Read this article in Hindi to learn about:- 1. डी.एन.ए. की उपस्थिती (Occurrence of DNA) 2. डी.एन.ए का आण्विक भार (Molecular-Weight of DNA) 3. स्वरूप (Forms) 4. विशेषताएँ (Characteristics).

डी.एन.ए. की उपस्थिती (Occurrence of DNA):

कोशिकीय-DNA मुख्य रूप से केन्द्रक (Nucleus) में स्थित गुण-सूत्रों (Chromosomes) में मिलता है । गुणसूत्रों (Chromosomes) का निर्माण प्रोटीन्स (Proteins) तथा न्यूक्लिक-अम्लों (Nucleic-Acid) द्वार होता है ।

DNA के साथ हिस्टोन (Histone) नामक प्रोटीन (Protein) जुड़ा रहता है । DNA की कुछ मात्रा कोशिकागों (Organelles) जैसे- माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) या क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) में भी पाई जाती है ।

डी.एन.ए का आण्विक भार (Molecular-Weight of DNA):

DNA अति उच्च आण्विक-भार का अणु है, जिसका आण्विक-भार कई लाख तक होता है । नवीनतम आकलन के अनुसार DNA अणु का आण्विक-भार 106 तथा 107 Daltons के बीच होता है ।

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Kuhn (1957) के अनुसार- DNA का आण्विक-भार 6 × 106 Daltons होता है । T2 बैक्टीरियोफेज के DNA का आण्विक भार 1.2 × 108 Daltons, T फेज का 3.2 × 106 Daltons और E.Coli 2 × 109 Daltons होता है ।

डी.एन.ए. के विभिन्न-स्वरूप (Different Forms of DNA):

DNA का सर्वाधिक प्रचलित रूप दायाँ हाथ कुण्डल है, जिसे वॉट्सन व क्रिक द्वारा प्रस्तावित किया गया था तथा ‘DNA का B-रूप’ अथवा ‘B-DNA’ कहा गया । इसके अतिरिक्त DNA ‘द्विक कुण्डल संरचना’ के अन्य रूपों में भी हो सकता है ।

(1) DNA का Z-रूप (Z-DNA):

1979 में रिच (Rich) व सहयोगियों ने MIT (U.S.A.) में क्रिस्टल्स के रूप में कृत्रिम संश्लेषण (Artificial Synthesis) किए जा रहे D(C-G) 3 अणुओं द्वारा G-DNA को प्राप्त किया । उन्होंने बायाँ हाथ (सायनिस्ट्रल) द्विक कुण्डल प्रतिरूप (Model) प्रस्तावित किया, जिसमें प्रतिसमानांतर दिशा में टेढ़ी-मेढ़ी शर्करा-फॉस्फेट आधारशिला (Base) चलती है ।

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इसीलिए इस DNA को Z-DNA शब्द दिया गया । स्तनपायियों (Mammals), प्रोटोजोअन्स व विभिन्न पादप प्रजातियों (Plant Species) सहित बृहत् संख्या के जीवों में Z-DNA पाया गया है ।

(2) DNA का A-रूप (A-DNA):

Na- K+ अथवा Cs+ आयन्स (Ions) की उपस्थिति में 75% आपेक्षिक आर्द्रता पर DNA का A-रूप पाया जाता है । B-DNA के दस क्षारक-युग्मों की अपेक्षा इसमें ग्यारह क्षारक-युग्म (Base-Pair) होते हैं (सारणी), जो कुण्डल के अक्ष (Axis) से 20.2° पर झुके होते हैं ।

इस विस्थापन के करण प्रमुख ग्रूव की गहनता बढ़ती है व लघु ग्रूव की गहनता घटती है । A-रूप मेटास्टेबल (Metastable) होता है व शीघ्रता से D-रूप में परिणत हो जाता है ।

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(3) DNA का D-रूप (D-DNA):

DNA का D-रूप दुर्लभतया चरम भेदों के रूप में पाया जाता है । कुण्डल के प्रति मोड़ पर क्षारक-युग्मों (Base-Pairs) की कुल संख्या आठ होती है । इसीलिए यह ‘अष्ट वलन सममिति’ दर्शाता है । इस रूप को Poλy (dA-dT) व Poλy (dG-dC) रूप भी कहा जाता है ।

