भारतीय लोक सेवक संवर्धन प्रणाली | Read this article in Hindi to learn about:- 1. पदोन्नति का अर्थ (Meaning of Promotion) 2. पदोन्नति का सिद्धांत (Principles of Promotion) 3. समुचित पदोन्नति प्रणाली (Sound Promotion System) 4. भारत में पदोन्नति (Promotion in India).

Contents:

  1. पदोन्नति का अर्थ (Meaning of Promotion)
  2. पदोन्नति का सिद्धांत (Principles of Promotion)
  3. समुचित पदोन्नति प्रणाली (Sound Promotion System)
  4. भारत में पदोन्नति (Promotion in India)

1. पदोन्नति का अर्थ (Meaning of Promotion):

ब्रिटिश फुल्टन कमेटी (1966-68) का विचार था कि- ”सेवाओं में पुरुषों और स्त्रियों की पूर्ण क्षमताओं के विकास की प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है- सही समय पर सही पदोन्नति ।”

एल. डी. व्हाइट की व्याख्या के अनुसार पदोन्नति, मौजूदा पद से ऊँची श्रेणी के पद पर जाने वाली नियुक्ति है जिसमें पद में और आमतौर पर वेतन में बढ़ोत्तरी के साथ कार्यभार बदलता है और अधिक कठिन प्रकार का कार्य तथा उत्तरदायित्व निहित होता है ।

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अत: पदोन्नति में शामिल तत्व हैं:

1. पद में परिवर्तन- निचले पद से उच्च पद की ओर ।

2. कार्यभारों में परिवर्तन- कम कठिन प्रकार के काम से अधिक कठिन प्रकार का काम ।

3. उत्तरदायित्वों में परिवर्तन- कम उत्तरदायित्व से अधिक उत्तरदायित्व की ओर ।

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4. पदवी में परिवर्तन- निचले पदनाम से ऊँचे पदनाम की ओर ।

5. वेतन में परिर्वतन- कम वेतनमान से अधिक वेतनमान की ओर ।

परंतु सेवायोजक के दृष्टिकोण से पदोन्नति का अर्थ उच्चतर पदों को सार्वजनिक सेवाओं से भीतर के उपयुक्त और अनुभवी लोगों से भरना है । अत: इस अर्थ में पदोन्नति को ‘अप्रत्यक्ष भर्ती’ या ‘भीतर की भर्ती’ भी कहा जा सकता है ।

पदोन्नति का विपरीत है पदावनति । इसका अर्थ है- किसी कर्मचारी को उच्चतर पद से नीचे के पद पर गिराना । वास्तव में, इस प्रकार का दंड लोकसेवा आचरण नियमों के उल्लंघन पर दिया जाता है ।

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पदोन्नति तीन प्रकार की होती है:

1. निचली श्रेणी से उच्चतर श्रेणी के लिए, जैसे कि कनिष्ठ टाइपिस्ट की वरिष्ठ टाइपिस्ट के लिए ।

2. निचले वर्ग से उच्चतर वर्ग में, जैसे कि लिपिक वर्ग से कार्यकारी वर्ग के लिए ।

3. निचली सेवा से उच्चतर सेवा में, जैसे राज्य लोकसेवा से आई.ए.एस. के लिए ।


2. पदोन्नति का सिद्धांत (Principles of Promotion):

पदोन्नति के तीन सिद्धांत ये हैं:

1. वरिष्ठता सिद्धांत,

2. योग्यता सिद्धांत,

3. वरिष्ठता योग्यता सिद्धांत ।

वरिष्ठता सिद्धांत सबसे पुराना है जो वर्तमान में भी प्रचलित है । वरिष्ठता का अर्थ है- किसी कर्मचारी की सेवा अवधि । अत: इस सिद्धांत के अनुसार पदोन्नति करने में पूर्वता क्रम का निर्धारण कर्मचारियों की सेवा अवधि से किया जाता है । उदाहरण के लिए किसी पद पर ‘क’ कर्मचारी की सेवा अवधि ‘ख’ कर्मचारी से अधिक है, तो पदोन्नति का पात्र कर्मचारी ‘क’ है ।

योग्यता सिद्धांत का अर्थ है कि पदोन्नति सबसे योग्य कर्मचारी की होनी चाहिए । इस सिद्धांत के अनुसार पदोन्नति करने में पूर्वता क्रम का निर्धारण सेवा अवधि का ध्यान रखे बिना कर्मचारी की योग्यताओं और उपलब्धियों के आधार पर किया जाता है ।

पदोन्नति के लिए प्रत्याशी की योग्यता को परखने और मूल्यांकन करने के लिए निम्न तीन उपाय अपनाये जाते हैं:

(a) विभागीय प्रमुख (पदोन्नति करने वाला प्राधिकारी) द्वारा व्यक्तिगत मूल्यांकन ।

(b) पदोन्नति परीक्षा (लिखित/मौखिक) ।

(c) कार्य कुशलता (सेवा श्रेणीक्रम) ।

वरिष्ठता योग्यता सिद्धांत यह व्यवस्था देता है कि पदोन्नति का निर्णय सेवा अवधि तथा कर्मचारियों की योग्यता एवं उपलब्धियों, दोनों के आधार पर होना चाहिए । आमतौर पर पहला सिद्धांत निचले स्तरों पर और दूसरा सिद्धांत ऊपरी स्तरों और तीसरा सिद्धांत मध्य स्तरों पर लागू किया जाता है ।


3. समुचित पदोन्नति प्रणाली (Sound Promotion System):

डब्ल्यू. एफ. विलोबी ने समुचित पदोन्नति के लिए निम्नलिखित को अनिवार्य माना था:

1. सरकारी सेवाओं में सभी पदोन्नतियों के लिए ऐसे मानक विनिर्देशों को अपनाना जो पदोन्नति के लिए अपेक्षित कार्यभारों और उत्तरदायित्वों को सामने लाते हों ।

2. इन पदों का स्पष्ट वर्गों, श्रृंखलाओं, श्रेणियों और सेवाओं में वर्गीकरण ।

3. इस वर्गीकरण में राजनीतिक प्रकृति के पदों की बजाय सभी उच्चतर प्रशासनिक पदों को शामिल करना ।

4. जहाँ तक संभव हो उच्चतर पदों को भरने के लिए अंदर से भर्ती के सिद्धांत को अपनाना ।

5. कर्मचारियों की पदोन्नति को तय करने के लिए योग्यता सिद्धांत अपनाना ।

6. पदोन्नति के पात्र कर्मचारियों की सापेक्ष योग्यता के निर्धारण के लिए उपयुक्त उपायों की व्यवस्था करना ।


4. भारत में पदोन्नति (Promotion in India):

हमारे देश में पदोन्नति पद्धति के संबंध में निम्नलिखित बिंदुओं का उल्लेख किया जा सकता है:

(i) प्रभावी सिद्धांत वरिष्ठता के साथ योग्यता का है । केंद्रीय वेतन आयोगों सहित सभी सुधार समितियों तथा आयोगों ने पदोन्नति निर्धारण के लिए इसी सिद्धांत की सिफारिश की है ।

(ii) पदोन्नति करने वाला प्राधिकारी संबद्ध विभाग प्रमुख होता है । परंतु उच्चतर पदों पर पदोन्नतियाँ लोकसेवा आयोग की सलाह से की जाती है ।

(iii) विभागीय स्तर की पदोन्नतियों हेतु प्रत्याशियों का चयन करने के लिए विभागीय पदोन्नति समितियाँ (या बोर्ड) गठित की जाती है ।

(iv) अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 में स्पष्ट किया गया है कि आई.ए.एस., आई.पी.एस और आई. एफ.एस. के अधिकतम 33½ वरिष्ठ पदों को राज्य सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों से भरा जाए ।

इस प्रकार की पदोन्नतियाँ प्रत्येक राज्य में गठित चयन समिति की सिफारिशों पर की जाती हैं । इस समिति की अध्यक्षता संघ लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष अथवा सदस्य करता है ।

(v) भारत के प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की है कि पदोन्नतियों के लिए ‘गोपनीय रिपोर्ट की पद्धति’ के स्थान पर ‘निष्पादन रिपोर्ट पद्धति’ लागू की जाए ।

(vi) पदोन्नति के लिए कर्मचारियों को निम्न पाँच श्रेणियों में रखा जाता है:

1. असाधारण,

2. बहुत अच्छा,

3. संतोषजनक,

4. उदासीन,

5. बेकार ।

(vii) पदोन्नति प्राप्त किए कर्मचारी को किसी भी उस प्राधिकारी द्वारा नहीं हटाया जा सकता जो उसे पदोन्नत करने वाले प्राधिकारी के अधीनस्थ है (संविधान की धारा 311) ।

(viii) भारत में वरिष्ठता का सिद्धांत सर्वप्रथम ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1669 में स्वीकार किया था । 1793 के चार्टर एक्ट ने इसे उचित घोषित किया था । 1861 के आई. सी. एस. (इंडियन सिविल सर्विस) अधिनियम ने योग्यता सिद्धांत का भी अनुमोदन किया था ।