Read this article in Hindi to learn about:- 1. योजना मॉडल का अर्थ (Meaning of Plan Models) 2. योजना मॉडलों की कमियां (Omissions of Plan Models) 3. त्रुटियां (Drawbacks) 4. लाभप्रदता (Usefulness) 5. सीख (Lessons).

योजना मॉडल का अर्थ (Meaning of Plan Models):

विभिन्न योजना मॉडलों के विश्लेषणात्मक ढांचे पर ध्यान केन्द्रित करने से पहले योजना मॉडलों का सामान्यीकरण करना आवश्यक है । योजना मॉडल की परिभाषा लक्ष्यों के अनुकूलतम रूप में सन्तुलित एकत्रीकरण अथवा कुछ उद्देश्यों के हित में भविष्य में तिथियों सहित मात्रात्मक उपायों और उन लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर ले जाने वाले कुछ प्रस्तावित पंगों के रूप में की जाती है ।

योजना मॉडल, योजना निर्माण की मशीनरी नहीं है, इससे वह आशा नहीं कि जा सकती कि यह कार्यान्वयन के लिये तैयार योजना उत्पादित करेगा । एक विशेष भाषा में, योजना मॉडल कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसके आधार पर एक कम्प्यूटर की सम्पूर्ण विस्तार सहित योजना का प्रिन्ट निकालने के लिये प्रोग्रामिंग की जा सके तथा जो योजना प्राधिकरण द्वारा अपनाये जाने के लिये तैयार हो, और जो अनुकूलतम रूप में ऐसे उपायों के सन्तुलित समूह उत्पन्न करें जो विभिन्न ढंगों में वास्तविक योजना के निर्माण में सहायता करते हैं ।

योजना मॉडलों के लिये कार्यों का विस्तार निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है:

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(i) किसी योजना के लक्ष्यों की दृढ़ता का अनुमान लगाने के लिये एक ढांचा उपलब्ध करना, वह लक्ष्य जिनका निर्धारण कुछ कम औपचारिक विधियों द्वारा किया गया है ।

(ii) योजना काल के दौरान अर्थव्यवस्था के लिये मात्रात्मक प्रक्षेपणों को निर्माण योग्य बनाना ।

(iii) चयन अथवा योजना में एकीकृत करने के लिये परियोजनाएं तैयार करने हेतु ढांचा उपलब्ध करना ।

(iv) ऐसे पाठ उपलब्ध करना जिनसे सरकारी योजना सम्बन्धी निर्णय करने में आयोजन प्राधिकरण बेहतर रूप में लैस हो ।

योजना मॉडलों की कमियां (Omissions of the Plan Models):

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अशोक रुद्रा भारतीय योजना मॉडलों में उपेक्षित कुछ त्रुटियों की गणना इस प्रकार करते हैं:

1. संस्थानिक कारकों की उपेक्षा (Neglect of Institutional Factors):

यह योजना मॉडल राजनीतिक तथा ऐतिहासिक स्थितियों के सामाजिक ढांचे और संस्थाओं की व्यवस्था जिसमें आर्थिक विकास की प्रक्रिया घटित होती है, की ओर ध्यान देने में पूर्ण तौर पर असफल है । तकनीकी सम्बन्ध स्वयं संगठनों और कार्यों की स्थितियों के प्रभावों से उन्मुक्त नहीं हैं । इससे ऐसे कारकों की उपेक्षा होती है जो विकसित देशों में आधुनिक उद्योगों के लिये बहुत महत्व रखते हैं ।

इसके अतिरिक्त भारत में योजना मॉडल अपने किसी संरचनात्मक लक्षण को प्रकट नहीं करते । महत्वपूर्ण तथ्य है कि यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जहां जनसंख्या का एक बढ़ा भाग पिछड़ी हुई कृषि प्रणाली पर निर्भर करता और जहां विस्तृत स्तर पर कृषि काश्तकारों द्वारा की जाती है । एक मिश्रित अर्थव्यवस्था होने के कारण यह मुख्यता निजी हाथों में है तथा अधिकांश प्रकरणों में लक्ष्य केवल कागजों पर ही सीमित रहते हैं तथा उनका कार्यान्वयन नहीं हो पाता ।

