List of major industrial accidents that took place in India! 

औद्योगिक मनोविज्ञान में दुर्घटना शब्द का उपयोग विशेष अर्थों में किया जाता है । कार्यस्थल दुर्घटनाएँ या औद्योगिक दुर्घटनाएं सिर्फ वे होता हो जो कार्य परिस्थिति तथा कार्य संपादन प्रणालियों में कतिपय हुई त्रुटियों के कारण घटित होती है ।

दुर्घटना शब्द को परिभाषा में बांधना कठिन कार्य है, फिर भी ये ऐसी अप्रिय दुर्घटनाएं होती हो जो अप्रत्याशित होती है । मनोवैज्ञानिकों का मत है कि दुर्भिक्ष, अकाल, संक्रामक रोग, भूकंप आदि प्रत्याशित हैं और इनमें ही जानमाल की क्षति होती है, फिर भी इन्हें दुर्घटना नहीं कहा जा सकता है ।

उद्योगों संबंध में इन विचारों को उपयुक्त नहीं माना जा सकता है । औद्योगिक दुर्घटनाएं उद्योग में कार्यरत व्यक्तियों तक ही सीमित होती है, जिनका संबंध यंत्र-चालन तथा परिवहन-चालन से होता है । इन दुर्घटनाओं की उत्पत्ति कार्य तथा कार्यकर्ता से संबंधित दोषपूर्ण अवस्थाओं के कारण होती है ।

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दुर्घटना की परिभाषा कार्यों एवं परिस्थितियों के अनुरूप बदलती रहती है । आधुनिक मनोविज्ञानी दुर्घटना को नए अंदाज से देखते है । उनका मत है कि अलग-अलग देशों में श्रम कानून भी अलग-अलग हैं इसलिए दुर्घटना की परिभाषा भी बदलती रहती है ।

एक समय था जब दुर्घटना को दैवी प्रेरणा का कारण माना जाता था । विज्ञान के विकास और उद्योग में मनोविज्ञान के आगमन से इस पुरानी मान्यता को निरर्थक माना गया । इस समस्या की ओर विद्वानों का ध्यान गया, धीरे-धीरे औद्योगिक क्षेत्र में इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार किया गया ।

विद्वानों ने दुर्घटना से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रदत्तों का संकलन कर इसे अपने शोधकार्य का मुख्य विषय बना दिया । पश्चिमी देशों ने इस दिशा में बहुत प्रगति की । भारत के विद्वानों ने महत्त्वपूर्ण तथ्यों को सर्वसाधारण के समक्ष प्रस्तुत किया । आधुनिक उद्योगों में दुर्घटना को अभिशाप समझा जाता है । इन दुर्घटनाओं से उद्योग में भारी क्षति होती रहती है ।

1. बॉम्बे डॉक्स विस्फोट, 1944 (Bombay Docks Blast, 1944):

14 अप्रैल, 1944 का एक झुलसाता दिन । लंदन से फोर्ट रिटकाइनश् नामक जहाज सूखी मछली और कपास की गार्ड लेकर आया था और मुंबई गोदी में खेप उतारे जाने का इंतजार कर रहा था । द्वितीय विश्व युद्ध के कारण रुपया मुश्किल में था, इसलिए उसे स्थिरता देने के लिए जहाज पर दो मिलियन पाउड स्टर्लिग कीमत का सोना भी लदा था । अचानक ‘आग, आग’ की आवाजें और कानों को बहरा कर देने वाले भयानक विस्फोट का शोर, जो आठ किलोमीटर दूर तक सुनाई पडा और दादर तक में खिडकियों के शीशे टूट गए ।

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मुंबई ही नहीं, देश के किसी बंदरगाह में आज तक हुई इस सबसे भयानक विभीषिका का आप इस बात से अंदाज लगाइए कि गोदियों में उस वक्त काम कर रहे सैकडों कामगार तो तुरत ही मारे गए । मुंबई फायर ब्रिगेड के बहादुर जवान आकर आग बुझाने ओर बचाव कार्यों में लगे थे कि दूसरा विस्फोट हुआ, जिसमें ज्यादातर फायरमैन की जान चली गई ।

कपास के साथ जहाज पर लदे लकडियों और गोला-बारूद के कांबिनेशन ने आग में घी का काम किया । इस आग- जिसकी शुरुआत का आज तक पता नहीं चला- पर काबू पाने में कई दिन लग गए । इस विस्फोट की कहानियां आज तक सुनी और सुनाई जाती हैं । इस दिन को ऐसे दिन के रूप में याद रखा जाता है, जब मुंबई में जहाज से उडे सोने की मील भर दूर तक बारिश हुई थी । इस तरह गुम हुआ सोना 70 के दशक तक यहां की गोदियों की तलहटी में बरामद किया जाता रहा ।

2. चासनाला खान दुर्घटना, 1975 (Chasnala Khan Accident, 1975)

चासनाला खान दुर्घटना के 42 साल बाद भी उसकी याद रोंगटे खडे कर देती है । इस्को के चासनाला कोयला खदान की दिल दहला देने वाली घटना आज भी यहां के लोगों की आंखों में जिंदा है । हर घर से किसी न किसी की मौत हुई थी चासनाला में चारों तरफ सिर्फ सिसकियों की आवाज आ रही थी और कोलाहल के बीच भी भयावह सन्नाटा था ।

27 दिसंबर 1975 को इस्को के चासनाला कोलियरी में दिन के 1-30 बज रहे थे । तभी अचानक विस्फोट हुआ और तेज आवाज के साथ सत्तर लाख गैलन प्रति मिनट की दर से दामोदर का पानी चासनाला कोलियरी का गर्भ मजदूरों के लिए समाधि बन गया ।

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सैकड़ों मजदूरों की मौत हो गई तो कई मजदूर खदान के अलग-अलग भागों में फंस गए । राहत कार्य के लिए संसाधन तक नहीं थे और न ही राहत का मौका ही मिला । कितने लोग मारे गए इसकी ठीक-ठीक संख्या आज तक नहीं पता चल सकी है ।

फौरी तौर पर किए गए आपदा प्रबंधन के उपाय नाकाम रहे । हादसे की भयावहता और तकनीकी दीनता का आलम यह था कि बचाव कार्य शुरू करने में ही एक माह का वक्त निकल गया । वह भी तब जब रूस और पोलैंड ने मदद के लिए हाथ आगे बढाया ।

(1) 1975 में चासनाला खदान हादसा उन बडे हादसों में से एक था, जिसे याद करने मात्र से ही लोगों की रुह कांप जाती है ।

(2) जब चासनाला में यह भयानक घटना हुई थी, उस समय केन्द्र और राज्य दोनों ही जगह कांग्रेस का शासन था और चंडीगढ में एक मीटिंग चल रही थी ।

(3) खान दुर्घटना की बात आग की तरह फैली । दुनिया के दस बड़ी खान दुर्घटनाओं में चासनाला खान दुर्घटना की भी गिनती होती है । जब यह हादसा हुआ, इसकी खबर आग की तरह पूरी दुनिया में फैल गई थी ।

(4) कोल इंडिया के अंतर्गत आनेवाली भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की चासनाला कोलियरी केपिट संख्या 1 और 2 के ठीक ऊपर स्थित एक बड़े तलाब में जमा करीब पांच करोड गैलन पानी, खदान की छत को तोड़ता हुआ अचानक अंदर घुस गया ।

(5) इस प्रल्यकालीन बाढ में वहां काम करें सभी लोग फंस गए । तत्काल पानी निकालने वाले पम्प मंगाए गए लेकिन वो छोटे पड गए, कोलकाता स्थित विभिन्न प्राइवेट कंपनियों से संपर्क साधा गया, तब तक काफी समय बीत चुका था ।

(6) खादान में फंसे लोगों को निकाला नहीं जा सका । कंपनी प्रबंधक ने नोटिस बोर्ड में मारे गए लोगों की लिस्ट लगा दी ।

