Read this article in Hindi to learn about:- 1. सत्ता का अर्थ तथा परिभाषाएं (Meaning and Definition of Authority) 2. सत्ता  की विशेषताएं (Features of Authority) 3. स्रोत और सिद्धांत (Sources and Principle) 4. प्रकार (Types) and Other Details.

सत्ता का अर्थ तथा परिभाषाएं (Meaning and Definition of Authority):

संगठन में कार्य करने और कराने की शक्ति सत्ता है । यह संगठन में निहित वैधानिक शक्ति है अर्थात यह व्यक्ति को स्वैच्छा से प्राप्त नहीं होती अपितु प्रत्येक पद के साथ विधिवत जुडी होती है । इसलिये इसे प्राधिकार अर्थात पद से जुड़ा अधिकार भी कहते हैं । वस्तुतः प्रत्येक पद के कुछ कर्तव्य या दायित्व होते है और उन्हें पूरा करने के लिये समुचित सत्ता भी । बिना सत्ता के न तो आदेश दिया जा सकता है और नहीं उसका पालन करवाया जा सकता है । सत्ता अधिकारी का विशेषाधिकार है, उसका वैधानिक अधिकार है जिसके द्वारा वह अधीनस्थों को कार्य करने के लिये आदेश देता है । सत्ता के प्रयोग से ही उच्चाधिकारी अधीनस्थ इकाइयों, कार्मिकों के मध्य समन्वय सुनिश्चित करता है । मुने-रेले ने सत्ता को सर्वोच्च समन्वयकारी शक्ति कहा है । ऐसी शक्ति जिसका वैधानिक आधार होता है ।

परिभाषाएं:

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साइमन- ”सत्ता ऐसे निर्णयन की शक्ति है जो दूसरों के कार्यों को प्रभावित करे ।”

हेनरी फेयोल- ”सत्ता आदेश देने का अधिकार और आज्ञा पालन करवाने की शक्ति है ।” (यही डिक्शनरी अर्थ भी है)

डेविस- ”सत्ता निर्णय लेने और आदेश देने का अधिकार और शक्ति है ।”

थियो हेमेन- ”सत्ता अधीनस्थों की व्यवस्था के बारे में निर्णय करने का अधिकार है ।”

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कूण्टज ओडोनेल- ”प्रबंधीय कार्यों के संबंध में सत्ता दूसरों को आदेश देने की शक्ति है । इसके द्वारा सत्ताधारी उद्देश्य प्राप्ति के लिये दूसरों को कुछ करने या न करने का कह सकता है ।”

पेटरसन- ”सत्ता आदेश देने और उसके पालन की आज्ञा देने का अधिकार है ।”

धर्मसत्ता:

इसका स्त्रोत ईश्वर को माना जाता है । इसमें सत्ता निर्वाचक द्वारा सत्ताधारी (पोप) को सौंपी जाती है । यह प्रत्यक्षतः चर्च की सत्ता है । पोप को निष्ठा, नैतिकता, प्रशासन जैसे सभी मामलों में ‘चर्च’ पर सर्वोच्च सत्ता सौंपी गयी है । पोप के क्षेत्राधिकार के अतिरिक्त अन्य पदाधिकारियों की सत्ता धार्मिक कार्य तक सीमित होती है । धर्मसत्ता में सामान्य जन को ईश्वरीय समाज का अंग माना जाता है ।

सत्ता  की विशेषताएं (Features of Authority):

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प्रत्येक वह अधिकार या शक्ति सत्ता होगी, यदि उसमें निम्नलिखित विशेषताएं हों:

1. उच्च और अधीनस्थ के वैधानिक संबंधों का निर्धारण करें ।

2. आदेश दें और निर्णय करें तथा उनका अभिपालन भी करवाने में समर्थ हो ।

3. यदि वह वस्तुनिष्ट हो अर्थात् जिसे का जा सके ।

4. वह संगठन द्वारा सीमित हो ।

5. उद्‌देश्यीन्मुखी हो ।

6. वह पद के साथ जुड़ी रहें, पदधारी के साथ नहीं अर्थात अव्यैक्तिक हो ।

7. जिसका विभाजन, प्रदत्तीकरण किया जा सकता हो ।

8. जिसे घटाया या बढ़ाया जा सके ।

9. जो आदेशात्मक हो ।

10. जो औपचारिक हो ।

सत्ता के स्रोत और सिद्धांत (Sources and Principle of Authority):

लोक प्रशासन में सत्ता के तीन स्रोत दिखायी देते हैं:

1. कानून – इसके अंतर्गत संविधान, अधिनियम, प्रदत्त व्यवस्थापन और न्यायिक निर्णय आदि रखे जाते है ।

2. परंपरा – इसके अंतर्गत सांगठनिक प्रथाएं, नियम और काम करने की विकसित आदतें आदि आते है ।

3. प्रत्यायोजन – इसके अंतर्गत प्रत्यायोजन द्वारा ऊपर से लेकर नीचे तक विभिन्न स्तरों पर निर्मित सत्ताएँ आती है ।

सत्ता और शक्ति में अंतर:

सत्ता संरचनागत होती है अर्थात् किसी पद से जुड़ी होती है । शक्ति असंरचनागत होती है अर्थात् उसके पीछे किसी पद या कानून का अधिकार नहीं होता है । जब शक्ति के पीछे कानून खड़ा हो जाता है, तो वह सत्ता बन जाती है ।

सत्ता का सिद्धांत (Principle of Authority):

सत्ता प्रबंध की शक्ति है । सत्ता उच्च स्तरों पर अधिक और निम्न स्तरों पर कम होती है । अर्थात् संगठन में इसका स्वरूप उल्टे समबाहु त्रिभुज के समान होता है । इसकी उपस्थिति से ही प्रबंध अपना काम कराने में समर्थ होता है ।

सत्ता के विभिन्न दृष्टिकोण (Different Approaches of Authority):

विभिन्न विद्वानों ने सत्ता को विभिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है ।

इन्हें 5 वर्गों में रखा जा सकता है:

1. परंपरागत दृष्टिकोण:

इसे कानूनी दृष्टिकोण भी कहा जाता है । इसके अनुसार संविधान या कानून द्वारा अधिकारी को प्रदत्त आदेश देने, उसका पालन कराने की शक्ति ही सत्ता है । यह औपचारिक सत्ता विचारधारा से संबंधित दृष्टिकोण है ।

2. पदस्थिति दृष्टिकोण:

इसके अनुसार सत्ता का स्रोत पद है अतः पद प्राप्त करते ही व्यक्ति को सत्ता मिल जाती है । इस दृष्टिकोण की मान्यता है कि शक्ति कुर्सी में निहित होती है । यह भी औपचारिक सत्ता विचारधारा है ।

3. कार्यात्मक दृष्टिकोण:

इसका बल है कि सत्ता कार्य करने वाले की । अर्थात कार्य के अनुरूप ही व्यक्ति को सत्ता मिल जाती है । यह सक्षमता विचारधारा से संबंधित दृष्टिकोण है ।

4. व्यवहारवादी विचारधारा:

यह सत्ता के मानवीयकरण से संबंधित है । व्यक्ति या समूह की स्वीकृति ही सत्ता को जन्म देती है । यह अनौपचारिक सत्ता विचारधारा से संबंधित है ।

5. एकीकृत दृष्टिकोण:

फेयोल ने औपचारिक सत्ता विचारधारा पर बल देते हुऐ भी उक्त अन्य आधारों को सत्ता के स्रोत के रूप में मान्यता दी है । इस दृष्टिकोण के अनुसार सत्ता की परिभाषा में उक्त सभी दृष्टिकोणों की मान्यता शामिल है ।

सत्ता के प्रकार (Types of Authority):

संगठन में सत्ता या प्राधिकार प्रत्येक स्तर पर व्याप्त रहता है, परंतु उसकी मात्रा और उसके प्रकार में अंतर पाया जाता है ।