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2. प्राकृतिक साधनों की उपेक्षा (Neglect of Natural Resources):

योजना मॉडलों के पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे वह देश के विभिन्न स्रोतों की दुर्लभता अथवा बहुलता की जानकारी प्राप्त कर सकें । अन्य शब्दों में महत्वपूर्ण समस्या यह निर्धारित करना है कि इस उपभोग का अनुकूलतम स्तर क्या है, परन्तु यह मॉडल इस समस्या का समाधान करने में पूर्णतया असमर्थ है ।

3. मानवीय साधनों की अवहेलना (Neglect of Human Resources):

भारतीय योजना मॉडलों में मानवीय साधनों की सीमित उपलब्धता से उत्पन्न होने वाली बाधाओं की लगभग अवहेलना की गई है । प्रायः यह तर्क प्रस्तुत किया जाता है कि श्रम अतिरेक अर्थव्यवस्था वह है जहां श्रम किसी बाधा को उत्पन्न नहीं करता परन्तु यह केवल अप्रशिक्षित श्रम के प्रकरण में ही सत्य है, प्रशिक्षित श्रम और प्रबन्धकीय कर्मचारियों के सम्बन्ध में यह सत्य नहीं है और इनकी उपेक्षा इन मॉडलों की एक गम्भीर त्रुटि है ।

4. ऊपरी व्यय पूंजी की उपेक्षा (Neglect of Overhead Capital):

इन योजना मॉडलों की इतनी क्षमता नहीं है कि वह किसी अर्थव्यवस्था की किसी भी संरचना में निवेश से आन्तरिक रमा में व्यवहार कर सके ।

जैसे:

(क) शिक्षा, स्वास्थ्य,

(ख) वैज्ञानिक एवं तकनीकी शोध, प्राकृतिक साधनों की खोज,

(ग) सड़कें भवन, पुल, बन्दरगाहें, हवाई अड्‌डे, जहाजरानी, वायुमार्ग, वाणिज्य और संचार,

(घ) सुरक्षा,

(ङ) नागरिक प्रशासन,

(च) गृह आवास नागरिक एवं नगरपालिका के निर्माण ।

5. अन्तिम मांग का बहिर्जात उपचार (Exogenous Treatment of Final Demand):

योजना मॉडल में जिन क्षेत्रों की पहचान की गई है वह केवल आशिक रूप में आगत, निर्गत निवेश आदि ही हैं । परशु वितरण समीकरण जो इन मॉडलों का महत्वपूर्ण भाग है, अन्तिम मांगों के बड़े भाग को बहिर्जात व्यवहार के लिये छोड़ देते हैं ।

इसलिये भारत में प्रयोग किये गये सभी मॉडलों में, वस्तु का बहाव सरकार के चालू उपभोग की ओर रहता है तथा निर्यातों को बहिर्जात माना जाता है । निर्यात कमाई की समग्र मात्रा द्वार निभाई गई युक्ति संगत भूमिका को ध्यान में रखते हुये, यह इन मॉडलों की एक गम्भीर त्रुटि है कि यह उनके निर्धारण में सहायता नहीं कर सकते ।

6. व्यवहारवादी आदर्श की उपेक्षा (Neglect of Behaviouralistic Pattern):

योजना मॉडल, अर्थव्यवस्था में ऐसे पहलुओं की ओर ध्यान देने में असमर्थ है जो उन उपभोक्ताओं की व्यवहारवादी प्रवणता को प्रतिबिम्बित करते हैं, जिन उपभोक्ताओं को सर्वसत्ता सम्पन्न माना जाता है । अतः यह उन अनुपातों में बहुत अभद्र ढंग से व्यवहार करते हैं जिनका विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्तियों और घरेलू बचतों और आय के वितरण स्तरों के बीच अवलोकन करना है ।

योजना मॉडलों की त्रुटियां (Drawbacks of Plan Models):

योजना मॉडलों में निम्नलिखित त्रुटियां हैं:

1. घटिया क्षेत्र वर्गीकरण (Coarse Sector Classification):

