Read this article in Hindi to learn about the evaluation of cost-benefit analysis and its limitations.

लागत लाभ विश्लेषण का मूल्यांकन (Evaluation of Cost-Benefit Analysis):

लागत लाभ विश्लेषण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है:

(क) लाभ के आधार पर मूल्यांकन (Evaluation on the Basic of Benefit):

लाभों का अर्थ है किसी विशेष परियोजना में निवेश के परिणामस्वरुप राष्ट्रीय उत्पादन के बहाव में वृद्धि । उन परियोजनाओं को लाभप्रद कहा जाता है जिनका राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान कम योगदान वाली परियोजनाओं से बड़ा है । लाभ वास्तविक अथवा नाम-मात्र के और प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष हो सकते हैं ।

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(i) वास्तविक लाभ (Real Benefits):

लागत लाभ विश्लेषण में हम एक परियोजना से प्राप्त होने वाले वास्तविक लाभों से सम्बन्धित है न कि नाम मात्र के लाभों से । एक नदी घाटी परियोजना किसानों की सिंचाई सुविधाओं को बढ़ा सकती है परन्तु यदि उसी समय राज्य उनपर भारी भलाई शुल्क लगा दे तो लाभ नाम मात्र का रह जाता है ।

परन्तु यदि वही परियोजना सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने के साथ भूमि की प्रति एकड़ उपज को बढ़ा देती और अन्य बाहरी मितव्ययताएं प्रदान करती है जिससे किसानों की वास्तविक आय बढ़ जाती है तो इसे वास्तविक लाभों की ओर ले जाने वाली कहा जाता है ।

(ii) प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ (Direct and Indirect Benefits):

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प्रत्यक्ष लाभ वह है जो तुरन्त और सीधे परियोजना से प्राप्त किये जा सकते हैं और परोक्ष लाभ वह हैं जो लगभग प्रत्यक्ष लाभों जैसे ही हैं । बहुमुखी परियोजना से उत्पन्न होने वाले प्रत्यक्ष लाभ हैं- बाढ़ नियन्त्रण, सिंचाई, नौ संचालन, मत्स्य क्षेत्र का विकास आदि ।

परन्तु योजना के कुछ पार्श्विक प्रभाव भी हो सकते हैं जिन्हें अप्रत्यक्ष लाभों की श्रेणी में रखा जा सकता है । उदाहरणार्थ भाखड़ा नंगल परियोजना ने हजारों लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध किये है । इसके कारण नई रेल लाइन का निर्माण हुआ जो नंगल टाउनशिप और भाखड़ा नंगल डैम को शेष देश के साथ जोड़ती है ।

नई सड़कें बनी हैं । भाखड़ा नंगल डैम को एक पर्यटक स्थान के रूप में विकसित किया गया है जिससे आय में वृद्धि हुई है । परियोजना के मूल्यांकन पर विचार करते हुये प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभों को ध्यान में रखना आवश्यक है ।

(iii) मूर्त और अमूर्त लाभ (Tangible and Intangible Benefits):

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किसी परियोजना से उत्पन्न होने वाले लाभ मूर्त अथवा अमूर्त हो सकते हैं । मूर्त लाभ वह है जिनका परिकलन और माप मुद्रा के रूप में हो सके जब कि अमूर्त लाभों को धन के सन्दर्भ में नहीं मापा जा सकता ।

उदाहरणार्थ भाखड़ा नंगल परियोजना से उत्पन्न होने वाले लाभ मूर्त है और परिकलन सम्भव है । अमूर्त लाभ व्यक्तिगत मूल्यों में प्रवेश करते हैं जिनके लिये न तो कोई बाजार और न कोई कीमत होती है । वे सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकते हैं ।

(ख) लागतों के आधार पर मूल्यांकन (Evaluation on the Basis of Costs):

किसी परियोजना की लागत की गणना करना बहुत कठिन कार्य है क्योंकि इसके निर्माण में अनेक प्रकार की लागतों पर विचार किया जाता है । लागतों का अर्थ है एक परियोजन के निर्माण में प्रयुक्त साधनों का मूल्यांकन ।

(i) वास्तविक और नाम-मात्र लागतें (Real and Nominal Costs):

लागतें, लोगों द्वारा किये वास्तविक बलिदान के आधार पर वास्तविक अथवा नाममात्र की हो सकती हैं अन्यथा नहीं । यदि धन लोगों से उधार लिया गया है, तो यह नाममात्र की लागत है । परन्तु यदि लोगों को स्वयं परियोजना के निर्माण के लिये कहा जाता है तो वह वास्तविक बलिदान करेंगे तथा इसे वास्तविक लागत की स्थिति कहा जायेगा ।

(ii) प्रारम्भिक और द्वितीयक लागतें (Primary and Secondary Costs):

प्राथमिक अथवा प्रत्यक्ष लागतें वह हैं जो परियोजना के निर्माण पर प्रत्यक्ष रूप में की जाती है, परन्तु द्वितीयक लागतों में, परियोजनाओं पर कार्य करने वाले लोगों को लाभ उपलब्ध कराने पर आने वाली लागत शामिल है जैसे परियोजना स्थल पर गृह निर्माण स्कूल और अस्पताल निर्माण पर आने वाली लागत ।

(iii) सम्बन्धित लागतें (Associated Costs):

यह आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की कीमत है जो परियोजना की लागत में तुरन्त वस्तुओं और सेवाओं के निर्माण के लिये सम्मिलित होती है जिनका प्रयोग अथवा बिक्री की जा सकती है । उदाहरण के रूप में किसान की संचित फसलें उत्पन्न करने हेतु जल के अतिरिक्त कोई अन्य लागत उसकी फसल की सम्बन्धित लागतें होगी ।

(iv) परियोजना लागतें (Project Costs):

यह परियोजना के निर्माण, रख-रखाव और संचालन में प्रयुक्त साधनों की कीमतें हैं । इसमें श्रम, पूंजी, साज-समान, मध्यवर्ती वस्तुओं, प्राकृतिक साधनों और विदेशी विनियम आदि की लागत सम्मिलित होती है ।

अत: किसी परियोजना के मूल्यांकन के लिये, हमें इसके कुल लाभों तथा कुल प्रत्यक्ष लागतों का आकलन और तुलना करनी होगी । यदि लाभों के लागतों से अधिक होने की सम्भावना है तब ही परियोजना लाभप्रद होगी अन्यथा नहीं

परियोजना मूल्यांकन के विभिन्न पग निम्नलिखित हैं:

1. आंकड़ों का एकत्रीकरण और गणना उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की भौतिक मात्राओं पर किया जाता है ।

2. उपभोग की गई वस्तुओं और सेवाओं की भौतिक मात्राओं पर ।

3. इन वस्तुओं और सेवाओं के मुद्रा मूल्य का परिकलन विभिन्न बाजारों की मूल्य सूची के आधार पर स्फीतिकारी और अव-स्फीतिकारी स्थितियों को भारिता देते हुये किया जाता है ।

4. वार्षिक लागतों की गणना कुल लागतों को पूंजी सम्पत्ति की प्रत्याशित आयु से विभाजित करके की जाती है । इसी प्रकार वार्षिक लाभों की गणना परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाले प्रत्यक्ष लाभों के मुद्रा मूल्य द्वारा और इससे परियोजना की सम्बन्धित लागतें घटा कर की जाती है ।

लागत लाभ विश्लेषण की सीमाएं (Limitations of Cost Benefit Analysis):

लागत लाभ विश्लेषण परियोजना के चुनाव और अस्वीकृति की एक शक्तिशाली तकनीक है फिर भी यह त्रुटियों से मुक्त नहीं है ।

इसकी कुछ सीमाएं निम्नलिखित है:

1. लाभ का अनुमान लगाने में कठिनाइयां (Difficulties in Benefit Assessment):

किसी परियोजना के सही लाभों का अनुमान लगाना नई परियोजना के उत्पादों की भविष्य में मांग और पूर्ति की अनिश्चितता तथा उनकी अनिश्चित कीमतों के कारण कठिन हो जाता है । बाहरी अर्थव्यवस्थाओं के कारण और कठिनाई उत्पन्न होती है ।

बाहरी अर्थव्यवस्थाओं की उपस्थिति परियोजना के उत्पादों की सीमान्त लागत के बराबर कीमत पर बिक्री की ओर ले जा सकती है न कि औसत लागत की ओर जिससे घाटा उत्पन्न होगा तथा उपभोक्ताओं पर विशेष शुल्क अथवा बजटीय साधनों द्वारा विशेष प्रयत्न किये जायेंगे ।

2. स्वेच्छाचारी डिस्काउन्ट दर (Arbitrary Discount Rate):