(7) चासनाला खदान में हुए हादसे को यश चोपडा ने ‘काला पत्थर’ फिल्म के माध्यम से सबके सामने रखा उनकी बनाई एक फिल्म ने देश ही नहीं बल्कि पूरी देश को झकझोर दिया था ।

(8) फिल्म 24 अगस्त 1979 में देश भर के सिनेमाघरों में दिखाई गई यकिन मानें इस मूवी ने उस समय के कई हिट फिल्मों के रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए । फिल्म ब्लॉक बस्टर साबित हुई ।

3. बाल्को औद्योगिक दुर्घटना, 2009 (Balko Industrial Accident, 2009):

छत्तीसगढ सरकार के कोरबा शहर में भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बाल्को) के बिजली संयंत्र में 23 सितम्बर को हुई चिमनी दुर्घटना को इतिहास की सबसे बडी त्रासदी बताया है । रायपुर से 240 किलोमीटर दूर स्थित कोरबा में 23 सितम्बर जब बाल्को विद्युत संयंत्र में एक निर्माणाधीन चिमनी ढह गई थी और इस दुर्घटना में 70-80 कामगारों की मौत हो गई थी जबकि हजारों घायल हो गए थे । घटिया निर्माण सामग्री के इस्तेमाल और बाल्को प्रबंधन द्वारा श्रम व औद्योगिक नियमों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप यह हादसा हुआ था ।

घटित दुर्घटनायें – शिक्षा स्रोत:

इंजीनियरी उद्योग में निरोधात्मक उपाय के अभाव में एक दर्जन लोग मारे गये:

(i) उँचाई पर कार्यरत एक क्रेन जब एक गरम धातु की लैंडल को उठा कर ले जा रही थी कि उसकी प्रमुख होइस्ट की चालन शाफ्‌ट टूट गई इससे गरम धातु की लैंडल नीचे गयी और अन्य नुकसान के साथ ही एक दर्जन लोग मारे गये ।

(ii) दृश्य धातुकर्मी एवं जाँच से शाफ्‌ट में कोई भी कमी नजर नहीं आयी ।

(iii) सघन जाँच एवं निरीक्षण के पश्चात् यह पाया गया कि शाफ्ट गियर चूड़ी के टूट जाने क कारण असफल हो गई थी ।

(iv) गियर खराब हो जाता है तो चालन गियर व शाफ्‌ट पर उत्तोलन न्यून होता जाता है तथा इस कारणवश उसी भार को उठाने के लिए अधिक बल लगाने की आवश्यकता होती है । गियर की चुड़ियों (दाँत) इतने बेकार हो चुके थे कि चालन शाफ्‌ट पर भार बढता ही गया व शाफ्‌ट टूटन शक्ति का ह्रास होकर शाफ्‌ट टूट गई ।

(v) वस्तुतः गियर का समसामयिक निरीक्षण नहीं किया गया था जिससे इस प्रकार के धातक परिणाम हुए इसी कारण ऐसी मशीनों का दक्ष निरोधात्मक रखरखाव अत्यन्त आवश्यक है ।

विषैली गैस के कारण टायलेट (निवृति गृह) में मौतें:

किसी गैस मैन के पास नव निर्मित शौचालय का प्रयोग करते समय कुछ कामगारों के मारे जाने की सूचना है पोस्टमार्टम की रिपोर्टों तथा की गयी पूछताछ से यह पता चला कि ये मौतें कार्बनमोनो आक्साइट गैस के विषैले प्रभाव से हुई । यह पाया गया कि डबल्यू सी. का प्रमुख गटरलाईन के साथ कनैक्शन ठीक नहीं था । डबल्यू. सी. में पानी की सील नहीं थी तथा का प्रावधान भी नहीं रखा गया था ।

