राज्यपाल पर निबंध: हिंदी में शक्ति और कार्य | Essay on Governor: Power and Functions in Hindi!

Essay # 1. राज्यपाल का अर्थ (Meaning of Governor):

यह राज्य कार्यपालिका का प्रमुख हैं । 153 में यह प्रावधान है कि भारत के प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा । बाद में संविधान संशोधन से यह तय हुआ कि एक राज्यपाल दो राज्यों का भी प्रभारी हो सकता है । इस अवस्था में उसके वेतन दोनों राज्य समान रूप से विभाजित कर लेते हैं ।

नियुक्ति (Appointment):

अनु. 155 के तहत राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा होती है । राज्यपाल का कार्यकाल अधिकतम 5 वर्षों का होता है । पर संविधान के 156 में ही यह प्रावधान है कि राज्यपाल अपने पद पर राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त ही रह सकेगा । अर्थात राष्ट्रपति यदि चाहे तो 5 वर्ष के पूर्व ही राज्यपाल को पदमुक्त कर सकता है । राज्यपाल की नियुक्ति तो राष्ट्रपति करता है, पर वह शपथ संबंधित राज्य के मुख्य न्यायाधीश से लेता है ।

ADVERTISEMENTS:

योग्यताएं (Qualifications):

अनुच्छेद 157 के अनुसार राज्यपाल नियुक्त होने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति भारत का नागरिक हो और उसकी आयु 35 वर्ष या उससे अधिक हो ।

शर्तें (Terms):

अनु. 158 के अनुसार वह व्यक्ति:

ADVERTISEMENTS:

1. किसी लाभ के पद पर न हों और

2. न ही विधानमण्डल का सदस्य हो,

3. वह कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा,

4. उसकी परिलब्धियां, वेतन भत्ते और विशेषाधिकार संसद द्वारा निर्धारित किए जाएंगे ।

ADVERTISEMENTS:

5. जब एक ही व्यक्ति को दो या दो अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है तो राज्यों के बीच उसे देय वेतन और भत्तों का आवंटन भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अनुपात में होगा ।

6. राज्यपाल के वेतन-भत्तों तथा अन्य परिलब्धियों में उसके कार्यकाल के दौरान कमी नहीं की जाएगी ।

राज्यपाल का वेतन एवं भत्ता (Governor’s Salary and Allowance):

केन्द्र राज्यपाल के वेतन, भत्तों आदि का निर्धारण करता है लेकिन उनका भुगतान राज्य की संचित निधि से किया जाता है । राज्यपाल को वेतन के रूप में प्रति माह 1,10,0000 रुपये (2008 से) दिए जाते हैं । निःशुल्क आवास, भत्ते आदि अन्य सुविधाऐं भी दी जाती हैं ।

Essay # 2. राज्यपाल के शक्तियां और कार्य (Powers and Functions of Governor):

जिस प्रकार संघ में राष्ट्रपति को कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तथा अन्य प्रशासनिक क्षेत्रों में शक्तियां प्राप्त है ठीक उसी प्रकार राज्यपाल को राज्य में ये सारी शक्तियां प्राप्त हैं । राष्ट्रपति को जितनी शक्तियां प्राप्त है, उनमें से 3 (कूटनीतिक, सैनिक व संकटकालिन) शक्तियां राज्यपाल को प्राप्त नहीं है ।

1. कार्यपालिका संबंधी शक्तियां (Executive Powers):

a. जिस प्रकार संघीय कार्यपालिका की शक्ति का प्रधान राष्ट्रपति होता है, ठीक उसी प्रकार राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रधान राज्यपाल होता है ।

b. अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित हैं और उसी के नाम से राज्य की सारी कार्यवाहियां होती हैं ।

c. राज्यपाल की कार्यपालिका शक्तियां राज्यसूची के विषय से संबद्ध है । समवर्ती सूची के विषयों पर अपने अधिकारों का प्रयोग राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति से ही कर सकता है ।

d. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का छोड़कर राज्य के सभी प्रमुख पदों पर वह नियुक्ति करता है । इनमें मुख्यमंत्री, अन्य मंत्री, राज्य निर्वाचन आयुक्त या पदाधिकारी, राज्य महाधिवक्ता, लोकायुक्त, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य तथा लोक सेवा के सभी उच्च कार्मिक शामिल हैं ।

