Read this article in Hindi to learn about the relationship between India and Pakistan.

वर्तमान पाकिस्तान प्राचीनकाल से 1947 में ब्रिटिश शासन के अन्त तक अविभाजित भारत का अंग रहा है । ब्रिटिश शासन की फूट डालो व शासन करो की नीति के परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 को धार्मिक आधार पर देश का विभाजन हुआ तथा भारत व पाकिस्तान दो स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ ।

1940 के दशक में जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान राज्य की स्थापना का आन्दोलन चलाया जिसके कारण विभाजन के समय बड़े पैमाने पर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुये तथा बड़ी मात्रा में धार्मिक आधार पर दोनों देशों के बीच में जनता का पलायन हुआ । अत: एक नये देश के रूप में पाकिस्तान का उदय ही दोनों के बीच अविश्वास तथा तनाव की भूमि से हुआ ।

तब से लेकर अब तक भारत व पाकिस्तान के संबन्ध सामान्य नहीं हो पाये हैं । तनावों व आधारभूत अविश्वास के वातावरण में शान्ति स्थापना के कई प्रयास हुये हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली । पाकिस्तान में लोकतंत्र का अभाव है तथा वहाँ प्रभावी सत्ता का केन्द्र वहाँ का सैनिक तंत्र है ।

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यदा-कदा निर्वाचित सरकार भी सेना पर नियंत्रण स्थापित करने में कामयाब नहीं हुयी । भारत के साथ तनावों का बना रहना सेना की स्थिति को मजबूत बनाती है । दूसरा पाकिस्तान क्षमता के अभाव में भी भारत की बराबरी करना चाहता है तथा भारत को एक सहयोगी की बजाय एक प्रतिद्वन्दी के रूप में देखता है ।

भारत व पाकिस्तान के बीच अब तक चार बार- 1947, 1965, 1971 व 1999 में सैनिक युद्ध हो चुके है तथा सभी में पाकिस्तान को पराजय का मुँह देखना पड़ा है । 1947 का युद्ध पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर कब्जा करने के प्रयासों के परिणामस्वरूप हुआ था तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों से 1 जनवरी 1949 को दोनों देशों के मध्य युद्ध विराम लागू हुआ ।

1965 का युद्ध गुजरात की कच्छ की खाड़ी में पाकिस्तान डारा कुछ क्षेत्रों पर कब्जे के कारण हुआ तथा जनवरी 1966 में सोवियत संघ की मध्यस्थता से संपन्न ताशकन्द समझौते के आधार पर विवाद मान्त हुआ । 1971 का भारत-पाक युद्ध तथा उसमें पाकिस्तान की निर्णायक पराजय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान से अलग हो गया तथा वहाँ भारत के सहयोग से बांग्लादेश नामक अलग देश की स्थापना हुई ।

युद्ध के बाद जुलाई 1972 में दोनों के मध्य शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुये जिसमें दोनों देशों द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शान्ति बनाये रखने तथा बिना तीसरे पक्ष को संलग्न किये आपसी विवादों का द्विपक्षीय आधार पर समाधान करने की बात कही गयी ।

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1999 का युद्ध पाकिस्तान द्वारा कारगिल क्षेत्र पर अवैध कब्जे के कारण हुआ तथा इसमें भी पाकिस्तान की पराजय हुई तथा उसे कारगिल क्षेत्र से हटना पड़ा । इन बड़े युद्धों के अतिरिक्त दोनों के मध्य गत 67 वर्षों में अनेक छोटी-मोटी सैनिक झड़पें होती रही हैं । सैनिक युद्ध में असफलता सुनिश्चित देखकर 1980 के दशक से ही पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने की नीति अपनायी है ।

दूसरी तरफ पाकिस्तान ने भारत की बराबरी करने के लिये बाह्य शक्तियों विशेषकर अमेरिका व चीन के साथ सामरिक गठजोड़ की नीति अपनायी है । 1980 के दशक में पाकिस्तान ने जहाँ अमेरिका से विपुल आर्थिक व सैनिक सहायता प्राप्त की वहाँ वर्तमान में वह चीन के साथ भारत विरोधी गठजोड़ को मजबूत कर रहा है ।

अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों के विरुद्ध अमेरिका को पाकिस्तान का अपेक्षित सहयोग न मिलने से दोनों के रिश्तों में यदा-कदा तनाव भी देखा जा सकता है । पाकिस्तान के परमाणु तथा मिसाइल विकास कार्यक्रम में चीन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । वर्तमान में चीन पाकिस्तान में ढाँचागत सुविधाओं का विकास कर रहा है तथा पाकिस्तान के ग्वादर बन्दरगाह के माध्यम से हिन्द महासागर में अपनी पहुँच बना रहा है ।

