भारतीय संसदीय प्रणाली में नियंत्रण । Control of Indian Parliamentary System in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. संसदीय नियन्त्रण की आवश्यकता एवं महत्त्व ।

सरकारों पर नियन्त्रण रखने के साधन ।

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संसदीय प्रश्नकाल: शून्यकाल/बहस/काम रोको प्रस्ताव/ध्यानाकर्षण प्रस्ताव/विधेयकों पर वाद-विवाद/धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस/बजट सम्बन्धी वाद-विवाद/अविश्वास प्रस्ताव/कटौती प्रस्ताव/संसदीय समितियां व लेखा परीक्षण ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में चुने हुए प्रतिनिधि व्यवस्थापिका, संसद तथा विधायिका के माध्यम से शासन का संचालन करते हैं । दलीय आधार पर बनायी गयी नीतियों पर चर्चा करते समय सरकार पर नियन्त्रण रखा जाता है । नेताओं पर सरकार द्वारा नियन्त्रण की प्रक्रिया को राजनीतिक शब्दावली में संसदीय नियन्त्रण कहा जाता है ।

2. संसदीय नियन्त्रण की आवश्यकता एवं महत्त्व:

लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था में जनता के हित के लिए संसद पर नियन्त्रण जनता की भावनाओं तथा देशहित में निम्नलिखित साधनों द्वारा किया जाता है ।

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संसदीय प्रश्नकाल: सरकारी नीतियों, क्रियाकलापों पर नियन्त्रण एवं जनता के ध्यानाकर्षण हेतु संसद में मन्त्रियों से प्रश्न पूछे जाते हैं । ये प्रश्न प्रश्नकाल में किसी मन्त्री से उसके विभाग की कार्यप्रणाली की प्रगति व अगति के विषय में पूछे जाते हैं ।

इससे भयग्रस्त होकर मन्त्री सावधानी से कार्य करते हैं । कार्य की आलोचना एवं समीक्षा सदन में होते रहने से जनता का हित ही होता है । संसद में तारांकित तथा अतारांकित दो प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं । पूछे जाने वाले तारांकित प्रश्नों में अल्पावधि में सूचना देकर मन्त्रियों से मौखिक प्रश्न पूछे जाते हैं ।

इनके उत्तर मौखिक ही होते हैं । इन प्रश्नों के अतिरिक्त प्रतिग्रश्न भी पूछ सकते हैं । अतारांकित प्रश्न अध्यक्ष द्वारा स्वीकृत किये जाने पर लिखित रूप में दिये जाते हैं । इन प्रश्नों की सूचना सम्बन्धित मन्त्री को 10 दिन पूर्व दी जाती है । सार्वजनिक महत्त्व के मामलों में अल्पावधि की सूचना में भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं । प्रश्न किसी विशेष नाम से सम्बन्धित नहीं होने चाहिए, जबकि उसकी आवश्यकता न हो ।

प्रश्न में प्रामाणिकता होनी चाहिए । दोषारोपण, चरित्रहनन नहीं होना चाहिए । 150 शब्दों से अधिक के प्रश्न न हों, प्रश्न द्वारा सरकार से जानकारी प्राप्त कर उसके दृष्टिकोण को जानना, त्रुटिपूर्ण कार्यों में सुधार लाना, जनसाधारण की शिकायतें सरकार तक पहुंचाना महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है । अनुपूरक प्रश्नों के माध्यम से मन्त्रियों के विभागीय ज्ञान एवं जानकारी की परीक्षा की जाती है ।

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शून्यकाल:  इसको अंग्रेजी में जीरो ऑवर कहते हैं । प्रश्नकाल समाज होते ही शून्यकाल प्रारम्भ होता है । इस समय सामयिक विषयों पर मन्त्रियों को बिना पूर्व सूचना दिये हुए उनसे प्रश्न पूछ सकते हैं । शून्यकाल संसदीय नियन्त्रण का स्विच है ।

बहस:  सार्वजनिक महत्त्व के किसी भी मामले पर लिखित या मौखिक विषय सम्बन्धी बहस उघधे घण्टे की होती है । इसकी सूचना तीन दिन के भीतर देनी होती है ।

काम रोको प्रस्ताव:  काम रोको प्रस्ताव दैनिक नियन्त्रण का ऐसा प्रभावशाली साधन है, जो अतिआवश्यक मामले की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने हेतु अध्यक्ष द्वारा अनुमति के उपरान्त उठाये गये मुद्दे पर तुरन्त प्रारम्भ हो जाता है ।

