भारतीय रक्षा प्रणाली पर अनुच्छेद | Paragraph on the Indian Defense System in Hindi!

जब विभिन्न देशों के बीच विवाद उत्पन्न होता है तब उन देशों की भौगोलिक अखंडता और सार्वभौमत्व के लिए खतरा पैदा हो जाता है ।

यदि उन देशों के बीच उत्पन्न विवाद का हल शांतिपूर्ण ढंग से नहीं निकलता है तब युद्‌ध की स्थिति उत्पन्न होती है । अत: किसी भी स्थिति में अपने राष्ट्र के अस्तित्व, एकता और सार्वभौमत्व की रक्षा करना महत्वपूर्ण हो जाता है । इसके लिए सुसज्जित सेना रखना प्रत्येक राष्ट्र के लिए आवश्यक होता है ।

साथ ही विभिन्न सेनाओं की सहायता करने हेतु अर्धसैनिक बल भी तैयार रखने पड़ते है । देश की सुरक्षा व्यवस्था को अद्‌यतन रखना पड़ता है । राष्ट्र की सुरक्षा को अबाधित रखने के लिए की जानेवाली इन उपाय योजनाओं को ‘राष्ट्रीय रक्षा’ कहते हैं ।

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देश की सुरक्षा प्रत्येक देश की शासन व्यवस्था का दायित्व होता है और इस कार्य में अपना योगदान देना नागरिकों का दायित्व होता है । देश की रक्षा व्यवस्था अभेद्‌य होगी तभी देश में विकास के लिए पोषक वातावरण का निर्माण होगा ।

भारत की सुरक्षा व्यवस्था का स्वरूप:

भारत की सुरक्षा व्यवस्था में सेनाओं और रक्षा से संबंधित संस्थानों का समावेश होता है । भारतीय सेना में थल सेना, नौसेना और वायु सेना का अंतर्भाव होता है । नई दिल्ली में इन तीनों सेनाओं के मुख्यालय

हैं । भारत के राष्ट्रपति भारतीय रक्षा व्यवस्था के सर्वोच्च-पद पर होते हैं ।

तथा वे इन तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्ष होते हैं । प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल के परामर्श से अपनी सुरक्षा नीति निश्चित करते है । सुरक्षा विषय का समावेश संघसूची में किया गया है । अत: सुरक्षा से संबंधित निर्णय करने का अधिकार संघ सरकार को प्राप्त है ।

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संघ सरकार का सुरक्षा विभाग सुरक्षा से संबंधित सभी कार्य करता है । इस विभाग के प्रमुख को ‘रक्षा मंत्री’ कहते हैं । रक्षा से संबंधित निर्णय करने में राजनीतिक व्यवहार समिति, राष्ट्रीय सुरक्षा समिति और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद शासन की सहायता करती हैं ।

थल सेना:

भारत की भौगोलिक सीमाओं की रक्षा का दायित्व थल सेना पर है । थल सेना में पैदल चलनेवाले सैनिकों, बख्तरबंद गाड़ियों और तोपों का समावेश होता है । थल सेना के प्रमुख को ‘जनरल’ कहते हैं ।

 

 

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नौसेना:  भारत को लगभग ७५१७ किलोमीटर लंबा समुद्री तट प्राप्त है । नौसेना पर इन समुद्री सीमाओं की रक्षा का दायित्व है । नौसेना के प्रमुख को ‘एडमिरल’ कहते हैं ।

 

वायु सेना:

वायु सेना पर भारत की वायु सीमाओं अप्तै आकाश की रक्षा का दायित्व है । वायुसेना के प्रमुख को ‘एअर चीफ मार्शल’ कहते हैं । राष्ट्रपति इन तीनों सेना प्रमुखों की नियुक्ति करते हैं ।

 

 

प्रशिक्षण संस्थाएँ:

भारत की रक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ और शक्तिशाली बनाने के लिए सेनाधिकारियों और सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जाता है । इस प्रशिक्षण के फलस्वरूप उनके आत्मविश्वास और कार्यक्षमता में वृद्‌धि होती है ।

