बाढ़: परिणाम और प्रबंधन | Flood: Consequences and Management in Hindi!

Read this article in Hindi to learn about the consequences of flood in India and its management.

बाढ़ का प्रभाव समाज पर (Consequences of Flood on Society):

बाढ़ भारत में प्रायः आती रहती है । बाढ़ का प्रकोप असम, उत्तरी भारत के मैदान तथा तटीय मैदानों गे अधिक होता हैं । ब्रह्मपुत्र की घाटी तथा गंगा के नीचे के प्रवेश में बाढ़ का प्रकोप अधिक होता है । प्रति वर्ष लगभग पाँच करोड़ हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त हो जाती है । बाढ़ का मानव समाज पर भारी विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

कृषि भूमि एवं ग्रामीण तथा नगरीय बस्तियों के बार-बार बाद ग्रस्त होने का मानव समाज एवं पारिस्थितिक तंत्र पर खराब प्रभाव पड़ता है । सड़कें, पुल, रेल और आधारभूत संरचनायें अस्तव्यस्त हो जाती है । लाखों लोग बेघर हो जाते हैं, बाद में बह जाते है पशु-भून की हानि होती है जिसका प्रभाव आर्थिक स्थिति पर पड़ता है ।

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इन सब हानियों के बावजूद बाद से मानव समाज को बहुत-से लाभ भी होते हैं । उदाहरण के लिए बाढ़ के कारण, बाढग्रस्त क्षेत्रों में प्रतिवर्ष नई जलोढ मिट्टी की परत फैल जाती है जिससे खेतों की उर्वरकता बढ़ती है और कृषि के उत्पादन में वृद्धि होती है । विश्व के नदी मार्गों में बना मजुली द्वीप प्रत्येक वर्ष बाढग्रस्त होता है इसकी मृदा बहुत उपजाऊ है, जिससे चावल का भारत उत्पादन किया जाता है ।

बाढ़ आपदा प्रबंधन (Flood Disaster Management):

भारत में प्रायः बाढ़ मुख्य रूप से वर्षा की ऋतु में आती है । वर्ष 1949 तथा 1954 की भयंकर बाढ़ो को देखते हुये, भारत सरकार ने बाद को रोकने के लिए बहुत-सी योजनाएँ तैयार की जिनमें से दामोदर घाटी, कोसी परियोजना भाखडा-नांगल हीराकुंड, नागार्जुन सागर रिहंद, आदि प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजनाएँ हैं ।

वर्ष 1976 में राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण आयोग की स्थापना की गई । राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने बहुत-से ऐसे क्षेत्रों का सीमांकन किया है जहाँ प्रायः बाढ़ आती है ।

केंद्र तथा राज्य सरकारें बाढ़ प्रबंधन के लिये निम्न प्रकार के उपाय कर रही हैं:

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i. बाढ़ की बारंबारता में कमी करना (Flood Reduction):

नदी घाटियों में वृक्षारोपण करने से बाद की बारंबारता एवं प्रबलता को कम किया जा सकता हैं । वृक्षारोपण से जल रिसाव में वृद्धि होती है जिससे बाढ़ की प्रकोपता में कमी आती है ।

ii. बाढ़ समंजन (Flood Adjustment):

बाढ समंजन से भी बाद के प्रकोप को कम किया जा सकता है । घरों को बाढ़ प्रूफ बनाने की आवश्यकता है ।

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iii. ढलानों में परिवर्तन करना (Modification of Slope System):

ढलान गतिशील तंत्र होते है । ढलानों को काटकर उन पर मकान बनाने से ढलानों पर भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है । लघु हिमालय के ढलानों को काटकर बहुत-सी बस्तियों एवं आवासों का निर्माण किया गया है, जिससे भूस्खलन तथा बाढ की बारंबारता में वृद्धि हुई है ।

iv. जल अपवाह के वेग को कम करना (Reduction in Run-Off):

प्रभावशाली उपाय करके जल अपवाह के वेग को कम किया जा सकता है । जल अपवाह को कम करने के लिए नदियों के जलमार्गों में पाइप बोरिंग करके बाढ के जल को भूमिगत जल में उतार जा सकता है । नदियाँ जिस स्थानों पर पर्वत से मैदान में प्रवेश करती हैं उन स्थानों पर प्रायः इस प्रकार के उपाय किये गये हैं ।

v. बाँध बनाना (Construction of Dams):

