Read this article in Hindi to learn about:- 1. विभाग का अर्थ (Meaning of Department) 2. विभाग का संगठन (Organisation of Department) 3.वर्ग (Classes).

विभाग का अर्थ (Meaning of Department):

यह सूत्र अभिकरण है और पदसोपान में मुख्य कार्यकारी के तुरंत अधीन एक है । भारत की राजनीतिक कार्यपालिका में विभाग, मंत्रालय के नाम से जाता है । एक मंत्रालय एक से विभागों की समष्टि इकाई भी हो सकता है । जैसे वित्त मंत्रालय में 3 विभाग है ।

एम.पी.शर्मा – ”भाग से तात्पर्य है मुख्य कार्यकारी के तुरंत अधीन निकाय या खण्ड जिनमें समस्त सरकारी कार्य विभाजित होते । यह प्रशासकीय सोपान की सबसे बड़ी उच्चतम है ।”

सरकार को जनता के कल्याण के की सुरक्षा और शान्ति लिए अनेक प्रशासनिक कार्य करना होते है । इनमें कार्य, प्रकृति में रखते हैं, या एक ही उद्देश्य में लगे हैं । जैसे देश में आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित हेतु केंन्द्रिय रिजर्व पुलिस के कार्य गुप्तचर एजेन्सी (C.B.I.) कुछ संभवतः क़ानूनों के निगमन क्रियान्वयन कार्य करना होते हैं ।

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इन सब कार्यों को एक ही में समूहबद्ध करने पर न सिर्फ इनके मध्य समन्वय स्थापित होता है, अपितु इनके संपादन में आसानी हो जाती हैं । एक विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति में लगे ऐसे कार्यों की सामूहिक प्रशासकीय इकाई को सरकारी में सामान्यतया विभाग जाता हैं ।

मोटे तौर पर इसे मंत्रालय के रूप में एक से अधिक विभागें भी हो सकते हैं । जैसे वित्त मंत्रालय में तीन विभाग है । अमेरिका में विभाग को ब्यूरो कहा है । अतः इसे मंत्रालय कहा लगा । विभाग का प्रशासनिक अध्यक्ष सचिव होता है । आजकल विभाग के लिए विभिन्न देशों कार्यालय, अभिकरण, सत्ता, समिति, परिषद् जैसे नामों प्रयोग किया जाता हैं ।

विभाग का संगठन (Organisation of Department):

भारत सरकार तथा राज्य सरकारों का काम जिन विभागों (मंत्रालयों) के माध्यम से होता है, वे तीन स्तरों में विभक्त होते हैं । उच्चतम स्तर पर राजनैतिक मंत्री मध्य स्तर पर सचिव तथा निम्न स्तर पर विभागाध्यक्ष होता हो । इसे रोचक ढंग से एम.पी. शर्मा ने ”तीन मंजिला भवन” की संज्ञा दी हैं ।

उनके अनुसार – ”भारत सरकार के विभाग (मंत्रालय) एक तिमंजिले भवन के समान है, जिसकी प्रथम मंजिल पर राजनैतिक अध्यक्षता करने वाला मंत्री आसीन है, जिसकी सहायता हेतु राज्यमंत्री, उपमंत्री, संसदीय सचिव होते है । दूसरी मंजिल पर विभाग से संबद्ध सचिवालय संगठन होता हैं, जिसका प्रमुख एक सचिव होता है, जो कि स्थायी अधिकारी हैं । तृतीय मंजिल पर निष्पादकीय विभाग निर्देशक, महानिर्देशक, महानिरिक्षक या सलाहकार के नेतृत्व में कार्य करता हैं ।” भारत सरकार के विभागों को सामूहिक रूप से केन्द्रीय सचिवालय कहा जाता हैं, जो सूत्र अभिकरण है ।

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राजनैतिक अध्यक्ष के रूप में मंत्री अपने विभागों के कार्यों के लिए उत्तरदायी होता हैं, राज्यमंत्री, उपमंत्री, संसदीय सचिव सभी राजनैतिक व्यक्ति होते है । इन सभी के लिए व्यवस्थापिका का सदस्य होना आवश्यक है (6 माह का अपवाद) । व्यवहारिक रूप से बहुमतीय सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव सफल नहीं हो पाता । हाँ प्रश्नों की संसदीय बौछार उस पद त्यागने के लिए मजबूर कर सकती है ।

मंत्री को अपने विभाग की नीति निर्माण करने का अधिकार हैं । उसे मंत्रीपरिषद् और अपने दल की नीति के अनुरूप नीति निर्माण करना होता हैं । वह नीति संबंधी मामलों को अंतिम रूप से निर्णित करता हैं, तथा विभागीय नीतियों, निर्णय के क्रियान्वयन के लिए समुचित आदेश जारी करता है ।

विभागीय कार्यकुशलता की जिम्मेदारी मंत्री पर होती हैं । उस विभाग से संबंधित प्रश्नों का स्तर संसद को देना पड़ता है । संसद से ही उस विभाग से संबंधित विधेयकों की स्वीकृति लेनी होती है । असल में मंत्री के उक्त सभी कार्यों के पीछे वास्तविक हाथ सचिवालय का होता हैं । विभाग में सचिवालय की स्थिति हृदय जैसी है, लेकिन उसकी भूमिका मस्तिष्क की हैं । (विभाग की मध्य स्तर) है ।

विभाग के वर्ग (Classes of Departments):

इसमें दो प्रकार के कार्मिक होते है:

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1. अधिकारी वर्ग:

इसमें 3 पदक्रम रखे गये हैं, सचिव, उपसचिव तथा सहायक सचिव कुछ बड़े विभागों में सचिव के साथ संयुक्त सचिव भी होता है । सहायक सचिव (अवर सचिव) को छोड़कर शेष सभी I.A.S. स्तर के अधिकारी होते हैं, जो राज्यों से पदाविधि प्रणाली के आधार पर लिये जाते हैं ।

2. अधीनस्थ वर्ग:

इसमें अधीक्षक, अनुभाग अधिकारी, लिपीक, स्टैनोग्राफर्स आते हैं । ये सचिवालयीन सेवा के सदस्य होते हैं, तथा प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर भर्ती होते हैं । सचिवालय में ही नीति-निर्माण का वास्तविक कार्य सम्पन्न होता हैं । इसके दायित्वों में शामिल है नीति-निर्माण हेतु आवश्यक जानकारी जुटाना, नीति-निर्माण में मंत्री का सहयोग देना मंत्री के आदेशों को कार्यान्वित करना, निष्पादक विभाग पर मंत्री को नियंत्रण रखने सहायता देना । सचिवालय सूत्र अभिकरण है, लेकिन उसकी भूमिका मंत्री के परामर्शदाता की होती है ।

तृतीय स्तर पर विभाग की कार्यकारी ढांचा होता है, इसे निष्पादकीय विभाग भी कहा जाता हैं । इसके प्रचलित सरकारी नाम हैं- निर्देशालय या संचालनालय । यह भी एक सूत्र अभिकरण ही हैं, जिसका प्रमुख दायित्व होता हैं, विभाग की नीति की वास्तविक रूप में क्रियान्वियत करना मंत्री से आदेश सचिवालय के माध्यम से ही इस तक पहुंचते हैं । सचिवालय के माध्यम से ही मंत्री इस स्तर नियंत्रण रखता हैं । ”जिस प्रकार सचिव मंत्री के आँख, कान होते हैं, उसी प्रकार विभाग सचिव के हाथ होते हैं ।”

निष्पादन विभाग का प्रमुख विभागाध्यक्ष होता है, जिसे संचालक, महानिरीक्षक, आयुक्त जैसे नामों से जाना जाता हैं । यह विभाग की गतिविधियों के लिए उत्तरदायी होता है । यह नीति निर्माण में मंत्री को आवश्यक परामर्श सचिव के माध्यम से देता है, यद्यपि यह इसका कार्य-दायित्व नहीं है ।

चूंकि विभागाध्यक्ष सचिव के अत्यधिक निकट और लगभग समकक्ष स्तर का होता है, अतः उसका कार्यालय सचिवालय का संलग्न कार्यालय भी कहलाता हैं । कुछ राज्यों में तो दोनों पदों पर एक ही व्यक्ति कार्य करता है । विभागाध्यक्ष आमतौर पर विशेषज्ञ होता हैं । पूर्ण नियंत्रण रहता हैं । विभिन्न राज्यों में सचिव और विभागाध्यक्ष के मध्य उचित सामंजस्य की स्थापना एक समस्या बनी हुई है ।