प्रशिक्षण अवधि में उन्हें रक्षाकार्य से संबंधित कौशलों को आत्मस्तुत करने का अवसर प्राप्त होता है । उनमें ध्येय निष्ठा, देश के प्रति अभिमान और सांघिक प्रवृत्ति जैसी मनोवृत्तियों का पोषण होता है और प्रशिक्षण का यही लाभ है । वर्तमान समय में भारत की सेना सेवाओं में महिलाओं के लिए कई अवसर उपलब्ध हैं ।

सेनाधिकारियों और सैनिकों को प्रशिक्षित करने हेतु अनेक प्रशिक्षण संस्थान कार्यरत है । उनमें से पुणे में ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ‘ (नैशनल डिफेंस एकेडमी) देहरादून में ‘भारतीय सेना अकादमी ‘ (इंडियन मिलिट्री एकेडमी) दिल्ली में ‘राष्ट्रीय रक्षा महाविद्‌यालय’ (नैशनल डिफेंस कालेज) महत्वपूर्ण प्रशिक्षण संस्थौन हैं ।

अर्धसैनिक बल:

देश के भीतरी भागों में सुरक्षा बनाए रखने, समुद्री तट को सुरक्षित रखने और तीनों सेनाओं की सहायता करनेवाली सेना को ‘अर्धसैनिक बल’ कहते हैं । अर्धसैनिक बल में सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force), तटरक्षक बल (Coast Guard), केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल (Central Reserve Police Force), शीघ्र कृति बल (Rapid Action Force) आदि का समावेश है ।

रेल स्थानक, तेल भंडारण, जलाशय आदि महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा का दायित्व अर्धसैनिक बलों पर होता है । इसी भांति प्राकृतिक अथवा मानवनिर्मित आपदाओं के प्रबंधन में उनका प्रतिभाग रहता है । शांति काल में देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा का दायित्व अर्धसैनिक बलों पर होता है ।

सीमावर्ती क्षेत्रों में रहनेवाले नागरिकों में सुरक्षा की भावना उत्पन्न करने तस्करी की रोकथाम करने और सीमा पर गश्त लगाने का कार्य सीमा सुरक्षा बल करता है । भारत के समुद्री तटों की रक्षा हेतु तटरक्षक बल का गठन किया गया है ।

भारत की समुद्री सीमा के भीतर मछली पकड़ने के व्यवसाय को सुरक्षा प्रदान करना समुद्री मार्ग से चलनेवाले तस्करी व्यापार की रोकथाम करना जैसे कार्य तटरक्षक बल करता है । कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने हेतु केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल राज्य के प्रशासन कार्यों में सहायता करता है । बम विस्फोट, देंगे-फसाद, के कारण देश की सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न होने पर शीघ्र कृति बल त्वरित कार्यवाही कर जनजीवन को सुचारु रूप से चलाने का कार्य करता है ।

राष्ट्रीय छात्र सेना अर्थात ‘नैशनल कैडेट कोर’ (एन.सी.सी) की स्थापना छात्रों में अनुशासन और सैनिक शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न करने के उद्‌देश्य से की गई है । राष्ट्रीय छात्र सेना में विद्‌यालयों और महाविद्‌यालयों के छात्र-छात्राएं प्रवेश ले सकते है ।

गृहरक्षक बल (होमगार्ड):

स्वतंत्रता पूर्व कालखंड में गृहरक्षक बल (होमगार्ड) की स्थापना की गई थी । नागरिक गृहरक्षक बल में सम्मिलित होकर देश की रक्षा करने में अपना सहयोग दे सकते हैं । इस बल में बीस से पैंतीस आयु वर्ग का कोई भी स्त्री-पुरुष नागरिक भर्ती हो सक्ता है ।