1. रेखा अधिकार सत्ता:

यह निर्णय लेने और आदेश देने की सत्ता है । यह ऊपर से नीचे की तरफ प्रवाहित होती है । यह सूत्र अधिकारियों की सस्ता है । जो नीतियों का निर्माण करने और उनके पालन हेतु आदेश देने में इस सत्ता का प्रयोग करते हैं ।

2. स्टाफ अधिकार सत्ता:

यह परामर्श देने वाली, सुझाव देने वाली, सहायता करने वाली सत्ता है । यह अंतिम निर्णय नहीं करती और न ही आदेश देती है परंतु इन दोनों कार्यों को करने वाली रेखा अधिकार सस्ता को इन कार्यों के लिए सहायता पहुँचती है । इसका उद्‌भव रेखा अधिकार सत्ता से ही होता है । ब्रेसी एवं सेनफोर्ड के अनुसार स्टाफ सत्ता सेवा करने वाली सत्ता है जिसका प्रवाह किसी ओर भी हो सकता है ।

3. क्रियात्मक सत्ता:

यह सत्ता निर्णय तो लेती है लेकिन कार्य विशेष के एक सीमित क्षेत्र में ही । चूंकि यह सत्ता कार्य विशेष से संबंधित पद में निहित मानी जाती है अतएव उसके कार्यभार को बढ़ा देती है और इससे सूत्र सत्ता में कमी आ जाती है । थियो हैमेन ने इसे ‘सीमित-सत्ता’ कहा जो वस्तुतः संगठन में द्वितीयक स्तर के उच्च-अधीनस्थ संबंधों को निर्मित करती है और आदेश की एकता का उल्लंघन करती है । इस सत्ता में सूत्र और स्टाफ के बीच की प्रवृति पायी जाती है ।

मैक्स वेबर ने सत्ता के 3 प्रकार बताये हैं:

1. परंपरागत सत्ता:

यह सत्ता परंपरागत मूल्यों, प्रथाओं, सामाजिक रीति-रिवाजों से किसी को मिलती है । जैसे पिता को पुत्र पर प्राप्त सत्ता, युवराज को राजा बनने की वंशानुगत सत्ता आदि ।

2. करिश्माई या चमत्कारिक सत्ता:

यह किसी व्यक्ति को अपने असाधारण व्यक्तित्व या गुणों से प्राप्त होती है । जैसे धार्मिक गुरु की सत्ता या जादूगर की सत्ता या सफल नेता की सत्ता ।

3. वैधानिक सत्ता:

जो सत्ता व्यक्ति या संगठन को विधि द्वारा प्रदत्त की जाती है । नौकरशाही के पास वैधानिक सत्ता होती है । वेबर ने इसे श्रेष्ठतम सत्ता का प्रकार बताया जो तर्कपूर्ण और विवेक पर आधारित है ।

अमितोई एत्जीयोनी ने भी सत्ता के 3 प्रकार बताये:

1. दबाव युक्त सत्ता:

यह वह सत्ता है जो भय या दबाव या दण्ड पर आधारित होती है जैसे शारीरिक प्रताड़ना, पुरस्कार का छिना जाना या वेतन में कमी आदि ।

2. आदर्शात्मक सत्ता:

यह सत्ता निश्चित मानकों का प्रयोग करती है और इसलिये इसमें प्रतिकात्मक पुरस्कारों का वितरण और विवेचन पाया जाता है ।

3. उपयोगिता वादी सत्त:

यह मात्र उन भौतिक पुरस्कारों की पूर्ति पर आधारित है जो अधीनस्थ चाहते हैं और स्वीकार कर लेते हैं । इसे पुरस्कार सत्ता भी कहते हैं ।

सत्ता आधारित संगठन (Authority Based Organisation):

सत्ता के वितरण के आधार पर संगठन के दो प्रकार सामने आते हैं:

1. ब्यूरों संगठन – इसमें सत्ता का केंद्रीकरण एक व्यक्ति में पाया जाता है ।

2. बोर्ड संगठन – इसमें सत्ता का विभाजन एक से अधिक समकक्ष व्यक्तियों के समूहों में पाया जाता है ।

सत्ता पालन के आधार:

चेस्टर बर्नाड ने सत्ता को संचार के रूप में देखा और इसके अभिपालन की चार शर्ते बतायी हैं:

1. यदि सदस्य संचार को समझ लेते हैं ।

2. यदि सत्ता रूपी संचार सांगठनिक उद्देश्यों के अनुरूप हो ।

3. यदि वह अधीनस्थों के हितों के प्रतिकूल न हो ।

4. यदि अधीनस्थ शारीरिक-मानसिक रूप से उसका पालन करने की स्थिति में हो ।

हर्बर्ट साइमन ने सत्ता या प्राधिकार के पालन के चार आधारों का उल्लेख किया है:

1. विश्वास का प्राधिकार:

साइमन के अनुसार अधीनस्थ इसलिये आदेशों का पालन कर सकते है क्योंकि उनमें संगठन और अपने उच्चाधिकारी के प्रति विश्वास की भावना होती है ।

2. वैधता का प्राधिकार:

जब संगठन में विधिवत कार्य विभाजन हुआ हो, तब उच्चाधिकारी के आदेश वैधता प्राप्त होते हैं और तब अधीनस्थ उनका पालन करते हैं ।

3. सामूहिकता का प्राधिकार:

जो आदेश सामूहिक हितों के अनुकूल हो, जिन्हें अन्य भी स्वीकार कर रहे हो तब प्रत्येक अन्य सदस्य भी उन्हें सहज रूप से स्वीकार कर लेता है ।

4. दण्ड या दबाव का प्राधिकार:

साइमन ने इसे ‘बुरा प्राधिकार’ माना है । अधीनस्थ आदेशों का पालन कतिपय दबावों या दण्ड के भय से भी करते हैं । दबाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं । साइमन ने ऐसे 5 प्रकार के दबावों का उल्लेख किया है, सामाजिक दबाव, मनोवैज्ञानिक दबाव, सांगठनिक लक्ष्य का दबाव, आर्थिक सुरक्षा और स्थिति का दबाव, उदासीनता ।

सत्ता के कार्य (Works of Authority):

साइमन ने तीन कार्य बताये हैं:

1. उत्तरदायित्व सौंपना – यह उन लोगों को कुछ उत्तरदायित्व सौंपती है जो सस्ता का प्रयोग करते हैं ।

2. विशेषज्ञों की सेवाएं लेना – यह निर्णय लेने में विशेषज्ञता को काम में लाती है ।

3. समन्वय स्थापित करना – यह क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करती है ।

सत्ता का प्रभाव (Effects of Authority):

सत्ता अपना प्रभाव डालती है और प्रभाव के लिये भी सत्ता की जरूरत होती है ।

मिलेट के अनुसार – निम्नलिखित चार क्षेत्रों में प्रभावशाली ढंग से अपने कर्तव्यों और दायित्वों की पूर्ति हेतु प्रशासकों को पर्याप्त सत्ता की जरूरत होती है:

1. कार्यक्रम सत्ता – अर्थात गतिविधियों का उद्देश्य और कार्य निर्धारित करने हेतु ।

2. सांगठनिक सत्ता – अर्थात कार्यक्रमों के प्रभावी संचालन हेतु संरचना और संगठन का निर्धारण करने हेतु ।

3. बजटीय सत्ता – अर्थात कार्यक्रमों के उद्देश्य और प्राथमिकता के अनुसार वित्तीय आवश्यकता की पूर्ति होती है ।

4. व्यैक्तिक सत्ता – अर्थात संगठन में कार्मिकों की नियुक्ति के लिये, उन्हें अभिप्रेरित करने हेतु, कार्यों का मूल्यांकन करने और उनको अनुशासित बनाये रखने की सत्ता ।