भारत व पाकिस्तान के मध्य इन तनावों के बीच सम्बन्धों को सामान्य बनाने के प्रयास भी किये गये हैं । शिमला समझौते से दोनों देशों के बीच सम्बन्धों को सामान्य बनाने की आशा बँधी थी, लेकिन पाकिस्तान द्वारा बार-बार इस समझौते की शर्तों के विपरीत कश्मीर मुद्‌दे को अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाने का प्रयास किया गया जिससे समझौता खटाई में पड़ गया । दोनों देशों ने सीमा पार व्यापार को बढ़ाने पर भी सहमति व्यक्त की है । नागरिकों की आवाजाही को सुगम बुनाने केर लिये दोनों के मध्य यातायात के साधनों को भी विकसित किया गया है ।

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भारत व पाकिस्तान के बीच विवाद के प्रमुख मुद्‌दे:

आपसी अविश्वास व खराब सम्बन्धों के चलते वैसे तो कोई भी छोटी सी घटना भी दोनों देशों के मध्य तनाव का कारण बन जाती है, लेकिन वर्तमान में दोनों के मध्य विवाद के कतिपय महत्वपूर्ण स्थायी मुद्‌दे भी हैं ।

भारत व पाकिस्तान के मध्य विवाद के प्रमुख मुद्‌दों का उल्लेख निम्नलिखित है:

1. कश्मीर समस्या (Kashmir Problem):

यह समस्या दोनों देशों के मध्य सबसे जटिल पुरानी व प्रमुख समस्या है । 1947 में देश की स्वतंत्रता व विभाजन के समय जम्मू व कश्मीर एक देशी रियासत थी जो भारत अथवा पाकिस्तान किसी के साथ शामिल नहीं हुई । लेकिन पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित कबाइलियों ने अक्टूबर 1947 में इसे पाकिस्तान में मिलाने के लिये सशस्त्र आक्रमण कर दिया ।

जम्मू व कश्मीर रियासत के तत्कालीन शासक हरी सिंह ने भारत से पाकिस्तान के विरुद्ध सैनिक मदद माँगी । लेकिन भारत ने इस रियासत के भारत में विलय की शर्त के साथ ही सैनिक मदद देने की घोषणा की । अत: हरी सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को विधिवत जम्मू व कश्मीर का भारत में विलय कर दिया ।

इसके बाद भारत ने अपनी सेनाएँ कश्मीर में भेजी जिसने संक्षिप्त युद्ध के बाद पाकिस्तानी सेनाओं को खदेड़ दिया । भारत ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्रसंघ में भी उठाया तथा उसके प्रयासों से 1 जनवरी 1949 को भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम लागू हुआ ।

संयुक्त राष्ट्र ने यह भी प्रस्ताव पारित किया कि जब दोनों देश अपनी सेनाओं को जम्मू-कश्मीर से वापिस कर लेंगे तो वहाँ पर जनमत संग्रह कराया जायेगा तथा जनता की इच्छानुसार राज्य के भविष्य का फैसला होगा । युद्ध विराम के समय पाकिस्तान की सेनाओं ने पाक अधिकृत कश्मीर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था तथा यह क्षेत्र आज भी पाकिस्तान के कब्जे में है ।

पाकिस्तान द्वारा इस क्षेत्र से अपनी सेनाएँ वापिस न बुलाने के कारण वहाँ जनमत संग्रह नहीं हो सका तथा जम्मू-कश्मीर की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है । भारत जम्मू-कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानता है लेकिन पाकिस्तान इसे स्वीकार नहीं करता है । इस समस्या का अभी तक कोई समाधान नहीं निकल सका है ।

1972 के शिमला समझौते के द्वारा पाकिस्तान ने सभी समस्याओं के द्विपक्षीय धार पर समाधान की बात स्वीकार की थी, लेकिन वह इस समस्या अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उठता रहता है । 1990 के बाद पाकिस्तान ने वहाँ अलगाववादी तत्वों तथा आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने का काम शुरू किया है ।

2. पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद (Pakistan-Backed Terrorism):

पाकिस्तान को यह सुनिश्चित गया है कि वह भारत के विरुद्ध सैनिक विजय हासिल नहीं कर सकता है । अत: उसने 1990 के दशक के आरंभ से ही भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने की रणनीति अपनायी है । पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद ने यद्यपि सारे देश के लिये एक नया खतरा उत्पन्न कर दिया है लेकिन इसका व्यापक प्रभाव जम्मू-कश्मीर राज्य में है ।

पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद के साथ-साथ अलगाववादी तत्वों को भी प्रोत्साहित कर रहा है । पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी एस आई द्वारा पोषित जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-ताइबा जैसे आतंकवादी संगठनों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कई छोटी-बड़ी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया है ।

इनमें दिसम्बर 2001 में भारत की संसद व नवम्बर 2008 में मुम्बई के ताज होटल में किये गये आतंकवादी हमले प्रमुख हैं । 2008 में ही पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने काबुल स्थित भारतीय दूतावास में आतंकी हमला किया था ।

2008 के मुम्बई हमले के बाद भारत ने विरोध स्वरूप पाकिस्तान के साथ 2004 से चल रही समग्र शान्ति वार्ताओं में भाग लेने से मना कर दिया था । बमुश्किल ये वार्ताएँ 2010 में पुन: आरम्भ हो सकीं । कश्मीर से लगी पाकिस्तानी सीमा व नेपाल के रास्ते आतंकी घुसपैठ की घटनाएँ होती रहती हैं । भारत का मानना है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवादी तत्वों पर रोक नहीं लगाता है, दोनों देशों के सम्बन्ध सुधर नहीं सकते ।

