विचारक के रूप में प्रस्तुत होते हैं । इसी रूप में उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि प्रबंध की महत्वपूर्ण समस्याओं में एक समस्या ”प्रबंधकों के चयन” की है और वर्तमान चयन पद्धति इसलिए दोषपूर्ण है क्योंकि यह कार्य की जरूरत के मुताबिक वास्तविक क्षमतावान प्रबंधकों का चयन करने में असमर्थ है ।

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इसका ध्यान अधिकाधिक प्रतिभासंपन्न और विशेषज्ञ प्रबंधकों के चुनाव पर होता है, जबकि ज्यादा प्रतिभावान और विशेषज्ञ संगठन में मामूली यौगदान ही कर पाते है क्योंकि उन्हें प्रतिभा के बेहतर उपयोग की समझ नहीं होती ।

मैक प्रबंध को ऐसी सैद्धांति और व्यवहारिक अवधारणा के साथ संयुक्त करते हैं, जो कार्मिकों का प्रभावशाली ढंग से व्यवस्थापन कर सके । अत: प्रबधकों का चुनाव इन अवधारणाओं के आधार पर ही किया जाना चाहिए तभी वे मानवीय विकास का वातावरण उत्पन्न करने और मानव-संसाधनों का समुचित उपयोग करने में सफल होंगे ।

मैक्ग्रेगर नियंत्रण की परंपरावादी इस धारणा से भी असहमत है कि नियंत्रण, प्राधिकार से उत्पन्न होता है । उनके अनुसार सभी प्रकार के नियंत्रण सुनिश्चित स्वीकारोक्तियां (अधिनस्थों द्वारा स्वीकृत) होते है । वे नियंत्रण के लिये बल प्रयोग या दबाव की धारणा को चुनौती देते हैं ।

उनके शब्दों में, ”हम अपनी नियंत्रण की क्षमता को बड़ा सकते है, यदि हम यह मान लें कि नियंत्रण, मानवीय स्वभाव द्वारा स्वीकृत एक क्षेत्र है, न कि हमारी इच्छाओं का परिणाम ।”  वे आगे कहते है, ”यदि नियंत्रण संबंधी हमारे प्रयास असफल रहते हैं, तो आमतौर पर ऐसा हमारे अनुपयुक्त नियंत्रण के साधनों के कारण होता है । यदि हम यह सोचें कि मनुष्यों द्वारा हमारी भविष्यवाणी के अनुरूप व्यवहार नहीं करना, उनकी गलती है, तब तो हम कभी अपनी प्रबंधकीय कुशलता में सुधार नहीं कर पाएंगे ।”

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यहां मैक स्पष्ट करना चाहते हैं कि मानवीय व्यवहार के लिए भविष्यवाणी की जा सकती है, यदि प्रबंधकों को सामाजिक ज्ञान की स्पष्ट जानकारी है और उनका दृष्टिकोण भी मानवीय हो । मैक ने प्रबंध संबंधी अपनी विचारधारा को क्रमश: “X” और “Y” सिद्धांत के नाम से “द ह्यूमन साइड ऑफ इंटर प्राइज” में प्रतिपादित किया है । “X” सिद्धांत प्रबंध की परंपरावादी विचारधारा का और सिद्धांत आधुनिक मानवीय विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है ।

इन दोनों सिद्धांतों का आधार नियंत्रण के तरीके को लेकर है । “X” सिद्धांत बल प्रयोग के बाहरी दबाव जैसे नियंत्रण को अपनाता है जबकि “Y” सिद्धांत प्रेरणापूर्ण स्वनियंत्रण में ही नियंत्रण की वास्तविक सफलता देखता है । यहां उल्लेख करना प्रासंगिक है कि मैक्ग्रेगर ने इनके मध्य ”पूर्ण विभाजन” को अस्वीकार किया है । अर्थात दोनों का सह अस्तित्व होता है ।

