Read this article in Hindi to learn about the top eleven powers of the president of India. The powers are:- 1. कार्यपालिका शक्ति (Executive Power) 2. विधायिका शक्ति (Legislative Power) 3. राष्ट्रपति की वीटो शक्ति (President’s Veto Power) 4. अध्यादेश की शक्ति (Power of Ordinance) and a Few Others.

राष्ट्रपति को कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका अध्यादेश जारी करने तथा आपातकालीन जैसी विशिष्ट शक्तियां प्राप्त हैं ।

1. कार्यपालिका शक्ति (Executive Power):

संविधान के अनुच्छेद 53 में यह उपबंध हैं कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह अपनी इस शक्ति का उपयोग स्वयं या अधीनस्थ अधिकारियों की सहायता से करेगा । यह मंत्रिपरिषद और सरकार से संबंधित कार्य होते हैं ।

i. राष्ट्रपति कार्यपालिका का प्रधान होता है:

ADVERTISEMENTS:

भारत सरकार के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से होते है ।

ii. मंत्रिपरिषद का निर्माण और पुनर्गठन:

अनु. 74 के अनुसार राष्ट्रपति को शासन में सहायता देने के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद होगी । अनु. 75(1) के तहत प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है और उसकी सलाह से राष्ट्रपति अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है ।

अनु. 75(2) के अनुसार मंत्रिगण राष्ट्रपति के आर्शीवाद तक ही पद पर बने रहेंगे । वस्तुत: प्रधानमंत्री की सलाह पर ही राष्ट्रपति मंत्रियों के विभागों में फेरबदल करता है, उन्हें पदच्युत करता है और जरूरी होने पर बर्खास्त करता है । राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करते समय लोकसभा में उसकी समर्थन संख्या को ध्यान में रखता है ।

ADVERTISEMENTS:

सामान्य अवस्था में राष्ट्रपति बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के लिये बाध्य है, लेकिन त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में वह यह आंकलन करने के लिये स्वतन्त्र है कि किसके पीछे बहुमत है । वह अल्पमत में आ गयी सरकार या उसके प्रधानमंत्री को इस्तीफा नहीं देने पर बर्खास्त कर सकता है ।

iii. सभी पदों पर नियुक्ति, स्थानांतरण और पदमुक्ति:

वह प्रधानमंत्री, अन्य मंत्रीगण, एटार्नी जनरल, सालिसीटर जनरल, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीश, वित्त आयोग के सदस्य और अध्यक्ष, निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष, राजभाषा आयोग, पिछड़ा वर्गआयोग, अल्पसंख्यक आयोग, आदि सभी आयोग के सदस्य तथा अध्यक्षों की भी नियुक्ति करता है । मंत्रियों के विभागों में फेरबदल कर इनका स्थानांतरण करता है । वही केन्द्र के लिये सभी पदधारियों का अंतिम निष्कासनकर्ता भी है । राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को भी वही हटा सकता है ।

iv. प्रधानमंत्री से सूचना प्राप्त करना:

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प्रधानमंत्री के लिए यह आवश्यक है कि वह राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों और प्रशासन सम्बंधी कार्यवाहियों की सूचना समय-समय पर दे (अनु. 78- 1) । राष्ट्रपति को संघीय शासन से सम्बन्धित सभी कार्यवाहियों की सूचना प्राप्त करने का अधिकार है (अनु. 78-2) ।

v. राज्यों को निर्देश देना:

राष्ट्रपति किसी कार्य को करने या न करने के संबंध में राज्यों को निर्देशित कर सकता है ।

vi. राष्ट्रपति शासन:

अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के अतिरिक्त राज्य की सभी शक्तियां अपने हाथ में लेकर वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है ।

2. विधायिका शक्ति (Legislative Power):

i. लोकसभा का विघटन करना:

संविधान के अनुच्छेद 85 के प्रावधानों के तहत राष्ट्रपति को लोकसभा को विघटित करने का अधिकार प्राप्त है । राष्ट्रपति ने 1970 में लोकसभा का विघटन किया था ।

ii. संसद में अभिभाषण:

एक या दोनों सदनों में अभिभाषण दे सकता है (अनु. 86) ।

iii. संसद में विशेष अभिभाषण:

संसद से संबंधित संयुक्त अधिवेशन को सम्बोधित करता है (अनु. 87) । ऐसा दो अवसरों पर होता है- प्रत्येक नवीन लोकसभा के गठन पर तथा वर्ष के आरंभ में पहली बैठक पर ।

iv. संसद के संयुक्त अधिवेशन को बुलाना:

संविधान के अनुच्छेद 108 में यह अपबंध है कि यदि किसी साधारण विधेयक पर लोकसभा और राज्यसभा में मतभेद की स्थिति उत्पन्न हो गई है, तो राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का आह्वान कर सकता है ।

v. संसद के दोनों सदनों को आहूत और विसर्जित करता हैं । लेकिन सत्र को स्थगित राष्ट्रपति नहीं लोकसभाध्यक्ष करता है ।

vi. लोकसभा के कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति:

लोकसभाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सभी सदस्यों द्वारा किया जाता है, लेकिन लोकसभा की प्रथम बैठक को संचालित करने के लिए राष्ट्रपति वरिष्ठतम लोकसभा सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त करता है ।

vii. लोकसभा में दो एंग्लोइण्डियन व राज्यसभा में 12 सदस्यों (समाज, कला साहित्य, विज्ञान आदि से) की नियुक्त करता है । अनुच्छेद 331 में यह उपबंध है कि यदि लोकसभा में एंग्लो इण्डीयन परिवार के सदस्यों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है तो वह इस परिवार के दो सदस्यों तक का मनोनयन लोकसभा में कर सकता है ।

viii. बजट प्रस्तुत करना:

राष्ट्रपति की तरफ से बजट वित्त मंत्री संसद में प्रस्तुत करता है ।

ix. संसद को सन्देश भेजना (अनु. 86):

राष्ट्रपति विचारार्थ कोई भी संदेश संसद या उसके किसी सदन को भेज सकता है ।

x. संसद द्वारा स्वीकृत विधेयक को लौटाना, समाप्त करना या हस्ताक्षर के बाद विधेयक बनाना:

संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से ही कानून बनते हैं ।

(क) राष्ट्रपति यदि किसी विधेयक को वीटो कर दे, तो उस विधेयक का अन्त हो जायेगा ।

(ख) किन्तु यदि उसे पुनर्विचार के लिए वापस करता है, और संसद उस विधेयक को उसी रूप में पुन: पारित कर दे तो उस पर राष्ट्रपति को अपना स्वीकृति सूचक हस्ताक्षर करना आवश्यक होगा (अनुच्छेद 111) ।

(ग) अपने पाकेट वीटो के अधिकार के तहत राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को जितने दिनों तक चाहे रोक सकता है ।

xi. धन विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की पूर्वानुमति आवश्यक होती है ।

xii. संविधान के अनुच्छेद 3 में यह प्रावधान है कि नए राज्यों का निर्माण, राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन, राज्यों के नाम में परिवर्तन के लिए राष्ट्रपति की पूर्वानुमति आवश्यक है ।

xiii. दलबदल को छोड़कर (जिसका फैसला लोकसभाध्यक्ष के अधीन होता है) अन्य किसी आधार पर संसद-सदस्य की अयोग्यता के संबंध में निर्णय राष्ट्रपति चुनाव आयोग के परामर्श से करता है ।

xiv. निम्नलिखित विधेयकों को राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में पेश किया जा सकता है:

(क) धन विधेयक,

(ख) नये राज्य के निर्माण या राज्य की सीमा, नाम, क्षेत्र में परिवर्तन,

(ग) भूमि अधिग्रहण से संबंधित विधेयक,

(घ) राज्यों के वे विधेयक जो व्यापार-व्यवसाय की स्वतन्त्रता को सीमित करते हो,

(य) वे कर विधेयक जिनमें राज्य का हित हो (लेकिन कर को घटाने/समाप्त करने वाले विधेयक बिना अनुमति के संसद में पेश) ।

xv. राज्य विधानमण्डलों के विधेयकों पर राष्ट्रपति की शक्ति:

राष्ट्रपति राज्य विधानमण्डल द्वारा पेश या पारित विधेयक पर निम्नलिखित शक्ति रखता है:

(क) उच्च न्यायालय की अधिकारिता को प्रभावित करने वाले विधेयक राज्यपाल के माध्यम से अंतिम विनिश्चय के लिए राष्ट्रपति के पास आ जाते हैं ।

(ख) सम्पत्ति अधिग्रहण के विधेयक भी उक्तानुसार राष्ट्रपति के पास आ जाते हैं ।

(ग) राज्य के अन्दर या बाहर व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाने वाले राज्य विधेयकों को पेश करने के पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति लेनी पड़ती है ।

(घ) वित्तीय आपातकाल में राज्य के धन विधेयक पेश होने के पूर्व राष्ट्रपति की पूर्वानुमति अपेक्षित होती है ।

3. राष्ट्रपति की वीटो शक्ति (President’s Veto Power):

संसद द्वारा पारित विधायकों पर तथा मंत्री मंडल द्वारा दिये गये परामर्श पर राष्ट्रपति जो निर्णय लेता है, उनसे तीन तरह के वीटो उत्पन्न होते हैं ।

i. आत्यंतिक वीटो या परम वीटो:

इसका सामान्य अर्थ है कि किसी पारित विधेयक को मंत्री परिषद के परामर्श पर अनुमति न देना । राष्ट्रपति अधिकांशत: इसका प्रयोग गैर सरकारी विधेयकों को अनुमति न देकर करता है । जब पहला मंत्री मंडल त्याग पत्र दे दे और दूसरा नया मंत्री मंडल पहले के समय पारित विधेयक को अनुमति न देने की सिफारिश राष्ट्रपति से करता है तो राष्ट्रपति उसे वीटो कर सकता है ।

ii. निलंबनकारी वीटो:

इसका अर्थ है किसी विधायक को कुछ समय के लिये कानून बनने से रोक देना । इसे पुनर्विचार वीटो भी कहते हैं । इसका प्रयोग राष्ट्रपति किसी विधेयक को संसद के पास पुन: विचार के लिए भेज कर करता है । ऐसा ही प्रयोग वह मंत्री मंडल के परामर्श पर भी करता है । दोनों ही अवस्थाओं में विधेयक या सिफारिश राष्ट्रपति के पास पुन: आती है तो राष्ट्रपति को उसे अनुमति देना पड़ती है ।

iii. जेबी वीटो:

ये इसलिये उत्पन्न होता है क्योंकि किसी विधेयक पर राष्ट्रपति कितनी समयावधि में विचार करें, इसकी कोई निश्चित सीमा संविधान में नहीं दी है । अत: जब राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक या मंत्री मंडल के परामर्श को न तो पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है, न ही उस पर अनुमति देता है और न ही अनुमति देने से इन्कार करता है तब कहा जाता है कि राष्ट्रपति ने जेबी वीटो का प्रयोग किया है ।

सर्वप्रथम ज्ञानी जैल सिंह ने 1986 में पोस्ट बिल पर इस वीटो का प्रयोग किया था । 9वीं लोकसभा में राष्ट्रपति वेंकटरमन ने उनकी पूर्वानुमति के बिना पेश उस विधेयक पर जिसके अनुसार सांसदों को एक वर्ष के बाद ही पेंशन के योग्य मान लिया गया था, हस्ताक्षर नहीं किये ।