लोक सेवा आयोग के पदाधिकारियों को छोड़कर वह सभी को पदमुक्त भी कर सकता है । कुछ पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति के समय वह राष्ट्रपति को परामर्श देता है यथा राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश । परन्तु वह इन सब शक्तियां का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करता है ।

e. राज्यपाल विधानसभा के बहुमत दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है और फिर मुख्यमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों को ।

f. राज्यपाल द्वारा झारखण्ड, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश और उड़ीसा राज्यों के लिए जनजाति कल्याण मंत्री की नियुक्ति अनिवार्य है ।

g. राज्यपाल, मुख्यमंत्री से राज्य के प्रशासन से जुड़ी किसी सूचना अथवा विधि-निर्माण संबंधी प्रस्तावों की मांग कर सकता है ।

h. राज्यपाल, मुख्यमंत्री से ऐसे किसी विषय को मंत्रिपरिषद के विचारार्थ प्रस्तुत करने की मांग कर सकता है जिससे संबंधित निर्णय किसी मंत्री ने लिया हो किंतु मंत्रिपरिषद द्वारा उस पर विचार न किया गया हो ।

i. राज्यपाल, राष्ट्रपति से राज्य में संवैधानिक आपातकाल लगाने की सिफारिश कर सकता है । राष्ट्रपति शासन की स्थिति में राज्यपाल को राष्ट्रपति के एजेंट के रूप में व्यापक कार्यपालक अधिकार और शक्तियां प्राप्त होती हैं ।

2. विधायिका संबंधी-शक्तियां (Legislative Powers):

राज्यपाल राज्य की व्यवस्थापिका का उसी तरह एक अनिवार्य अंग हैं जिस तरह संसद का राष्ट्रपति है ।

उसके प्रमुख विधायी कार्य है:

a. विधानमण्डल के सत्र को बुलाना और समाप्त करना । {अनु. 174(1)}

b. राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित कोई भी विधेयक तब तक कानून नहीं बनता, जब तक कि राज्यपाल उस विधेयक को अनुमति न दे दें ।

राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक पर राज्यपाल के पास निम्नलिखित विकल्प होते है:

(क) विधेयक पर अपनी सहमति दे या

(ख) विधेयक पर अपनी सहमति रोक ले या

(ग) विधेयक को (यदि वित्त विधेयक नहीं है) राज्य विधानमंडल में पुनर्विचार के लिए लौटा दे ।

c. विधेयक पर उसके जेबी वीटो, आन्त्यन्तिक और पुनर्विचार वीटो के अधिकार वैसे ही है, जैसे राष्ट्रपति के संसद द्वारा पारित विधेयकों पर हैं ।

d. राज्यपाल विधानमण्डल द्वारा पारित किसी विधेयक को फिर से विधानमण्डल में विचारार्थ भेज सकता है । पर यदि विधानमण्डल दूसरी बार विधेयक को उसी रूप में या संशोधित रूप में पारित कर देता है तो राज्यपाल के लिए उसे स्वीकृति प्रदान करना अनिवार्य होता है ।

e. राज्यपाल कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है, जैसे उच्च न्यायालयों की शक्ति को कम करने, संघ कार्यपालिका की शक्ति को सीमित करने वाले विधेयक, सम्पति के अनिवार्य रूप से अधिग्रहण संबंधी विधेयक आदि । इन विचारार्थ विधेयकों को राष्ट्रपति अपने विवेक से स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकता है ।

राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रोके जाने वाले विधेयक:

1. निजी संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण से संबंधित विधेयक,

2. उच्च, न्यायालय के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले विधेयक,

3. समवर्ती सूची के विषयों से संबंधित ऐसे विधेयक, जिनके संसद द्वारा बनाये गये कानूनों के विपरीत स्थिति में आने की संभावना हो,