3. नदी जल विवाद (River Water Dispute):

सिन्धु व उसकी सहायक नदियों जैसे-झेलम, व्यास, सतलज व चेनाव भारत से होकर पाकिस्तान में बहती हैं । 1960 की सिन्धु जल सन्धि के द्वारा इन नदियों के न्यायोचित बँटवारे हेतु समझौता हो गया था ।

लेकिन जब भी भारत इन नदियों के जल प्रयोग हेतु विभिन्न योजनाएँ बनाता है, पाकिस्तान द्वारा इसका विरोध किया जाता है । विवादों के चलते भारत की नदी विकास योजनाएं बाधित हो रही हैं । नदी जल बँटवारे को लेकर दोनों देशों के मध्य समय-समय पर विवाद उत्पन्न होता रहता है ।

4. पाकिस्तान-चीन गठजोड़ (Pakistan-China Alliance):

पाकिस्तान भारत के साथ सैनिक व सामरिक बराबरी हासिल करने के लिये ऐसे देशों के साथ सामरिक गठजोड़ बनाने की नीति अपनाता है । 1970 व 1980 के दशक में पाकिस्तान ने अमेरिका से सैनिक व आर्थिक सहायता प्राप्त की क्योंकि शीत युद्ध काल में भारत को अमेरिका के अधिक नजदीक माना जाता था ।

इसी तरह 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से ही पाकिस्तान व भारत के बीच सैनिक व सामरिक गठजोड़ आरम्भ हो गया था जो आज अत्यधिक मजबूत हो चुका है तथा भारत के लिये चिन्ता का भी विषय है ।

1963 में पाकिस्तान ने चीन को पाक अधिकृत कश्मीर का 5000 वर्ग किलोमीटर भू-भाग स्थानान्तरित कर दिया था जिससे दोनों देशों की सीमाएं आपस में मिल गयी थीं । चीन की सहायता के बिना पाकिस्तान का परमाणु व मिसाइल कार्यक्रम सफल नहीं हो सकता था ।

वर्तमान में चीन अपने पश्चिमी प्रान्त से लेकर पाकिस्तान के ग्वादर बन्दरगाह तक यातायात मार्गों व अन्य ढाँचागत सुविधाओं का विकास कर रहा है । दोनों देश एक-दूसरे को प्रत्येक मौसम का मित्र मानते हैं । दोनों देशों के मध्य इस तरह का सैनिक गठजोड़ जहाँ भारत की सुरक्षा के लिये चिन्ता का विषय है वहीं यह दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को सीमित करने का एक प्रयास भी है ।

5. तनाव के अन्य मुद्‌दे (Other Issues of Stress):

उक्त मुद्‌दों के अतिरिक्त भारत व पाकिस्तान के बीच तनाव के कतिपय अन्य मुद्‌दे भी हैं, जैसे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण का मामला, पाकिस्तान सैनिकों द्वारा सीमा पर घुसपैठ व गोलाबारी, पाकिस्तान द्वारा द्विपक्षीय मुद्‌दों को अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाने का प्रयास, सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध अफगानिस्तान में भारत विरोधी लामबन्दी आदि ।

तनाव के बीच शान्ति स्थापना के प्रयास:

उक्त तनावों के बीच दोनों देशों के मध्य शान्ति स्थापना के भी समय-समय पर प्रयास किये गए हैं । 1971 के युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच जुलाई 1972 में शिमला समझौता सम्पन्न हुआ था लेकिन पाकिस्तान समय-समय पर इस समझौते की शर्तों का उल्लंघन करता रहा है । वर्तमान परिप्रेक्ष्य में 2004 में दोनों देशों के मध्य समग्र वार्ता प्रक्रिया शुरू की गयी ।

इन वार्ताओं में नौ मुद्‌दों पर बातचीत की गयी- गुजरात के सर क्रीक क्षेत्र का विवाद, तुलबुल नदी परियोजना, सियाचिन पर नियंत्रण आतंकबाद तथा नशीली दवाओं का व्यापार, मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान, आर्थिक व व्यापारिक सहयोग शान्ति सुरक्षा तथा विश्वास बढ़ाने के उपाय तथा कश्मीर समस्या ।

2005 में श्रीनगर-मुजफुराबाद बस सेवा आरंभ की गयी तथा 2008 में कश्मीर में परम्परागत सीमा व्यापार को पुन: खोला गया । नवम्बर 2008 में मुम्बई आतंकवादी हमले के बाद भारत ने समग्र वार्ताओं में भाग लेने से मना कर दिया था । 2010 में ये वार्ताएँ पुन: शुरू हुयीं लेकिन सीमा पर चल रहे सैनिक तनाव के कारण वर्तमान में धीमी गति से चल रही हैं । इस प्रकार अब तक के भारत-पाक सम्बन्ध निरन्तर तनावों के बीच असफल शान्ति प्रयासों के सम्बन्ध हैं ।

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