स्टील का हीट ट्रीटमेंट: मतलब, आवश्यकता और तरीके | Heat Treatment of Steel: Meaning, Necessity and Methods in Hindi!

Read this article in Hindi to learn about:- 1. हीट ट्रीटमेंट का अर्थ और  आवश्यकता (Meaning and Necessity of Heat Treatment) 2. स्टील की आंतरिक रचना (Constitution of Steel) 3. गर्म-ठंडा करना (Heating/Quenching Steel) and Other Details.

Contents:

  1. हीट ट्रीटमेंट का अर्थ और  आवश्यकता (Meaning and Necessity of Heat Treatment)
  2. स्टील की आंतरिक रचना (Constitution of Steel)
  3. हीट ट्रीटमेंट के लिए स्टील को गर्म-डंडा करना (Heating/Quenching Steel for Heat Treatment)
  4. हीट ट्रीटमेंट के लिए फरनेसें (Furnaces for Heat Treatment)
  5. फरनेस के तापमान की माप (Measurement of Furnace Temperature)
  6. हीट ट्रीटमेंट की विभिन्न विधियां (Different Methods of Heat Treatment)

1. हीट ट्रीटमेंट का अर्थ और

  आवश्यकता (Meaning and Necessity of Heat Treatment):

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हीट ट्रीटमेंट का हिंदी अर्थ है उष्मा उपचार अर्थात् यह एक प्रकार की क्रिया है जिसमें किसी धातु या मिश्रधातु को निश्चित तापमान पर गर्म करने के बाद किसी निश्चित दर से ठंडा किया जाता है । इस क्रिया से धातु के कुछ गुणों को ऐच्छिक यांत्रिक गुणों में परिवर्तित किया जाता है ।

आवश्यकता:

हीट ट्रीटमेंट के मुख्यतः निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं:

i. धातु को मुलायम करने के लिए जिससे उस पर दूसरी प्रकार की मशीनिंग कार्य-क्रियायें की जा सकें ।

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ii. कटिंग टूल्स में कठोरता का गुण लाने के लिए जिससे वे दूसरी धातुओं को काट सकें ।

iii. हार्ड की हुई धातुओं में भंगुरता कम करके टफनैस का गुण लाने के लिए ।

iv. धातु के ग्रेन्स को रिफाइन करने के लिए ।

v. धातु पर ठंडी या गर्म दशा में कार्य करने से उत्पन्न आंतरिक स्ट्रैसेस को दूर करने के लिए ।

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vi. धातु पर जंग लगने से बचाने के लिए ।


2. स्टील की आंतरिक रचना (

Constitution of Steel):

जब स्टील को गर्म किया जाता है उसकी आंतरिक बनावट में कुछ परिवर्तन होता है जिससे स्टील के गुणों में कुछ परिवर्तन आता है ।

स्टील को हीट ट्रीटमेंट करते समय प्रायः निम्नलिखित स्ट्रक्चर बनते हैं:

i. फेराइट:

यह शुद्ध लोहे का स्ट्रक्चर है जिसमें कार्बन की मात्रा बहुत कम होती है । इसमें चुम्बकीयता का गुण अधिक होता है । यह स्ट्रक्चर नर्म और डक्टाइल होता है ।

ii. सीमेंटाइट:

यह फेराइट और कार्बन का रासायनिक मिश्रण होता है । यह स्ट्रक्चर बहुत हार्ड और ब्रिटल होता है ।

iii. पीयरलाइट:

यह फेराइट और सीमेंटाइट का मिश्रण होता है । इसमें 87% फेराइट और 13% सीमेंटाइट होता है । यह स्ट्रक्चर बहुत ही मजबूत होता है ।

iv. ऑस्टेनाइट:

जब स्टील को अपर क्रीटिकल तापमान पर गर्म किया जाता है जो स्टील के स्ट्रक्चर में पूरी तरह से आंतरिक परिवर्तन हो जाता है । इस प्रकार जो स्ट्रक्चर बनता है वह आस्टेनाइट कहलाता है । इस स्ट्रक्चर पर स्टील नॉन-मैगनेटिक होती है ।

v. मार्टेन्साइट:

यदि आस्टेनाइट स्ट्रक्चर वाली स्टील को तुरंत ठंडा कर दिया जाये तो स्टील में जो स्ट्रक्चर बनता है वह मार्टेन्साइट कहलाता है । यह स्ट्रक्चर बहुत हार्ड और ब्रिटल होता है ।

vi. ट्रूस्टाइट:

मार्टेन्साइट स्ट्रक्चर वाली स्टील को यदि लोअर क्रीटिकल तापमान से कम तापमान पर दुबारा गर्म करके ठंडा किया जाये तो ट्रूस्टाइट स्ट्रक्चर बनता है । इस स्ट्रक्चर वाली स्टील को मशीनिंग वगैरा नहीं किया जा सकता है किंतु इसमें कंपन सहन करने की शक्ति होती है ।

vii. सॉर्बाइट:

इस प्रकार का स्ट्रक्चर ठंडा होने की दर को कंट्रोल करके प्राप्त किया जाता है । इस स्ट्रक्चर में पीयरलाइट अधिक और सीमेंटाइट कम होता है । यह स्ट्रक्चर प्रायः टेम्पर्ड स्टील में पाया जाता है ।


3. हीट ट्रीटमेंट के लिए स्टील को गर्म-डंडा करना (

Heating/Quenching Steel for Heat Treatment):

1. लोअर क्रीटिकल तापमान:

जब स्टील को गर्म किया जाता है तो उसमें तापमान धीरे-धीरे बढता है । यह तापमान जब लगभग 723C तक पहुँचता है तो इस तापमान के बाद स्टील की आंतरिक बनावट में कुछ परिवर्तन होने आरंभ हो जाते हैं । इस प्रकार जिस तापमान पर स्टील की आंतरिक बनावट में परिवर्तन आरंभ हो जाते हैं उसे लोअर क्रीटिकल तापमान कहते हैं ।

2. अपर क्रीटिकल तापमान:

जब स्टील को लोअर क्रीटिकल तापमान के बाद और अधिक गर्म किया जाता है तो जैसे-जैसे तापमान बढता जाता है वैसे-वैसे स्टील के स्ट्रक्चर में परिवर्तन होता जाता है । अंत में एक ऐसा तापमान आता है जिस पर स्टील का पूरा स्ट्रक्चर परिवर्तित हो जाता है जिसमें ऑयरन और कार्बाइड मिल जाते हैं और इसके बाद स्ट्रक्चर में परिवर्तित होना रूक जाता है ।

इस प्रकार जिस अधिक से अधिक तापमान पर स्टील का पूरा स्ट्रक्चर आस्टेनाइट में परिवर्तित हो जाता है वह अपर क्रीटिकल तापमान कहलाता है । यह तापमान स्टील में कार्बन की मात्रा पर निर्भर करना है ।

3. ट्रांसफॉर्मेशन रेंज:

लोअर क्रीटिकल तापमान से अपर क्रीटिकल तापमान तक स्टील के स्ट्रक्चर में जो परिवर्तन होता है उसे ट्रांसफॉर्मेशन रेंज कहते हैं ।

हीट ट्रीटमेंट के चरण हीट ट्रीटमेंट के निम्नलिखित तीन चरण होते हैं:

i. हीटिंग इस चरण में हीट ट्रीटमेंट करने वाले स्टील के पाई को गर्म किया जाता है जो कि स्टील की कंपोजीशन, उसके स्ट्रक्चर, आकार व साइज पर निर्भर करता है ।

ii. सोकिंग जब स्टील के पार्ट् को निश्चित तापमान पर गर्म कर दिया जाता है तो उसे कुछ समय तक उसी तापमान पर रखा जाता है । इस प्रोसेस को सोकिंग कहते हैं । ऐसा करने सेस्टील के पार्ट् का पूरा सेक्शन यूनिफार्म गर्म हो जाता है । कार्बन और लो एलॉय अवधि 10 मि.मी. थिकनैस के लिए 5 मिनट और हाई एलॉय स्टील के लिए यह अवधि 10 मि.मी. थिकनैस के लिए 10 मिनट

रखी जाती है ।

iii. क्विंचिंग:

स्टील के पाई को गर्म करने और सोकिंग समय देने के बाद उसे ठंडा करने के लिए क्विंच किया जाता है । क्विंचिंग माध्यम के रूप में प्रायः पानी, बाइन सोल्युशन, तेल और ठंडी हवा का प्रयोग किया जाता है ।

प्लेन कार्बन स्टील के लिए पानी का प्रयोग क्विंचिंग माध्यम के लिए किया जाता है । शुद्ध पानी की अपेक्षा बाइन सोल्युशन (सोडियम क्लोराइड) का बायलिंग प्वाइंट अधिक होता है जिसके शीघ्र और अच्छी क्विचिंग हो जाती है ।

एलॉय स्टील की क्विंचिग प्रायः तेल में की जाती है क्योंकि इसको ठंडा करने की दर प्लेन कार्बन स्टील की अपेक्षा कम होती है । कुछ स्पेशल एलॉय स्टीलों की हाईनिंग के लिए ठंडी हवा का प्रयोग किया जाता है ।


4. हीट ट्रीटमेंट के लिए फरनेसें (

Furnaces for Heat Treatment):

हीट ट्रीटमेंट विधियों के लिए मुख्यतः दो फरनेसे (मेनुअली कंट्रोल्ड और वातावरण कट्रील्ड) अधिकतर प्रयोग में लाई जाती है:

i. हर्थ प्रकार की फरनेमें:

इन फरनेसों को गैस, तेल या बिजली के द्वारा गर्म किया जाता है । गैस या तेल इंधन वाली हर्थ फरनेसों को हीटिंग चेम्बर और ज्वलनशीलता वाले स्थान के साथ बनाया जाता है । बिजली द्वारा ताप देने वाली हर्थ फरनेसों में इलेक्ट्रिक रेजिस्टेंस हीटिंग एलिमेंट्‌स पाई को प्रत्यक्षतः गर्म करते हैं ।

ii. बाथ प्रकार की फरनेसें:

प्रायः लीक्विड बाथ फरनेसें प्रयोग में लाई जाती हैं जिनमें विभिन्न साल और साल मिश्रण प्रयोग में लाए जाते हैं । जैसे सोडियम सायनाइड, सोडियम क्लोराइड, बेरियम क्लोराइड और आपरेशन की मांग अनुसार ऐसे ही अन्य मिश्रण । इन फरनेसों को गैस, तेल या बिजली द्वारा गर्म किया जाता है ।

एक अच्छी हीट ट्रीटमेंट फरनेस की विशेषताएं:

(क) इसके चेम्बर की सभी साइडों पर तापमान होता है ।

(ख) इसके तापमान को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है ।

(ग) वातावरण को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है ।

(घ) फरनेस के तापमान को प्रकट करने के लिए इस पर रिकार्डिंग इंस्ट्रुमेंट होता है ।

(ड.) इसका फ्लेम या इंधन जॉब के साथ प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं आता ।

(च) जॉब को मुड़ने से बचाने के लिए इसमें जॉब को आश्रय दिया जा सकता है ।

(छ) इसके हीटिंग टेम्बर में जॉब को आसानी से रखा व बाहर निकाला जा सकता है ।


5. फरनेस के तापमान की माप (

Measurement of Furnace Temperature):

निम्नलिखित का प्रयोग करके फरनेस के तापमान की माप की जा सकती है:

a. थर्मो-इलेक्ट्रिक पायरोमीटर

b. आप्टिकल पायरोमीटर

इलेक्ट्रिल पायरोमीटरर्स में थर्मोकपल का प्रयोग किया जाता है जिसे फरनेस के अंदर डाला जाता है । थर्मोंकपल के साथ जुड़े गेल्वेनोमीटर के डायल पर फरनेस के तापमान को प्रत्यक्षतः पढ़ा जा सकता है । इस प्रकार का पायरोमीटर प्रायः सॉल्ट बाथ फरनेस के लिए प्रयोग में लाया जाता है ।

आफ्टिकल पायरोमीटर का प्रयोग प्रायः हाई स्पीड स्टील की हार्डनिंग विधि में बहुत अधिक तापमान को मापने के लिए किया जाता है जहां पर तापमान 1300C तक ऊंचा चला जाता है ।


6. हीट ट्रीटमेंट की विभिन्न विधियां (

Different Methods of Heat Treatment):

I. हार्डनिंग:

यह हीट ट्रीटमेंट की एक विधि हैं जिसमें धातु पर हार्डनैस का गुण बढ़ाया जाता है । स्टील में हार्ड होने का गुण उसमें कार्बन की प्रतिशत पर निर्भर करता है ।

उद्देश्य:

(i) स्टील के पार्टस की घिसावट को रोकने के लिये ।

(ii) स्टील को अन्य धातुओं को काटने योग्य बनाने के लिये ।

(iii) स्टील में स्ट्रेग्थ बढ़ाने के लिये ।

II. टेम्परिंग:

जब स्टील के पार्टस या कटिंग टूल्स को हार्ड किया जाता है तो उनमें भंगुरता अधिक हो जाती है जिससे उनके टूटने का भय रहता है । इस कमी को दूर करने के लिये टेम्परिंग की जाती है । इसमें कुछ भंगुरता कम करके टफनैस को बढ़ाया जाता है ।

उद्देश्य:

(i) हार्ड किये हुए पार्टस से आवश्यकतानुसार हार्डनैस और भंगुरता कम करने के लिये ।

(ii) कार्य को बार-बार गर्म करने से उत्पन्न आंतरिक तनाव को दूर करने के लिये ।

(iii) स्टील में सही आंतरिक रचना लाने के लिये जिससे उसमें टफनैस और झटके सहन करने की शक्ति को बढ़ाया जा सके ।

III. एनीलिंग:

स्टील के हार्ड पार्ट्स को मशीनिंग करने योग्य बनाने के लिये मुलायम करने की विधि को एलीनिंग कहते हैं ।

उद्देश्य:

(i) हार्ड स्टील को मशीनिंग योग्य मुलायम करने के लिये ।

(ii) स्टील में डक्टिलिटी बढ़ाने के लिये ।

(iii) ग्रेन साइज को रिफाइन करने के लिये ।

(iv) इलेक्ट्रिकल और मैगनेटिक गुणों का संशोधन करने के लिये ।

(v) स्टील में उत्पन्न आंतरिक स्ट्रैसों को करने के लिये ।

IV. नार्मलाइजिंग:

स्टील पर ठंडी या गर्म हालत में कार्य करने के बाद उसे सामान्य दशा में लाने के लिये जो क्रिया की जाती है उसे नार्मलाइजिंग कहते हैं ।

उद्देश्य:

i. स्टील के पार्ट्स पर ठंडी या गर्म हालत में कार्य करने से उत्पन्न आंतरिक स्ट्रैसों को दूर करने के लिये ।

ii. ग्रेन साइज को रिफाइन करने के लिये ।

iii. आवश्यकतानुसार यांत्रिक गुणों की प्राप्ति के लिये ।


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