संसद का कार्य कुछ समय के लिए रुक जाता है । 50 सदस्यों के समर्थन के साथ अध्यक्ष की अनुमति से संकटकालीन परिस्थिति में इसे लाया जाता है । ऐसे किसी विशिष्ट सार्वजनिक मामले में देर करना समाज के लिए घातक हो, तो इसे तत्काल लाना चाहिए । इसमें बहस 2 घण्टे की बहस से मिन्न होती है । बहस के अन्त में मतदान होता है ।

ध्यानाकर्षण प्रस्ताव: अध्यक्षा की अनुमति प्राप्त कर कोई संसद सदस्य सार्वजनिक महत्त्व के मामले पर सरकार का ध्यानाकर्षण करने हेतु यह प्रस्ताव लाकर सम्बन्धित मन्त्री से उस सम्बन्ध में वक्तव्य के लिए निवेदन कर सकता है । यह अनिवार्य है कि ध्यानाकर्षण की सूचना उसी दिन दी जानी है, जिस दिन वह प्रकरण सार्वजनिक प्रक्रिया के रूप में आया हो । सदस्य मन्त्री के वक्तव्य के बाद प्रश्न पूछ सकते हैं ।

ध्यानाकर्षण प्रस्ताव राष्ट्रीय एकता, देश की सुरक्षा, खाद्य समस्या, अकाल, बाढ़ की गम्भीर समस्या या अनिवार्य सेवाएं, कानून व्यवस्था से सम्बन्धित, विदेशी सरकार द्वारा की गयी कार्रवाई, जिससे देश के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो, जिसका सम्बन्ध भारतीय नागरिकों एवं राजनायिकों से हो; पड़ोसी देश में घटी हुई गम्भीर प्रकृति की घटनाएं, आम जनता के उपभोग की वस्तुओं का भण्डारण एवं संरक्षण केन्द्र एवं राज्य सरकार के बीच उठे हुए गम्भीर विवाद से सम्बन्धित होना चाहिए ।

विधेयकों पर वाद-विवाद:  विधायिका की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किये जाने वाले विधेयकों के विभिन्न वाचन स्तरों पर सांसदों, विधायकों को खुलकर बहस करने एवं सरकार की नीति की आलोचना का अधिकार प्राप्त होता है ।

धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस:  संसदीय शासन प्रणाली में संसद का सत्र राष्ट्राध्यक्ष, राष्ट्रपति के भाषण से प्रारम्भ होता है । सरकार द्वारा तैयार किये हुए इस लिखित भाषण में सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों, विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त उपलब्धियों तथा भविष्य के कदमों की जानकारी होती है ।

राष्ट्रपति के भाषणोपरान्त सरकार द्वारा इस पर सदन में धन्यवाद प्रस्ताव रखा जाता है, जिस पर तीखी बहस होती है । संसद सरकार की भूलों की आलोचना करती है । सरकार के बहुमत के कारण इसमें संशोधन प्रस्ताव पास नहीं हो पाता, किन्तु तीव्र विरोध के कारण कई संशोधन करने भी पड़ते हैं ।

 

बजट सम्बन्धी वाद-विवाद:  संसद को सरकार द्वारा प्रस्तुत वित्त विधेयकों को पूरी तरह अस्वीकृत करने, संशोधित करने अथवा पारित करने का पूरा-पूरा संवैधानिक अधिकार प्राप्त है । व्यवस्थापिका की स्वीकृति के बिना सरकार न तो राजकोष से कोई व्यय कर सकती है और न कोई नया कर लगाकर कराधान सम्बन्धी संशोधन कर सकती है ।

बजट सम्बन्धी वाद-विवाद के दौरान सांसदों, विधायकों को सरकार की कार्यप्रणाली की समीक्षा करने के लिए निम्नलिखित अवसर मिलते हैं:

1. बजट प्रस्तुत करने के बाद उस पर सामान्य चर्चा के समय इसके अन्तर्निहित सिद्धान्तों एवं नीति सम्बन्धी मुद्दों पर सरकार की आलोचना का अवसर मिलता है ।

2. अनुदान मांगों पर मतदान के समय सांसदों को कार्यपालिका की आलोचना का दूसरा अवसर प्राप्त होता है । इस अवसर पर मन्त्रालय की मांग पर पृथक्-पृथक् चर्चा होती है । कटौती के प्रस्ताव पेश किये जाते हैं । मुद्दों पर कभी-कभी चर्चा इतनी विस्तृत एवं उग्र हो जाती है कि सरकार को ध्यान देना अनिवार्य हो जाता है ।

अविश्वास प्रस्ताव:  जब सरकार की सम्पूर्ण या आशिक नीति दोषपूर्ण होती है, तो असन्तुष्ट सांसद लोकसभा द्वारा कम-से-कम 50 सदस्यों के समर्थन से सरकार के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर सकते

