चौथी पंचवर्षीय योजना की रणनीतियां | Read this article in Hindi to learn about the strategies of fourth five year plan in India.

सामान्यता चौथी पंचवर्षीय योजना को तीसरी पंचवर्षीय योजना की समाप्ति पर वर्ष 1966 में आरम्भ होना था । आवश्यक तैयारी पहले ही आरम्भ हो चुकी थी परन्तु कुछ गम्भीर संकटों के कारण इसकी पूर्णता में विलम्ब हो गया, जैसे वर्ष 1962 और 1965 के संघर्ष और लगातार दो वर्षों के दौरान (1965-66 और 1966-67) कृषि उत्पादन में गम्भीर गिरावट और जून 1966 में भारतीय रुपये का अवमूल्यन ।

योजना आयोग जिसका सितम्बर 1967 में पुन निर्माण किया गया, के विचार में चौथी योजना का कार्यकाल वर्ष 1969 से आरम्भ होना चाहिये तथा वर्ष 1968-69 के लिये 1966-67 और 67-68 की भान्ति वार्षिक योजना बनायी जाये ।

इस लिये चौथी योजना 1969-74 के दस्तावेज ने पूर्व योजना द्वारा समर्थित उद्देश्यों पर विश्वास प्रकट किया तथा योजना में उन नीतियों और कार्यक्रमों को सम्मिलित किया जो पर्याप्त वृद्धि दर के साथ आत्मनिर्भरता की प्राप्ति को प्रोत्साहित करेंगे और समाजवादी समाज के निर्माण की उन्नति को तीव्र करेंगे ।

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इन उद्देश्यों से निम्नलिखित क्षेत्रों की ओर ध्यान केन्द्रित किया गया:

(क) कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्र को प्राथमिकता देकर विकास के सम्भव दर प्राप्त करना जो कि विदेशी सहायता से मुक्त होने का मार्ग दिखा सकें ।

(ख) कीमतों को स्थिर रखने के उपाय तथा स्थिर आर्थिक नीतियाँ अपनाना जो मिश्रित अर्थव्यवस्था की ओर ले जाती हैं ।

(ग) ग्रामीण जनसंख्या की आय बढ़ने को प्राथमिकता दी जायेगी और आहार की पूर्ति को तीव्र करना, उत्पादन को अधिकतम बनाने के प्रयत्न किये जायेंगे ।

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(घ) विभिन्न उद्योगों जैसे मशीनरी, रसायन, खाद्यान, ऊर्जा और यातायात आदि जो आत्मनिर्भरता के लिये लाभप्रद है, का निरन्तर विकास सुनिश्चित करना, पहले से निर्मित संवेग को बनाये रखने के लिये और देश की मौलिक आवश्यकताओं को अगले पाँच वर्षों के योजना काल में पूरा करने के लिये सम्बन्धित योजनाओं को तीव्र किया जायेगा ।

(ङ) मानवीय साधनों के विकास के लिये विशेषतया ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध की जायेंगी ।

अतः योजना ने पहले से उपलब्ध क्षमता तथा उपलब्ध साधनों द्वारा निर्मित की जाने वाली क्षमता के अधिकतम उपयोग का निश्चय किया । योजना का कुल व्यय 24,398 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया, सार्वजनिक क्षेत्र के लिये 14,398 करोड़ रुपये और शेष निजी क्षेत्र के लिये निश्चित किया गया ।

इसमें से 22,252 करोड़ रुपये निवेश का प्रतिनिधित्व करते हैं और 2,146 करोड़ रुपये चालू व्यय का । इस योजना ने उद्योग, यातायात, ऊर्जा, खाद्यान (26.5 प्रतिशत) पर अधिक बल दिया जबकि कृषि के लिये 18 प्रतिशत निर्धारित किया गया ।

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अतः कृषि से सम्बन्धित रणनीति में निम्नलिखित सम्मिलित थे:

1. सिचाई, जल, उर्वरकों तथा बेहतर गुणवत्ता वाले बीजों जैसी आगतों का गहन विकास (IADP तथा IAAP) के लिये चयनित क्षेत्रों में केन्द्रीकरण ।

2. कम अवधि वाली फसलों का आरम्भ जो अधिक उत्पादन के योग्य बनाती है ।

3. उच्च उत्पादन वाले संकर किस्म के बीजों का गहन उपयोग ।

4. गौण आहारों जैसे आलू के उत्पादन में वृद्धि और ऊष्मीय आहार पूर्ति में शीघ्रतापूर्वक और पर्याप्त वृद्धि ।

5. फसल ऋण प्रणाली द्वारा किसानों के लिये साख पूर्ति को तीव्र करना, सहकारी संस्थाओं और भूमि सुधारों का प्रोत्साहन तथा यह विचार उत्पन्न करना कि भूमि खेती करने वाले की ही है ।

इसी प्रकार, योजना में औद्योगिक विकास के सम्बन्ध में कहा गया ”एक ओर उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्ति के पर्याप्त विस्तार की व्यवस्था करना जो जनसमूहों की आवश्यकताओं को पूरा करती है तथा दूसरी ओर मूलभूत एवं भारी उद्योगों का विस्तार करना, जो पूँजी वस्तुओं और मध्यस्थ वस्तुओं की तीव्रता से पूर्ति करते है ताकि जितनी जल्दी सम्भव हो सके आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके” । योजना के निर्माण के समय एक अन्य वस्तु जिसका ध्यान रखा गया वह थी कि औद्योगिक उत्पादन के कार्यक्रम इस प्रकार बनाये जाएं कि कृषि विकास के लिये आवश्यक आगत पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सके ।

मौलिक प्राथमिकताएं निम्नलिखित थीं:

1. कृषि विकास के लिये औद्योगिक आगतों में सम्मिलित हैं- कृषि साज-सामान, उर्वरक और कीटनाशक आदि ।

2. मशीन निर्माता उद्योग जैसे स्टील, अल्यूमिनियम आदि ।

3. मध्यस्थ वस्तुओं के निर्माण वाले उद्योग जैसे पैट्रोलियम उत्पाद, रसायन, कोयला, लोहा, इस्पात, सीमेन्ट और अन्य ।

4. आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं से सम्बन्धित उद्योग ।

अतः चौथी योजना के पास देश में सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण के निर्माण के लिये विस्तृत उपदेश है ।