शौचालय गैस मैन के वाहन पट के निकट स्थित थे । यह सन्देह व्यक्त किया गया कि वायु में अवस्थित कार्बन मोनो ऑक्साइड वाहित नमी के साथ आकर गटर लाइन में अपना रास्ता बना गयी और डबल्यू.सी. की राह में शौचालय में भर गई थी ।

1. शौचालयों में उपयुक्त रूप से रोशनदान नहीं थे ।

2. इस घटना के पीछे दूसरीबात यह हो सकती थी कि उच्च प्रतिशत युक्त कार्बन मोनो ऑक्साइड वाली गैस लगाकर वातावरण में भरती रही और इन गैसों को शौचालयों में भी फैलने का रास्ता बन गया और वे विषैली सिद्ध हो गयी ।

3. दूसरे सिद्धान्त का पुष्टी एक अन्य फैक्ट्री में गैय के विषैले प्रभाव के एक और मामले से होती है ।

4. एक कामगार एक अधर झूलते हुए पालने में ऊँचाई पर बैठे कर एक बडी इस्पात की चिमनी पर रंग कर रहा था कुछ समय पश्चात जब पालना नीचे लाया गया तो कामगार की मृत्यु हो चुकी थी ।

5. ठस मृत्यु का करण धमन भट्‌टी से निकलने वाली गैसे के उपर हवा में फैल जाने और रंग के सम्पर्क में आ जाने के कारण और अधिक विषैला प्रभाव उत्पन्न हुआ जिससे यह कामगार धीरे-धीरे दम तोड गया ।

6. एक संयंत्र में पम्प डिस्चार्ज लाईन में हुए लीकेज को बंद करने का कार्य यांत्रिक अनुसरक्षण विभाग को भिजवाया गया । यांत्रिक अनुरक्षण से एक फिटर और दो हैल्परो को यह कार्य दिया गया ।

फिटर ने संयंत्र ऑपरेटर को साथ ले कर कार्यस्थल देखा गया तथा अपना मत व्यक्त किया कि पहले में प्लैन्ज को टाइट करूंगा यदि फिर भी लीकेज बंद नहीं हुआ तो गैस किट बदलूंगा । इस बात से दोनों अनुरक्षण हैल्पर अनभिज्ञ थे ।

आपरेटर के जाने के उपरान्त पलैन्ज को कसा गया परन्तु लीकेज बंद नहीं हुआ तो फिटर हैल्परों को पलैन्ज को ढीला करने का निर्देश दे कर गैस किट लेने अपने अनुभाग के लिये चला, रास्ते में दूर से आपरेटर ने इशारे से पूछा तो फिटर भी इशारे से हाथ खडा करके हिलाते हुए निकल गया, तो आपरेटर ने समझ लिया कि पलैन्ज को ढीला कर रहे थे, पम्प चलने पर न्यूटल साल्युशन (करीवन 60 डिग्री सेन्टग्रेड के तापक्रम) फब्बारें की तरह निकल कर हैल्पर के शरीर पर गिरा और दुर्घटना घटित हो गई ।

इस घटना में मुख्य ध्यान देने वाली बातें:

(a) फिटर के कार्यस्थल से चले जाने के बाद हैल्परों को सम्पूर्ण कार्य व्यस्था की सुरक्षित ढंग से करने की जानकारी नहीं थी ।

(b) फिटर के हाथ हिलाने के इशारे का अभिप्राय प्रक्रिया आपरेटर ने कार्य पूरा होना समझ लिया था ।

(c) प्रक्रिया ऑपरेटर को फिटर ने अपने साथ दो हैल्परों को उक्त कार्य के लिए लाने की जानकारी नहीं दी थी, तथा प्रक्रिया ऑपरेटर ने भी उक्त सबध में पता नहीं किया ।

(d) फिटर की जो बात प्रकिया आपरेटर के साथ हुई थी उस बारे में फिटर ने अपने सहयोगी हैल्परो की नहीं बताया था ।

(e) यांत्रिक अनुरक्षण प्रभारी एवं प्रक्रिया प्रभारी दोनों ने कार्य की सम्पूर्ण प्रचालन व्यवस्था की कमबद्ध ढंग से जानकारी नहीं रखी ।

ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के उपाय:

i. फिटर को सम्भावित आवश्यक अनुसरक्ष सामिग्री जैसे औजार तथा गैसकिट शीट इत्यादि हैल्पर के साथ लेकर ही चलना चाहिये ।

ii. अनुरक्षण फिटर द्वारा किसी कारणवश यदि कार्यस्थल छोटा जाता है तो अपने हैल्परो को आवश्यकता सावधानियाँ बरतने की हिदायत अवश्य दी जानी चाहिये ।

iii. यदि संयंत्र के कर्मचारी को अनुरक्षण पर लगे कर्मचारियों की जानकारी न हो तो उसे अवश्य बताना चाहिये किस कार्य पर कितने लोग लग रहे है ।

iv. अनुरक्षण फिटर को अपने सहयोगी हैल्परों को संयंत्र कर्मचारी से क्या बात हुई है से अवगत अवश्य कराना चाहिये ।

v. ऐसे जोखिमपूर्ण कार्यों के दौरान इशारों से काम नहीं करना चाहिये ।

vi. संबन्धित मशीनरी के कन्ट्रोल स्विच के पास “कार्य चल रहा है” का बोर्ड कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व अनुरक्षण फिटर की उपस्थिति में टाँग देना चाहिये तथा कार्य हो जाने के उपरान्त ही हटाना चाहिये ।

vii. “कार्य प्रपत्र” में कार्य समाप्ति की प्रविष्टि हो जाने के उपरान्त ही कार्य पूरा होना माना जाना चाहिये तथा उसके बाद ही मशीन को चलाना चाहिये ।

viii. प्रकिया प्रभारी तथा अनुरक्षण प्रभारी को अपने संबंधित कर्मचारियों को कार्य को क्रमबद्ध तरीके से समझाना चाहिये तथा दिये गये कार्य में रखने वाली सावधानियों को भी बतलाना चाहिये ।

4. इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड (जयपुर) (Indian Oil Depot Tragedy : Jaipur)

जयपुर इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड 29 अक्टूबर 2009 को हुआ था । इस अग्निकाण्ड में राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर शहर के निकट स्थित सांगानेर में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के तेल भण्डार डिपो में भीषण आग लग गई जिसमें कंपनी को जहाँ करोडों की हानि हुई, वहीं इस दुर्घटना में 11 लोगों की मृत्यु भी हो गयी ।

जयपुर के औद्योगिक क्षेत्र सीतापुरा में भारत की तीन प्रमुख पेट्रोलियम तेल कम्पनियों में से एक इंडियन ऑयल की एक बडी तेल भण्डारण व्यवस्था है । इसमें अलग अलग कई टैंकों में पेट्रोल, डीजल, केरोसीन आदि रखे जाते है ।

इसके ठीक सामने दूसरी बडी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड की भी तेल भण्डारण व्यवस्था है । सीतापुरा इलाका मूल रूप से एक बाहरी औद्योगिक क्षेत्र है पर शहर की निरंतर बदलती मांग के कारण वहां रिहायशी व शिक्षा सम्बन्धी इमारतें भी है ।

दुर्घटना:

गुरूवार 29 अक्टूबर को सायं 7 बजे के करीब इडियन ऑयल डिपो में कर्मचारियों द्वारा पास ही के अन्य भण्डारण व्यवस्था को तेल की आपूर्ति करने के लिए दो टैंको के बीच की तेल पाइपलाइन के वाल्व खोले गये । भूलवश उन्होने जिस टैंक में तेल पूरा भरा था, वह टैंक उस के कारण उच्च दबाव में था के वाल्व पहले खोले व आगे के बाद में । इसी कारण बीच के वाल्व में एकदम से तेज रिसाव हुआ व पेट्रोल का फबारा छूट पडा । इससे हर तरफ पेट्रोल तेजी से फैल गया व ज्वलनशील पदार्थ की गैस इलाके में फैल गयी ।