हैं । लोकसभा में ऐसा प्रस्ताव भले ही पास न हो, किन्तु सरकार को अपनी भूल पर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है ।

यदि सदन में इस तरह का प्रस्ताव बहुमत से पास हो जाये, तो सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् को सामूहिक रूप से त्यागपत्र देना होता है । कई सरकारें इस तरह के प्रस्ताव के पारित होने से पूर्व ही त्यागपत्र दे देती हैं । यदि कोई मन्त्री या मन्त्रिपरिषद की असफलता के प्रति सदन की ओर से दुःख या रोष व्यक्त किया जाता है, तो उसके प्रति निन्दा प्रस्ताव भी लाया जा सकता है । इस तरह आलोचना के भय से सरकार और मन्त्री सतर्क रहते हैं ।

कटौती प्रस्ताव:  सरकार या किसी विभाग द्वारा धन के लिए प्रस्तावित मांगों में कटौती का प्रस्ताव किया जाता है । यह प्रस्ताव अध्यक्ष अपने विवेक से स्वीकार करता है । इस कटौती प्रस्ताव में विधेयक प्रस्तुत करते समय सदस्य को यह बताना होता है कि सरकार किस नीति में कटौती चाहती है । अर्थगत कटौती का उद्देश्य किसी मद में मांगी गयी राशि में कटौती से है ।

संसदीय समितियां:  संसद में सरकारी कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की समितियों में लोकलेखा समिति, सार्वजनिक उपक्रम समिति, आश्वासन समिति प्रमुख है । इन समितियों में होने वाले विचार ठोस, दलीय एवं राजनीति से परे होते हैं, जिनके द्वारा सरकार की कार्यप्रणाली पर नियन्त्रण उसे सचेत रखने कै लिए किया जाता है ।

लेखा परीक्षण समिति:  सरकार द्वारा विभिन्न मदों पर किये जाने वाले व्यय पर नियन्त्रण रखने वाला नियन्त्रक महालेखा परीक्षक कहलाता है । यह अधिकारी सरकार की ओर से विभिन्न विभागों के आय-व्यय के सम्पूर्ण परीक्षण के पश्चात् अपना प्रतिवेदन लोकसभा के पटल पर रखवाता है, जिस पर सदन बहस कर सरकारी वित्तीय व्यय प्रक्रिया की समीक्षा करता है ।

वर्तमान में विधानमण्डल तथा संसद द्वारा जिस प्रकार सरकार एवं प्रशासन का नियन्त्रण रखा जाता है, उसमें व्यावहारिकता की अपेक्षा सैद्धान्तिक प्रभावशीलता अधिक होती है । वास्तविक स्थिति यह है कि व्यवस्थापिका कार्यपालिका पर नियन्त्रण नहीं करती, वरन, अपनी आलोचना से प्रभावित होकर ही करती है ।

विभिन्न राजनैतिक दलों के बन जाने पर संसदीय नियन्त्रण प्रणाली में काफी कमियां आयी हैं । इन कमियों को दूर करने के लिए जो सुझाव दिये जा सकते हैं, वे हैं:

1. संसद व विधानमण्डलों के कार्य दिवस अधिक हों, ताकि विभिन मुद्दों पर समीक्षा, बहस हो सके ।

2. सांसद और विधायकों को सार्थक एवं समीक्षा बहस हेतु अल्पकालीन प्रशिक्षण दिये जाने चाहिए । विभिन्न राजनैतिक दल अपने सांसदों और विधायकों के लिए मिल-जुलकर एक ऐसी आचरण संहिता तैयार करें, जिससे राष्ट्रपति, राज्यपाल के भाषण के दौरान शोरगुल, हंगामा जैसे असंसदीय कृत्य न हों ।

3. संसद में ऐसी आचार संहिता निर्मित हो कि सदन में यदि एक सदस्य बोल रहा है, तो दूसरा बीच में टोका-टाकी न करे । सभी को बोलने का अवसर दे ।

4. प्रश्नों के उत्तर गम्भीरता से दें ।

5. उत्तम कार्य संचालन प्रक्रिया हेतु नियमों का सख्ती से पालन हो ।

4. उपसंहार:

इस प्रकार स्पष्ट है कि लोकतान्त्रिक शासन-प्रणाली की प्रभावी एवं उत्तम कार्यशैली का श्रेष्ठ उदाहरण संसद पर नियन्त्रण की प्रणाली है । आवश्यकता इस बात की है कि इस स्वस्थ परम्परा एवं प्रक्रिया के दौरान दलीय अनुशासनहीनता नहीं होनी चाहिए । यदि व्यवस्था स्वस्थ, सुदृढ़ एवं नियन्त्रित होगी, तो हमारा लोकतन्त्र जनहित की शुद्ध भावना से कार्य करेगा ।

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