4. ऐसा कोई विधेयक जिससे केन्द्र सरकार से विवाद होने की संभावना हो ।

सोली सोराबजी के अनुसार– विधेयक की प्रकृति यदि निम्नलिखित में से किसी भी प्रकार की है, तब भी उसे राज्यपाल आरक्षित कर सकता है:

(क) विधेयक यदि संविधान के प्रावधानों के अनुसार न हो,

(ख) राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुरूप न हो,

(ग) देश के व्यापक हित में न हो,

(घ) राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा हो,

(ड़) संविधान के अनुच्छेद 31ए के तहत अनिवार्य अधिग्रहण से जुड़ा हो ।

3. अध्यादेश की शक्ति (अनु. 213):

जब विधानमंडल का कोई भी सदन सत्र में न हो या मात्र एक ही सदन सत्र में हो तो कानून नहीं बन पाता है । ऐसी स्थिति में राज्यपाल अध्यादेश द्वारा कानून बनाता है, जो 6 सप्ताह की अवधि का होता है । यदि विधानमण्डल द्वारा 6 सप्ताह के पूर्व ही जारी अध्यादेश अस्वीकृत कर दिया जाए तो वह अध्यादेश तत्काल ही समाप्त हो जाता है ।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों में अंतर:

i. राष्ट्रपति को क्षमादान संबंधी शक्ति अनु. 72 द्वारा प्राप्त है, जबकि राज्यपाल को अनु. 161 द्वारा ।

ii. राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति सैनिक न्यायालय सहित सभी न्यायालय द्वारा दिये गये दण्ड तक विस्तृत है, जबकि राज्यपाल की क्षमादान शक्ति मात्र सिविल न्यायालय तक सीमित है ।

iii. राष्ट्रपति मृत्यु दंड को भी क्षमा कर सकता है, जबकि राज्यपाल को मृत्यु दण्ड को क्षमा करने की शक्ति प्राप्त नहीं है, उसे कम कर सकता है ।

iv. राष्ट्रपति के क्षमादान की शक्ति संघ की कार्यपालिका शक्ति तक विस्तृत है, किन्तु राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति का विस्तार अपने राज्य की कार्यपालिका शक्ति के विस्तार तक ही है ।

नोट:

राज्यपाल किसी भी अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है ।

a. राज्यपाल, राज्य वित्त आयोग, राज्य लोकसेवा आयोग और नियंत्रक तथा महालेखापरीक्षक की रिपोर्टों को राज्य विधानमंडल में रखता है ।

b. वह राज्य विधानसभा का विघटन कर सकता है {अनु. 174(2) ख} ।

c. अनु. 176 के अनुसार वह विधानसभा के संयुक्त अधिवेशन और जहां विधानसभा है, वहां मात्र विधानसभा को सम्बोधित करता है, जिसे राज्यपाल का विशेष अभिभाषण कहते हैं । ऐसा वह सामन्यतया प्रत्येक नई विधानसभा के गठित होने तथा प्रत्येक वर्ष पहले अधिवेशन में करता है । वह इन्हें सन्देश भी भेज सकता है ।

d. अनुच्छेद 333 के तहत राज्यपाल विधान-सभा में एंग्लो-इंडियन परिवार के सदस्यों की अपर्याप्तता को देखते हुए उनका मनोनयन कर सकता है । पूर्व में यह निश्चित नहीं था कितने सदस्यों का मनोनयन राज्यपाल द्वारा किया जा सकता है । 1970 के 23वें संविधान संशोधन द्वारा यह प्रावधान किया गया कि राज्य विधानसभा में एंग्लो-इंडियन परिवार के केवल एक सदस्य का मनोनयन हो सकता है ।

e. राज्यपाल के द्वारा जिन राज्यों में विधानमण्डल द्विसदनीय है, वहां विधानपरिषद में साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारिता व समाज सेवा से कुल संख्या का 1/6 मनोनित करता है ।

f. राज्यपाल, राज्य विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता के प्रश्न पर चुनाव आयोग के परामर्श से निर्णय लेता है ।