4. अध्यादेश की शक्ति (Power of Ordinance):

i. राष्ट्रपति उस समय अध्यादेश जारी करता है, जब संसद सत्रा में नहीं होती और कोई कानून बनाना जरूरी होता है । अनुच्छेद 123 के अनुसार यदि संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में से दोनों का या किसी एक का भी अधिवेशन नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है ।

ii. पहले अध्यादेश राष्ट्रपति स्वविवेक से जारी कर सकता था और उससे इसे जारी करने का कारण नहीं पूछा जा सकता था (अनुच्छेद 123-4) । लेकिन 44वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 123(4) का लोप कर न्यायपालिका को ऐसे प्रश्नों पर सुनवाई करने का अधिकार दिया गया ।

iii. संसद सत्र में आते ही 6 सप्ताह के भीतर संसद में मंजूरी आवश्यक है, अन्यथा इस अवधि के बाद वह समाप्त हो जाता है । राष्ट्रपति चाहे तो 6 सप्ताह के बाद पुन: अध्यादेश की अवधि बढ़ा सकता है ।

iv. राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश अधिकतम साढ़े सात माह तक लागू रह सकता है । क्योंकि संसद के दो सत्रों के बीच अधिकतम 6 माह का अंतर होता है और अधिवेशन के शुरू होने के 6 सप्ताह के भीतर अध्यादेश को संसद की स्वीकृति मिलना आवश्यक होती है । सामान्य काल में राष्ट्रपति उन्हीं विषयों पर अध्यादेश जारी कर सकता है, जिन विषयों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है ।

5. न्यायिक शक्ति (Judicial Power):

i. सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय की कार्य प्रक्रिया निर्धारित करना:

सर्वोच्च न्यायलय को अपनी कार्य प्रक्रिया में परिवर्तन की अनुमति राष्ट्रपति से लेनी होगी ।

ii. सुप्रीम कोर्ट की खण्डपीठ का निर्माण:

सुप्रीम कोर्ट को अपना स्थान दिल्ली से अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति लेनी होगी ।

iii. न्यायाधीशों की नियुक्ति:

अनु. 124 के अनुसार सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा । सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति हेतु वह सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श लेगा, जिन्हें वह इस हेतु उचित समझे । सर्वोच्च न्यायालयों के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के पूर्व मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करता है ।

इसी प्रकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के पूर्व वह सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श करता है अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के पूर्व इनके अतिरिक्त राज्य के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करता है ।

iv. क्षमादान का अधिकार (अनु. 72):

किसी भी न्यायालय में दिये गये निर्णय को स्थगित करना या निलम्बित करना या कम करना या समाप्त करने का अधिकार राष्ट्रपति को है ।

v. अनु. 145 के अनुसार उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति की पुर्वानुमति से न्यायालय के नियम बनाने का अधिकार प्राप्त है ।

vi. वह किसी भी मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श (अनु. 143) मांग सकता है ।

सर्वोच्च न्यायालय को राष्ट्रपति को परामर्श देने का अधिकार निम्न शर्तों के अधीन दिया गया है:

(i) राष्ट्रपति 143(1) के तहत किसी भी विषय पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांग सकता है ।

(ii) संविधान में यह स्पष्ट उल्लेखित है कि अनुच्छेद 143(2) के अतिरिक्त अन्य किसी भी मामले में उच्चतम न्यायालय परामर्श देने के लिए बाध्य नहीं है । राष्ट्रपति 143(2) में उल्लेखित विषयों पर परामर्श मांगता है तो सर्वोच्च न्यायालय को परामर्श देना अनिवार्य है ।

(iii) उक्त विषयों के अलावा अन्य मामलों में भी राष्ट्रपति सुप्रीमकोर्ट से परामर्श मांग सकता है । लेकिन इन मामलों में परामर्श देने से सुप्रीम कोर्ट इंकार कर सकता है ।

(iv) उक्त दोनों ही परिस्थितियों में सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य नहीं है ।

अब तक राष्ट्रपति ने दस बार ऐसा परामर्श मांगा है । बाबरी मस्जिद प्रकरण में परामर्श देने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया था । 2003 में गुजरात में चुनाव को लेकर अनु. 324 बनाम 174 के मुद्दे पर परामर्श मांगा गया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अपना प्रसिद्ध परामर्श दिया कि अनु. 324, अनु. 174 पर प्रभावी होगा ।