“X” सिद्धांत इसे पारंपरिक रूप से ”छड़ी-गाजर” सिद्धांत भी कहा जाता है । यह व्यक्तिक और संगठन के संबंधों को परंपरावादी दृष्टि से ही निर्धारित करता है । इसके अनुसार औसत मनुष्य जन्मजात आलसी, लोभी-लालची तथा असहयोगात्मक होता है । यह मानवीय संगठन की छिपी हुई क्षमता है जिसे प्रकट करने के लिये आर्थिक प्रलोभन देना जरूरी है ।

संक्षेप में इस सिद्धांत की मान्यताएं है:

(1) मनुष्य स्वभाव से ही कामचोर होता है, वह काम करना पसंद नहीं करता, अत: उसे टालने की प्रवृत्ति रखता है ।

(2) मनुष्य आमतौर पर अमहत्वाकांक्षी होता है, वह प्रगति नहीं करना चाहता ।

(3) औसत मनुष्य निर्देशीत होना पसंद करता है क्योंकि वह जिम्मेदारियों से बचना चाहता है ।

(4) मनुष्य की संगठन के उद्देश्यों में कोई रूचि नहीं होती ।

(5) वह परंपरागत तरीकों से ही काम करना पसंद करता है, तथा इनमें बदलाव का विरोध करता है ।

(6) उसे संगठन में अत्यधिक सुरक्षा की आवश्यकता रहती है ।

इस विचारधारा में मैक्ग्रेगर मनुष्य के नकारात्मक गुणों को उजागर करते हैं । इसमें वे मनुष्य को स्वभावत: निष्क्रिय मानते है जिसे आर्थिक प्रोत्साहन से या दण्ड ‘दबाव से सक्रीय किया जा सकता है । मैक्ग्रेगर ने “X” थ्योरी में “आर्थिक मानव” को केंद्र में रखा है, जिसके अनुसार आर्थिक तत्व मनुष्य के आलस्य को तोड़कर उसे सक्रिय मानव बना देता है ।

मैक्ग्रेगर का विचार था कि जब समस्त संगठन में उक्त नकारात्मक गुणों का प्राब्ल्य हो जाए तब, प्रबंध दो नीतियां अपना सकता है, एक कठोर, दूसरी शिथिल । कठोर नीति में दण्ड, भय का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इसका परिणाम हड़ताल, तालाबंदी आदि के रूप में सामने आता है ।

शिथिल नीति में छूट का प्रावधान होता है, यह मध्यममार्गी होती है जिसमें आर्थिक प्रोत्साहन का अधिक सहारा लिया जाता है, कार्मिकों की मांगों की पूर्ति की जाती है और मामूली तौर पर दबाव भी बनाया जाता है । मैक्ग्रेगर इसे ”स्केलर सिद्धांत” कहते है ।

मैक्ग्रेगर स्वयं ही मनुष्य के संबंध में उक्त मान्यताओं तथा उससे काम लेने के दोनों तरीकों को खारिज कर देते है। आलोचकों के अनुसार “X” सिद्धांत में सामान्य मनुष्य की जिन साधारण योग्यताओं को रेखांकित किया गया है, वे पितृ वृत्तिय प्रवृत्ति रखती हैं ।

साथ ही यह थ्योरी मनुष्य को मात्र भय की भाषा जानने वाला एक असुरक्षित प्राणी मानती है जो प्रत्येक अवस्था में कामचोर प्रतीत होता है । मैक्ग्रेगर ने पाया था कि उस समय के औद्योगिक संगठनों में “X” सिद्धांत की मान्यताएं ही ज्यादातर प्रचलित थी ।

इन स्थितियों में मैक्ग्रेगर ने निष्कर्ष दिया कि जब तक प्रबंध की रणनीतियां “X” सिद्धांत की मान्यताओं पर आधारित रहेंगी, तब तक हम औसत मनुष्य की क्षमताओं को खोज भी नहीं पाएंगे, उन क्षमताओं के उपयोग की बात तो दूर की है ।

”Y” सिद्धांत मैक्ग्रेगर ने अपने अध्ययनों में पाया कि परंपरागत कार्मिक दृष्टिकोण न तो उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है, न ही कार्मिकों को इस हेतु प्रेरित करने में । वे प्रबंधकीय रणनीति में ”चुनिंदा अनुकूलन” की आवश्यकता पर बल देते हैं ।