3. न्यायिक शक्तियां (Judicial Powers):

a. अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों को वही नियुक्त करता हैं ।

b. वह राज्य के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत दिये गये निर्णयों को निलम्बित विलम्बित, कम या समाप्त कर सकता है लेकिन मृत्युदण्ड को क्षमा नहीं कर सकता है, यद्यपि कम कर सकता है । (अनु. 161)

4. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers):

a. राज्यपाल के अधीन राज्य की संचित निधि होती हैं इसकी अनुमति के बिना उसमें से खर्च नहीं किया जा सकता और न ही उसमें डाला जा सकता है ।

b. इसलिए राज्य का बजट राज्यपाल की पूर्वानुमति से ही विधानमण्डल में प्रस्तुत होता है ।

c. विधानसभा में कोई भी धन-विधेयक या वित्त विधेयक राज्यपाल की पूर्वानुमति के बिना पेश नहीं किया जा सकता ।

d. राज्यपाल की अनुमति के बिना कोई भी अनुदान मांग विधानमण्डल में प्रस्तुत नहीं की जा सकती ।

e. जब राष्ट्रीय वित्तीय आपातकाल हो तब वह वित्त विधेयकों को राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेज सकता है ।

f. राज्यपाल को यह अधिकार भी प्राप्त हैं कि वह विधानमण्डल से पूरक और अतिरिक्त अनुदान की मांग करें ।

g. राज्यपाल किसी अप्रत्याशित व्यय की पूर्ति के लिये राज्य की आकस्मिक निधि से अग्रिम राशि ले सकता है ।

5. स्वविवेकीय शक्तियां (Discretionary Powers):

a. अनु. 163 राज्यपाल को स्वविवेक की शक्ति देता है, इसके तहत यह प्रावधान है कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह माने या अपने विवेक अनुसार कार्य करें, इन दोनों में से वह अपने स्वविवेक के अनुसार किसी एक को चुनता है (यह शक्ति राष्ट्रपति को प्राप्त नहीं है) ।

b. जब किसी को स्पष्ट बहुमत विधानसभा में नहीं मिला हो तो वह अपने विवेक अनुसार किसी को भी मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकता है और उसे बहुमत साबित करने के लिए समय दे सकता है ।

c. वह बहुमत साबित करने के लिए अपने समक्ष विधायकों की परेड भी करवा सकता है ।

d. वह त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में बहुमत का दावा करने वाले दलों के प्रमुख से समर्थक विधायकों की सूची भी मांग सकता है ।

e. राज्यपाल केन्द्र का प्रतिनिधि होता है । राज्यपाल को जब यह विश्वास हो जाता है कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार नहीं चल रही है तो वह राष्ट्रपति को इससे संबंधित अपनी रिपोर्ट भेजता है । ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति संबंधित राज्य में संवैधानिक आपातकाल की घोषणा करते हुए राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है (अनु. 356) ।

f. किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है ।

6. अन्य शक्तियां (Other Powers):

a. राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति भी होता है ।

b. कुछ राज्यों में राज्यपाल को कानून व्यवस्था या विकास के संबंध में या दोनों मामलों में विशेष जिम्मेदारी दी है ।

जैसे:

(क) नागालैण्ड और अरुणाचल प्रदेश में कानून और व्यवस्था से संबंधित कार्यों के सम्पादन में राज्यपाल का विशेष दायित्व है । इन राज्यों में राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह के बाद कार्यवाही के संबंध में अपना स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है ।

(ख) सिक्किम के राज्यपाल को राज्य में शांति तथा जनता के सभी वर्गों के लोगों की सामाजिक और आर्थिक प्रगति का विशेष उत्तरदायित्व भी सौंपा गया है ।

(ग) असम- जनजातीय क्षेत्रों में प्रशासन संबंधी ।

(घ) महाराष्ट्र- विदर्भ और मराठवाड़ा के लिए पृथक् विकास बोर्ड का गठन ।

(ड़) गुजरात- सौराष्ट्र और कच्छ के लिए पृथक् विकास बोर्ड का गठन ।

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