किसी परियोजना के लिये कल्पित डिस्काउन्ट की सामाजिक दर स्वेच्छाचारी होती है । सामाजिक डिस्काउन्ट दर खोजने का कोई परिशुद्ध ढंग नहीं है । यह एक व्यक्तिनिष्ठ परिदृश्य रहता है ।

परन्तु यदि सामाजिक डिस्काउन्ट दर में एक छोटा सा परिवर्तन भी होता है तो इससे परियोजना मूल्यांकन के पूर्ण परिणाम परिवर्तित हो सकते हैं । उच्च स्वेच्छाचारी डिस्काउन्ट दर, दीर्घकालिक परियोजनाओं के लाभों की शुद्ध वर्तमान कीमत की गणना में सहायता नहीं करती ।

3. अवसर लागत की उपेक्षा (Ignores Opportunity Costs):

यह अवसर लागत की समस्या की उपेक्षा करता है । ग्रिफिन (Griffin) और एनोस (Enos) के अनुसार यदि सभी कीमतें अवसर लागत प्रतिबिम्बित करती हैं तो सभी परियोजनाएं जिनके लिये B/C1 होगी चुनी जायेंगी ।

4. बाह्यतओं की समस्याएं (Problems of Externalities):

इस विश्लेषण में किसी परियोजना के पार्श्विक प्रभावों की गणना कठिन होगी । किसी नदी घाटी परियोजना की शिल्प वैज्ञानिक और आर्थिक बाध्यताएं हो सकती हैं जैसे बाढ़ नियन्त्रण उपायों के प्रभाव एक संग्रह बान्ध के प्रभाव और समीप की भूमि की उत्पादकता पर प्रभाव ।

5. उचित निर्णय नियमों के चुनाव में कठिनाईयां (Difficulties in Selecting Appropriate Decision Rules):

परियोजना के मूल्यांकन के लिये तीन निर्णय नियम हैं । यह हैं NPV मानदण्ड, IRR मानदण्ड तथा SRD मानदण्ड । इन सभी मानदण्डों के अपने-अपने लाभ और हानियां है इसलिये यह निर्णय लेना कठिन हो जाता है कि परियोजना के मूल्यांकन के लिये किस मानदण्ड का प्रयोग किया जाये क्योंकि गलत चुनाव मिथ्या परिणामों की ओर ले जायेंगे ।

6. लागत के अनुमान में कठिनाइयां (Difficulties in the Cost Assessment):

लागत के अनुमान तकनीकों के चुनाव, प्रयुक्त कारक सेवाओं की स्थितियों और कीमतों के आधार पर लगाये जाते हैं । उत्पादन के कारकों के बाजार मूल्य का प्रयोग इस प्रयोजन के लिये किया जाता है बशर्ते कि वे अवसर लागत दर्शायें ।

परन्तु अल्प विकसित देशों में प्राय: बाजार कीमतें अवसर लागतें नहीं दर्शाती, क्योंकि वहां मौलिक असन्तुलन होता है जो मजदूरी के प्रचलित स्तर पर सामूहिक बेरोजगारी, प्रचलित ब्याज दरों पर कोष की कमी और विनिमय के चालू दरों पर विनिमय के अभाव को प्रदर्शित करता है ।

7. संयुक्त लाभों और लागतों की उपेक्षा (Neglects Joint Benefits and Costs):

यह एक परियोजना से उत्पन्न होने वाले संयुक्त लाभों और लागतों की समस्याओं की उपेक्षा करता है । नदी घाटी परियोजना से उत्पन्न होने वाले अनेक प्रत्यक्ष एवं परोक्ष लाभ हैं परन्तु ऐसे लाभों का अलग से मूल्यांकन और गणना करना कठिन है । इसी प्रकार संयुक्त लागतें जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता उनकी लाभ अनुसार गणना की जाती है ।

8. जोखिम एवं अनिश्चितता के लिये समायोजन (Adjustment for Risk and Uncertainty):

यह तीन प्रकार से किया जाता है, परियोजना जीवन अवधि की गणना करते समय, छूट दर तथा लाभों और लागतों में उचित छूट दे कर ऐसा किया जाता है । सरकार की ऋण दर का उपयोग लाभप्रद रहता है । भारतीय योजना आयोग की अनुसंधान कार्यक्रम समिति 5 प्रतिशत उत्पादकता दर और 10 प्रतिशत पूंजी दुर्लभता दर का सुझाव देती है ।