गृहरक्षक बल पुलिस को सहयोग देते हुए सार्वजनिक सुरक्षा को बनाए रखना, दंगे-क्साद और बंद की अवधि में दूध, जल आदि जीवनोपयोगी वस्तुओं की अर्प्रित करना, यातायात का प्रबंध करना, भूकंप, बाढ़ जैसी आपदाओं में लोगों की सहायता करना आदि कार्य करता है ।

नागरिक और सुरक्षा:

युद्‌ध में होनेवाले हवाई आत्मणों और प्रक्षेपास्त्रों का उपयोग किए जाने से अनेक महानगर और नगर ध्वस्त हो जाते हैं । यातायात मार्ग, बाँध और पुल नष्ट हो जाते है । फ्लस्वरूप नागरी जीवन ही अस्त-व्यस्त हो जाता है । फै समय नागरिकों को न तो हड़बड़ाना चाहिए और न ही धीरज खोना चाहिए क्योंकि लोगों के मानसिक धैर्य और सहयोग पर सैनिक शक्ति निर्भर करती है ।

सेना को समर्थन देकर नागरिक देश के रक्षा कार्य में अपना बहुत बड़ा सहयोग दे सकते हैं । देश की रक्षा करना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है । इसके लिए यदि नागरिक, नागरी सुरक्षा, प्रथमोपचार जैसे कार्यों का प्रशिक्षण प्राप्त करें तो वे संकटकाल में देश की रक्षा का दायित्व पूर्ण कर सकते है ।

संकटकाल में कौन-सी सतर्कता बरतनी चाहिए; इसकी नागरिकों को प्राथमिक जानकारी प्राप्त होना आवश्यक है । ऐसे समय में जमाखोरी, कालाबाजारी, लूट-पाट जैसी कुप्रवृत्तियों सिर उठाती हैं । इस स्थिति में नागरिकों को दृढ़तापूर्वक ऐसी कुप्रवृत्तियों की रोकथाम करनी चाहिए ।

नागरिकों के इस प्रकार के सहयोग से देश अबाधित रूप से सुरक्षित रह सकता है । राष्ट्र की सुरक्षा अंतत: नागरिकों से मिलनेवाले सहयोग और सेना के शौर्य, धैर्य और शक्ति पर निर्भर है यह बोध नागरिकों को निरंतर होना चाहिए ।

भारतीय रक्षा विभाग के सम्मुख चुनौतियाँ:

स्वतंत्रता के पश्चात बाहरी शक्तियों ने भारत की सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न करने का प्रयत्न किया । ई.स. १९४७-४८, १९६५, १९७१ और १९९८ में पाकिस्तान और भारत के बीच युद्‌ध की स्थिति उत्पन्न हुई

थी । ई.स. १९६२ में चीन ने भारत पर आक्ष्मण किया था ।

आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच कई विवादित समस्याएँ हैं । जैसे-कश्मीर समस्या, जल बँटवारे का विवाद, घुसपैठियों की समस्या आदि । चीन और भारत के बीच का सीमा विवाद भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती है । इतना होने पर भी भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ चलनेवाले विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने हेतु अग्रसर रहा है ।

आज भारत की रक्षा व्यवस्था के सम्मुख आतंक्वाद सबसे बड़ी चुनौती है और आतंक्काद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए देश प्रयत्नशईप्त है । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकबाद को समाप्तं क्यने हेतु जो प्रयास किए जा रहे है, भारत उन प्रयासों को समर्थन दे रहा है ।

भारत में भाषा, धर्म, प्रदेश आदि की विविधता पाई जाती है परंतु इसके द्‌वारा ही हमने अपनी एक्ता को दृढ़ किया है । हमें इस अखंडता का संरक्षण और संवर्धन करना चाहिए । अपनी धार्मिक और प्रादेशिक अस्मिता का संवर्धन करते समय हमें यह सावधानी बरतनी चाहिए कि देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा उत्पन्न न हो । नागरिक के रूप में यह हमारा दायित्व है ।

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