मुख्य त्रुटि उदार क्षेत्र वर्गीकरण एवं न्सटिक मान्यताओं की है जो इन मॉडलों में सम्मिलित विभिन्न क्षेत्रों और वस्तुओं के बीच एक से अनुरूपता दर्शाते हैं । किसी देश को किसी वस्तु का आयात करना हो अथवा उसका घरेलू उत्पादन करना हो तथा तकनीक के चयन के लिए मॉडल को अर्थव्यवस्था अनुसार प्रक्रिया विश्लेषण की आवश्यकता होती है, परन्तु भारत जैसे विकासशील देशों के लिये ऐसे बहुत से मॉडल अनुकूल नहीं हैं ।

2. अनुरेखन (Linearity):

भारतीय मॉडलों की एक गम्भीर सीमा अनुरेखन की मान्यता से उत्पन्न होती है । संयोग से यह मॉडल अनुरेखीय मॉडल है । ल्यूनटिफ निश्चित गुणांक मान्यताओं के पक्ष और विपक्ष में तर्क, उनकी बाह्यता तथा कुछ क्षेत्रों में सीमित प्रयोज्यता सुपरिचित है । उसी समय, अनुरेखीय मॉडल का आरम्भ तथा इस द्वारा उत्पादित कुछ स्पष्ट असंगतिया सुपरिचित हैं । इसलिये विभिन्न आगतों की योगात्मकता बहुत स्वीकार्य नहीं है ।

3. तकनीकी परिवर्तन का विवेचन (Treatment of Technological Change):

यह मॉडल तकनीकी परिवर्तनों का स्वेच्छाचारी विवेचन उपलब्ध करते हैं । यह सुपरिचित तथ्य है कि समय के व्यतीत होने के साथ तकनीक परिवर्तन होते रहते हैं परन्तु इन मॉडलों के निर्माताओं ने किसी न्यायसंगत ढंग से कोई परिवर्तन नहीं किया । तथापि यदि उन्होंने परिवर्तन किया भी है तो केवल स्वेच्छाचारी है तथा उन प्रवृत्तियों के प्रकाश में किया गया है जो तकनीकी विज्ञान के विश्व में खोज सकते हैं । इसलिये भारत में यह मॉडल सरकारी योजना निर्माताओं का मार्ग-दर्शन करने में असमर्थ है ।

4. गुणांकों का स्वेच्छाचारी परिवर्तन आपत्तिजनक है (Arbitrary Change of Co-Efficient is Objectionable):

इन मॉडलों में एक अन्य गम्भीर त्रुटि यह है कि गुणांक परिवर्तन स्वेच्छाचारी होते हैं जो एक गम्भीर आपत्ति है

5. अल्पकालिक सन्तुलन का अपर्याप्त विवेचन (Inadequate Treatment of Temporal Balance):

तकनीकी विज्ञान केवल क्षेतिज सन्तुलन के लिये आमन्त्रित नहीं करता अर्थात एक समय पर आगतों एवं निर्गतों के सन्दर्भ में क्षेत्रों में सन्तुलन, परन्तु भारत में प्रयुक्त मॉडलों में इस क्रम के विवेचन को अधिक स्पष्ट नहीं किया गया ।

योजना मॉडलों की लाभप्रदता (Usefulness of Plan Models):

उपरोक्त परिचर्चा में हमने देखा है कि भारत में प्रयुक्त मॉडलों ने योजना लक्ष्यों की दृढ़ता पर निर्णय लेने के लिये सन्तोषजनक सहायताएं उपलब्ध नहीं करवाई, यह योजना के लक्ष्य निर्धारित करने और परियोजनाओं के मूल्यांकन के लिये सन्तोषपूर्ण सहायक नहीं हैं, परन्तु यह अन्तिम निर्णय नहीं है ।

