मगध साम्राज्य सत्ता में कैसे आया? | हिंदी | How did Magadha Empire come into Power? | Hindi.

ईसा-पूर्व छठी सदी से पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में लोहे का व्यापक प्रयोग होने से बड़े-बड़े प्रादेशिक या जनपद राज्यों के निर्माण के लिए उपयुक्त परिस्थिति बन गई । लोहे के हथियारों का इस्तेमाल होने के कारण योद्धा-वर्ग महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगा ।

खेती के नए औजारों और उपकरणों की मदद से किसान आवश्यकता से अधिक अनाज पैदा करने लगे । अब राजा अपने सैनिक और प्रशासनिक प्रयोजनों के लिए इस अतिरिक्त अनाज को एकत्र कर सकता था । यह अतिरिक्त अनाज उन शहरों को भी मिल सकता था जो ईसा-पूर्व छठी-पाँचवीं सदियों में उदित हुए थे ।

इन भौतिक लाभों के कारण किसानों का अपनी जमीन से चिपक जाना स्वाभाविक था । साथ ही वे अपने पड़ोस के नए क्षेत्रों में भी फैलने लगे । शहरों को अपने कार्यकलाप का आधार बनाकर राज्यों को खड़े होते देख लोगों में क्षेत्रीय भावना प्रबल हुई ।

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लोगों का जो लगाव अपने जन या कबीले से था वह पहले अपने गाँव-घर से हुआ और बाद में अपने जनपद या स्वसंबद्ध भू-भाग से हुआ । 450 ई॰ पू॰ के लगभग पाणिनि ने 40 जनपदों का उल्लेख किया है । ये उत्तर भारत में थे, और अफगास्तिान तथा उसके पड़ोस में मध्य एशिया में भी थे ।

महाजनपद:

पालि पुस्तकों से पता चलता है कि जनपद बढ्‌कर महाजनपद बन गए । बुद्ध के समय में हम 16 बड़े-बड़े राज्य पाते हैं जो महाजनपद कहलाते थे । इनमें अधिकतर राज्य विंध्य के उत्तर में थे और पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत से बिहार तक फैले हुए थे । इनमें मगध, कोसल, वत्स और अवंति अधिक शक्तिशाली थे ।

पूरब से शुरू करने पर पहले अंग जनपद मिलता है जिसमें आधुनिक मुंगेर और भागलपुर जिले पड़ते हैं । इसकी राजधानी चंपा थी जहाँ ईसा-पूर्व छठी सदी से आबादी होने के प्रमाण मिलते हैं । यहाँ पाँचवीं सदी ईसा-पूर्व के लगभग मिट्‌टी का किला मिला है । अंततोगत्वा अंग जनपद को पड़ोस के शक्तिशाली मगध राज्य ने अपने में मिला लिया ।

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मगध जनपद में आधुनिक पटना और गया जिला तथा शाहाबाद का कुछ हिस्सा पड़ता था । यह अपने समय का सबसे प्रमुख राज्य निकला । गंगा के उत्तर में आज के तिरहुत प्रमंडल में वज्जियों का राज्य था । यह आठ जनों का संघ था । इनमें सबसे प्रबल लिच्छवि थे जिनकी राजधानी वैशाली थी ।

इसकी पहचान आधुनिक वैशाली जिले के बसाढ गाँव से की जाती है । पुराण वैशाली को अधिक प्राचीन नगरी बताते हैं परंतु पुरातत्त्व के अनुसार बसाढ़ की स्थापना ईसा-पूर्व छठी सदी से पहले नहीं हुई थी ।

इसके पश्चिम में काशी जनपद था जिसकी राजधानी वाराणसी थी । राजघाट में की गई खुदाई से पता चलता है कि सबसे पुराना वास वहाँ लगभग 500 ई॰ पू॰ का था, और उस समय नगर मिट्‌टी के बाँध से घिरा हुआ था । जान पड़ता है कि आरंभ में काशी सबसे शक्तिशाली राज्य था । परंतु बाद में उसने कोसल की शक्ति के सामने आत्मसमर्पण कर दिया ।

कोसल जनपद में पूर्वी उत्तर प्रदेश पड़ता था । इसकी राजधानी श्रावस्ती थी, जिसकी पहचान उत्तर प्रदेश के गोंडा और बहराइच जिलों की सीमा पर के सहेत-महेत स्थान से की जाती है । खुदाई से जानकारी मिली है कि ईसा-पूर्व छठी सदी में यहाँ कोई बड़ी बस्ती नहीं थी । लेकिन हम वहाँ मिट्‌टी के किले की शुरुआत पाते हैं ।

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कोसल में महत्वपूर्ण नगरी अयोध्या भी थी जिसका संबंध रामकथा से जोड़ा जाता है । परंतु उत्खनन से पता चलता है कि 500 ई॰ पू॰ के पहले यहाँ आबादी नाममात्र की थी । कोसल में शाक्यों का कपिलवस्तु गणराज्य भी शामिल था । कपिलवस्तु राजधानी की पहचान बस्ती जिले के पिपरहवा स्थान से की गई है ।

पिपरहवा 500 ई॰ पू॰ के पहले आबाद नहीं दिखाई पड़ता है । शाक्यों की दूसरी राजधानी पिपरहवा से 15 किलोमीटर दूर नेपाल में लुंबिनी नामक स्थान पर थी । अशोक के एक अभिलेख में इसे गौतम बुद्ध का जन्मस्थान कहा गया है । नेपाल के लुंबिनी नामक स्थान में बुद्ध का जन्म हुआ और यहाँ उनका लालन-पालन हुआ । कोसल के पड़ोस में मल्लों का गणराज्य था ।

इसकी सीमा वज्जि राज्य की उत्तरी सीमा से जुड़ी थी । मल्लों की राजधानी कुसीनारा में थी जहाँ बुद्ध की मृत्यु हुई थी । कुसीनारा की पहचान देवरिया जिले के कसिया नामक स्थान से की गई है ।

पश्चिम की ओर यमुना के तट पर वत्स जनपद था । इसकी राजधानी इलाहाबाद के पास कौशांबी में थी । वत्स लोग वही कुरुजन थे जो हस्तिनापुर छोड्‌कर कौशांबी में आकर बसे थे । उन्होंने कौशांबी को इसलिए पसंद किया कि वह स्थल गंगा-यमुना के संगम के नजदीक था ।

जैसा कि उत्खननों से पता चला है ईसा-पूर्व पाँचवीं सदी में राजधानी कौशांबी की मिट्‌टी से किलेबंदी की गई थी । हमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्राचीन कुरु-पंचाल जनपदों के अस्तित्व का भी पता चला है, परंतु उत्तर वैदिक काल की तरह अब उनका राजनीतिक महत्व नहीं रह गया था ।

अवंति राज्य मध्य मालवा और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती नगरों में फैला था । इस राज्य के दो भाग थे, उत्तर भाग की राजधानी उज्जैन थी और दक्षिण भाग की महिष्मती । उत्खननों से पता चलता है कि ये दोनों नगर ईसा-पूर्व छठी सदी से महत्व प्राप्त करते गए और अंततोगत्वा उज्जैन ने महिष्मती को पछाड़ दिया । यहाँ बड़े पैमाने पर लौहकर्म का विकास हुआ और इसकी मजबूत किलेबंदी की गई ।

ईसा-पूर्व छठी सदी के आगे के भारत का राजनीतिक इतिहास इन राज्यों के बीच प्रभुत्व के लिए संघर्ष का इतिहास है । अंततः मगध राज्य सबसे शक्तिशाली बन गया और साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुआ ।