Read this article in Hindi to learn about the bhopal gas tradegy.

भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई । इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है । भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए ।

भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था । जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था । मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 थी ।

मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी । अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे ।

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2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने की संख्या लगभग 38,478 थी । 3900 तो बुरी तरह प्रभावित एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये ।

भोपाल गैस त्रासदी को लगातार मानवीय समुदाय और उसके पर्यावास को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली ओद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता रहा । इसीलिए 1993 में भोपाल की इस त्रासदी पर बनाए गये भोपाल-अतर्राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को इस त्रासदी के पर्यावरण और मानव समुदाय पर होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को जानने का काम सौंपा गया था ।

कारकों का योगदान:

नवम्बर 1984 तक कारखाना के कई सुरक्षा उपकरण न तो ठीक हालात में थे और न ही सुरक्षा के अन्य मानकों का पालन किया गया था । स्थानीय समाचार पत्रों के पत्रकारों की रिपोर्टों के अनुसार कारखाने में सुरक्षा के लिए रखे गये सारे मैनुअल अंग्रेजी में थे जबकि कारखाने में कार्य करने वाले ज्यादातर कर्मचारी को अंग्रेजी का बिलकुल ज्ञान नहीं था ।

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साथ ही, पाइप की सफाई करने वाले हवा के वेन्ट ने भी काम करना बन्द कर दिया था । समस्या यह थी कि टैंक संख्या 610 में नियमित रूप से ज्यादा एमआईसी गैस भरी थी तथा गैस का तापमान भी निर्धारित 45 डिग्री की जगह 20 डिग्री था । मिक को कूलिंग स्तर पर रखने के लिए बनाया गया फ्रीजिंग प्लांट भी पॉवर का बिल कम करने के लिए बद कर दिया गया था ।

गैस का निस्तार:

2-3 दिसम्बर की रात्रि को टैन्क इ-610 में पानी का रिसाव हो जाने के कारण अत्यन्त ग्रीश्म व दबाव पैदा हो गया और टैन्क का अन्तरूनी तापमान 200 डिग्री के पार पहुंच गया जिसके तत पश्चात इस विषैली गैस का रिसाव वातावरण में हो गया । 45-60 मिनट के अन्तराल लगभग 30 मेट्रिक टन गैस का रिसाव हो गया ।

इन विषैली गैसों का प्रवाह भोपाल शहर में दक्षिण पूर्वी दिशा में था । भोपाल के वातावरण में जहरीली गैसीय बादल के प्रभाव की संभावनाएं आज भी चर्चा का विषय बनी हुई है । संभवतरू मिक के उपरान्त गैस के बादल में फोस्जीन, हाइड्रोजन सायनाइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, हायड्रोजन क्लोराइड आदि के अवशेष पाये गये थे ।

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निस्तार:

इस त्रासदी के उपरान्त भारतीय सरकार ने इस कारखाने में लोगों के घुसने पर रोक दी, अत: आज भी इस दुर्घटना का कोइ पुष्ट कारण एवम तथ्य के सामने नहीं आ पाया है । शुरूआती दौर में सी बी आई तथा सी एस आइ आर द्वारा इस दुर्घटना की छान-बीन करी गयी ।

दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव:

भोपाल की लगाभग 5 लाख 20 हजार लोगों की जनता इस विषैली गैस से सीधी रूप से प्रभावित हुई जिसमे 2,00,000 लोग 15 वर्ष की आयु से कम थे और 3000 गर्भवती महिलाये थी, उन्हें शुरुआती दौर में तो खासी, उल्टी, आन्खो में उलझन और घुटन का अनुभव हुआ । 2,259 लोगों की इस गैस की चपेट में आ कर आकस्मिक ही मृत्यु हो गयी ।

1991 में सरकार द्वारा इस खस्ता की पुष्टि 3,928 पे की गयी । दस्तावेजो के अनुसार अगले 2 सप्ताह के भीतर 8000 लोगों कि मृत्यु हुई । मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गैस रिसाव से होने वालि मृत्यु की संख्या 3,787 बतलायी गयी है ।

स्वास्थ्य देखभाल:

रिसाव के तुरन्त बाद चिकित्सा संस्थानों पर अत्यधिक दबाव पडा । कुछ सप्ताह के भीतर ही राज्य सरकार ने गैस पीडितों के लिये कई अस्पताल एवं चिकित्सा खाने खोले, साथ ही कई नये निजी संस्थान भी खोले गये ।

सर्वाधिक प्रभावित इलाकों में 70 प्रतिशत से ज्यादा कम पढे लिखे चिकित्सक थे, वे इस रासायनिक आपदा के उपचार के लिये सम्पूर्ण रूप से तैयार नहीं थे । 1988 में चालू हुए भोपाल मेमोरिअल अस्पताल एवं रिसर्च सेन्टर ने 8 वर्षों के लिये जिन्दा पीडितों को मुक्त उपचार उपलब्ध कराया ।

पर्यावरण पुनर्वास:

1989 में हुई जाँच से यह जानकारी प्राप्त हुई कि कारखानें के समीप का पानी और मिट्टी महिलयों के पनपने के लिये हानिकारक है ।

आर्थिक पुनर्वास:

त्रासदी के 2 दिन के पश्चात ही राज्य सरकार ने राहत का कार्य आरम्भ कर दिया था जुलाई 1985 में मध्य प्रदेश के वित्त विभाग ने राहत कार्य के लिये लगभग एक करोड चालीस लाख डॉलर कि धन राशि लगाने का निर्णय लिया ।

अक्टूबर 2003 के अन्त तक भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के अनुसार 554,895 घायल लोगों को व 15,310 मृत लोगों के वारिसों को मुआवजा दिया गया है ।

यूनियन कार्बाइड कारखाने के विरुद्ध प्रभार:

दुर्घटना के 4 दिन के पश्चात, 7 दिसम्बर 1984 को यु सी सी के अध्यक्ष और सी ई ओ वारेन एन्डर्सन की गिरफ्तारी हुई परन्तु 6 घन्टे के बाद उन्हे 2100+ के मामूली जुर्माने पर मुक्त कर दिया गया ।

सक्रियता:

वर्ष 1984 के बाद से ही व्यक्तिगत सक्रियतावादियों ने अहम भूमिका निभायी है, जिनमे से महत्वपूर्ण योगदान रहा श्री सतिनाथ सारडी का जिन्होंने पीडितों कि राहत के लिये सम्भावना ट्रस्ट नामक संस्था भी तैयार की ।