मैक्ग्रेगर ने मैस्लो की क्रमिक आवश्यकताओं से आगे बढ्‌कर निर्भरता और आत्मनिर्भरता की भावनात्मक निष्ठा की उस भूमिका को रेखांकित किया जो सार्वभौमिक है । उन्होंने कैथोलिक परंपरा से प्रभावित सिद्धांत आधारित संगठन-संरचना को अपर्याप्त कहकर खारिज कर दिया । उन्होंने मानवीय आवश्यकताओं को निर्भरता मानने से इन्कार कर दिया तथा उन आवश्यकताओं और उनकी संतुष्टि दोनों को सकारात्मक दृष्टि से विश्लेषित किया ।

वस्तुतः उनका ”Y” सिद्धांत संगठन में मनुष्य की मनोवैज्ञानिक खोज है । यह बाहरी नियंत्रण के स्थान पर आत्म नियंत्रण तथा व्यक्तिगत लक्ष्यों के सांगठनिक लक्ष्यों के साथ एकीकरण- इन दो मूल मान्यताओं पर आधारित अनेक नयी मान्यताओं का सूत्रपात करता है ।

Y” सिद्धांत की मान्यताएं इस प्रकार हैं:

1. कार्य हेतु शारीरिक और मानसिक प्रयत्न करना मनुष्य के लिए उतना ही स्वाभाविक है, जितना उसके लिए खेलना या विश्राम करना है । अर्थात मनुष्य स्वभाव से ही कार्योंन्मुख होता है ।

2. वचनबद्ध लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सामूहिक प्रयत्न, आत्म नियंत्रण और स्व: निर्देशन अति आवश्यक है ।

3. उद्देश्यों के प्रति वचनबद्धता उनकी प्राप्ति से जुड़े पुरस्कारों का ही एक हिस्सा है ।

4. उपयुक्त परिस्थितियों में काम करने वाले औसत मनुष्य न सिर्फ उत्तरदायित्वों को स्वीकारना सीखते हैं, अपितु उन्हें ओड़ने के लिए भी उत्सुक रहते है ।

5. संगठनात्मक समस्याओं का हल करने में जिस उच्च स्तरीय कल्पनाशीलता और रचनात्मक क्षमता की आवश्यकता होती है वह जनसंख्या के संकुचित नहीं, अपितु विस्तृत आकार में मौजूद होती है ।

6. वर्तमान औद्योगिक जीवन की कतिपय परिस्थितियों के चलते, औसत मनुष्य की बौद्धिक क्षमता का बहुत साधारण उपयोग ही हो पाता है ।

7. अधिकतर कार्मिक अपने दायित्वों का निर्वाह लगभग सदैव ही करते हैं ।

8. कार्मिकों को संगठन में कार्य हेतु स्वतंत्र वातावरण चाहिए तथा अपने अधिकारियों से अच्छा व्यवहार ।

उक्त मान्यताओं के द्वारा मैक्ग्रेगर यह स्थापित करते है कि सांगठनिक समूहों की सीमाएं, मानवीय सीमाएं नहीं हैं । वस्तुतः “Y” सिद्धांत निर्भिक रूप से यह स्थापित करता है कि यदि किसी संगठन के कार्मिक आलसी, इक, उदासीन, अमहत्वकांक्षी है तो इसके पीछे मूल कारण प्रबंधकीय कमियां है । प्रबंध की कुशलता इसी तथ्य में सन्निहित है कि वह मानवीय क्षमता का दोहन किस प्रकार करता है ।

इस सिद्धांत की मान्यताओं का निचोड़ यह है कि प्रबंध की आत्मा ”व्यवहारों के एकीकरण” में निहित है क्योंकि एकीकृत व्यवहार ही सदस्यों के सामूहिक प्रयासों को उद्देश्योंन्मुख करता है तथा इसकी प्राप्ति हेतु सकारात्मक वातावरण भी पैदा करता है ।