C-रूप की अपेक्षा 16.7° पर क्षारक-युग्मों (Base-Pairs) का निश्चित ऋणात्मक झुकाव होता है, अर्थात् क्षारक युग्म DNA के कुण्डल के अक्ष (Axis) से पीछे की ओर विस्थापित रहते हैं ।

(4) DNA का B-रूप (B-DNA):

DNA के B रूप की संरचना वॉट्सन व क्रिक (Watson and Crick) द्वारा प्रस्तावित की गई । यह प्रत्येक कोशिका में अति उच्च आपेक्षिक आर्द्रता (92%) व आयन्स (Ions) के निम्न सान्द्रण पर उपस्थित होता है ।

इसमें प्रतिसमानांतर द्विक कुण्डल होता है, घूर्णन घड़ी की दिशा में (दायाँ हाथ) व शर्करा-फॉस्फेट आधारशिला से बना, जो कि क्षारक-युग्मों (Base-Pairs) अथवा प्युरीन-पिरामिडीन से संयुक्त है ।

क्षारक-युग्म ‘कुण्डल के ऊर्ध्वाधर अक्ष’ से लम्बवत् रहते हैं । क्षारक-युग्म कुण्डल की ओर 6.3° पर झुके होते हैं । DNA का B-रूप उपचयापचयीरूपेण स्थिर होता है तथा अतिरिक्त लवणों के सान्द्रण व न्यूक्लियोटाइड्स (Nucleotides) के अनुक्रम पर निर्भर रहते हुए A, C व D रूपों में परिवर्तित हो जाता है ।

(5) DNA का C-रूप (C-DNA):

लीथियम आयन्स (Lit+) की उपस्थिति में 66% आपेक्षिक आर्द्रता पर DNA का C-रूप पाया जाता है । A-व B-DNA की तुलना में C-DNA में प्रति मोड़ क्षारक-युग्मों (Base-Pair) की संख्या 9 1/3 अथवा 28/3 से कम होती है । क्षारक-युग्म 7.8° का निश्चित ऋणात्मक (Negative) झुकाव दर्शाते हैं ।

आनुवंशिक-पदार्थ की विशेषताएँ (Characteristics of Genetic-Material):

किसी भी आनुवंशिक-पदार्थ में निम्न गुण होना आवश्यक है:

(1) अति आवश्यक सूचनाओं को क्षय के बिना आनुवांशिक पदार्थ की संरचना में परिवर्तन की सम्भावना तथा सामर्थ्य हो जिससे नई जातियों का विकास हो सके ।

(2) आनुवांशिक सूचनाओं को संग्रहित कर सके तथा उसे आवश्यकता अनुसार आगे (अगली पीढ़ी में) प्रेषित कर सके ।

(3) स्वयं की प्रतिकृति हो सके अर्थात् द्विगुणन हो सके, इस समय कम से कम त्रुटि हो तथा बिल्कुल समान छायाप्रति बने ।

(4) भौतिक तथा रासायनिक स्थिरता हो ताकि सूचनाएं विलुप्त न हों ।

डी.एन.ए. की विशेषताएँ (Characteristics of DNA):

विकृतीकरण एवं पुन:स्वाभाविकरण (Denaturation and Renaturation):

DNA के दोनों दुर्बल स्ट्रैंड हाइड्रोजन बाण्ड से जुड़े रहते हैं । अत: इसे 100°C तक गरम करने पर इसके दोनों स्ट्रैण्ड एक-दूसरे से पृथक हो जाते हैं । ताप द्वारा गुणसूत्र के स्ट्रैण्डों के पृथक्करण की इस क्रिया के विकृतीकरण (Denaturation) कहते हैं ।

विकृत DNA को ठण्डा करने पर पृथक हुए दोनों स्ट्रैन्ड जुड़कर DNA का द्विकुण्डलिनी अणु बनाते हैं । पुर्नमिलन की इस क्रिया को पुन: स्वाभाविकरण (Renaturation) कहते हैं । DNA की विकृतीकरण एवं पुन: स्वाभाविकरण की विशेषता के करण विभिन्न DNA अणुओं या RNA से DNA के संकर अणु (Hybrid Molecules) भी बनाये जा सकते हैं ।

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