इन योजना मॉडलों की लाभ प्रदत्ता का अनुमान लगाने के लिये एकाँस (Eckaus) और पारेख (Parekh) का उदाहरण देना बेहतर होगा जिसमें कहा गया है कि ”संघर्षशील लक्ष्यों के बीच समझौता करने के लिये राजनैतिक मूल्य के निर्णयों की आवश्यकता होती है, जिसका बदले में अर्थ है एक सामान्यतया परिभाषित समाज कल्याण कार्य का अस्तित्व जिसमें यह उद्देश्य सम्मिलित हों, फिर भी व्यवहार में, व्यापक और सुस्पष्ट विकास के लक्ष्यों की रचना सामाजिक निर्णय प्रक्रियाओं द्वारा बहुत कम की जाती है । अतः यदि अर्थशास्त्री अपने आप को परम्परागत परिभाषित भूमिका तक सीमित रखते हैं अर्थात नीति निर्माण और सुपरिभाषित लक्ष्यों के परिणामों का विश्लेषण करने तक, तो उनकी परिभाषा का विषय संकीर्ण एवं भ्रामक है । ऐसी परिस्थितियों में, अर्थशास्त्री न केवल परम्परागत ढंग से आर्थिक नीति निर्माण में योगदान कर सकते हैं बल्कि लक्ष्यों के विभिन्न सम्भव मिश्रणों के अनुकूल वैकल्पिक नीतियों के वर्णन द्वारा भी योगदानकर सकते है ।”

मॉडलों से प्राप्त सीख (Lessons from Plan Models):

अब प्रश्न यह उठता है कि इस अभ्यास के परिणाम कहा तक व्यवहारिक योजना निर्माण में सहायक हो सकते हैं । अन्य शब्दों में, भारतीय योजनाओं के विभिन्न मॉडलों को अपनाये जाने से हम कौन सी सम्भव सीख प्राप्त कर सकते हैं।

इन मॉडलों से प्राप्त सीखों का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया गया है:

1. मशीनरी और इस्पात के उत्पादन का निर्धारण मुख्यता निवेश व्यय के स्तर द्वारा किया जाता है; खाद्य अनाजों और सूती वस्त्रों का पूर्णतया घरेलू उपभोग व्यय द्वारा और पैट्रोलियम उत्पादों और बिजली का दोनों पर निर्भर करता है ।

2. धातु आधारित उद्योगों का उत्पादन आयात प्रतिस्थापन कार्यक्रमों से सम्बन्धित मान्यताओं के प्रति संवेदनशील है ।

3. समग्र निवेश स्तर कठिनता से आयात प्रतिस्थापन कार्यक्रम के लिये सुप्रयाव्य है ।

4. निवेश को सकल घरेलू उत्पाद अथवा कुल उपभोग से अधिक तीव्र दर से बढ़ाना पड़ता है ।

5. आय-वितरण में असमानता को कम करने के लिये उत्पादन के नमूनों में परिवर्तन की आवश्यकता होती है जो खाद्य अनाजों, पशु पालन उत्पादों तथा ऐसी कुछ आवश्यक वस्तुओं की मांग को कम करके तथा निर्मित वस्तुओं जैसे रबड़-उत्पाद और चमड़े के उत्पादों की मांग को बढ़ा कर सम्भव है ।

6. सहायता का नमूना जो आत्म-निर्भरता की ओर ले जाता है उपभोग एवं निवेश के निम्न दर से सम्बन्धित है ।

7. आत्म-निर्भरता की ओर मार्ग उतना ही अधिक तीव्र होगा, निवेश का जितना बड़ा भाग पूँजी-गहन आयात-प्रतिस्थापन क्षेत्रों के लिये निर्धारित किया जायेगा ।

8. विदेशी सहायता कुल उपभोग को अधिक तीव्रता से बढ़ाती है जब बचत की कोई बाधा नहीं होती ।

9. बाहरी सहायता की श्रेणी में किसी एक बिन्दु पर, बचत बाधा प्रतिबन्ध नहीं लगाती ।

10. बचतें प्रतिबन्धित होने पर विदेशी सहायता व्यक्तिगत बचतों को बढ़ाती है तथा जब कोई प्रतिबन्ध नहीं होता तो इन्हें कम करती है यद्वपि पश्चात कथित की तुलना में घटाव पूर्णतया उच्च स्तर पर होता है ।

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