6. वित्तीय शक्ति (Financial Power):

i. राज्य की आकस्मिकता निधि का संरक्षण और व्यय का अधिकार राष्ट्रपति में निहित है ।

ii. वित्त विधेयक, धन विधेयक और अनुदान माँगे उसी की अनुमति से ही लोकसभा में प्रत्येक वित्तीय वर्ष के आरंभ में प्रस्तुत होती है । वित्त विधेयक, धन विधेयक और अनुदान की मांगो से संबंधित विधेयक राष्ट्रपति की पुर्वानुमति के बिना लोकसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता ।

iii. भारत की साख खतरे में पड़ने पर वित्तीय आपात की घोषणा करता है ।

iv. किसी भी अधिकारी, न्यायाधीश मंत्री के वेतन को समाप्त कर सकता है ।

v. आयकर से प्राप्त धनराशि केन्द्रीय और राज्य सरकारों में बाँटने और पटसन से प्राप्त होने वाली आय के बदले प.बंगाल, बिहार और उड़ीसा को आर्थिक सहायता वह दे सकता है ।

vi. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन को भी संसद में रखने का निर्देश राष्ट्रपति ही देता है ।

vii. राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत वित्त आयोग का गठन भी करता है ।

7. सैनिक शक्तियाँ (Military Powers):

i. राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमाण्डर होता है ।

ii. तीनों सेनाओं के अध्यक्षों को नियुक्त और पदच्युत कर सकता है ।

iii. तीनों सेनाओं की संयुक्त कमान के चीफ को भी नियुक्त करता है ।

iv. युद्ध आदेश या युद्ध विराम की घोषणा करता है ।

v. सैनिक न्यायालय के दण्ड को समाप्त कर सकता है ।

8. राजनयिक शक्तियाँ (Diplomatic Powers):

1. विदेशों में राजदूतों की नियुक्ति करता है, और विदेशी राजदूतों से परिचय पत्र प्राप्त करता है ।

2. विदेशों से सन्धि-समझौते (मंत्रिपरिषद के अनुमोदन के अधीन) कर सकता है । राष्ट्रपति बिना संसद के अनुमोदन के भी विदेशों से संधिया व समझौते कर सकता है ।

9. परामर्श माँगने की शक्ति (अनु. 143) (Power of Consultation):

राष्ट्रपति किसी विवाद में सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांग सकता है, लेकिन न्यायालय परामर्श देने के लिए बाध्य नहीं है । अब तक 10 बार राष्ट्रपति ने ऐसा परामर्श मांगा है । उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति भी प्राप्त परामर्श को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है ।

10. आपातकालीन शक्तियाँ (Emergency Powers):

संविधान के अनुच्छेद 352 से 360 तक में राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों के सम्बंध में उपबंध है । हमारे संविधान का आपातकालीन उपबंध जर्मनी के आपात उपबंधों पर आधारित है ।

आपातकालीन शक्तियाँ तीन स्थितियों में लागू हो सकती है:

a. युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह- अनुच्छेद 352,

b. राज्यों में सांविधानिक तंत्र की विफलता- अनुच्छेद 356,

c. वित्तीय आपात- अनुच्छेद 360 ।

राष्ट्रीय-आपातकाल (अनु. 352):

युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह होने पर राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल के लिखित परामर्श से भारत में राष्ट्रीय आपात लगा सकता है । 44वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा यह प्रावधान कर दिया गया है कि आपातकाल की घोषणा मंत्रिमण्डल के लिखित परामर्श पर ही राष्ट्रपति द्वारा की जा सकती है ।

राष्ट्रीय-आपातकाल पूरे देश में अथवा देश के किसी भाग में लागू हो सकता है । आपातकाल के दौरान राज्य विधानमण्डल भंग नहीं होता । 44वें संशोधन द्वारा ही यह व्यवस्था भी दी गई है कि आपातकाल की उद्घोषणा के एक महीने के भीतर ही संसद के दोनों सदनों-लोकसभा एवं राज्यसभा द्वारा 2/3 बहुमत से ही 6 महीने के लिए उक्त आपातकाल रह सकता है ।

