Here is list of industrial accidents: 1. पेम्बरटन मिल, लॉरेन्स 1921 (Paembartan Mill, Lawrence, 1921) 2. चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना (Chernobyl Nuclear Accident) 3. फुकुशिमा परमाणु आपदा, 2011 (Fukushima Nuclear Disaster, 2011).

1. पेम्बरटन मिल, लॉरेन्स 1921 (Paembartan Mill, Lawrence, 1921):

पेम्बरटन मिल, लॉरेन्स (मैसेशसेट्‌स) ढह जाना- 10 जनवरी 1860, ओप्पाऊ विस्फोट- जर्मनी के लुडविगशैपोन में 21 सितम्बर, 1921 को बीएएसएफ प्लाण्ट में 4500 टन अमोनियम नाइट्रेट उर्वरक तथा अमोनियम सल्फेट के विस्फोट से 500-600 लोग मोर गए 2000 घायल हुए तथा 6500 से अधिक लोग बेघर हो गए ।

मिनमाटा खाडी जापान में दूषित कचरा जल का निर्गम- जापान में एक रासायनिक कारखाने से लगभग 36 वर्षों तक मिथाइल मर्करीयुक्त औद्योगिक अपशिष्ट जल बिना किसी उपचार के छोड जाता रहा । जिससे आस-पास के लोग एटैक्सिया, कमजोरी, हाथों और पैरों का सुन्न पड़ जाना, दृष्टि लकवा आदि के शिकार हुए ।

2. चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना (Chernobyl Nuclear Accident):

चर्नोबिल परमाणु दुर्घटना बहुत बडे पैमाने की एक परमाणु दुर्घटना थी जो 26 अप्रैल 1986 को यूक्रेन (तत्कालीन सोवियत संघ) में स्थित चर्नोबिल परमाणु परमाणु ऊर्जा प्लांट में हुई थी । चर्नोबिल आपदा (जिसे चेर्नोबिल दुर्घटना या बरन चेर्नोबिल के रूप में भी जाना जाता है) एक भयावह परमाणु दुर्घटना थी जो कि प्रिप्यात शहर (जो उस समय में सोवियत संघ के यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य में स्थित था) के चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र 26 अप्रैल 1986 में घटित हुई थी ।

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एक धमाकेदार विस्फोट और आग से बहुत बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी कण पश्चिमी सोवियत संघ और यूरोप के अधिकांश हिस्सों में फैल गये थे । चर्नोबिल आपदा लागत और हताहतों की संख्या के मामले में इतिहास में दर्ज हुई सबसे खराब परमाणु ऊर्जा संयंत्र दुर्घटना थी । यह अंतर्राष्ट्रीय परमाणु घटना स्केल पर अब तक हुई उन दो घटनाओं में से एक है, जोकि रत्तर 7 (अधिकतम वर्गीकरण) की घटना के रूप दर्ज है ।

3. फुकुशिमा परमाणु आपदा, 2011 (Fukushima Nuclear Disaster, 2011):

जापान के सेंदाई प्रांत में भूकंप और सुनामी भीषण दोहरा कहर बरपा था । इस भयावह तबाही से निपटने की कोशिश शुरू भी नहीं हुई थी कि फुकुशिमा दाई-इचि अणु बिजलीघर में एक-एक करके रिएक्टरों में विस्फोट होने की खबर आनी शुरू हो गई । 15,000 से ज्यादा लोग मारे गए नेशनल पुलिस एजेंसी के मुताबिक 2,000 से ज्यादा लोग आज भी लापता की सूची में हैं ।

फुकुशिमा तीन रिएक्टरों में उपयोग किए जाने वाले आपातकालीन शीतक-यंत्र शुरू में ही सुनामी द्वारा नाकाम कर दिए गए और बैटरी-चालित शीतन ने जल्दी ही साथ छोड दिया । फिर रिएक्टर की चिमनी से रेडियोधर्मीता-मिश्रित भाप बाहर निकाली गई, लेकिन अणु, भट्ठी का ताप इससे कम नहीं हुआ । ऐसी स्थिति की कभी कल्पना नहीं की गई थी और तब टोक्यो बिजली उत्पादन कंपनी (टेपको) ने इन अणु-भट्ठियों में समुद्र का पानी भरने की बात सोची ।

समुद्र का पानी भारी मात्रा में और तेज गति से रिएक्टर के केंद्रक में डाला जाना था, जो अफरातफरी के माहौल में ठीक से नहीं हो पाया । अपेक्षाकृत कम मात्रा में रिएक्टर के अंदर गए पानी ने भाप बनकर अणु-भट्टी के बाहरी कंक्रीट-आवरण को उडा दिया ।

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इस विस्फोट में न सिर्फ अणु-भट्ठी के अंदर ईंधन पिघल गया और दूर तक रेडियोधर्मीता फैली, बल्कि इन रिएक्टरों में शेष ईंधन की टकी भी खुले वातावरण के संपर्क में आई । ठीक इसी तरह का अमेरिकी डिजाइन का रिएक्टर भारत के तारापुर में भी है, जिसमें शेष ईंधन रिएक्टर भवन के ही ऊपरी हिस्से में रखा जाता है और अत्यधिक रेडियोधर्मी होता है ।

फुकुशिमा दाइ-इचि यूनिट-दो की अणु-भट्ठी प्लूटोनियम-मिश्रित ईंधन पर चलती है और वहां हुए विस्फोट से रेडियोधर्मी जहर और भी दूर तक पाया गया है । फुकुशिमा के रिएक्टर अभी तक पूरी तरह काबू में नहीं आए हैं ।

हालांकि टोक्यो बिजली उत्पादन कंपनी टेपको ने रिएक्टरों के ‘कोल्ड शटडाउन’ की घोषणा कर दी है, लेकिन उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जब ईंधन को डुबोकर रखने वाली टकी और इसमें जलप्रवाह जारी रखने वाला लूप ही नष्ट हो गया है, तो रेडियोधर्मी ईंधन के किस कदर सुरक्षित होने की उम्मीद की जा सकती है ।

फुकुशिमा दुर्घटना से रिसे कुल विकिरण और इससे होने वाले स्वास्थ्य के नुकसान का आकलन करने में दशकों लगेंगे, जैसे 2006 में ‘यूएस एकेडमी एंड साइंसेज’ ने जब 1986 में रूस में हुए चेर्नोबिल परमाणु हादसे से हुई कुल मौतों का दीर्घकालीन आकलन किया तो पाया कि लगभग दस लाख लोग इस त्रासदी के शिकार हुए ।

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परमाणु-दुर्घटना में आमतौर पर तात्कालिक क्षति कम ही होती है, लेकिन विकिरण रो निकले आयोडिन-231, सीजियम-137, प्लूटोनियम, स्ट्रांशियम-90 वगैरह तत्व लंबे समय तक हवा, पानी और आहार-तंत्र में बने रहते हैं और इससे कैंसर, ल्यूकीमिया और थायरायड जैसे घातक रोग बडे पैमाने पर होते हैं और जन्मजात अपंगता, बाँझपन आदि पीढ़ियों तक दिखने वाले दुष्प्रभाव होते हैं ।

रेडिएशन का असर प्रभावित इलाकों में सैकडों-हजारों साल तक रहता है । जापान में तो सुनामी से पैदा हुई बाढ ने स्थिति और बिगाड दी और विकिरण को दूर-दूर तक पहुंचा दिया । फुकुशिमा से 240 किलोमीटर दूर टोक्यों में भारी विकिरण पाया गया है । कई स्वतंत्र आकलनों के मुताबिक फुकुशिमा, चेर्नोबिल से बडी त्रासदी है । दुर्घटना के एक महीने बाद ही जापान में माताओं के दूध में विकिरण पाया जाने लगा था ।