पेट्रोल रिसाव होने व पेट्रोल की गंध के कारण ज्यादातर कर्मचारी व आस पास के औद्योगिक व रिहाइशी इमारतें खाली करा ली गयीं । तदोपरान्त डिपो में दुबारा विधुत चालू करने की वजह से चिंगारी भडकी व पेट्रोल ने तुरंत आग पकड ली । इससे 11 तेल के टैंको में आग लग गयी व वो धू धू कर जलने लगे ।

कार्रवाई:

घटना के बाद जिला प्रशासन ने सभी उपायों के साथ आग बुझाने की कोशिश की तथा वहां दमकल सेवा व एबुलेंस भेजी गयीं । कानून व्यवस्था सुचारु रखने व पूरे क्षेत्र को खाली कराने के लिए भारी पुलिस बंदोबस्त के साथ सेना की भी सहायता ली गयी । आग और न फैले इस उद्देश्य से अन्य शहरों से भी मदद बुलाई गयी पर विशेषज्ञों की राय के बाद आग को खुद ही बुझने के लिए छोड दिया गया व उस पर किसी भी प्रकार से पानी आदि नहीं डाला गया ।

नुकसान:

इंडियन ऑयल कंपनी को इस अग्निकांड से लगभग 1000 करोड रुपये का नुकसान हुआ व 10 करोड लीटर तेल जल कर नष्ट हो गया । इस हादसे में इंडियन ऑयल के कर्मचारियों समेंत 11 लोगों की जान गयी व करीब 150 लोग घायल हो गए ।

आसपास स्थित लगभग 500-700 इमारतों को बुरी तरह से नुकसान पहुँचा । हर इमारत को लगभग 10 लाख तक का नुकसान हुआ । भयकर धुएं के कारण पूरे शहर में प्रदूषण फैल गया व घने काले बादल बन गये इसी कारण कई जगह सूर्य का प्रकाश भी नहीं पहुंच पाया ।

पर्यावरण पर भी इसका प्रतिकूल असर पडा । जहां हवा में कई जहरीले रसायन घुल गए वहीं राजस्थान आने वाले कई पक्षी यहाँ से दूर चले गए । इस धुएं के कारण हरियाणा और दिल्ली राज्यों में धुंध महसूस किया गया ।

5. मायापुरी रेडियो लॉजिकल हादसा, 2010 (Mayapuri Radiological Incident, 2010):

पश्चिमी दिल्ली औद्योगिक क्षेत्र में शक्तिशाली रेडियोधर्मी रिसाव हुआ वह कोबाल्ट-60 था । इस घटना में पाँच लोग झुलस गए जिनमें से एक की हालत गंभीर बताई जाती है । क्षेत्र में कल रात उस समय हडकंप मच गया जब यह खबर आई कि एक कबाड की दुकान में एक रहस्यमय चमकदार वस्तु के संपर्क में आने के बाद विकिरण से पाँच लोग बीमार पड गए हैं । बार्क के पूर्व निदेशक और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने बताया कि विशेषज्ञों ने सामग्री की पहचान कोबाल्ट-60 के रूप में की है ।

कोबाल्ट-60 कोबाल्ट का एक रेडियोधर्मी आइसोटोप है जो कठोर चमकीली और भूरे रग की धातु होता है । कोबाल्ट आधारित रंग रोगन प्राचीन काल से ही आभूषणों और पेंट्‌स के लिए इस्तेमाल किए जाते रहे हैं । कोबाल्ट-60 खासकर स्टील वेल्डिंग आदि के कामों में इस्तेमाल किया जाता है । कैंसर उपचार के लिए रेडियोथेरैपी में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है ।

लोगों ने बताया कि क्षेत्र में अजीब सी गंध महसूस की गई । दिल्ली के मायापुरी इलाके में 2010 में रेडियोएक्टिव पदार्थ कोबाल्ट-60 के संपर्क में आने से एक कबाड व्यापारी सहित 5 लोग झुलस गए थे । कई दिनों की कोशिश के बाद मायापुरी इलाके से रेडिएशन कम किया गया था ।

