Read this article in Hindi to learn about India’s relations with her neighbouring countries.

उक्त के अतिरिक्त भारत के अन्य पड़ोसी देशों में भूटान, मालद्वीव तथा अफगानिस्तान शामिल हैं । भूटान के साथ भारत के सम्बन्धों का निर्धारण 1949 की मित्रता और सहयोग की संधि के आधार पर संचालित होते रहे हैं । इस संधि में 2007 में इस आशय से संशोधन किया गया था ताकि भूटान की सम्प्रभुता को रेखांकित किया जा सके ।

भूटान के साथ भारत के सम्बन्ध सदैव अच्छे रहे हैं । भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक देश है । भूटान के आयात में भारत का हिस्सा 80 प्रतिशत तथा उसके निर्यात में भारत का हिस्सा 94 प्रतिशत है । भारत भूटान को दक्षिण एशिया में सबसे अधिक मात्रा में विकास सहायता प्रदान करता है ।

भारत के सहयोग से वहाँ अभी तक 9 पंचवर्षीय योजनाओं को लागू किया जा चुका है । इसके साथ ही दोनों देश संयुक्त जल विद्युत् परियोजनाओं पर भी कार्य कर रहे हैं । इनमें चुक्खा, ताला तथा कुरीक्षु जल विद्युत् परियोजनायें प्रमुख हैं । भूटान ने सदैव अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय दृष्टिकोण का समर्थन किया है । भूटान की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है ।

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इस नाते दोनों के सांस्कृतिक सम्बन्ध भी अत्यन्त घनिष्ठ हैं । 2008 से भूटान में लोकतंत्र की स्थापना का प्रयास हो रहा है तथा भारत इसका समर्थक है । भूटान भारत के साथ ही गुटनिरपेक्ष आन्दोलन सार्क तथा बिम्सटेक आदि संगठनों का सदस्य है तथा दोनों एक-दूसरे का सहयोग करते हैं ।

जहाँ तक भारत-मालद्वीव सम्बन्धों का सम्बन्ध है, उल्लेखनीय है कि 1965 में मालद्वीव को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई । भारत मान्यता प्रदान करने वाला पहला देश था । 1972 से दोनों के कूटनीतिक सम्बन्ध आरंभ हुये । तब से लेकर अब तक दोनों के मध्य सामरिक आर्थिक व व्यापारिक सम्बन्ध मजबूत होते रहे हैं ।

1988 में जब मालद्वीव पर तमिल आतंकवादियों ने हमला किया था तो भारत की सैनिक सहायता से उसको रोका गया था । भारत मालद्वीव में ढाँचागत सुविधाओं के विकास तकनीकि प्रशिक्षण आदि के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है ।

दिसम्बर 2000 में सुनामी आपदा के समय भी भारत द्वारा मालद्वीप को आर्थिक सहायता प्रदान की गयी थी । इसके साथ ही भारत मालद्वीप को सस्ता ऋण तथा कस्टम ड्‌यूटी में छूट आदि प्रदान करता है ।

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वर्तमान में मालद्वीव में राजनीतिक उथल-पुथल चल रही है तथा 2013 में ही राष्ट्रपति के चुनाव को दो बार टाला गया है । भारत वहाँ लोकतंत्र की मजबूती का पक्षधर है तथा स्थिरता व लोकतंत्र की स्थापना के बाद भारत और मालद्वीप के सम्बन्ध और अधिक मजबूत अफगानिस्तान भारत की पश्चिमी सीमा पर स्थित है ।

2013 में इसकी जनसंख्या 31.1 मिलियन थी । अफगानिस्तान की सामाजिक संरचना ऐसी है कि वह कई जातियों तथा जनजातीय समुदायों में बँटा हुआ है तथा राजनीतिक स्थिरता स्थापित करना कठिन कार्य है । अफगानिस्तान को सदैव अखण्ड भारत का अंग माना गया है । प्राचीनकाल से ही विदेशी तत्वों का आवागमन अफगानिस्तान के रास्ते ही भारत में होता रहा है ।

यूरोप और एशिया को जोड़ने वाला प्राचीन सिल्क रूट भी अफगानिस्तान के रास्ते यूरोप तक जाता था । अत: प्राचीन काल से दोनों के सांस्कृतिक और व्यापारिक सम्बन्ध रहे है । जब 1979 में अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं ने प्रवेश किया तो भारत ने उसकी आलोचना नहीं की । लेकिन बाद में 1990 में जब सोवियत सेनाएँ वापस चली गयीं तो अफगानिस्तान में धीरे-धीरे तालिबान शासन की स्थापना हो गयी तथा वह भारत विरोधी आतंकवाद का गढ़ बन गया ।

अलकायदा वेन आतंकवादियों ने जब सितम्बर 2001 में अमेरिका में आतंकवादी हमला किया तथा उसकी प्रतिक्रियास्वरूप अफगानिस्तान में अमेरिका व नाटो की सेनाएं भेजी गयीं और 2001 में ही अफगानिस्तान में तालिबान शासन का अंत हो गया । तब से अभी तक ये सेनाएँ अफगानिस्तान में मौजूद हैं ।

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इस काल में भारत ने 2013 तक अफगानिस्तान के पुनर्निमाण के लिए 3 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता प्रदान की है । अक्टूबर 2011 में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई भारत की यात्रा पर आये थे तथा इसी दौरान भारत और अफगानिस्तान ने सामरिक साझेदारी बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किये ।

भारत चाहता है कि अफगानिस्तान में राजनीतिक स्थिरता व लोकतंत्र स्थापित हो तथा तालिबान दुबारा सत्ता पर काबिज न हो सके । अफगानिस्तान में यदि तालिबानी प्रभाव बढ़ता है तो भारत विरोधी आतंक का खतरा बढ़ जाएगा ।

2014 में अफगानिस्तान से नाटो सेनाओं की वापसी प्रस्तावित है तथा तालिबान पुन: अफगानिस्तान में सत्ता प्राप्त करने के लिए प्रयासरत् है । उसे पाकिस्तान का सक्रिय समर्थन मिल रहा है ।

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