संसद के एक भी सदन द्वारा अनुमोदित न होने पर यह उद्घोषणा एक महीने के बाद समाप्त हो जायेगी । 44वें संविधान संशोधन द्वारा इस आपातकालीन घोषणा को न्याय योग्य बना दिया गया है अर्थात् इसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है ।

परिणाम:

इस दौरान मौलिक अधिकारों का स्थगन (अनु. 20 एवं 21 को छोड़कर) हो जाता है । राज्यों की समस्त शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास, न्यायपालिका को छोड़कर । राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान लोकसभा अपनी कार्यावधि एक वर्ष के लिए बढ़ा सकती है, परन्तु उद्घोषणा समाप्त होने पर 6 महीने के भीतर लोकसभा का चुनाव कराना अनिवार्य होगा । यदि संसद के दोनों सदनों में से कोई भी सत्र में न हो तो अन्य विषयों की तरह राज्यसूची के किसी विषय पर भी राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार होगा ।

अनुमोदन:

राष्ट्रपति द्वारा दी गई आपात घोषणा संसद द्वारा अनुमोदित होने पर 6 माह तक तथा अनुमोदन न होने पर एक माह तक प्रवर्तन में रहती है । संसद इसे पुन: एक बार 6 माह तक बढ़ा सकती है । संविधान के अनुच्छेद 352(8) के तहत लोकसभा के न्यूनतम 1/10 सदस्य सत्र न रहने पर लोकसभाध्यक्ष को या राष्ट्रपति को आपातकाल समाप्त करने के लिए प्रस्ताव लाने की सूचना दे सकते हैं । इस प्रकार की सूचना मिलने पर 14 दिन के अंदर संसद का विशेष अधिवेशन बुलाना आवश्यक होता है ।

अब तक 3 बार राष्ट्रीय आपात लगा है:

1. 1962-1968 भारत चीन युद्ध ।

2. 1971-1976 भारत पाक युद्ध ।

3. 1975-1977 आंतरिक अव्यवस्था उत्पन्न होने की आशंका पर (इमरजेंसी) ।

राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356):

राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर राज्य की विधान सभा को निलम्बित कर राष्ट्रपति वहाँ का शासन अपने हाथों में ले लेता है । ऐसा निर्णय वह स्वविवेक या राज्यपाल के प्रतिवेदन पर लेता है । राष्ट्रपति की इस उद्घोषणा का संसद द्वारा दो महीने के भीतर साधारण बहुमत से अनुमोदित होना आवश्यक है । राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राष्ट्रपति को मंत्रिमण्डल से परामर्श लेना आवश्यक नहीं हैं ।

परिणाम:

राज्य की विधानसभा निलम्बित या भंग होने पर 6 माह के भीतर चुनाव आवश्यक होते हैं । संसद इस अवधि को पुन: 6 माह तक और अन्तिम रूप से 3 वर्ष तक के लिए बढ़ा सकती है । उद्घोषणा का नवीनीकरण एक बार में 6 महीने के लिए साधारण बहुमत से किया जा सकता है ।

संसद द्वारा राष्ट्रपति शासन की अधिकतम अवधि 3 वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है । 44वें संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि निर्वाचन आयोग द्वारा यह प्रमाणित करने पर कि राज्य में चुनाव के लिए अभी परिस्थितियां अनुकूल नहीं है या राष्ट्रीय आपातकाल रहने पर ही राष्ट्रपति शासन की अवधि 1 वर्ष से आगे बढ़ायी जा सकती है ।

सांविधानिक तंत्र की विफलता की घोषणा प्रत्येक राज्य के लिए पृथक्-पृथक् होती है । राष्ट्रपति शासन के दौरान राष्ट्रपति को उच्च न्यायालयों के अधिकारों को हस्तगत करने अथवा उससे सम्बन्धित सांविधानिक प्रावधानों को स्थगित अथवा परिवर्तित करने का अधिकार नहीं है ।

वित्तीय आपात (360):

पूरे भारत या उसके राज्य या किसी भाग में वित्तीय साख खतरे में पड़ती है, तो वहाँ वित्तीय आपातकाल लगाया जा सकता है ।