बड़ी नदियों पर बहुउद्देशीय परियोजनाएँ बनाने के लिए बड़े-बड़े जलाशयों की रचना की जाती है । बाढ का जल इन जलाशयों में एकत्रित हो जाता है और बाद आने की संभावना में कमी आ जाती है । भारत में पहली पंचवर्षीय योजना में बहुत-से बहुउद्देशीय बाँध बनाये गये थे, जिनसे बालों की बारंबारता में कमी आई है । भाखड़ा-नांगल, नागार्जुन सागर, रिहंद बाँध, कोसी बाँध इसी प्रकार की परियोजनाएँ हैं ।

vi. बाढ़ के जल को दूसरे मार्ग पर ले जाना (Divert the Flood Water):

बाढ़ के जल को नहरों, झीलों इत्यादि में ले जाने से भी बाद की प्रबलता में कमी आती है । भारत में सतलुज, दामोदर, घग्घर आदि नदियों के जल को इस प्रकार दूसरे मार्गों में अपवाहित किया जाता है ।

vii. नदियों के जलमार्गों को बेहतर बनाना (Construction of Embankments):

केंद्र तथा राज्य सरकारों ने नदियों के तटों पर बाढ़ से बचने के लिए बहुत-से बाँध बनाये हैं । उन बाँधों को मजबूत करने की आवश्यकता है तथा संवदेनशील किनारों पर और बनाने की जरूरत है ।

कुछ नदियाँ जिन पर बाँध बनाये जाने चाहिए उनमें बागमति, व्यास, ब्रह्मपुत्र, चंबल, गंडक, गंगा, घाघरा, गोदावरी, कावेरी, कोसी, कृष्णा, महानंदा, महानदी, नर्मदा, पेनेरू, रावी, साबरमती, सोन, सतलुज, तापी, तीस्ता तथा यमुना इत्यादि सम्मिलित हैं । कोसी नदी के बाँध को विशेष रूप से मजबूत करने की आवश्यकता है ।

viii. नदियों के तटों पर बाँध बनाना (Channel Improvement):

नदियों के जलमार्गों को गहरा और चौड़ा करने की आवश्यकता है ।

ix. बाद क्षेत्रों का मंडलन करना (Flood Plain Zoning):

सर्वेक्षण एवं अध्ययन के आधार पर बाद से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों का मंडलन करने की आवश्यकता है, ताकि अधिक संवेदनशील क्षेत्रों के लिये बाढ़ से बचने के विशेष उपाय किये जा सके ।

x. भूमिगत जल के उपयोग में परिवर्तन (Modification of Groundwater System):

भूमिगत जल के उपयोग में निरंतर वृद्धि हो रही है । नलकूपों के द्वारा सिंचाई के लिये भारी मात्रा में जल निकाला जाता है, जिससे भूमिगत जल का स्तर नीचा हो रहा है । इसके विपरीत हरियाणा के कुछ भागों में (रोहतक, भिवानी आदि) में जल स्तर ऊपर उठ रहा है ।

जहाँ भूमिगत जल का स्तर ऊपर उठ रहा है वहाँ बाढ़ की बारंबारता भी बढ़ रही है तथा जलमग्न की परिस्थिति उत्पन्न हो रही है । इसलिए भूमिगत जल का वैज्ञानिक ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए ।

xii. सागरीय तटों को सुदृढ़ बनाना (Modification of Coastlines):

सागर के तटों से रेत इत्यादि निकालने तथा सागरीय बीचों की पारिस्थितिकी एवं प्रबंधन में सुधार करने की आवश्यकता है ।

xiii. वैधानिक उपाय (Legal Measures):

कड़े कानून बनाकर नदियों के जल मार्गों में भवन अथवा उद्योग लगाने वालों को भारी दंड दिया जाना चाहिए । वर्ष 2006 में 26 जुलाई को आने वाली भयंकर बाढ का मुख्य कारण मीठी, नदी, मुंबई के जल मार्ग में भारी संख्या में मकानों का बनाना माना गया है ।

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