इस मामले में दिल्ली यूनवर्सिटी के छह प्रोफेसरों पर कोबाल्ट-60 वाला पाइप लापरवाही से बेचने का आरोप लगा था । नवंबर 2009 में कर्नाटक के कैगा परमाणु संयंत्र में रेडियोएक्टिव पदार्थ ट्राइटियम प्रयोगशाला में लगे वाटर कूलर में मिला था । इससे वहां कार्यरत 55 लोग बीमार पड गए थे ।

औद्योगिक दुर्घटना दायित्व का निर्धारण:

1. दुर्घटनाओं के प्रकार के रूप में औद्योगिक दुर्घटनाओं वहाँ के कारण औद्योगिक दुर्घटनाओं के विभिन्न कारणों के होते हैं । इसके व्यापक अर्थ में, यह से रेंज कर सकते हैं छोटे को काटता है और चोट के निशान के लिए बहुत बडी आपदाओं कि लोगों के एक बडे समूह पर एक प्रभाव है । खनन, निर्माण, परिवहन और कृषि उद्योगों के औद्योगिक दुर्घटनाओं की उच्चतम घटनाओं है ।

2. औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारणों के नीचे व्यापक डिवीजनों में छंटनी की जा कर सकते हैं । असुरक्षित स्थितियों और उपासना । अपर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, बहुत ज्यादा शोर, फिसलन या असुरक्षित फर्श, चरम तापमान, के लिए जोखिम असुरक्षित काम की परिस्थितियों का उपयोग करते समय मशीनों, असमान संरचनाओं, विद्युत, दोषपूर्ण मशीनों, और दूसरों के साथ कोई समस्या कार्यस्थान के पूर्व होते हैं ।

औद्योगिक दुर्घटनाओं की रोकथाम:

(1) ज्यादातर मामलों में, औद्योगिक दुर्घटनाओं की रोकथाम औद्योगिक साइट की सुरक्षा पर विशद जानकारी देता है । उदाहरण के लिए, जब निर्माण स्थल निरीक्षण कर रहा है, ठेकेदारों सुरक्षा इजीनियरों जो चेतावनियाँ संभावित खतरे क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए उपलब्ध कराने के साथ कर रहे है ।

(2) उनके भाग के लिए, अधिकतम औद्योगिक दुर्घटना की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए सक्षम होना करने के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सेट आगे सुरक्षा मानकों के साथ अनुपालन करने के लिए कार्यकर्ताओं की जरूरत है । यदि सुरक्षा उपायों को अपनाने और सुरक्षा सावधानियों निर्माण स्थल पर ध्यान देना है, तो एक तीसरी पार्टी के लिए ठेकेदारों और सबकॉन्ट्रेक्टर्स विफल उनके खिलाफ जारी कर सकते हैं । यदि गलती पर कर्मचारी है, वे केवल श्रमिक मुआवजा प्राप्त होगा ।

(3) यदि विनिर्माण कंपनियों अक्सर इस्तेमाल किया उपकरणों जैसे कि मचान, वितासपजि और ट्रैक्टरों, गैस दबाव उपकरणों, बिजली कडक्टर, और भारी मशीनरी के रूप उवजवतप्रमक वाहनों का उत्पादन होगा इसके अलावा, औद्योगिक दुर्घटना को रोका जा जाएगा । औद्योगिक दुर्घटनाओं की रोकथाम उपकरण और मशीनरी निर्माताओं और निर्माण ठीक से ऑपरेटिंग उत्पादों को बनाए रखने के लिए मजबूर करेंगे ।

(4) जब निवारक उपाय विफल रहता है और औद्योगिक दुर्घटनाओं जगह लेता है, यह एक बस के निपटान में उत्पादन अपराधी की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण है अंत में इन सभी में, औद्योगिक दुर्घटना वकील मदद कर सकता है अगर वहाँ एक मामला दायर किया जा करने के लिए है का निर्धारण ।