परिणाम:

उस क्षेत्र की वित्तीय शक्ति राष्ट्रपति के नियंत्रण में आ जाती है । राज्य के वित्त विधेयक राज्यपाल, राष्ट्रपति के पास भेजेगा । वेतन भत्ते, सभी कार्मिकों के (न्यायाधीशों के भी) बन्द किये जा सकते हैं ।

अनुमोदन:

2 माह के भीतर संसद में साधारण बहुमत से अनुमोदन आवश्यक, अन्यथा यह आपात स्वमेव समाप्त हो जाएगा । वित्तीय आपतकाल की अवधि निश्चित नहीं है । भारतीय संविधान में वित्तीय आपातकाल का उपबंध संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से गृहीत है । अब तक एक बार भी वित्तीय आपातकाल नहीं लगा है ।

11. राष्ट्रपति को प्राप्त विशेष शक्ति (Special Power Received by the President):

राष्ट्रपति पर पद पर रहते हुऐ किसी भी न्यायालय में आपराधिक मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता । उसके विरूद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी नहीं किया जा सकता । राष्ट्रपति को दीवानी कार्यवाई किये जाने के पूर्व दो माह की लिखित सूचना दिया जाना आवश्यक है ।

विशेष अधिकार:

राष्ट्रपति को यह संवैधानिक विशेषाधिकार प्राप्त है कि वह अपने पद के कर्त्तव्यों और अधिकारों के निर्वहन में जो भी कार्य करेगा, उसके लिये किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा ।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के मध्य सम्बन्ध (अनु. 78):

78(1) प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य होगा कि वह मंत्रिपरिषद के निर्णयों को राष्ट्रपति को सूचित करें । 78(2) राष्ट्रपति स्वयं भी शासन से संबंधित सूचना प्रधानमंत्री से मांग सकता है, और वह देने के लिए बाध्य है ।

प्रमुख तथ्य:

1. भारत का एक राष्ट्रपति होगा- यह अनुच्छेद 52 में है ।

2. विभिन्न आयोगों को गठित करने का अधिकार प्राप्त हैं- राष्ट्रपति को ।

3. राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अनुमति रोक लेता हैं- आत्यंतिक वीटो के तहत ।

4. संविधान में मौलिक अधिकारों के निलम्बन का अधिकार हैं- राष्ट्रपति को ।

5. राष्ट्रपति का अभिभाषण तैयार करता है- केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ।

6. अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास है । राज्य विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव के बाद ।

7. राष्ट्रपति का निर्वाचन होता है- अप्रत्यक्ष ढंग से (एक निर्वाचक मण्डल द्वारा) ।

8. राष्ट्रपति के निर्वाचन मण्डल में शामिल होते हैं- संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य ।

9. पांडिचेरी तथा दिल्ली की विधान सभाओं को भी राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में शामिल किया गया हैं- मई 1992 में 70वें संविधान संशोधन द्वारा ।

10. राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं- राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य एवं विधान परिषद के सदस्य ।

11. राष्ट्रपति पद के निर्वाचन के समय यदि किसी राज्य की विधान सभा भंग हो तो उसका प्रभाव चुनाव पर नहीं पड़ता है ।

12. राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित सभी प्रकार के विवादों का निपटारा किया जाता है- उच्चतम न्यायालय द्वारा ।

13. राष्ट्रपति पद पर चुनाव निर्वाचन आयोग करवाता है ।

14. राष्ट्रपति पद पर निर्वाचन को उच्चतम न्यायालय यदि विधि शून्य (अवैध) घोषित कर देता है, तो उसके कारण राष्ट्रपति द्वारा उस दिनांक तक किये गये कार्य अमान्य नहीं होंगे ।

15. अनु. 58 में यह प्रावधान है कि कोई व्यक्ति यदि सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करता है, तो वह राष्ट्रपति होने का पात्र नहीं होगा । लाभ का पद धारण करने वालों में शामिल नहीं हैं- राज्यपाल, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा मंत्री ।

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