विदेश नीति पर अनुच्छेद | Paragraph on the Foreign Policy in Hindi!

अन्य राष्ट्रों के साथ राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व्यवहार करते समय हमें कुछ उद्‌देश्य निश्चित करने होते हैं । ये व्यवहार कुछ नियमों के अनुसार ही किए जाते है और इन नियमों का अंतर्भाव विदेश नीति में रहता है । इस पाठ में हम विदेश नीति का अर्थ और उसपर प्रभाव डालनेवाले घटकों की जानकारी प्राप्त करेंगे ।

अत: हमें इन महत्वपूर्ण संकल्पनाओं के अर्थ मान्त होने चाहिए क्योंकि विभिन्न राष्ट्रों के बीच के संबंधों को समझने के लिए ये संकल्पनाएं महत्वपूर्ण हैं ।

सार्वभौम राष्ट्र किसे कहते हैं ?

विश्व में कई छोटे-बड़े राष्ट्र हैं । प्रत्येक देश का अपना निश्चित अदेश होता है । उसमें निवास करनेवाले लोग उस देश के नागरिक होते हैं । सार्वभौम राष्ट्र को अपने प्रदेश में रहनेवाले लोगों के कल्याण हेतु उचित निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त रहता है ।

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जिन देशों के प्रशासन पर बाहरी देशों का किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं होता और जो अपने देश के आंतीरक क्षेत्र में सर्वशक्तिसंपन्न होते हैं तथा स्वतंत्रतापूर्वक अपना प्रशासन चलाते हैं; उन्हें सार्वभौम देश कहा जाता है । इस अर्थ में भारत एक सार्वभौम राष्ट्र है ।

पारस्परिक निर्भरता:

विश्व का कोई भी राष्ट्र समग्र रूप से आत्मनिर्भर नहीं होता है । निर्धन-संपन्न अथवा विकसित-विक्खनशील सभी देश विभिन्न कारणों और उद्‌देश्यों को लेकर एक-दूसरे पर निर्भर रहते है । इसे पारस्परिक निर्भरता कहते है । विभिन्न राष्ट्रों के बीच की पारस्परिक निर्भरता मित्रता के आधार पर होनी चाहिए । इसी से सभी के हित पूर्ण हो सकते हैं ।

विश्व में शांति बनी रहना सभी का स्वयं को सुरक्षित समझना, विभिन्न राष्ट्रों के बीच के संबंधों का सहयोग सामंजस्य और मित्रता पर आधारित होना अत्यंत महत्वपूर्ण है । यदि विश्व में शांति और सुरक्षा होगी तभी प्रत्येक देश को अपनी जनता के विकास हेतु अनुकूल स्थिति निर्मित करना संभव होगा ।

राष्ट्रीय हित:

अपने देश के सार्वभौमत्व का संरक्षण करने, आर्थिक विकास को प्राथमिकता देने और अन्य राष्ट्रों के सत्य संबंधों में अपने हितों की रक्षा करने को ‘राष्ट्रीय हित’ कहते हैं । विभिन्न राष्ट्रों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक आदि अलग-अलग प्रकार के संबंध होते हैं । अन्य राष्ट्रों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय प्रत्येक राष्ट्र को यह सावधानी रखनी पड़ती है कि वह व्यवहार उस देश की स्वतंत्रता में बाधा न बने ।

विदेश नीति:

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राष्ट्र हित के संरक्षण और संवर्धन के लिए अन्य राष्ट्र के साथ किए जानेवाले व्यवहार के विषय में जिस नीति का अनुसरण किया जाता है; उसे विदेश नीति   कहते     है । प्रत्येक राष्ट्र विदेश नीति का एक स्वरूप निश्चित करता है  और उसमें समाविष्ट नियमों के अनुसार वह राष्ट्र यह निर्णय करता है कि उसे अन्य राष्ट्रों के साथ कैसा और  किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए ।

विदेश नीति पर प्रभाव डालनेवाले घटक:

किसी भी देश की विदेश नीति पर प्रभाव डालनेवाले अनेक घटक होते हैं । उनमें से यहाँ हम कुछ घटकों की जानकारी प्राप्त करेंगे ।

भौगोलिक स्थान:

विदेश नीति पर देश का आकार, प्राकृतिक संरचना प्राकृतिक संसाधन और भौगोलिक क्षेत्र का प्रभाव पड़ता है । भारत के वैशिष्ट्रयपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र के कारण उसके पड़ोस में अनेक राष्ट्र हैं । अत: विदेश नीति तय करते समय हमें इन पड़ोसी राष्ट्रों का विचार करना आवश्यक होता है ।

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जनसंख्या:

विदेश नीति पर प्रभाव डालनेवाला दूसरा घटक जनसंख्या है । जिस देश की जनसंख्या कम है, उस देश के पास अपनी साधन सामग्री का उपयोग विकास कार्य में करने हेतु मानवशक्ति का अभाव होता है । इसके विपरीत जिस देश की जनसंख्या अधिक होती है; उस देश को अपनी अस्त आवश्यकताओं को पूर्ण करने की ओर ध्यान देना पड़ता है ।

अत: अन्य राष्ट्रों पर उसकी निर्भरता बढ़ जाती है । इस कारण विदेश नीति तय करने में समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है अर्थात जनसंख्या कम हो अथवा अधिक; राष्ट्र के उद्‌यमशील चरित्रसंपन्न और ईमानदार नागरिक राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं ।

सैनिक शक्ति:

जिस देश की सेना प्रबल और अत्याधुनिक होती है; वह देश विश्व में महासत्ता के रूप में उभरकर आता है । उस देश की विदेश नीति का अन्य राष्ट्रों पर प्रभाव पड़ता है परंतु जो देश सेना की दृष्टि से दुर्बल होते हैं; उन्हें स्वतंत्र विदेश नीति तय करने में अपनी सीमाओं का ध्यान रखना पड़ता है ।

अर्थव्यवस्था:

अर्थव्यवस्था और स्वतंत्र विदेश नीति के बीच निकट का संबंध है । सुदृढ़ अर्थव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में निर्णायक स्थान और आर्थिक आत्मनिर्भरता आदि का विदेश नीति पर प्रभाव पड़ता है । विकसित अर्थव्यवस्था के राष्ट्र अन्य राष्ट्रों पर अधिक मात्रा में निर्भर नहीं रहते हैं । वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप विदेश नीति पर आर्थिक घटकों के प्रभाव में वृदधि हुई है ।

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