मैक्ग्रेगर Y सिद्धांत को परिवर्तन के लिये खुला नियंत्रण कहते है । लिंकर्ट ने इसे ”ग्रुप मोटिवेशन” पीटर ड्रकर ने एम.बी.ओ. तथा आर्गेराइजिस ने MISC (Management of Integration & Self Control) कहा है ।

निष्कर्षत:

“X” और “Y” सिद्धांत एक दूसरे के परिपूरक हैं, विरोधी नहीं । मनुष्य में नकारात्मक (“Y” सिद्धांत) और सकारात्मक (“Y” सिद्धांत) दोनों गुण पाये जाते है । “Y” सिद्धांत की मान्यता के अनुरूप आर्थिक तत्व मनुष्य को सक्रिय बनाते हैं लेकिन “Y” सिद्धांत की मान्यताएं (गैर आर्थिक प्रोत्साहन) उसे अधिक सक्रिय बनाती है ।

मैक्ग्रेगर ”द प्रोफेशनल मैनेजर” में यह सिद्ध करते है कि “X” और “Y” सिद्धांत कसौटी के दो विपरीत सिरे नहीं है । वे सिद्धांत से भी आगे जाकर सोचते है और तार्किक भावनात्मक प्रबंधक की सिफारिश करते हैं । अर्थात प्रबंधक अपने तर्कपूर्ण निर्णयों में संबंधित मानवीय प्रतिक्रियाओं की अभिव्यक्ति को भी स्थान दे ।

वे मतभेदों के प्रबंधन की तीन रणनीतियों की सिफारिश करते हैं:

1. फूट डालो, राज करो

2. मतभेदों का उन्मूलन करो

3. मतभेदों के रहते हुए उनके साथ काम करना ।

प्रथम दो “X” सिद्धांत से तथा अंतिम “Y” सिद्धांत का अनुसरण करती है ।

स्कैनलान योजना:

मैक्ग्रेगर ने MIT (मैसाचूसेट्स इस्टीटयूट ऑफ टेक्नालॉजी) में फ्रेडरिक लेसियर के साथ जो शोध किया उसे उस समय ”संघीय सहकारिता” पर शोध कर रहे थे जिसमें सहभागिता का प्रमुख स्थान है ।

स्कैनलान योजना दो मूलाधारों पर केन्द्रित थी:

1. कार्मिकों के मध्य

2. प्रभावशाली भागीदारी ।

मैक्ग्रेगर ने “Y” सिद्धांत के तहत आत्मनियंत्रण और एकीकरण (एकीकृत व्यवहार) किया । स्कैनलान कंपनियां एस्कीमों (बर्फीले प्रदेशों के निवासी) को भी ”फ्रीज” बेच जैसा असंभव काम इसलिए कर सकती है क्योंकि उनके संगठन में पर्याप्त सहभागिता भावना न सिर्फ कार्मिकों में प्रेरणा भर देती है अपितु उनके अहम को भी तुष्ट करती हैं । स्कैनलान योजना वस्तुतः जोसेफ स्कैनलान ने के आसपास विकसित की थी, जिसका केंद्र बिंदु है “प्रबंध-श्रमिक सहयोग” ।

प्रबंधकीय ब्रह्मंडकीय (Managerial Universalism):

मैक्ग्रेगर अपनी अंतिम पुस्तक ”द प्रोफेशनल मैनेजर” (1967) में प्रबंधकीय पेशे को मनोविज्ञान, विधि शास्त्र तथा मूल्य से जोड़कर पेश करते हैं । उनका था एक प्रबंधक का संगठन के प्रति जो वास्तविक होता है, वह उसके कामों पर गहरी छाप छोड़ता है । इससे उसके तथा संगठन दोनों के लक्ष्य प्रभावित होते है । प्रबंधकीय ब्रह्मण्डकीय से तात्पर्य सामाजिक घटनाओं के सार्वभौमिक पूर्वानुमान निकालने की प्रबंधक की विश्व दृष्टि और ज्ञान है ।